प्रजातंत्र की जय हो!
* महेन्द्र 'नेह' *
उछली सौ-सौ हाथ मछलियाँ ताल की।
चौड़े में उड़ गईं धज्जियाँ जाल की।
गूँज उठी समवेत दहाड़ कहारों की।
नहीं ढोइंगे राजा 'जू' की पालकी।
आजादी के परचम फहरे शिखरों तक।
खुशबू फैली गहरे लाल गुलाल की।
उमड़ पड़े खलिहान, खेत, बस्तियाँ गाँव।
कुर्बानी दे पावन धरा निहाल की।
टूट गया आतंक फौज बन्दूकों का।
शेष कथा है विक्रम औ बैताल की।
सामराज के चाकर समझ नहीं पाए।
बदली जब रफ्तार समय की चाल की।
प्रजातंत्र की जय हो, जय हो जनता की।
जय हो जन गण उन्नायक नेपाल की।
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