'भँवर म्हाने पूजण दो
गणगौर'
यह उस लोक गीत का मुखड़ा है जो
होली के अगले दिन से ही राजस्थान भर में गाया जा रहा है। राजस्थान में वसंत के
बीतते ही भयंकर ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। आग बरसाता हुआ सूरज, कलेजे को छलनी कर देने और तन का जल सोख लेने वाली तेज लू के तेज थपेड़े बस
आने ही वाले हैं। अनवरत पसीना टपकाने वाले ऐसे निकट भविष्य के पहले राजस्थान में
अगले शुक्रवार 27 मार्च को गणगौर का त्यौहार मनाया जाने वाला है।
गणगौर प्रतिमाएँ अनेक घरों पर बिठा
दी गयी हैं। रोज उनकी पूजा की जा रही है। गीत गाए जा रहे हैं। यह अभी व्यक्तिगत
स्तर पर है। पर अगले शुक्रवार को यही सब सामुहिक रूप ले लेने वाला है। उस से पहले
गणगौर पर बनने वाले पकवान ‘गुणे’ बनना आरंभ हो
चुके हैं। कल मुझे भी हुकुम हुआ कि गुड़ लाना है, गुणे बनाने के लिए। गुड़ आया तो
दो घण्टे बाद ही टेबल पर गुड़ और गेहूँ के आटे के बने गुणे नजर आने लगे। रात तक वे
तले जा कर खुले में रख दिए गए, जिस से उन की बची खुची नमी भी निकल ले। सुबह वे
डिब्बे में बंद हो चुके हैं। किसी को भी इनका स्वाद अगले शुक्रवार गणगौर के दिन
पूजा के बाद ही चखने को मिलेगा।
गणगौर के दिन अर्थात अगले
शुक्रवार 27 मार्च को सुबह से ही मुहल्ले में स्त्रियों की हलचल बढ़ जाएगी। वे
सजेंगी-सँवरेंगी, बेसन के आटे से शिव-पार्वती की प्रतिमाओं के लिए गहने गढ़ेंगी,
फिर पूजा का थाल सजा कर उस घर को जाएंगी जहाँ मुहल्ले मे गणगौर ‘घाली’ हुई है। वे पूजा के लिए अकेले ही नहीं जातीं।
दो-दो चार-चार के समूह में पूजा के लिए जाती हैं। वहाँ एकत्र हो कर गीत गाती हैं,
नाचती हैं। आमोद प्रमोद चलता है। साँयकाल गणगौर की प्रतिमाओँ को ‘सराने’ सामुहिक रूप से जलूस बना कर नदी तालाब पर
जाती हैं। इस जलूस के आगे बैंड-बाजा होता है। कुछ नहीं तो एक ढोली ढोल बजाता हुआ
जरूर चलता है। नदी पर वे प्रतिमाओं को सराने के पहले और बाद में गीत गाती हैं और
ढोल की थाप पर नृत्य करती हैं। देर रात तक यह काम चलता रहता है। पहले तो सारी
व्यवस्थाएँ पुरुष ही करते थे। अब यह कमान लगभग पूरी तरह स्त्रियों के हाथों में है।
पुरुष इन कामों में केवल वान्छित सहयोग करते हैं। राजस्थान में स्त्रियों के लिए
इस त्यौहार का बहुत महत्व है। पुरुषों के लिए भी यह त्यौहार अपनी प्रियाओं को
प्रसन्न रखने, रूठी प्रियाओं को मनाने और वैवाहिक जीवन में सूख चुके रोमांस को तरलता
प्रदान करने का होता है। इस त्यौहार में पुराने वक्त में मनाए जाने वाले मदनोत्सव
के अवशेष मौजूद हैं।
त्यौहार तो आ चुका है। लेकिन उसके
साथ ही राजस्थान में वायरस ‘कोविद-19’ की भयानक
उपस्थिति एक बड़े संकट का कारण हो सकती है। इस वायरस से फैली बीमारी को संयुक्त
राष्ट्र संघ ‘महामारी’ घोषित कर चुका
है। ऐसे में इस त्यौहार के समय सतर्कता बहुत आवश्यक हो गयी है। इस त्यौहार में
स्त्रियों का समूह में एकत्र होना पर्याप्त समय तक साथ रहना। पुरुषों का सहयोग के
लिए नजदीक बने रहना। फिर समारोह है तो अपरिचित भी इसमें सम्मिलित होते हैं। ऐसे
में सामुहिक रूप से इसे मनाना वायरस के प्रसार के लिए बहुत मुफीद हो सकता है। आज
ही खबर है कि भीलवाड़ा में तीन चिकित्सक और तीन नर्सिंग छात्र इस कोरोना की चपेट
में हैं। उन में लक्षण दिखाई देने के पहले वे सैंकड़ों लोगों के संपर्क में आए
होंगे और उनमें से अनेक को वायरस स्थानान्तरित हुए हो सकते हैं। इसी कारण से इस
नगर को पूरी तरह से ‘लॉक डाउन’ की
स्थिति में लाने की कवायद चल रही है। आशा है प्रशासन और भीलवाड़ा की जनता इस ‘लॉक डाउन’ को सहयोग करेंगे और वायरस का विस्तार रुक
सकेगा।
इस घटना को देखते हुए आगामी दिन
बहुत ऐहतियात रखने के होंगे। गणगौर पूजा वास्तव में शिव-पार्वती पूजा है। जिन
परिवारों की स्त्रियाँ इस त्यौहार को मनाती हैं उन के घरों में शिव-पार्वती
प्रतिमाएँ या तस्वीरें अवश्य होती हैं। सभी स्त्रियाँ अपने अपने घरों में रह कर इन
प्रतिमाओं/ तस्वीरों की पूजा कर के त्यौहार मना सकती हैं। उन्हें इस के लिए बाहर
निकलने की जरूरत नहीं होगी। इस अवसर पर जो मीठे और चरपरे गुणे बनाए जाते हैं
उन्हें आपस में बदला भी जाता है। इस बार यह काम न किया जाए तो बेहतर है। क्यों कि
इस अदला-बदली में वायरस स्थानान्तरण भी हो सकता है। आज कोरोना वायरस से फैली इस
विश्वव्यापी महामारी के समय में गणगौर के त्यौहार को भी निबन्धित रीति से मनाना
पड़ेगा। यह निबन्धित रीति क्या हो, यह बताने के लिए राज्य सरकार को तुरन्त
एडवाइजरी जारी करनी चाहिए।