@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

मंगलवार, 10 जून 2008

पितृशोक,..... हिन्दी चिट्ठाकार श्री राज भाटिया वापस जर्मनी पहुँचे

दो हिन्दी चिट्ठों पराया देश और मुझे शिकायत है के चिट्ठाकार श्री राज भाटिया 29 मई की सुबह भारत से पुनः बेयर्न, जर्मनी अपने वर्तमान आवास पर पहुँच गए हैं। उन की दिली तमन्ना थी कि वे जब भी भारत आएँ जितना संभव हो सके अधिक से अधिक हिन्दी चिट्ठाकारों से मिलें। लेकिन यह नहीं हो सका।

Raj Bhatiya's profile दिनांक 15 मई को राज जी के पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण अनायास और तुरंत ही भारत आना पड़ा। वे 16 मई को सुबह ही भारत पहुँच गए थे। 

राज जी  कुल तेरह दिनों तक भारत में अपनी माँ और अन्य परिजनों के साथ रहे। इस बीच वे नैट की दुनियाँ से दूर रहे। कल ही चैट सूची में उन की बत्ती हरी दिखाई देने पर उन से सम्पर्क हुआ। वे अपने पिता के निधन पर बहुत दुखी थे।  वे उन से जीवित अवस्था में ही मिलना चाहते थे, लेकिन उन की यह इच्छा पूर्ण नहीं हो सकी।

मैं ने उन्हें अपने ब्लाग पर कुछ लिखने को कहा लेकिन वे अभी मन  नहीं बना सके हैं। कहने लगे। 14 जून को उन के पिता का पहला मासिक श्राद्ध है। उस दिन घर में पूजा है। उसी दिन जर्मनी में उन के परिचित आदि, सब लोग पूजा पर उन के घर आएँगे। उसी के बाद वे अपने ब्लॉग पर आने का मन बना सकेंगे।

अपने पिता से उन की जीवित अवस्था में भेंट न कर पाने का दुखः क्या होता है? यह मैं समझ सकता हूँ।

मैं उन के पिता श्री को अपनी ओर से तथा समस्त हिन्दी चिट्ठाकार परिवार की और से श्रद्धाँजली अर्पित करता हूँ और कामना करता हूँ कि उन्हें और उन के परिजनों विशेष रूप से उन की माताजी को इस दुखः से बाहर आने की शक्ति प्राप्त हो। सभी हिन्दी चिट्ठाकार इस दुखः की घड़ी में राज जी के साथ हैं।

राज जी को उन के ई-मेल पते rajbhatia007@googlemail.com  

पर संदेश प्रेषित किए जा सकते हैं।

सोमवार, 9 जून 2008

लौट कर बुद्धू घर को आए

कोई एक पखवाड़े पहले 'इन्टेन्स डिबेट' (Intense Debate) से साक्षात्कार हुआ, कैसे? यह मुझे अब पता भी नहीं। यूँ ही, नेट पर चलते चलते। मुझे उस के पोस्ट पेज पर टिप्पणी फार्म और क्लिक करते ही सैकण्ड़ों में पोस्ट पर शामिल होने के गुण से आकर्षित किया। इस में और भी अनेक फीचर्स थे, जैसे आप एक ही पेज पर अपने ब्लॉग की अब तक की सारी टिप्पणियां देख सकते थे, और अपने ब्लॉग पर की गई खुद की सारी टिप्पणियाँ भी अलग से। टिप्प्णियों की स्टेटिस्टिक्स भी। और भी अनेक विशेषताएँ हैं इस में।

लेकिन दोष भी साथ ही। जैसे शायद सर्वर का सीमित होना जिस के कारण कभी समय पर टिप्पणी फार्म का ब्लॉग के साथ शीघ्र् नहीं जुड़ पाना, जिस के कारण ब्लॉगर के टिप्पणी फार्म का दिखना और टिप्पणी वहाँ चले जाना। इस समस्या का हल था उस की टिप्पणी फार्म को जो मैं ने पेज एलीमेंट के रूप में जोड़ा था उसे एचटीएमएल के रूप में  जोड़ देना। वह मैं ने किया भी। लेकिन एक अन्य समस्या सामने आ गई। सर्वर की अक्षमता के कारण अनेक टिप्पणियाँ बार बार धकेलने पर भी नहीं चढ़ पाना और टिप्पणीकर्ता का परेशान होना। जिस में बालकिशन जी और समीर भाई तो बहुत ही परेशान हुए। समीर भाई ने तो मुझे अनेक मेल भी किये।

एक और दोष था कि टिप्पणियाँ मेल द्वारा मुझे आती तो उस में यूटीएफ-8 एनकोडिंग के शामिल न  होने से उन्हें पढ़ नहीं पाना।

इन सब कमियों को मैं ने इंटेन्स डिबेट को सूचित किया और उन्हों ने वायदा भी किया। लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें ठीक होने में अभी समय लगेगा। हो सकता है वे शीघ्र ठीक कर लें। लेकिन हिन्दी ब्लॉग्स के लायक होने में उन्हें समय लगेगा। तब तक टिप्पणी करने वाले पाठकों से अन्तर्क्रिया न कर पाना या उस में व्यवधान बर्दाश्त करने काबिल नहीं।

खैर हम वापस ब्लॉगर टिप्पणी फार्म पर आ गए हैं और ऊंचा और सुन्दर पहाड़ चढ़ कर उतरने पर मैदान की यह यात्रा अधिक प्रिय प्रतीत हो रही है। खोए हुए परिचित वापस मिल गए हैं। इस बीच जिन पाठकों को परेशानी हुई और टिप्पणियों से दोनों को वंचित होना पड़ा उन से क्षमा प्रार्थी हूँ, मेरी इस सनक के लिए।

हो सकता है इन्टेन्स डिबेट शायद कुछ महिनों या कुछ बरसों के बाद एक अच्छा साधन  बने ब्लॉगर्स के लिए। या तब तक कुछ ब्लॉगर टिप्पणी फार्म और सिस्टम ही वे सब सुविधाएं प्रदान कर दे जो इंटेन्स डिबेट पर हैं।

पर फिलहाल इंटेन्स डिबेट को विदा। खुले में सांस लेने के लिए। या यूँ कहें लौट कर बुद्धू घऱ को आए।

शुक्रवार, 6 जून 2008

चिट्ठाकारों के लिए सबसे जरुरी क्या है?

आप अपना ब्लॉग बना कर एक ब्लॉगर हो गए हैं। आप को तकनीकी सूचनाएँ भी मिल ही जाती हैं। हिन्दी चिट्ठाजगत में बहुत से वरिष्ठ चिट्ठाकार हैं जो तकनीकी रुप से सक्षम हैं और चिट्ठाकारों को सब जरुरी जानकारियाँ आप को जुटाते हैं। जरूरी होने पर उस के लिए अपने बहुमूल्य समय में से समय निकाल कर भी आप की सहायता करते हैं। इस तरह आप को तकनीकी जानकारी की कोई कमी नहीं रहती है। नई से नई जानकारी को सभी के साथ बांटते हैं। लेकिन तकनीकी रुप से सक्षमं होना मात्र एक श्रेष्ठ चिट्ठाकार होने के लिए बहुत कम योग्यता है। फिर वह क्या है जो चिट्ठाकार के लिए सब से जरुरी है?

एक शौक के वशीभूत हो कर, किसी मिशन के तहत, पैसा कमाने के लिए, अपने को अभिव्यक्त करने के लिए या अन्य किसी प्रेरणा से कोई व्यक्ति चिट्ठाकार होता है। लेकिन यह केवल एक प्रारंभ मात्र है। आप ने एक नया जीवन आरंभ किया लेकिन उस में अभी बहुत चलना है। और किसी भी जीवन की पूर्णता के लिए मार्ग में बहुत कुछ सीखना पड़ता है। ऐसा ही कुछ चिट्ठाकारी में भी है। वह क्या है जो एक चिट्ठाकर को शीर्ष पर पहुँचा देता है।

मैं पहले भी अनवरत पर लिख चुका हूँ और फिर एक बार दोहराना चाहता हूँ कि वह प्रोफेशनलिज्म है जो व्यक्ति को जीवन में सफल बनाता है। आप मेरे इस मत से इन्कार कर सकते हैं। लेकिन फिर भी मेरा आग्रह है कि एक बार परख लें कि क्या आप वाकई एक श्रेष्ट चिट्ठाकार होने की ओर आगे बढ़ रहे हैं या नहीं। आप खुद देखें कि एक शौकिया और प्रोफेशनल का क्या फर्क क्या है? और आप शौकिया रहना चाहते हैं या फिर प्रोफेशनल होना चाहते हैं?

प्रोफेशनल और शौकिया के फर्क

  • एक प्रोफेशनल काम के हर पहलू को सीखने का प्रयास करता है, जब कि एक शौकिया सीखने की प्रक्रिया को जब भी संभव हो त्याग देता है।
  • एक प्रोफेशनल सावधानी से यह तलाशता है कि उसे किस चीज की आवश्यकता है और उसे क्या चाहिए? जब कि एक शौकिया मात्र अनुमान करता है कि किस कीआवश्यकता है और उसे क्या चाहिए?
  • एक प्रोफेशनल की दृष्टि, वाणी और वस्त्र-सज्जा प्रोफेशनल जैसी होती है, जब कि एक शौकिया बोलने और देखने में बेढंगा, लापरवाह, और भावुक होता है, यहाँ तक कि वह कीचड़ से लथपथ भी हो सकता है।
  • एक प्रोफेशनल अपने कार्यस्थल को साफ और व्यवस्थित रखता है, जब कि एक शौकिया का कार्यस्थल गर्दी, गंदा और बिखरा-बिखरा रहता है।
  • एक प्रोफेशनल ध्यान-केंद्रित और स्पष्ट मस्तिष्क रहता है, जब कि एक शौकिया सदैव भ्रमित और विचलित।
  • एक प्रोफेशनल गलतियों की उपेक्षा नहीं करता, जब कि एक शौकिया गलतियों की उपेक्षा करता है और उन्हें छुपाता है।
  • एक प्रोफेशनल मुश्किल और दुष्कर कामों की जिम्मेदारी हाथों-हाथ ग्रहण करता है, जब कि एक शौकिया इन से भागने कोशिश करता है।
  • एक प्रोफेशनल हाथ में ली गई परियोजनाओं को जितनी जल्दी हो सके, पूरा करता है, जब कि एक शौकिया अधूरी परियोजनाओं से घिरा रहता है और उन की छत पर बैठा इधर-उधर ताकता रहता है।
  • एक प्रोफेशनल आशावादी और स्थिर मस्तिष्क होता है, जब कि एक शौकिया परेशान हो जाता है और सबसे खराब प्रदर्शन करता है।
  • एक प्रोफेशनल बहुत सावधानी से धन का उपयोग करता है और उस का स्पष्ट हिसाब रखता है, जब कि एक शौकिया धन के उपयोग और उस का हिसाब रखने में बेढंगा और लापरवाहीपूर्ण होता है।
  • बहुत सावधानी से प्रोफेशनल एक अन्य लोगों की परेशानी और समस्याओं को हल करता है, जब कि शौकिया समस्याओं से कन्नी काटता है।
  • एक प्रोफेशनल उत्साह , प्रसन्नता , रुचि , संतुष्टि और भावनात्मक ऊंचाइयों से लबरेज़ रहता है, जब कि शौकिया व्याक्ति सदैव दुर्भावनाओं, क्रोध, शत्रुता, रोष और भय का शिकार रहता है।
  • एक प्रोफेशनल लक्ष्य प्राप्त करने तक लगातार प्रयत्नशील रहता है, जब कि शौकिया पहला अवसर मिलते ही लक्ष्य को त्याग देता है।
  • एक प्रोफेशनल आशा से अधिक उत्पादन करता है, जब कि शौकिया मामूली उत्पादन को भी पर्याप्त समझता है और उस पर इतराता रहता है।
  • एक प्रोफेशनल उच्च गुणवत्ता के उत्पाद व सेवाएँ प्रदान करता है, जब कि एक शौकिया निम्न और मध्यम गुणवत्ता के उत्पाद व सेवाएँ।
  • एक प्रोफेशनल की आय या वेतन बहुत अच्छे होते हैं, जब कि एक शौकिया की कमाई बहुत कम होती है और वह हमेशा यह सोचता रहता है कि उस के साथ अन्याय हो रहा है।
  • एक प्रोफेशनल का भविष्य सुनिश्चित होता है, लेकिन एक शौकिया का भविष्य पूरी तरह से अनिश्चित।
  • एक प्रोफेशनल होने के लिए पहला कदम है कि आप यह तय करें कि आप को एक प्रोफेशनल बनना है।

तो अब आप क्या बनना तय कर रहे हैं?

एक प्रोफेशनल चिट्ठाकार होना?

या फिर एक शौकिया बने रहना?

रविवार, 1 जून 2008

प्रजातंत्र के भविष्य पर संदेह

कल महेन्द्र नेह की कविता "प्रजातंत्र की जय हो!" पर अच्छी टिप्पणियाँ हुईं। टिप्पणीकारों ने जहाँ नेपाल में प्रजातंत्र के आगमन पर प्रसन्नता व्यक्त की वहीं इस प्रजातंत्र के प्रसव में मुख्य भूमिका निभाने वाले नेतृत्व पर संदेह व्यक्त किया गया कि कहीं वह प्रजातंत्र को अधिनायकवाद में परिवर्तित न कर दे। महेन्द्र 'नेह' किसी काम से आए थे और उन्हों ने टिप्पणियाँ पढ़ने पर अपनी प्रति टिप्पणी भी अंकित की। उन की टिप्पणी यहाँ पुनः उदृत कर रहा हूँ......

यद्यपि सृजन के उपरांत कोई भी कृति उस के सर्जक से स्वतंत्र हो कर जनता की थाती बन जाती है। फिर भी मुझे लगा कि विनम्रता पूर्वक आप की टिप्पणियों पर अपना अभिमत व्यक्त करूँ।
वर्तमान समय की त्रासदी है कि दुनियाँ के कथित बड़े जनतंत्र फौज, पुलिस और हथियारों की भाषा में जनगण से बात करते हैं। वहाँ केवल 'तंत्र' कायम है, और जन हाशिए पर भी नहीं। इन तंत्रों ने नेपाली राजशाही की हर संभव मदद की, और गणतंत्र को आने से रोकते रहे। प्रचंड एक जनप्रिय दल के विवेकवान सारथी हैं। नवजात गणतंत्र के एक भी कदम आगे बढ़ाए बिना ही पूर्वाग्रह रखते हुए संदेह करना क्या पदच्युत राजशाही की अपरोक्ष मदद नहीं है? जनतंत्र प्रचंड व उन के जनता द्वारा परखे हुए नेतृत्व के हाथों में ही सुरक्षित रह सकता है। विश्वपटल पर उदित हो रही नयी जनतांत्रिक शक्तियों के प्रति हमें आशावान रहते हुए प्रफुल्लता से उन का हार्दिक स्वागत करना चाहिए।
.........' महेन्द्र नेह'

कृति सृजनोपरांत कृतिकार से स्वतंत्र हो जाती है, और कृतिकार तब क्या कर सकता है? इस सम्बन्ध में मुझे एक घटना का संदर्भ स्मरण आ रहा है। आप के सामने प्रस्तुत करने का लालच नहीं छोड़ पा रहा हूँ।

पिता का हृदयाघात से देहान्त हो गया। बारह दिनों तक घर में पिता के साथियों, मित्रों, सहकर्मियों, रिश्तेदारों, पड़ौसियों,मिलने वालों का आना लगा रहा। पहले पाँच-छह दिनों में ही पता लग गया कि बड़ी पुत्री का पड़ौसी के लड़के से विशेष अनुराग है। पुत्री पर मां और परिजनों ने शिकंजा कसा तो पुत्री ने जिद पकड़ ली कि वह उस लड़के से ही विवाह करेगी। लड़का विजातीय था, लड़की से शैक्षणिक योग्यता में कम और एक कारखाने में मजदूर। माँ और भाई इस विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं। लगने लगा कि लड़की किसी दिन भाग कर शादी कर लेगी।

पिता थे सामाजिक संगठन के बहुत कुछ। संगठन के साथियों ने परिस्थिति पर विचार किया। बैठक हुई और तय हुआ कि दिवंगत साथी की पुत्री भाग कर विवाह करे यह ठीक नहीं। इस कारण पहले उस की माँ व भाई को तैयार किया जाए, और यह संभव न हो तो संगठन के प्रमुख साथी इस जिम्मेदारी को निभाएँ। साथियों ने लड़के को सब तरह से परखा कि कहीं वह केवल लड़की को फँसा तो नहीं रहा था। लड़के-लड़की दोनों इस परीक्षा में खरे उतरे।

लड़की की माँ-भाई से बात की उन्हें बहुत समझाया गया। बात के दौरान माँ ने संदेह व्यक्त किया कि अगर बाद में उस लड़के ने उन की बेटी को परेशान किया तो आप क्या कर लेंगे? जिन साथी के घर से विवाह होना था, उन का उत्तर था कि अगर लड़के ने परेशान किया, या उस से उन की बेटी का कोई वास्तविक विवाद पति से हुआ तो वे और उन के साथी बेटी का जम कर साथ देंगे। हर तरह के प्रयत्न के उपरांत भी माँ व भाई किसी प्रकार भी तैयार न हुए। प्रमुख साथी के घर से विवाह होना तय हो गया। साथी के घर ही बारात आई, विवाह हुआ। नगर में चर्चा का विषय भी रहा। साथी और उन की पत्नी ने माता-पिता के फर्ज पूरे किए और बाद में भी करते रहे

माँ और भाई विवाह में नहीं आए। विवाह सफल रहा और आज माँ और भाई से लड़की और उस के पति के गहरे आत्मीय संबंध हैं। विवाह कराने वाले पिता के साथियों से भी अधिक गहरे। मां के सन्देह निरापद सिद्ध हुए।

यहाँ यह भी हो सकता था कि लड़की और उस के पति में विवाद हो जाता। लड़की परेशानी में आ जाती। ऐसे में वे साथी लड़की का साथ देते।

इस घटना से हम समझ सकते हैं कि एक परिस्थिति में लड़की का उस की इच्छानुसार विवाह कराना एक प्रगतिशील कदम था।

विवाह होने के बाद वह उस के कराने वालों से स्वतंत्र हो गया था। बाद में वे केवल उचित का साथ दे सकते थे। विवाह के पूर्व विवाह की सफलता पर संदेह करना पूरी तरह गलत था।

यहाँ महेन्द्र 'नेह' ने नेपाल में प्रजातंत्र के आगमन का उत्साह के साथ स्वागत किया है। वे उस की सफलता के प्रति आशावान हैं। उस की सफलता में किसी प्रकार का संदेह उन के मन में नहीं है। उन का यह कहना कि प्रजातंत्र की सफलता पर इस समय संदेह करना उस के शत्रुओं की सहायता करना है। मैं भी उन से सहमत हूँ।

हमारी राय है कि अगर भविष्य में प्रचंड और उन का दल जनता के हितों के विरुद्ध जाता है तो हम सभी को उस समय परिस्थितियों का मूल्यांकन करने और अपना पक्ष चुनने का पूरा अधिकार रहेगा।

और अन्त में कल के आलेख पर मिली सब से सुंदर, सटीक और संतुलित टिप्पणी रक्षन्दा जी की ......

नेपाल में प्रजातंत्र का नया सवेरा हुआ है, राज शाही की घुटन से जनता को छुटकारा मिला है , जो दल जीता है , वो लाख प्रजातंत्र से दूर हो, जालिम राज शाही से हज़ार दर्जे बेहतर है. बहुत सुंदर और सामायिक कविता.

शनिवार, 31 मई 2008

प्रजातंत्र की जय हो!


Republic Nepal

राजा तब तक ही राजा रह सकता है जब तक जनता को प्रिय होता है। जनता के लिए अप्रिय होने पर पहला अवसर प्राप्त होते ही जनता राजा को उखाड़ फेंकती है। यही सब कुछ हुआ नेपाल में भी। नेपाल की राजशाही समाप्त हुई। अब नेपाल गणतंत्र है। नेपाली गण की इस विजय और गणतंत्र की स्थापना के भावों को संजोया है महेन्द्र "नेह" ने इस ग़जल में.........

प्रजातंत्र की जय हो!

* महेन्द्र 'नेह' *



उछली सौ-सौ हाथ मछलियाँ ताल की।

चौड़े में उड़ गईं धज्जियाँ जाल की।


गूँज उठी समवेत दहाड़ कहारों की।

नहीं ढोइंगे राजा 'जू' की पालकी।


आजादी के परचम फहरे शिखरों तक।

खुशबू फैली गहरे लाल गुलाल की।


उमड़ पड़े खलिहान, खेत, बस्तियाँ गाँव।

कुर्बानी दे पावन धरा निहाल की।


टूट गया आतंक फौज बन्दूकों का।

शेष कथा है विक्रम औ बैताल की।


सामराज के चाकर समझ नहीं पाए।

बदली जब रफ्तार समय की चाल की।


प्रजातंत्र की जय हो, जय हो जनता की।

जय हो जन गण उन्नायक नेपाल की।

nepal Republic 1

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सोमवार, 26 मई 2008

जानलेवा और मारक हो चुकी है आरक्षण की औषध ------------ कोई नई औषध खोज लाएँ अनुसंधानकर्ता

गुर्जर आंदोलन पर मुख्यमंत्री वसुन्धरा के रवैये को समझा जा सकता है। वे कहती हैं - सब्र की भी सीमा होती है: वसुंधरा अगर हम आज की राजनीति के चरित्र को ठीक से समझ लें। उसी तरह गुर्जर आंदोलन के नेता बैसला के इस बयान से कि पटरियों पर होगा फैसला: बैसला आंदोलन के चरित्र को भी समझा जा सकता है।

पिछड़ेपन को दूर करने के लिए आरक्षण की जो चिकित्सा संविधान ने तय की थी उसे वोट प्राप्ति के लिए रामबाण समझ लेने और लगातार बढ़ाए जाने से जो स्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं, गुर्जर आंन्दोलन उसी का उप-उत्पाद है। एक लम्बे समय तक किसी औषध का प्रयोग होता रहे तो उस के साइड इफेक्टस् भी खतरनाक होने लगते हैं और वह जानलेवा भी साबित होने लगती है। सभ्य समाज ऐसी औषधियों का प्रयोग और उत्पादन प्रतिबंधित कर देती है। ऐसा भी होता है कि अगर आप कब्ज या ऐसे ही किसी मर्ज के रोगी हों, और कब्ज को दूर करने के लिए किसी एक औषध को लगातार लेते रहें तो वह औषध का रूप त्याग कर नित्य भोजन का अत्यावश्यक भाग बन जाती है। धीरे धीरे वह अपना असर भी खोना प्रारंभ कर देती है। फिर औषध की या तो मात्रा बढ़ानी पड़ती है, या फिर औषध ही बदल देनी पड़ती है।
आरक्षण जिसे एक रोग की चिकित्सा मात्र के लिए औषध के रूप में लाया गया था। यहाँ तक कि उस की "एक्सपायरी डेट" तक भी निर्धारित कर दी गई थी। उसे अब औषध की सूची से निकाल कर खाद्य की सूची में शामिल कर लिया गया है। इस लिए नहीं कि वह रोग की चिकित्सा है या रोगी के लिए जीवन रक्षक है। अपितु इसलिए कि कथित चिकित्सक समझ रहे हैं कि अगर यह दवा बन्द कर दी गई तो रोगी उस के कब्जे से भाग लेगा और इस से उस के धन्धे पर असर पड़ेगा। चिकित्सक शोध नहीं करते शोधकर्ता और ही होते हैं। जब कोई औषध बेअसर होने लगती है तो वे नयी औषध के लिए अनुसंधान करते हैं, और नयी औषध लाते हैं। तब जानलेवा औषधियों को प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
इस गुर्जर आंदोलन की आग नहीं बुझेगी। कोई समझौते का मार्ग तलाश भी कर लिया जाए तो वह केवल आग पर राख डालने जैसा होगा। आग अन्दर- अन्दर ही सुलगती रहेगी। ये न समझा जाए कि वह अन्य समाजों में न फैलेगी। कहीं ऐसा न हो कि यह वाकई एक दावानल का रूप ले ले।
ये चिकित्सक (राजनैतिक दल) कभी भी नयी औषध का आविष्कार नहीं करेंगे। क्यों कि ये धन्धा करने आए हैं। चिकित्सा की परंपरा को विकसित करने नहीं। इन के भरोसे समाज, देश और मानव जाति को नहीं छोड़ा जा सकता है। अनुसंधानकर्ता ही कोई नयी औषध ले कर आएंगे तो मानव जाति बचेगी।
मेरा विनम्र आग्रह है उन सामाजिक अनुसंधानकर्ताओं से जो समाज के प्रति अपने दायित्व  को पहचानते हैं, कि वे इस काम मे लगें। कोई नयी औषध तलाश कर लाएँ, जिस से इस मारक, जानलेवा औषध आरक्षण को प्रतिस्थापित किया जा सके। वरना इतिहास न तो इन चिकित्सकों को माफ करेगा और न ही अनुसंधानकर्ताओं को।

रविवार, 25 मई 2008

गुर्जर-2............यह आँदोलन है या दावानल ?

कोटा के आज के अखबारों में गुर्जर आंदोलन छाया हुआ है।

अखबारों ने जो शीर्षक लगाए हैं, उन्हें देखें.....................

सिकन्दरा में कहर - हालात बेकाबू, 23 और मरे, दो दिन में 39 लोग मारे गए, 100 से अधिक घायल - जवानों ने की एसपी व एसडीएम की पिटाई - हिंसक आंदोलन बर्दाश्त नहीं...वसुन्धरा - तीन कलेक्टर दो एसपी बदले - मौत का बयाना - कोटा में आज दूध की सप्लाई बंद, हाइवे पर जाम लगाएँगे - रेल यातायात ठप, बसें भी नहीं चलीं - टिकट विंडो भी रही बन्द - कोटा-दिल्ली-आगरा के बीच रेल सेवाएँ ठप,यात्रियों ने आरक्षण रद्द कराए, परेशानी उठानी पड़ी, रेल प्रशासन को करोड़ों का नुकसान, कई परीक्षाएँ स्थगित - लाखों के टिकट रद्द - श्रद्धांजली देने के खातिर गूजर नहीं बाँटेंगे दूध - ट्रेनें रद्द होने से कई परीक्षाएँ रद्द - एम.एड. परीक्षा टली - प्री बी.एड परीक्षा बाद में होगी - रेलवे ट्रेक की भी क्षति - श्रद्धांजलि देने की खातिर गुर्जर नहीं बाँटेंगे दूध - गुर्जर आंन्दोलन की आँच हाड़ौती में भी फैली - नैनवाँ पुलिस पर हमला - चार पुलिसकर्मी घायल- गर्जरों ने पहाड़ियों पर जमाया मोर्चा - राष्ट्रीय राजमार्ग 76 पर बाणगंगा नदी के पास जाम - कोटा शिवपुरी ग्वालियर सड़क संपर्क दो घंटे बन्द रहा - बून्दी बारां व झालावाड़ में जाम - स्टेट हाईवे 34 पर आवागमन बन्द - रावतभाटा रोड़ पर देर रात जाम - बून्दी जैतपुर में जाम पुलिसकर्मी पिटे - झालावाड़ बसें बन्द - 17 गुर्जर बन्दियों ने दी अनशन की धमकी - सेना सतर्क, बीएसएफ पहुँची, आरफीएसएफ की एक कम्पनी बयाना जाएगी - हर थाने को दो गाड़ियाँ - रात को दबिश - हाड़ौती के कई कस्बों में आज बन्द - राजस्थान विश्व विद्यालय की परीक्षाएं स्थगित - पटरी पर कुछ भी नहीं - ... प्रदेश में अशांति की अंतहीन लपटें - भरतपुर बयाना के हालात=पटरियाँ तोड़ी फिश प्लेटें उखाड़ी - दूसरे दिन बयाना में पहुँची सेना, शव लेकर रेल्वे ट्रेक पर बैठे रहे बैसला - डीजीपी ने हेलीकॉप्टर से लिया जायजा - चिट्ठी आने तक नहीं हटेंगे बैसला- गुर्जर आन्दोलन = गुस्सा+ जोश= पाँच किलोमीटर - यह तो धर्मयुद्ध है - जोर शोर से पहुँची महिलाएँ - चाहे चारों भाई हो जाएँ कुर्बान - मेवाड़ में सड़कों पर उतरे गुर्जर - राजसमन्द में हाईवे जाम - हजारों गुर्जरों का बयाना कूच - छिन गया सुख चैन- ठहरी साँसें - अटकी राहें - सहमी निगाहें - हैलो भाई तुम ठीक तो हो - कई रास्ते बंद जयपुर रोड़ पर खोदी सड़क - 8 कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त - किशनगढ़ भीलवाड़ा बन्द सफल - दो गुर्जर नेता गिरफ्तार - करौली -टोक में सड़कें सुनसान - चित्तौड़गढ़ अजमेर अलवर और करौली आज बन्द - सहमे रहे लोग आशंकाओं में बीता दिन - शकावाटी में भी बिफरे गुर्जर - नीम का थाना में एक बस को आग के हवाले किया - चार बसों में तोड़ फोड़ - बस चालक घायल कई जगह रास्ता जाम- पाटन में सवारियों से भरी बस को आग लगाने का प्रयास - सीकर झुन्झुनु के गुढ़ागौड़ जी व खेतड़ी में गुर्जरों की सभाएँ और सीएम का पुतला फूँका ............

..........................................आपने पढ़े खबरों के हेडिंग ये एक दिन के एक ही अखबार से हैं। दूसरे अखबार से शामिल नहीं किये गए हैं। अब आप अंदाज लगाएँ कि यह आँदोलन है या दावानल ?

इस दावानल का स्रोत कहाँ है? वोटों के लिए और सिर्फ वोटों के लिए की जा रही भारतीय राजनीति में ?  पूरी जाति,  वह भी पशु चराने और उन के दूध से आजीविका चलाने वाली जाति से आप क्या अपेक्षा रख सकते हैं। यह पीछे रह गए हैं तो उस में दोष किस का है? इन के साथ के मीणा अनुसूचित जाति में शामिल हो कर बहुत आगे बढ़ गए हैं। गुर्जरों को यह बर्दाश्त नहीं। उन्हें राजनीतिक हल देना पड़ेगा। पर मीणा वोट अधिक हैं। उन्हें नाराज कैसे करें?

  

पिछड़ेपन को दूर करने की नाकाम दवा आरक्षण के जानलेवा साइड इफेक्टस हैं ये।

ये आग भड़क गई है। नहीं बुझेगी आरक्षण से। पीछे कतार में अनेक जातियाँ खड़ी हैं।

आरक्षण को समाप्ति की ओर ले जाना होगा। पिछड़ेपन को दूर करने और समानता स्थापित करने का नया रास्ता तलाशना पड़ेगा। मगर कौन तलाशे?