विगत आलेख के अंत में मै ने एक प्रश्न आप के सामने रखा था- क्या चिट्ठाकारों को प्रोफेशनल नहीं होना चाहिए?
भाई अनूप सुकुल जी ने कहा वे उत्तर का इंतजार करेंगे। जवाब मिले, और केवल इसी सवाल के नहीं कुछ और सवालों के भी। मसलन हमारे ड़ॉक्टर अमर कुमार जी ने कहा कि चाहे प्रचलित अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा के शब्द का हिन्दी विकल्प बना लें लेकिन शब्द तो वही चलेगा जो जनता चलाएगी। यानी जो जुबान पर चढ़ गया वही चलेगा। अब इन्हें हम हिन्दी शब्दकोष में जगह दें या न दें यह कोषकार पर निर्भर करेगा। पर जनता शब्दकोष पढ़ कर हिन्दी न बोलेगी। जो उस की समझ में आएगा वह बोलेगी। अब हिन्दी को जनता के साथ चलना है तो उसे भी इन शब्दों को अपनाना पड़ेगा। इस से उस का कुछ भी नुकसान नहीं होने का वह और बलवान और समृद्ध हो जाएगी।
ब्लॉगर के प्रोफेशनल होने पर तो घोस्ट बस्टर जी के अलावा किसी को भी कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन यह चिन्ता थी कि ब्लॉगर कहीं इसे केवल कमाई का साधन न बना ले। मेरे सवाल का सब से खूबसूरत जवाब देहरादून की खूबसूरत प्रेटी वूमन रक्षन्दा जी ने दिया कि ब्लॉगर प्रोफेशनल जरूर हो, लेकिन ब्लॉगिंग उस का प्रोफेशन न हो जाए। उन्हों ने प्रोफेशन शब्द के दो अलग अलग अर्थों का एक ही वाक्य में सुन्दर प्रयोग किया, और इस सवाल के मुख्य द्वंद को स्पष्ट भी किया।
कुल मिला कर सब की चिन्ता एक ही थी कि ब्लॉगिंग का उपयोग समाजिक ही रहे। धन लालसा उसे असामाजिक न बना दे। वह शिवम् बनी रहे, कल्याणकारी ही रहे। भले मानुषों की यह चिन्ता होनी भी चाहिए।
मैं एक प्रोफेशनल वकील हूँ। इस का अर्थ यह है कि मैं अपने हर काम में जीत हासिल करने की इच्छा ही नहीं रखता बल्कि उस के लिए प्रयत्न भी करता हूँ। काम हाथ में लेते समय भी परखता हूँ कि इस में सफलता मिल सकती है या नहीं। इस का यह भी अर्थ नहीं कि मैं सफलता हासिल होने वाले ही काम हाथ में लेता हूँ। ऐसे काम भी हाथ में लेता हूँ जिन में रत्ती भर भी गुंजाइश सफलता की नहीं होती, लेकिन वह लड़ाई महत्वपूर्ण होती है। वहाँ लड़ते-लड़ते हार जाना भी जीत ही होती है। लेकिन संभावित परिणामों से प्रारंभ में ही अपने सेवार्थी को अवगत करा देना, उस का तोड़ है। वह फिर भी लड़ना चाहे तो उस की लड़ाई जरूर लड़ी जाती है।
हर काम में धन की कमाई जरूरी भी नहीं होती। कभी ऐसा भी होता है कि मिलने वाले शुल्क से काम में खर्च होने वाला धन अधिक हो जाता है, तब नुकसान भी होता है। लेकिन अगर काम हाथ में ले लिया तो यह नहीं देखा जाता कि इस में नुकसान है या फायदा। एक अच्छे प्रोफेशनल की पहचान ही यही है कि वह अपने काम को मिशन की तरह ले। यही नहीं उस की कमाई पर निर्भर भी करे। क्या आप ये चाहेंगे कि मैं पूरे समय वकालत करूँ और मेरा घर किसी और साधन से चले। अगर ऐसा होने लगा तो मैं वकालत और अपने सेवार्थी के प्रति कभी भी ईमानदार नहीं रह सकूंगा। मैं फिर लोगों पर उपकार करने का नाटक करने वाला ढ़ोंगी बन कर रह जाऊँगा, और अपने सेवार्थी के हित की चिन्ता करने के बजाय उस का भला बने रहने की चिन्ता अधिक करूंगा। कमाई के जाजरू वाले रास्ते देखने लगूँगा।
एक चिट्ठाकार अपना चार-छह घंटों का कीमती समय रोज खर्च भी करे और घर चलाने के लिए दूसरी और झाँके, तो फिर चिट्ठाकारी चलनी नहीं है। वह आज की तरह रेंगती ही रहेगी।
और अंत में यह भी कि कोई भी सामाजिक मिशन बिना प्रोफेशनल कार्यकर्ताओं और नेतृत्व के शिखर पर नहीं पहुँचता। इसलिए हिन्दी चिट्ठाकारी को प्रोफेशनल चिट्ठाकारों की सख्त जरुरत है, और ऐसे प्रोफेशनल चिट्ठाकारों की कमाई के जरिए चिट्ठाकारी में ही तलाशने की जरुरत है।
क्या अब भी आप चाहेंगे कि पूरी तरह समाज को समर्पित चिट्ठाकार आर्थिक दबावों में किसानों की तरह आत्महत्या करने लगें?
क्या अब भी आप कहेंगे कि चिट्ठाकार को प्रोफेशनल नहीं होना चाहिए।
14 टिप्पणियां:
द्विवेदी जी आपके तर्क तो ठीक है पर वो व्यक्ति ब्लोग्गिंग नहीं करता है जिसे किसानों कि तरह आत्म हत्या करना पड़े, उन किसानों और ब्लॉग लिखने वालो में तुलना करना उन किसानों की गरीबी उनकी मजबूरी का मजाक नहीं है?
मेरी नज़र में ये शौक ही रहे तो ज्यादा अच्छा है, इसे कमाई वाली चीज़ तो वो बनाते हैं जिन्हें लोगो के शौक से भी पैसा बनाना है. हम अपना वक्त और भी चीजों में तो लगाते हैं... घर वालों के साथ, बच्चों के साथ, घूमने में, और कभी-कभी सामाजिक कार्यों में भी... क्या ये अहम नहीं हैं? और क्या हम इनमें भी कमाई की सोचते हैं?
माफ़ कीजियेगा, अगर कहाँ गुस्ताखी हुई हो तो, आजकल किसानों की आत्महत्या पर कुछ ज्यादा ही पढ़ रहा हूँ.
अभी तो चिट्ठे केवल अपने को खोजने, जानने, अपनी सोच को ठोस करने व अपनी खुशी के लिए ही लिखती हूँ । परन्तु यदि कभी इनके रास्ते एक चैक आ जाए तो सोने में सुहागा हो जाएगा ।
घुघूती बासूती
मैं आम व्यक्तियों के आसपास बसने वाली भाषा का हिमायती हूँ, चाहे वह हिंदी ही क्यों न हो ।
बशर्ते भाषा की अस्मिता से अश्लील शब्द खिलवाड़ न कर रहे हों ।
यह मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि शुद्धता के अतिरेक में, हम हिंदी वाले हिंदी को सामान्यजन से दूर करते जा रहे हैं ।
शायद यही वजह है कि कई कई समितियों के गठन एवं सरकारी प्रचार प्रसार के बावजूद भी अपनी मातृभाषा को उसका उचित स्थान नहीं दिला पाये हैं ।
प्रोफेशनल तो हर कार्य में होना चाहिये मगर प्रोफेशनल होने का कमाई करने से कोई लेना देना नहीं है. प्रोफेशनल बिहेवियर ज्यादा जरुरी है. कमाई निश्चित ही एडेड बेनिफिट होगी अगर कोई जरिया बन जाये अन्यथा भी अभी के लिए तो ठीक ही है.
समीरभाई की बात से सहमत
या तो आपको प्रसिद्धि मिले या नोट या दोनो। यह स्वान्त: सुखाय का फण्डा तो विरले तुलसीदास के साथ ही चल सकता है। वे भी अन्तत: प्रसिद्ध तो हो ही गये!
आपसे सहमत हूं.. पैसा ही सब कुछ नहीं होता है.. हां पर पैसा कुछ तो जरूर होता है,..
घुघूती जी से सहमत हूँ। समीर जी से भी कुछ हद तक।
घुघुती जी से सहमत है।
प्रोफेशनलिज्म का अपेक्षा एकदम जायज है चाहे पैसा कमाएं या नहीं।
"देहरादून की खूबसूरत प्रेटी वूमन रक्षन्दा" ???
संभव है आप अपनी पाठिका से परिचित हों और वह आपकी इस अभिव्यक्ति से आपत्ति न भी कर रही हों पर हमें तो ये असहज लगा।
इस वाद विवाद में पहले तो यह स्पष्ट होना चाहिये कि 'प्रोफेशन' तथा 'प्रोफेशनल' शब्दों का किन अर्थों में प्रयोग किया जा रहा हैं। मेरे मत के अनुसार तो प्रोफेशन के लिये'पेशा' और प्रोफेशनल के लिये 'पेशेवर' ही उपयुक्त शब्द हैं। अन्य लोग भी अपने हिसाब से उपयुक्त हिन्दी शब्द सुझा सकते हैं। अब यदि आप पेशेवर वकील हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि आपका पेशा वकालत न हो कर कुछ और हो। किन्तु यदि आप शौकिया वकील हैं तो आपका पेशा वकालत न होकर कुछ और हो सकता है। इसी प्रकार यदि आप पेशेवर (प्रोफेशनल) ब्लोगर हैं तो ब्लोगिंग आपका पेशा (प्रोफेशन) ही होगा। बिना ब्लोगिंग को पेशा बनाये आप पेशेवर ब्लोगर हो ही नहीं सकते। हाँ यदि आप शौकिया ब्लोगर हैं तो ब्लोगिंग आपका पेशा नहीं होगा।
अब या तो आप ब्लोगिंग को अपना पेशा बना लें या फिर शौक।
आपने लिखा है: "ब्लॉगर के प्रोफेशनल होने पर तो घोस्ट बस्टर जी के अलावा किसी को भी कोई आपत्ति नहीं थी।"
हमें भी कोई आपत्ति नहीं है. सिर्फ़ इतना कहा था कि हबड तबड से लगाये गए विज्ञापन ब्लॉग्स की सुन्दरता को नष्ट करते हैं. बल्कि असहमति तो उस बात से है जिसे आप इस पोस्ट में सबसे खूबसूरत जवाब कह रहे हैं. कोई प्रोफेशनल ब्लॉगर क्यों ना बन जाए? अगर किसी में दम होगी तभी तो चिट्ठे से कुछ कमाई कर पायेगा, इसमें एतराज जी क्या बात है?
सही है। अगर किसी में दम होगी तभी तो चिट्ठे से कुछ कमाई कर पायेगा, इसमें एतराज जी क्या बात है?
इन दिनों हम तो दे जाते हैं चार-पाँच या अधिक घंटे आर्थिक नुकसान उठाकर। अभिषेक ओझा का पहला पैरा विचारणीय है।
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