अपनी ब्लॉगिंग का आगाज 28 अक्टूबर 2007 को ब्लाग ‘तीसरा खंबा’
की पहली पोस्ट न्याय
व्यवस्था की आलोचना में जन-हस्तक्षेप के साथ हुआ था। इस पोस्ट में मैंने
रेखांकित करने की कोशिश की थी कि न्याय व्यवस्था हमारी शासन व्यवस्था और राज्य का
अभिन्न अंग है और उसे स्वस्थ और सक्षम बनाए रखने के लिए उस की निरन्तर आलोचना
जरूरी है। इस ब्लाग का यह दसवाँ वर्ष है, न्याय व्यवस्था पर इस ब्लाग पर बहुत
चर्चाएँ हुई हैं। ब्लाग के बनने के कुछ समय बाद ही लोगों की यह मांग हुई कि मैं उन
की कानूनी समस्याओं और जिज्ञासाओं के हल उन्हें सुझाऊँ। इसी संदर्भ में इस ब्लाग
पर कानूनी सलाह का देने का सिलसिला आरंभ हुआ जो अभी तक जारी है।
जिन दिनों यह ब्लाग बना था लगभग उन्हीं दिनों अदालत नाम का
ब्लाग बीएस पाबला जी ने आरंभ किया था। दोनों की प्रकृति एक जैसी थी। इन एक प्रकृति
वाले ब्लागों ने इन के ब्लागरों को नजदीक लाने का काम किया और जो मित्रता स्थापित
हुई वह आगे जा कर अभिन्न हो गयी। यह पाबला जी का ही सुझाव था कि अब तीसरा खंबा को ब्लाग
स्पॉट से निकाल कर अपनी यूआरएल पर लाया जाए और इसे एक स्वतंत्र साइट का रूप दे
दिया जाए। मैं तकनीकी रूप से खाली तो नहीं था, लेकिन हर तकनीकी सिद्धता समय चाहती
है। वह समय मेरे पास नहीं था। तीसरा खंबा ने पाबला जी की ऊंगली पकड़ना उचित समझा। आज
भी वह तकनीक के मामले में उन की उंगली पकड़ कर ही आगे चल रहा है।
तीसरा खंबा की निरंतरता का सब से बड़ा राज ये है कि इस पर औसतन
10 समस्याएँ प्रतिदिन प्राप्त हो जाती हैं। उन में से एक समस्या को मैं इस साइट पर
पोस्ट करता हूँ। शेष को मेल से ही उन का उपाय सुझा दिया जाता है। इस कायदे का लाभ
यह हुआ है कि इस पर आने वाले पाठकों की संख्या निरन्तर बढ़ती जाती है। 1 जनवरी
2012 को जब इसे साइट का रूप दिया गया था, तब से आज तक यह साइट कुल 1445300 बार
क्लिक की जा चुकी है, कुल 30 जून को 3298 पाठक आए। इन में से अधिकांश गूगल सर्च के
माध्यम से आए हैं। इस तरह इसी माह यह संख्या 15 लाख को पार करने वाली है।
अपनी ब्लागिंग तीसरा खंबा पर निरन्तर जारी है।
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