विचारमग्न |
मैं ने अपनी पोस्ट उद्यमी ठाला नहीं बैठता में रमेश कुमार जैन का उल्लेख किया था। इन का तखल्लुस 'सिरफिरा' है। वे पत्रकार हैं, साथ में पुस्तकें विक्रय करने, विज्ञापन बुक करने, अखबार व पुस्तकें प्रकाशन का कार्य करते हैं। सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों में रुचि रखते हैं और उन का दखल मानवता के पक्ष में होता है। इस मामले में वे समझौता भी नहीं करते। बीच में कुछ व्यक्तिगत परिस्थितियों ने उन के इन कामों में बाधा पैदा की। वे निराश भी हुए। लेकिन अब उन के पास कुछ अच्छे साथियों का साथ है। वे बहुत कुछ इस निराशा से निकल चुके हैं। मुझे विश्वास है कि वे शेष निराशा को भी जल्दी ही यमुनाशरण भेज देंगे। इसी बीच उन्हों ने हिन्दी ब्लागरी को अपनाया और उस का एक अभिन्न हिस्सा बन गए। मुझे यह भी विश्वास है कि वे शीघ्र ही यहाँ कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं। उन के पत्रकारिता, प्रकाशन, विज्ञापन संग्रहण और पुस्तक विक्रय के अनुभव का ब्लागरी को लाभ मिलेगा। मेरा जो ब्लागरों के सहकारी प्रकाशन का विचार है, यदि उस ने मूर्तरूप लिया तो उस के सब से मजबूत स्तम्भों में रमेश जी एक होंगे।
उक्त पोस्ट उद्यमी ठाला नहीं बैठता के एक-एक चरण के जो सटीक और तार्किक उत्तर दिए उन्हें मैं ने अनवरत की पोस्ट क्या कहते हैं? उद्यमी 'सिरफिरा' जी में प्रस्तुत किया था। इस पोस्ट को पढ़ने मात्र से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि रमेश जी कैसे व्यक्तित्व के स्वामी हैं। बस उन की चौथी टिप्पणी छूट गई थी, उसे आज पोस्ट कर रहा हूँ। उन्हों ने उस पोस्ट उद्यमी ठाला नहीं बैठता पर आई सभी टिप्पणियों पर अपनी प्रतिटिप्पणियाँ भी लिखीं हैं। वे उन्हें उसी पोस्ट पर प्रकाशित भी करना चाहते थे, लेकिन उस दिन ब्लागर के बंद रहने के कारण ये प्रति टिप्पणियाँ उन्हों ने मुझे मेल कर दीं। उन प्रतिटिप्पणियों को भी मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ-
पोस्ट पर चौथी टिप्पणी
अब कुछ लिखते हुए |
गुरुवर:-अंत में सिरफिरा जी ने जो कहा वह बात जरूर दिल को लगने वाली है, लेकिन है बहुत जबर्दस्त। वे कहते हैं-किताब केवल अलमारी में सजाकर नहीं रखी जानी चाहिए बल्कि आम आदमी तक उसको पहुंचना चाहिए. बोलो, इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है? उन की ये बात बहुत सारे ब्लागरों को तीर सी चुभ कर उन्हें घायल कर सकती है। वे सोच सकते हैं कि " लो ये आया है कल का ब्लागर, जो अभी अजन्मा है, कह रहा है कि लिखना ऐसा चाहिए जिसे आम आदमी खरीद कर ले जाए। ये कौन होता है हमें सिखाने वाला? हम ब्लागर हैं, ब्लागर। बस कंप्यूटर चालू कर के बैठते हैं और की-बोर्ड पर उंगलियाँ चलने लगती हैं। जो टाइप कर देते हैं वही हमारा लेखन है। सोच समझ कर लिखा, तो क्या लिखा? खैर! आप कुछ भी सोचें मुझे तो सिरफिरा जी कह ही चुके हैं कि मेरी किताब वो छापने को तैयार हैं और रॉयल्टी भी देंगे। तो मैं क्यों देर करूँ ? चलता हूँ अपनी पोस्टों को संभाल कर, उन का संपादन करने, उन की पाण्डुलिपि तैयार करने। उधर तीसरा खंबा पर रॉयल्टी के बाबत कानूनी जानकारी की पोस्ट भी लिखनी है। तब तक आप गिनते रहिए कि सहकारी की सौ की संख्या कब पूरी होती है। बस सौ हुए, और सहकारी शुरू।
सिरफिरा:- गुरुवर! आपने कड़वी सच्चाई को इतनी बेबाकी से रखकर न जाने कितनों को मेरा दुश्मन बना दिया है.लगता है तीन-चार ब्लोगरों ने मान-हानि के नोटिस तो जरुर तैयार करवा दिए होंगे. एक-दो दिन आपके पास या मेरे पास आते ही होंगे. आज इतनी मंहगाई में आम आदमी बड़ी मुश्किल से अपनी जरूरतों की चीज़ या पुस्तक खरीदता है. तब उसके पास हर दूसरी किताब खरीदने के लिए पैसे कहाँ होंगे? मैं आप (तीसरा खम्बा) की अंधिकाश नई व पुरानी पोस्टें पढ़ चुका हूँ. उपरोक्त किताब द्वारा जानकारी आम-आदमी तक अगर पहुंचती हैं.तब उसके लिए लाभदायक होगी, क्योंकि आम-आदमी ऐसी कई परेशानियों से रोज रूबरू होता है और सही जानकारी न मिलने पर शोषित होता है. यह मेरा आपसे पिछले नौ महीने से जुड़ने के बाद महसूस किया और कुछ भ्रष्टाचारियों की नाक में दम कर रखा है. तीसरा खंबा पर रॉयल्टी के बाबत कानूनी जानकारी की पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार है.
गुरुवर:-रमेश कुमार जैन साहब किताब भी छापने को तैयार हैं और रॉयल्टी देने को भी। लेकिन मेरे संपादन में समय तो लगेगा और उधर सहकारी शुरू होने में भी। तो तब तक सिरफिरा जी फालतू बैठ कर क्या करेंगे? बहुत सारे ब्लागर बीस-बीस हजार दे कर किताब छपवाने को तैयार बैठे हैं। मेरी जैन साहब को सलाह है कि तब तक उन से कुछ कम-ज्यादा कर-करा कर किताब प्रकाशन का काम तुरन्त शुरू करें। उद्यमी ठाला नहीं बैठता। उन्हें भी नहीं बैठना चाहिए।
सिरफिरा:- गुरुवर! जब तक समय लगता है। तब तक कुछ अपनी उलझनों से भी निकल लेता हूँ और कुछ प्रकाशन परिवार में फैली अव्यवस्था को ठीक कर लेता हूँ। साथ में कुछ यारे-प्यारे का डाटा भी तैयार कर लेता हूँ। इसलिए ठाली बैठने का सवाल नहीं उठता है। मुझे 20-20 हजार रूपये लेकर किताबें छापनी होतीं तो अब तक प्रकाशन परिवार के 14 वर्षों में कम से कम 140 बुक छाप दी होती। मुझे किसी को यह नहीं दिखाना कि देखो मैं इतना बड़ा प्रकाशक हूँ, या कोई इनाम/अवार्ड नहीं लेना है। किताब एक-साल में एक या दो ही प्रकाशित हो, मगर उसकी सामग्री और बिक्री इतनी अच्छी हो कि एक साल में कम से कम दो बार उसका संस्करण प्रकाशित करने की जरूरत पड़े। थोड़े से चाँदी के कागजों के लिए, या यह कहूँ अपने आपको अमीर और गाड़ी वाला दिखाने के लिए "कुछ भी" छापना शुरू कर दूँ। आज मुझे अपनी गरीबी पर अफ़सोस नहीं है। मगर ऊपर वाले के खाते में अमीरों की सूची में पहला नहीं तो दूसरा स्थान तो पक्का है। आपको हमेशा मेरे उपनाम "सिरफिरा" पर एतराज था। अब बताइए कि न आधा और न उससे थोडा ज्यादा, हूँ पूरा का पूरा सिरफिरा हूँ कि नहीं? रहता इस दुनिया में और ख्याब उस दुनिया के देखता है। अब थोडा-सा आपकी अनुमति से जरा टिप्पणीकर्त्ताओं को भी प्यारे-प्यारे जवाब दे दूँ।
रमेश कुमार जैन 'सिरफिरा' की प्रति टिप्पणियाँ
सिरफिरा:- गुरुवर! आपने कड़वी सच्चाई को इतनी बेबाकी से रखकर न जाने कितनों को मेरा दुश्मन बना दिया है.लगता है तीन-चार ब्लोगरों ने मान-हानि के नोटिस तो जरुर तैयार करवा दिए होंगे. एक-दो दिन आपके पास या मेरे पास आते ही होंगे. आज इतनी मंहगाई में आम आदमी बड़ी मुश्किल से अपनी जरूरतों की चीज़ या पुस्तक खरीदता है. तब उसके पास हर दूसरी किताब खरीदने के लिए पैसे कहाँ होंगे? मैं आप (तीसरा खम्बा) की अंधिकाश नई व पुरानी पोस्टें पढ़ चुका हूँ. उपरोक्त किताब द्वारा जानकारी आम-आदमी तक अगर पहुंचती हैं.तब उसके लिए लाभदायक होगी, क्योंकि आम-आदमी ऐसी कई परेशानियों से रोज रूबरू होता है और सही जानकारी न मिलने पर शोषित होता है. यह मेरा आपसे पिछले नौ महीने से जुड़ने के बाद महसूस किया और कुछ भ्रष्टाचारियों की नाक में दम कर रखा है. तीसरा खंबा पर रॉयल्टी के बाबत कानूनी जानकारी की पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार है.
गुरुवर:-रमेश कुमार जैन साहब किताब भी छापने को तैयार हैं और रॉयल्टी देने को भी। लेकिन मेरे संपादन में समय तो लगेगा और उधर सहकारी शुरू होने में भी। तो तब तक सिरफिरा जी फालतू बैठ कर क्या करेंगे? बहुत सारे ब्लागर बीस-बीस हजार दे कर किताब छपवाने को तैयार बैठे हैं। मेरी जैन साहब को सलाह है कि तब तक उन से कुछ कम-ज्यादा कर-करा कर किताब प्रकाशन का काम तुरन्त शुरू करें। उद्यमी ठाला नहीं बैठता। उन्हें भी नहीं बैठना चाहिए।
सिरफिरा:- गुरुवर! जब तक समय लगता है। तब तक कुछ अपनी उलझनों से भी निकल लेता हूँ और कुछ प्रकाशन परिवार में फैली अव्यवस्था को ठीक कर लेता हूँ। साथ में कुछ यारे-प्यारे का डाटा भी तैयार कर लेता हूँ। इसलिए ठाली बैठने का सवाल नहीं उठता है। मुझे 20-20 हजार रूपये लेकर किताबें छापनी होतीं तो अब तक प्रकाशन परिवार के 14 वर्षों में कम से कम 140 बुक छाप दी होती। मुझे किसी को यह नहीं दिखाना कि देखो मैं इतना बड़ा प्रकाशक हूँ, या कोई इनाम/अवार्ड नहीं लेना है। किताब एक-साल में एक या दो ही प्रकाशित हो, मगर उसकी सामग्री और बिक्री इतनी अच्छी हो कि एक साल में कम से कम दो बार उसका संस्करण प्रकाशित करने की जरूरत पड़े। थोड़े से चाँदी के कागजों के लिए, या यह कहूँ अपने आपको अमीर और गाड़ी वाला दिखाने के लिए "कुछ भी" छापना शुरू कर दूँ। आज मुझे अपनी गरीबी पर अफ़सोस नहीं है। मगर ऊपर वाले के खाते में अमीरों की सूची में पहला नहीं तो दूसरा स्थान तो पक्का है। आपको हमेशा मेरे उपनाम "सिरफिरा" पर एतराज था। अब बताइए कि न आधा और न उससे थोडा ज्यादा, हूँ पूरा का पूरा सिरफिरा हूँ कि नहीं? रहता इस दुनिया में और ख्याब उस दुनिया के देखता है। अब थोडा-सा आपकी अनुमति से जरा टिप्पणीकर्त्ताओं को भी प्यारे-प्यारे जवाब दे दूँ।
रमेश कुमार जैन 'सिरफिरा' की प्रति टिप्पणियाँ
@अविनाश वाचस्पति जी,
भूमिगत होने का अनुभव भी है। |
आपने कहा कि- मतलब सिरफिरा तो वे खुद हैं, बीस बीस हजार लेकर सिर फिरा देंगे सब हिंदी ब्लॉगरों का। मेरे से एक लाख ले लें और अडवांस में रायल्टी दे दें।
सिरफिरा: आदरणीय अविनाश वाचस्पति जी! वैसे आपकी टिप्पणी का जवाब मेरे गुरुवर दे दिया है. मगर यह नाचीज़ शिष्य अपने गुरुवर की डांट (प्यार) के लिए थोड़ी सी गुस्ताखी कर रहा है। मेरी आपसे किसी प्रकार व्यक्तिगत लड़ाई या मेरे मन आपके प्रति द्वेष भावना नहीं है। अगर विश्वास न हो, पूर्व सूचना देकर मेहमान नवाजी का मौका देकर देख लें। मगर मेरी विचारों की भिन्नता को लेकर स्वस्थ मानसिकता से आपकी बात को लेकर बहस मात्र है और आपकी कथनी और करनी को जाने की इच्छा मात्र है। मेरे पास आप जितना ज्ञान नहीं है, मेरे लेख भी आप जितने प्रकाशित नहीं हुए हैं। मेरे पास सम्मानों का बहुत बड़ा ढेर भी नहीं हैं। आप द्वारा प्रचारित तीनो हरियाणवीं फ़िल्में देख रखी हैं और गुलाबों के एक गाने के कुछ बोल आज भी याद हैं। जितनी पत्र-पत्रिकाओं के लिए आप लिखते हैं उनमें से एक-दो को छोड़कर, बाकी सब के लिए अपने अच्छे दिनों में विज्ञापन बुक किया करता था। मेरे ब्लागों पर लोग भी इतने नहीं आते हैं, जितने आपके ब्लॉग पर आते हैं। आपसे हर मामले में तुच्छ (नाचीज़) हूँ। अब आप कह रहे हैं कि मेरे से एक लाख ले लें, चलिए आप बता दीजिये एक लाख रूपये नकद देंगे या चेक से देंगे। इस पर ब्याज कितना लेंगे। मेरी हैसियत 9 प्रतिशत वार्षिक की है। हर महीने बिना मांगे 750 रूपये का चेक आपके संतनगर वाले घर पर 11 तारीख को पहुँच जाया करेगा। अगर आप अपना किसी काम के लिए, या किसी विज्ञापन, या इन दिनों मेरी जरूरत के अनुसार कर्ज के बतौर आप एक लाख रूपये दे मुझे दे सकते हों तो अवश्य दें। वरना इन चंद कागज के टुकड़ों का आपकी सेफ में रहना ही बेहतर है। आपको मेरी आप को तुच्छ सलाह है कि आप खुले आम किसी को रूपये देने का प्रस्ताव न करें। किसी सिरफिरे ने जिद्द पकड ली, तब आपको देने में मुश्किल होगी। आप एक लाख रूपये की बात तो दूर छोडिये मेरी मेहनत की कमाई से लिये "कैमरे के सैल और उसका चार्जर ही ढूंढ़वाकर भिजवा दें। एक बात आप हमेशा ध्यान रखें कि भारत देश की धरती पर जब तक यह "सिरफिरा" पत्रकार जीवित रहेगा, उसे कोई माई का लाल चंद कागज के टुकड़ों से खरीद नहीं सकता। मुझे मरना मंजूर है, लेकिन बिकना मंजूर नहीं। बाकी रही अडवांस में रायल्टी देने की बात, तो पहले किताब या लेखक को हमारे मापदंड पूरे करने होंगे, फिर अनुबंध होगा। उसके बाद आगे की प्रक्रिया शुरू होगी। वैसे भी गुरुदेव का कहना है कि रॉयल्टी का सम्बन्ध किताब की बिक्री से होता है। बिना किताब लिखे रायल्टी पाने वाले लोग दुनिया में बिरले ही मिलेंगे। मेरा आपका किसी प्रकार अपमान करने का इरादा नहीं है। अगर आप मानें तो ठीक, नहीं तो आप अपने ब्लागों पर किसी भी शैली (व्यंग, विरोध और द्वेष प्रेरित लेख) के माध्यम से हमारी टांग खिंचाई कर सकते है। आपके दर्शनों का अभिलाषी और अतिथि संस्कार का इच्छुक-सिरफिरा।
सिरफिरा: आदरणीय अविनाश वाचस्पति जी! वैसे आपकी टिप्पणी का जवाब मेरे गुरुवर दे दिया है. मगर यह नाचीज़ शिष्य अपने गुरुवर की डांट (प्यार) के लिए थोड़ी सी गुस्ताखी कर रहा है। मेरी आपसे किसी प्रकार व्यक्तिगत लड़ाई या मेरे मन आपके प्रति द्वेष भावना नहीं है। अगर विश्वास न हो, पूर्व सूचना देकर मेहमान नवाजी का मौका देकर देख लें। मगर मेरी विचारों की भिन्नता को लेकर स्वस्थ मानसिकता से आपकी बात को लेकर बहस मात्र है और आपकी कथनी और करनी को जाने की इच्छा मात्र है। मेरे पास आप जितना ज्ञान नहीं है, मेरे लेख भी आप जितने प्रकाशित नहीं हुए हैं। मेरे पास सम्मानों का बहुत बड़ा ढेर भी नहीं हैं। आप द्वारा प्रचारित तीनो हरियाणवीं फ़िल्में देख रखी हैं और गुलाबों के एक गाने के कुछ बोल आज भी याद हैं। जितनी पत्र-पत्रिकाओं के लिए आप लिखते हैं उनमें से एक-दो को छोड़कर, बाकी सब के लिए अपने अच्छे दिनों में विज्ञापन बुक किया करता था। मेरे ब्लागों पर लोग भी इतने नहीं आते हैं, जितने आपके ब्लॉग पर आते हैं। आपसे हर मामले में तुच्छ (नाचीज़) हूँ। अब आप कह रहे हैं कि मेरे से एक लाख ले लें, चलिए आप बता दीजिये एक लाख रूपये नकद देंगे या चेक से देंगे। इस पर ब्याज कितना लेंगे। मेरी हैसियत 9 प्रतिशत वार्षिक की है। हर महीने बिना मांगे 750 रूपये का चेक आपके संतनगर वाले घर पर 11 तारीख को पहुँच जाया करेगा। अगर आप अपना किसी काम के लिए, या किसी विज्ञापन, या इन दिनों मेरी जरूरत के अनुसार कर्ज के बतौर आप एक लाख रूपये दे मुझे दे सकते हों तो अवश्य दें। वरना इन चंद कागज के टुकड़ों का आपकी सेफ में रहना ही बेहतर है। आपको मेरी आप को तुच्छ सलाह है कि आप खुले आम किसी को रूपये देने का प्रस्ताव न करें। किसी सिरफिरे ने जिद्द पकड ली, तब आपको देने में मुश्किल होगी। आप एक लाख रूपये की बात तो दूर छोडिये मेरी मेहनत की कमाई से लिये "कैमरे के सैल और उसका चार्जर ही ढूंढ़वाकर भिजवा दें। एक बात आप हमेशा ध्यान रखें कि भारत देश की धरती पर जब तक यह "सिरफिरा" पत्रकार जीवित रहेगा, उसे कोई माई का लाल चंद कागज के टुकड़ों से खरीद नहीं सकता। मुझे मरना मंजूर है, लेकिन बिकना मंजूर नहीं। बाकी रही अडवांस में रायल्टी देने की बात, तो पहले किताब या लेखक को हमारे मापदंड पूरे करने होंगे, फिर अनुबंध होगा। उसके बाद आगे की प्रक्रिया शुरू होगी। वैसे भी गुरुदेव का कहना है कि रॉयल्टी का सम्बन्ध किताब की बिक्री से होता है। बिना किताब लिखे रायल्टी पाने वाले लोग दुनिया में बिरले ही मिलेंगे। मेरा आपका किसी प्रकार अपमान करने का इरादा नहीं है। अगर आप मानें तो ठीक, नहीं तो आप अपने ब्लागों पर किसी भी शैली (व्यंग, विरोध और द्वेष प्रेरित लेख) के माध्यम से हमारी टांग खिंचाई कर सकते है। आपके दर्शनों का अभिलाषी और अतिथि संस्कार का इच्छुक-सिरफिरा।
@ उड़न तश्तरी ब्लॉग के श्री समीर लाल जी!
आपको भी बहुत शुभकामनाएँ! ...मुझे आपकी शुभकामनाएँ मिल गई है। अब आप लोगों की दुआएँ और साथ चाहिए।
@ज्ञानदत्त पाण्डेय,
किंडल जैसे उपकरण मुझे जानकारी नहीं है। मगर मुझे नहीं लगता कि किताबों पर कभी चर्चा समाप्त होगी। यानि किताबों का आस्तित्व खत्म हो जायेगा। लेकिन छोटे बच्चों को अ.आ.इ और ए.बी.सी किताब से ही सिखाई जाती रहेंगी।
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@सतीश सक्सेना जी,
सूरज की किरणें जहाँ-जहाँ पड़ती है। वहीँ पर रौशनी होती है। गुरु के ज्ञान के बिना शिष्य अधूरा रहता है।
@अख्तर खान अकेला जी,
पहले पोल खोलक यंत्र एक व्यक्ति बजता था। अब एक और एक, ग्यारह समझो या दो बजायेंगे।
@अनूप शुक्ल जी,
आपने सही कहा कि किताब अगर छपें तो दाम कम रखना सबसे अहम बात है। वर्ना किताब खपाने के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
@काजल कुमार जी,
आपने कहा कि-अनूप जी से असहमति...किताब खूब मंहगी होनी चाहिये, लेकिन उसके छपे मूल्य पर 80%-90% तक डिस्कांउट का फंडा रहना चाहिये ताकि जैसा मुंह देखें वैसे ही चिपका दें :) बहुत अधिक मूल्यों वाली किताबें कालर खड़े करने का भी मौक़ा देती हैं, लेखक भी 'बेचारा' नहीं दिखता :)
सिरफिरा: ऐसी किताबें दोस्तों फ्री में बाटने के बाद लेखक या प्रकाशक की अलमारी में धूल फांकती है या कोई दस साल बाद कबाड़ी के पास 10-15 रूपये किलो बिक रही होती हैं। छपे मूल्य पर 80%-90% तक डिस्कांउट का फंडा किताब की छवि को धूमिल करने के सिवाय कुछ नहीं करता है। जैसा मुंह देखें वैसे ही चिपका दें, हम यहाँ भी तिकडम या धोखाधडी के सोचते हैं। बिजनेस में अच्छी सोच रखने पर परिणाम भी अच्छे आते हैं। किताबें कालर खड़े करने का भी मौक़ा देती हैं, एक अच्छी किताब लेखक के पास "कालर" खड़े करने के हजारों मौके पैदा करती है, लेखक भी 'बेचारा' नहीं दिखता। हमारा इतिहास गवाह है लेखक बेचारा ही बनता हैं। अमीरों को नोट गिनने से फुर्सत कहाँ मिलती हैं? अगर आपको जानकारी हो तो देना कि क्या किसी अमीर ने कभी कोई किताब (आत्मकथा और रविन्द्रनाथ टैगोर व टॉलस्टॉय जैसे अपवादों को छोड़कर) जनहित हेतु लिखी है?
सिरफिरा: ऐसी किताबें दोस्तों फ्री में बाटने के बाद लेखक या प्रकाशक की अलमारी में धूल फांकती है या कोई दस साल बाद कबाड़ी के पास 10-15 रूपये किलो बिक रही होती हैं। छपे मूल्य पर 80%-90% तक डिस्कांउट का फंडा किताब की छवि को धूमिल करने के सिवाय कुछ नहीं करता है। जैसा मुंह देखें वैसे ही चिपका दें, हम यहाँ भी तिकडम या धोखाधडी के सोचते हैं। बिजनेस में अच्छी सोच रखने पर परिणाम भी अच्छे आते हैं। किताबें कालर खड़े करने का भी मौक़ा देती हैं, एक अच्छी किताब लेखक के पास "कालर" खड़े करने के हजारों मौके पैदा करती है, लेखक भी 'बेचारा' नहीं दिखता। हमारा इतिहास गवाह है लेखक बेचारा ही बनता हैं। अमीरों को नोट गिनने से फुर्सत कहाँ मिलती हैं? अगर आपको जानकारी हो तो देना कि क्या किसी अमीर ने कभी कोई किताब (आत्मकथा और रविन्द्रनाथ टैगोर व टॉलस्टॉय जैसे अपवादों को छोड़कर) जनहित हेतु लिखी है?
@अरविन्द मिश्र जी,
आपने कहा कि-विचारणीय मुद्दा -कितनी ही बार तो इस विषय पर चर्चा हो चुकी है, मगर कोई निष्कर्ष नहीं दिखता!
सिरफिरा: जरुर निकलेगा मगर बगैर किसी प्रकार की द्वेष भावना के स्वस्थ बहस की जाए तो निष्कर्ष निकलता है।
सिरफिरा: जरुर निकलेगा मगर बगैर किसी प्रकार की द्वेष भावना के स्वस्थ बहस की जाए तो निष्कर्ष निकलता है।
@प्रवीण पाण्डेय जी,
आपने कहा कि-पुस्तक छपाने की उत्कण्ठा सबमें होती है, पर आज से 10 वर्ष बाद का सोचें तो पुस्तकें उतनी उपयोग में नहीं रह जायेंगी। नेटीय साहित्य बहुत अधिक पढ़ना हो रहा है, अभी उर्वशी पढ़ी है।
सिरफिरा: पुस्तक छपाने की उत्कण्ठा सबमें होती है, दोस्त आपने कहा है। आज से 10 वर्ष बाद का सोचें तो पुस्तकें उतनी उपयोग में नहीं रह जायेंगी, इसके लिए कम से कम 20 साल समय लग जायेगा। ऐसा हो सकता था, मगर हमारे देश के स्वार्थी नेताओं ने कभी विचार नहीं किया। नेटीय साहित्य में अभी आपने उर्वशी पढ़ी है। इन्टरनेट आज भी आम-आदमी के लिए बीरबल की खिचड़ी है। उसकी पहुँच के लिए देश की बहुत सी व्यवस्थाओं को ठीक करने की जरूरत है। आज जनता का अधिक समय तो छोटे-छोटे कार्यों में खर्च हो जाता है। जैसे-राशन कार्ड में अपना नाम या आयु सही करवानी है। उर्वशी का लिंक मुझे भी भेजें हम भी जरा पढ़ लें, अगर इन्टरनेट का नेटवर्क लगातार सही आता रहा तो।
सिरफिरा: पुस्तक छपाने की उत्कण्ठा सबमें होती है, दोस्त आपने कहा है। आज से 10 वर्ष बाद का सोचें तो पुस्तकें उतनी उपयोग में नहीं रह जायेंगी, इसके लिए कम से कम 20 साल समय लग जायेगा। ऐसा हो सकता था, मगर हमारे देश के स्वार्थी नेताओं ने कभी विचार नहीं किया। नेटीय साहित्य में अभी आपने उर्वशी पढ़ी है। इन्टरनेट आज भी आम-आदमी के लिए बीरबल की खिचड़ी है। उसकी पहुँच के लिए देश की बहुत सी व्यवस्थाओं को ठीक करने की जरूरत है। आज जनता का अधिक समय तो छोटे-छोटे कार्यों में खर्च हो जाता है। जैसे-राशन कार्ड में अपना नाम या आयु सही करवानी है। उर्वशी का लिंक मुझे भी भेजें हम भी जरा पढ़ लें, अगर इन्टरनेट का नेटवर्क लगातार सही आता रहा तो।
@बड़े भाई श्री खुशदीप सहगल जी,
आपके बारें में जानकारी प्राप्त हुई कि आप न्यूज चैनल में है। पिछले दिल्ली नगर निगम 2007 के चुनाव में प्रत्याशी की कवरेज (विज्ञापन) का रेट 25 हजार रूपये था। इस बार (मार्च 2012) आपकी मदद से मेरा काम सस्ते में हो सकता है। आपका नारा (हमारा नेता कैसा हो, सिरफिरे भाई जैसा हो....) मेरा एक मतदाता 2007 और 2008 में भी लगा चुका है। इस बार आपके चैनल पर लगाया जाए तो कैसा रहे? अपने छोटे भाई का तीसरी बार फिर से चुनाव चिन्ह "कैमरा" याद रखना और अगर आपका पहचान पत्र नहीं बना हो तो ५०० रूपये कुछ लोग बना रहे हैं। जल्दी से बनवा लीजिए। इस बार आपकी वोट मुझे ही चाहिए होगी.जय हिंद...
@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी,
अच्छी और सस्ती किताबों के वितरण में थोड़ी कम समस्या होती है।
@डा० अमर कुमार जी,
आपकी तरह सब किस्मत के धनी नहीं होते।
@रवि कुमार स्वर्णकार जी,
एक अच्छा उद्यमी कभी दूसरे उद्यमी को ठाला नहीं बैठने देता है।
@ राज भाटिय़ा जी,
आपका पूरा ध्यान रखा जायेगा। वैसे हमें कहाँ यह लिखना विखना आता है। हम क.ख.ग... को बस जोड़ लेते हैं। बस, रेल में बेचने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे आपकी रिटायरमेंट कब हो रही है? और ब्लागरों ने अब तक फैसला लिया भी नहीं है कि ब्लागर की रिटायरमेंट कब होगी? क्या जब वो "सिरफिरा" हो जायेगा तब? चलिए अब बिजनेस की बात पर आते हैं, श्रीमान जी आप कितनी किताब लेना चाहते हैं? देखिये एक-दो किताब पर कमीशन देना संभव नहीं होगा। अगर हर महीने कम से कम दस किताबें लेंगे तब आपको दो महीने के बाद ही अलग से बोनस भी दिया जायेगा। आपका चैक कब आ रहा है हमारे पास? जरुर बतायें?
@निर्मला कपिला जी,
आपकी बधाई और शुभकामनायें मिल गई हैं, मगर रॉयल्टी लेने के लिए लेखक को मापदंड (रिश्वत कहे या पैसे और सिफारिश नहीं) पूरे करने होंगे।
@हकीम युनुस खान जी,
धन्यवाद! खुदा के फज़ल से कोशिशें ही सफल होती हैं।
@सुनील कुमार जी,
आपने कहा कि-सिरफिरा जी ने सर घुमा दिया सवेरे-सवेरे, बात तो लगभग ठीक ही है।
सिरफिरा: भाई आप अपना सर मत घुमाओ, अगर आप लोग साथ दो तो मैं हमारे देश के स्वार्थी नेताओं का सर घुमाना चाहता हूँ। इनका सर घुमाने के बाद शायद ये घोटालों की न सोचकर देश के विकास की बात करें और सोचें। उसके बाद मजदूर की तरह उसमें जुट भी जाएँ। एक बार आप दुबारा बगैर "ही" का प्रयोग करें। कह दो न कि बात तो लगभग ठीक है। इस अजन्में बच्चे की जिद्द पूरी नहीं करोंगे भाई।
@अख्तर खान अकेला जी,
आपने कहा कि-वाह भाई जान सिरफिरा जी को समर्पित यह पोस्ट भी जीवंत है.
सिरफिरा:जब से गुरु-चेले की बातचीत शुरू हुई है, तब से टिप्पणीकर्त्ताओं के सर घूम गए हैं और जिन पिछली 8 पोस्टों में गुरु-चेले नहीं थें, वहां टिप्पणी का औसत 18.25 था. गुरु-चेले की 2 पोस्टों में यह औसत सिर्फ 14 रह गया है। लोग अपने सिरों के इलाज़ के लिए डाक्टरों की दवाइयां खा रहे हैं। आप मेरे गुरु को चने के झाड़ पर चढाओं नहीं, नहीं तो दोनों गुरु-चेला औंधे मुंह गिर जायेंगे।
सिरफिरा:जब से गुरु-चेले की बातचीत शुरू हुई है, तब से टिप्पणीकर्त्ताओं के सर घूम गए हैं और जिन पिछली 8 पोस्टों में गुरु-चेले नहीं थें, वहां टिप्पणी का औसत 18.25 था. गुरु-चेले की 2 पोस्टों में यह औसत सिर्फ 14 रह गया है। लोग अपने सिरों के इलाज़ के लिए डाक्टरों की दवाइयां खा रहे हैं। आप मेरे गुरु को चने के झाड़ पर चढाओं नहीं, नहीं तो दोनों गुरु-चेला औंधे मुंह गिर जायेंगे।
@अरविन्द मिश्र जी,
क्षमा चाहता हूँ.आपका सिर फिर गया है-गोल गोल, वैसे तो पृथ्वी घूमती गोल-गोल। मुझे क्या पता था आप लोगों के भी सिर "फिर" जायेंगे, मेरा लक्ष्य मछली की आँख (हमारे देश के स्वार्थी राजनीतिकज्ञ) थे। यानि मेरा तीर दिशाहीन हो गया। अब गुरुवर के अनुभव का लाभ प्राप्त करके तीर सही निशाने पर लगाऊंगा। मेरे गुरुवर ने पूरी रामायण सुना दी आप पूछ (ये माजरा क्या है?) रहे हैं कि-सीता जी, राम की पत्नी थी या रावण की?
@बड़े भाई खुशदीप सहगल जी,
आप श्री अरविंद जी वाला ही उत्तर पढ़ें, आपका हाल भी उनके जैसा लग रहा है. जय हिंद!
ऐसे में...होठों को करके गोल, सीटी बजा के बोल...के भईया आल इज़ वैल......थ्री-इडियट आपने देखी, उसका उद्देश्य बहुत अच्छा था। काश! उसका संदेश पूरे देश में फ़ैल जाए तब भारत देश सबसे मजबूत होगा। आपका एक इडियट दोस्त कहूँगा। क्योंकि आपने छोटा भाई मानने के मंजूरी नहीं दी है.-आपका "सिरफिरा"
ऐसे में...होठों को करके गोल, सीटी बजा के बोल...के भईया आल इज़ वैल......थ्री-इडियट आपने देखी, उसका उद्देश्य बहुत अच्छा था। काश! उसका संदेश पूरे देश में फ़ैल जाए तब भारत देश सबसे मजबूत होगा। आपका एक इडियट दोस्त कहूँगा। क्योंकि आपने छोटा भाई मानने के मंजूरी नहीं दी है.-आपका "सिरफिरा"
@डॉ. अनवर जमाल जी,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! ग़ज़ल के लिए भी, जो मैंने पूरी पढ़ ली है।
@प्रवीण पाण्डेय जी,
आपने कहा कि-चौथी टिप्पणी भी पढ़ते हैं, आने के बाद। फिर देर किस बात की पढ़ लीजिये, आपकी खिदमत में हाजिर है टिप्पणियों पर आधारित उपरोक्त पोस्ट। मेरे हजूर!
@सतीश सक्सेना जी,
@सतीश सक्सेना जी,
सूरज की किरणें जहाँ-जहाँ पड़ती है, वहीँ पर रौशनी होती है। गुरु के ज्ञान के बिना शिष्य अधूरा रहता है। किसी गुरु-चेले में इतनी कहाँ हिम्मत होती जब तक आप जैसे दोस्त, भाई का साथ न मिले। अरे! आपने यह क्या कह दिया कि-सर मेरा भी घूम रहा है, भाई जल्दी से डॉ. साहब से इलाज कराओ, नहीं तो हमारे प्रकाशन की किताबों की बिक्री कौन करेंगा? फिर हमारा यह बिजनेस शुरू होने से पहले ही बंद न हो जाये। वैसे क्या आपको डॉ. अनवर जमाल जी की दवाइयां सूट करती है या नहीं?
@रचना जी,
आपने कहा कि-आजकल लगता हैं आपके पास समय बहुत हैं!!! एक आसान तरीका हैं स्पेममार्क करने का कमेन्ट में।
सिरफिरा: इसका जवाब आपको मेरे गुरुवर जी देंगे, क्योंकि उनका इस नाचीज़ शिष्य का तकनीकी ज्ञान अधूरा है। इसलिए क्षमा चाहता हूँ।
सिरफिरा: इसका जवाब आपको मेरे गुरुवर जी देंगे, क्योंकि उनका इस नाचीज़ शिष्य का तकनीकी ज्ञान अधूरा है। इसलिए क्षमा चाहता हूँ।
@पटली-The -Village जी, और @संजय भास्कर जी,
आप दोनों का बहुत-बहुत धन्यवाद!
रमेश कुमार जैन सिरफिरा द्वारा लिया गया चित्र
शाहनवाज आँख बन्द कर मोबाइल पर नंबर डायल करते हैं