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सोमवार, 21 मई 2012

स्त्री के साथ छल से किया गया यौन संसर्ग पुलिस हस्तक्षेप लायक गंभीर अपराध नहीं


पुलिस के सामने इस तरह के मामले अक्सर आते हैं जिन में किसी महिला द्वारा यह शिकायत की गई होती है किसी पुरुष ने उस के साथ विवाह करने का विश्वास दिला कर यौन संसर्ग किया। पुरुष अब उस के साथ धोखा कर किसी दूसरी महिला के साथ विवाह कर लिया है या करने जा रहा है। शिकायत आने पर पुलिस भी इस तरह के मामले में कुछ न कुछ कार्यवाही करने के लिए तत्पर हो उठती है। मुंबई पुलिस ने इसी तरह के एक मामले को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 तथा 376 के अंतर्गत दर्ज कर लिया। ऐसी अवस्था में आरोपी गिरीश म्हात्रे को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। बंबई उच्च न्यायालय ने इस मामले में गिरीश म्हात्रे को अग्रिम जमानत का आदेश प्रदान कर दिया। इस मामले में न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना कि विवाह का वायदा कर के किसी व्यक्ति के साथ यौन संसर्ग करना न तो बलात्कार की श्रेणी में आता है और न ही कोमार्य को संपत्ति माना जा सकता है जिस से इस मामले को धारा 420 के दायरे में लाया जा सके।

धारा 420 दंड संहिता के अध्याय 17 का एक भाग है जो संपत्ति के विरुद्ध अपराधों और चोरी के संबंध में है। इस कारण यह केवल मात्र संपत्ति से संबधित मामलों में ही लागू हो सकती है। इस धारा के अंतर्गत छल करना और संपत्ति हथियाने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करने के लिए दंड का उपबंध किया गया है। हालांकि धारा 415 में छल की जो परिभाषा की गई है उस में शारीरिक, मानसिक, ख्याति संबंधी या सांपत्तिक क्षतियाँ और अपहानि सम्मिलित है। लेकिन छल का यह कृत्य धारा 417 में केवल एक वर्ष के दंड से दंडनीय है और एक असंज्ञेय व जमानतीय अपराध है। जिस के अंतर्गत पुलिस कार्यवाही आरंभ करने के लिए सक्षम नहीं है केवल न्यायालय ही उसे की गई शिकायत पर उस का प्रसंज्ञान ले सकता है और उसे भी जमानत पर छोड़ना होगा।

दंड संहिता की धारा 376 के अंतर्गत किसी पुरुष द्वारा किसी 16 वर्ष की आयु प्राप्त स्त्री के साथ उस की असहमति से स्थापित किए गए यौन संसर्ग को अपराध ठहराया गया है यदि सहमति उस स्त्री के समक्ष उसे या उस के किसी प्रिय व्यक्ति को चोट पहुँचाने या हत्या कर देने का भय उत्पन्न कर के प्राप्त की गयी हो, या ऐसी सहमति उस स्त्री के समक्ष यह विश्वास उत्पन्न कर के प्राप्त की गई हो कि वह व्यक्ति उस का विधिपूर्वक विवाहित पति है, या ऐसी सहमति प्रदान करने के समय स्त्री विकृत चित्त हो, या किसी प्रकार के नशे में हो जिस से वह सहमति के फलस्वरूप होने वाले परिणामों के बारे में न सोच सके तो भी वह इस धारा के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। लेकिन किसी स्त्री को उस के साथ विवाह करने का या किसी भी अन्य प्रकार का कोई लालच दे कर उस के साथ यौन संसर्ग करने को बलात्कार का अपराध घोषित नहीं किया गया है।

स स्थिति का अर्थ है कि कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री से जो 16 वर्ष की हो चुकी है छल करते हुए यौन संसर्ग स्थापित करे तो उसे अधिक से अधिक एक वर्ष के कारावास और अर्थदंड से ही दंडित किया जा सकता है। उस में भी कार्यवाही तब आरंभ की जा सकती है जब कि वह स्त्री स्वयं न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो कर शिकायत प्रस्तुत करे और उस का और उस के गवाहों का बयान लेने के उपरान्त न्यायालय यह समझे कि कार्यवाही के लिए उपयुक्त आधार मौजूद है। उस के उपरान्त साक्ष्य से यह साबित हो कि ऐसा छल किया गया था। इसे कानून ने कभी गंभीर अपराध नहीं माना है। यदि समाज यह समझता है कि इसे गंभीर अपराध होना चाहिए तो उस के लिए यह आवश्यक है कि छल करके किसी स्त्री के साथ किए गए यौन संसर्ग को संज्ञेय, अजमानतीय और कम से कम तीन वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध बनाया जाए।

र्तमान उपबंधों के होते हुए भी कोई पुलिस थाना धारा 420 और धारा 376 के अंतर्गत इस कृत्य को अपराध मानते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करता है तो इस का अर्थ यही लिया जाना चाहिए कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने का आशय मात्र आरोपी को तंग करना और उस से धन प्राप्त करना रहा होगा। क्या इसे एक भ्रष्ट आचरण मान कर रिपोर्ट दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करनी चाहिए?दर्ज करने का आशय मात्र आरोपी को तंग करना और उस से धन प्राप्त करना रहा होगा। क्या इसे एक भ्रष्ट आचरण मान कर रिपोर्ट दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करनी चाहिए?

मंगलवार, 2 जून 2009

रेल बोर्ड के गलत निर्णयों से रेल संपत्ति का नुकसान और यात्रियों को परेशानी

"खुसरूपुर में रेल ठहराव बंद होने से गुस्साई भीड़ ने 3 ट्रेनों में लगाई आग"    
यह नवभारत टाइम्स में प्रकाशित समाचार का शीर्षक है।  समाचार यह है कि इन घटनाओं में कोई हताहत नहीं हुआ है।  लेकिन तीन ट्रेनों को रोक कर उन्हें आग के हवाले कर देना कोई मामूली घटनाएं नहीं है।  इस से न केवल राष्ट्रीय संपत्ति को हानि पहुँची है अपितु रेल यातायात बाधित हुआ है।  सैंकड़ो लोग गन्तव्य तक पहुँचने के पहले ही किसी अनजान स्थान पर उतार दिए गए।  यातायात बाधित होने से सैंकड़ो लोग स्टेशनों पर अटके पड़े होंगे।

यह सब हुआ रेलवे के एक निर्णय अथवा अनिर्णय से।  दानापुर रेलमंडल के जनसंपर्क अधिकारी आर.के. सिंह का कहना था कि बिहार के 33 विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर विभिन्न ट्रेनों का अस्थायी तौर पर स्टॉपेज था। रेलवे बोर्ड ने गत 26 मई को एक आदेश जारी कर इस स्टॉपेज पर रोक लगा दी, जिसका नागरिकों ने विरोध किया। अंतत: सोमवार को बोर्ड ने अपने उस आदेश को तात्कालिक तौर पर वापस ले लिया है।  बाद में इन स्टेशनों पर होने वाली टिकटों की बिक्री की समीक्षा करने के बाद इस बारे में निर्णय लिया जाएगा कि यहां ट्रेनों के स्टॉपेज आगे भी जारी रखे जाएं या नहीं।
जब रेलवे किसी भी रूप में एक सुविधा को जारी करती है तो उसे बिना बिक्री की समीक्षा किए और जनता को पहले से सूचना दिए बिना बंद क्यों कर दिया जाता है।  एक सुविधा लोगों को बहुत कठिनाई से प्राप्त होती है।  यदि उसे अनायास ही छीन लिया जाए तो नागरिकों का गुस्साना स्वाभाविक लगता है।  लेकिन रेल प्रशासन को कतई यह गुमान न था कि इन सुविधाओं को छीन लेने मात्र से ऐसी प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी।  यह रेलवे प्रशासन की सोच का दिवालियापन ही कहा जा सकता है।  रेलवे कोई निजि उद्योग नहीं है वह एक सार्वजनिक उद्योग है और उस में उसी जनता का धन निवेशित है जिस के एक हिस्से ने उस में आग लगा दी और अपना रोष जाहिर किया।

सार्वजनिक क्षेत्र के उन उद्योगों को जो नागरिक सेवाएं प्रदान करते हैं यह ध्यान तो रखना ही होगा कि उन के किसी प्रशासनिक निर्णय या अनिर्णय से जनता के किसी हिस्से को ऐसा धक्का न लगे कि वह हिंसा पर उतारू हो जाए।  इन प्रायोगिक ठहरावों को बंद करने के पहले समीक्षा की जा सकती थी और जनता को पर्याप्त नोटिस दिया जा सकता था कि इन स्टेशनों से एक निश्चित अवधि में यात्री मिलना निश्चित मात्रा से कम रहा तो इन टहरावों को बंद कर दिया जाएगा।  इस तरह से जनता को विश्वास में ले कर यह कदम उठाया जाता तो इस तरह की हिंसा से बचा जा सकता था और रेलवे का यह व्यवहार जनतांत्रिक भी होता। सार्वजनिक उद्यम होने के कारण उस से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा जनता रखती है।  आशा है नई रेल मंत्री रेलवे बोर्ड में जनता को प्रभावित करने वाले निर्णयों को जनतांत्रिक तरीके से लिए जाने की पद्यति विकसित करने का प्रयास करेंगी।

पुनश्चः
यह आलेख कल शाम 5.30 पर लिखा गया था, किन्तु इस के प्रकाशन के ठीक पूर्व चौड़ा पट्टा धोखा दे गया। बीएसएनएल के अधिकारी दफ्तर छोड़ चुके थे। आज उन्हों ने जाँच कर मेरा पोर्ट बदला, उस के बाद पास वर्ड की समस्या आ गई। अभी 5.12 पर चौड़ा पट्टा बहाल हो सका है। गति भी पहले से तेज मिल रही है। इस कारण से इसे देरी से प्रकाशित किया जा सका है।