दो दिन कोटा से बाहर हूँ, कम्प्यूटर और जाल हाथ लगे न लगे, कुछ कह नहीं सकता।
पहले से सूची-बद्ध की गई इस कड़ी में पढ़िए शिवराम की शिवराम की कविताएँ 'बवंडर' और 'तौहीन' ...
बवंडर
यह बवंडर भी थमेगा एक दिन
थम गई थीं जैसे सुनामी लहरें
आखिर यह बात
आएगी ही समझ में
कि- यह दुनियाँ
ऐसे नहीं चलेगी
और यह भी कि
कि- आखिर कैसे चलेगी
यह दुनिया?
ज्यादा दिन नहीं चलेगा
यह बवंडर बाजारू
थमेगा एक दिन
... शिवराम
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तौहीन
सातवें आसमान के
पार जाना था तुम्हें
तुम उड़े ,
और ठूँठ पर जा कर बैठ गए
यह उड़ान की नहीं,
परों की तौहीन है
तुम्हारी नहीं,
हमारी तौहीन है।
... शिवराम
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17 टिप्पणियां:
bahut sunder rachanyen
मन को प्रफुल्लता मिली।
दूसरी ज्यादा पसंद आयी
सुंदर |
बहुत ख़ूब!
मनभावन रचनाये प्रस्तुत करने के
लिए धन्यवाद्. मन आनंदित भयो . धन्यवाद्
जी
शिवराम जी की दोनों रचनाऐं पसंद आई. आभार प्रस्तुत करने का.
यह उड़ान की नहीं,
परों की तौहीन है
तुम्हारी नहीं,
हमारी तौहीन है। bahut badhiyaa
बहुत ही गहरे भाव, धन्यवाद!
आनंदम ! बहुत आभार आपका ! सही में लाजवाब !
Shivraam jee kee kavitaaon badee achhee hai. Tathyaparak.
अच्छी लगीं दोनों कवितायेँ
बेहतरीन भाव हैं
aanand daayak
सुंदर !
अच्छी कविताएं। शिवराम जी को यहाँ लाने का धन्यवाद।
कविताएं तो दोनों ही उत्कृष्ट हैं किन्तु 'तौहीन' अधिक अपने पास अनुभव हुई ।
प्रभावी कविताएं उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद ।
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