आज जुलाई महीने की पहली तारीख है, भारत का डाक्टर्स डे, हिन्दी में कहें तो चिकित्सक दिवस। सारे विश्व में यह डॉक्टर्स डे 30 मार्च को मनाया जाता है जिस दिन जॉर्जिया के प्रसिद्ध चिकित्सक क्राफोर्ड डब्लू लोंग ने पहली बार शल्य चिकित्सा में निश्चेतक का प्रयोग किया था। लेकिन हम ने उस की तारीख चार माह आगे खिसका कर उसे डॉ. बिधानचंद्र राय के जन्मदिन पर मनाना आरंभ कर दिया जिस से इस दिवस पर चिकित्सक भी समाज को उन के योगदान को स्मरण करते हुए केवल बधाइयाँ और शुभकामनाएँ हासिल करने में ही न जुटे रहें वरन् अपने कर्तव्यों पर भी ध्यान दें। ऐसा नहीं चिकित्सकों को अपने कर्तव्यों का ध्यान नहीं है। लेकिन जब समाज का एक हिस्सा नग्न नर्तन के साथ जनता को लूटने में व्यस्त हो और सरकारों ने उन्हें खुली छूट दे रखी हो तब चिकित्सक भला कैसे पीछे रह सकते हैं। वे पीछे रहें भी कैसे? दवा कंपनियाँ उन्हें रहने दें तब न? उन्हें सिर्फ अपने पास आए रोगियों को चिकित्सा के लिए दवाएँ लिखनी हैं। शेष काम तो दवा कंपनियाँ खुद कर लेती हैं।
आज राजस्थान पत्रिका के कोटा संस्करण में राजेश त्रिपाठी की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। आप स्वयं इसे पढ़ कर अनुमान कर सकते हैं कि हमारी सरकार ने किस तरह दवा कंपनियों को जनता की लूट के लिए खुला छोड़ रखा है। इस लूट का हिस्सा न केवल चिकित्सकों को मिलता है अपितु अन्य अनेक लोग उसमें शामिल होते हैं, उन में राजनेता शामिल न हों यह हो नहीं सकता।
1.39 रुपए की गोली 26.50 रुपए में बेच कर 1906 प्रतिशत कीमत पर बेचना किसी कानून का उल्लंघन न करता हो, तब हम समझ सकते हैं कि संसद से ले कर सरकार तक किन लोगों के लिए और किन लोगों द्वारा चलाई जा रही है। बाबा रामदेव, अन्ना हजारे की सिविल सोसायटी और विपक्षी दल इस बारे में कभी आवाज नहीं उठाते। उस के लिए कोई अनशन करने की बात भी नहीं करता। ऐसा करने पर तो सिस्टम याने की व्यवस्था बदलना जरूरी हो जाएगा। जब कि लोकपाल कानून बना कर भ्रष्टाचार मिटाने या कालाधन वापस देश में लाने के लिए व्यवस्था बदलना जरूरी नहीं।
अब मैं एक काल्पनिक प्रश्न से जूझ रहा हूँ, यह कालाधन वास्तव में देश में वापस ले आया जाएगा तो भी लूटने वाले उसे छोड़ेंगे थोड़े ही। किसी न किसी तरह वे लोग ही उस पर कब्जा कर लेंगे जो अभी उस का आनंद ले रहे हैं। जनता को क्या मिलेगा, सिङ्गट्टा ???