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गुरुवार, 29 मार्च 2012

ओलों से सर की बचत के लिए हम बालों के मोहताज नहीं

कोई सर मुड़ा कर नाई की दुकान से निकला ही हो और आसमान से ओले गिरने लगे हों ऐसा छप्पन साल की जिन्दगी में न  तो सुना और न ही अखबार में पढ़ा। इस से पहले किसी किताब में भी इस तरह की किसी घटना का उल्लेख नहीं देखा। लेकिन चूँकि मुहावरा है और चल निकला है तो चल निकला है। वैसे मेरे जैसे लोगों के लिए इस मुहावरे का कोई अर्थ नहीं है जिन के सर पर या तो बाल पूरी तरह भूतकाल की वस्तु हो कर रह गए हैं या फिर किनारों पर सिमट कर रह गए हैं। हमारे लिए तो ओले कभी भी पड़ें क्या फर्क पड़ता है? हम जानते हैं कि ओले पड़ने पर क्या करना है। शायद यही कारण है कि अब तक अनेक बार ओले पड़ते देखे हैं पर सिर को कभी नुकसान नहीं पहुँचा। लेकिन इस बार ओले काम कर गए हम तो हम, उस्ताद भी देखते रह गए।

हुआ यूँ कि तीन-चार बरस पहले हम ने वेब साइटस् चलाने वाले मित्र से वैसे ही शौकिया तौर पर पूछा था कि क्या तीसरा खंबा डाट कॉम डोमेन मिल सकता है? उन्हों ने मात्र बीस मिनट बाद ही बताया कि हमारे नाम से यह डोमेन ले लिया गया है। अब आगे की कोई गणित तो हमें आती नहीं थी। सो वह डोमेन पड़ा ही रहा। हम ब्लागस्पाट की सेवाओं का आनन्द लेते रहे। इस साल हमने ठान ही लिया कि अपने ब्लाग तीसरा खंबा को अपने डोमेन पर ले जा कर वेबसाइट बना डालेंगे। फिर मित्र की और हमारी कवायद चली आखिर तीसरा खंबा को अपने डोमेन पर स्थानान्तरित करने में कामयाबी मिल गई। हम ने भी जोर शोर से अपने ब्लागस्पॉट के ब्लाग तीसरा खंबा पर अपने ब्लाग की अंतिम पोस्ट की घोषणा कर दी और नए वर्ष की पहली तारीख 1 जनवरी 2012 को तीसरा खंबा अपने डोमेन की वेबसाइट में परिवर्तित हो गया। 


म अपना सिर मुंड़वा कर प्रसन्न थे। खूब जोर शोर से साइट आरंभ हो गई। पाठकों में भी निरंतर वृद्धि होती रही। बहुत सारी सुविधाएँ भी मिलीं। दो माह कैसे गुजरे, पता भी नहीं लगा। मार्च का आरंभ हुआ तो पता लगा रास्ते इतने आसान नहीं हैं। हम पर कभी रूमानियत सवार थी तो सोचते थे कहीं जाएँ न जाएँ एक बार सोवियत संघ के रूस जरूर हो कर आएंगे। वह मेरे अनेक प्रिय लेखकों टाल्सटॉय, चेखव, गोगोल, गोर्की, मायकोवस्की आदि का देश था। गंगा तो देखी थी पर वोल्गा और देखना चाहते थे। मास्को का वह विश्वविद्यालय देखना चाहते थे जहाँ महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अध्यापन किया, विवाह किया और एक संतान भी उन्हें हुई। लेकिन रूमानियत में या तो आदमी रांझा, मजनूँ, भगत सिंह हो कर शहीद हो सकता है या फिर उस की  रूमानियत यथार्थ की शक्ल अख्तियार कर लेती है। हम रूमानियत से निकल कर अपने वतन के यथार्थ में उलझे रह गए। सोवियत संघ अपनी गलतियों का शिकार हो कर टूट गया। इस से यह सिद्ध हुआ कि काबुल भले ही घोडों के लिए प्रसिद्ध रहा हो लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि वहाँ गधे नहीं होते। 

तो, फरवरी निकलते ही पता लगा कि केश-विहीन सिर पर  कठोर-कठोर शीतल-शीतल कंकड़ पड़ने लगे हैं। आसमान पर देखा तो वहाँ कोई बादल तक न था, सूरज तेज चमक रहा था। आखिर यह ओले आए कहाँ से। तीसरा खंबा न पाठकों से खुल रहा था और न ही हम से उस का एडमिन खुल रहा था। जब भी खोलना चाहते ब्राउजर किसी रूसी वेबसाइट के पते पर पहुँचा देता, तो कभी ब्राउजर रिपोर्टेड अटैक साइट का बोर्ड चिपका जाता। हम ने अपने वेब एडमिनिस्ट्रेटर को बताया तो पता लगा हमला हम पर ही नहीं हुआ है नासा पर भी हो रहा है। बताया कि वे हमले को विफल करने की तैयारी कर रहे हैं, बस कुछ समय लग सकता है। हम ने संतोष की साँस ली। हम ने सोचा चलो एक दो दिन इस काम से फुरसत मिली। 
दूसरे दिन तीसरा खंबा खुलने लगा। हम फिर प्रसन्न हो गए कि हमला विफल हो गया है। लेकिन तीसरे दिन फिर तीसरा खंबा रूस जाने लगा। अब तो धूप छाहँ का सिलसिला आरंभ हो गया। एक दिन हमला विफल होता। हम चैन की साँस लेते। तीसरा खंबा पर कोई न कोई माल अपलोड कर देते। लेकिन दूसरे दिन ही फिर वही हाल वेब साइट अपहृत पाई जाती। बताया गया कि जिस सर्वर से हमारी वेबसाइट संचालित हो रही है उस के सभी किराएदारों को यही परेशानी है। छत का एक छेद बंद किया जाता है। दूसरे दिन छत दूसरी जगह से टपकनी शुरू हो जाती है। वह मार्च का आरंभ था अब मार्च का अंत भी आ रहा है लेकिन छत है कि टपकना बंद ही नहीं हो रही है। हम ने शिकायत की तो पता लगा, घर बदलने की व्यवस्था की जा रही है। सप्ताह भर में घऱ बदल दिया जाएगा। हम ने भी सप्ताह भर चैन से बैठने की ठान ली है। देखते हैं, सप्ताह भर में क्या होता है? तीसरा खंबा की रूस यात्रा बंद होती है या नहीं?  होती है तो ठीक वर्ना, वर्ना क्या? जो हम से बन पड़ेगी करेंगे। पर तीसरा खंबा को रूस न जाने देंगे। मजबूत सी टोपी लाएंगे, सर पर पहनेंगे, पर ओलों को सर पर तबला न बजाने देंगे।

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

चौड़ी पट्टी के बंदर से दूर. तीन दिन

शुक्रवार की शाम अदालत से घर लौटा। अतर्जाल पर कुछ ब्लाग और आई हुई मेल पढ़ी, टिप्पणियाँ कीं और जवाब दिए। आगे चौड़ी पट्टी बोल गई। बरसात के चार माह रात्रि भोजन त्याग देने से स्नान और भोजन किया। लौटा तो चौड़ी पट्टी से संयोजन टूटा ही मिला। भारत संचार निगम को शिकायत दर्ज कराई और संबंधित कनिष्ठ संचार अधिकारी को फोन किया। शनिवारको पता लगा हमारे संयोजन का बंदर (पोर्ट) खराब था। उसे बदल दिया गया और संयोजन हो गया। लेकिन वह खुले कैसे? जब तक बंदर को हमारा कूटशब्द याद ना हो।  अब बंदर को कूटशब्द याद कराने वाले अध्यापक जी का दो दिन का अवकाश था। संचार अधिकारी ने पूरा प्रयत्न किया अध्यापक जी से संपर्क बन जाए तो वे उस के घर के कंप्यूटर से ही यह काम कर दें। पर वे पक़ड़ में न आने थे सो न आए।  सोमवार शाम पाँच बजे बंदर ने कूट शब्द याद किया तो यातायात चालू हुआ। पचास से अधिक मेल थे। सब को देखा, कुछ जरूरी जवाब दिए, कुछ ब्लाग बांचे और टिपियाए। फिर वही स्नान और सूर्यास्त पूर्व भोजन।  दफ्तर वापस लौटे तो एक मित्र अपनी पारिवारिक समस्या के लिए कानूनी परामर्श के लिए प्रतीक्षा में थे। उन से निपटता कि एक मित्र का फोन आया कि उस का वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। पत्नी को चोटें लगी हैं, अस्पताल में भर्ती है। अस्पताल दौड़े।  लौटते लौटते तारीख बदल गई। 
 
तीन दिन अंतर्जाल से दूर रहना हुआ। शनिवार को सुबह ही खबर मिली कि सुभाष का देहान्त हो गया है आज अस्थिचयन है। वहाँ से लौटे तो बारह बज चुके थे। शेष आधा दिन मन खराब रहा। फिर शाम को बेटी को आना था सिर्फ एक दिन के लिए।  उस ने अपनी मां को कुछ आदेश दिये थे। वह उनकी पूर्ति की तैयारी में लग गई। हम कानून पढ़ते रहे। रात को बेटी को लेकर आए तो घऱ का खालीपन भर गया। रविवार सुबह ही फिर एक दुर्घटना की खबर मिली एक मित्र के छोटे भाई की बेटी पत्रकारिता का स्नातकोत्तर कोर्स करने चैन्नई गई थी। पहले ही दिन ही होस्टल की चौथी मंजिल से गिर गई और मृत्यु हो गई। पिता और कुछ रिश्तेदार उस का शव हवाई मार्ग से जयपुर और फिर सड़क से कोटा लाए। मैं दिन भर प्रतीक्षा में दफ्तर की पत्रावलियाँ संभालता रहा। शाम अंतिम संस्कार में गई। समाज में कुछ कर गुजरने का जज्बा रखने वाली एक होनहार युवती का यूँ दुनिया से विदा हो जाना, बहुत अखरा। आज दिन भर अदालत की। ग्यारह दिनों के बाद कला ही बरसात वापस लौटी और खूब बरस कर मौसम सुहाना कर गई।  शाम कुछ बरसाती मौज-मस्ती का मन था। लेकिन शाम फिर दुर्घटना के समाचार और मित्र की पत्नी के घायल होने से दुःखद हो गई।