1 जुलाई का दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। खास तौर पर हमारे
भारत देश में इस का बड़ा महत्व है। यदि केलेंडर में यह व्यवस्था हो कि आजादी के
बाद के 70 सालों में किसी तारीख में पैदा हुए लोगों की संख्या उस तारीख के खांचे
में लिखी मिल जाए तो 1 जुलाई की तारीख का महत्व तुरन्त स्थापित हो जाएगा। कैलेंडर
की 366 तारीखों में सब से अधिक लोगों को जन्म देने वाला दिन 1 जुलाई ही नजर आएगा।
उधर फेसबुक पर हर दिन दिखाया जाता है कि उस दिन किस किस का जन्मदिन है। फेसबुक
शुरू होने से ले कर आज तक जन्मदिन सूची एक जुलाई को ही सब से लंबी होती है।
जब से मुझे पता लगा कि भारत में सब से अधिक लोग 1 जुलाई को ही पैदा
होते हैं तो मेरे मन में यह जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर ऐसा क्यों होता है? आखिर ये
एक अदद तारीख का चमत्कार तो नहीं हो सकता। उस के पीछे कोई न कोई राज जरूर होना चाहिए।
वैसे भी यदि ये तारीख का ही चमत्कार होता तो इमर्जेंसी में संजयगांधी जरूर इस
तारीख को कैलेंडर से निकलवा देते। केवल इस तारीख को निकाल देने भर से जनसंख्या
वृद्धि में गिरावट दर्ज की जा सकती थी। पूरे आपातकाल में ऐसा न हुआ, यहाँ तक कि
ऐसा कोई प्रस्ताव भी सामने नहीं आया। मुझे तभी से यह विश्वास हो चला था कि यह
तारीख का चमत्कार नहीं है बल्कि इस के पीछ कोई और ही राज छुपा है।
जिस साल इमर्जेंसी लगी उसी साल मेरी शादी हुई थी। शादी के डेढ़
माह बाद ही 1 जुलाई का दिन पड़ा। इस दिन पता लगा कि मेरे ससुर साहब भी 1 जुलाई को
ही पैदा हुए थे। इस जानकारी के बाद मैं अपनी तलाश में लग गया कि आखिर इस के पीछे
क्या राज है? मैं ने सोचा कि मुझे यह जानकारी हासिल करनी चाहिए कि देश में जन्मतिथि
का रिकार्ड रखने का तरीका क्या है? इस कोशिश से पता लगा कि देश में ऐसी कोई
व्यवस्था नहीं है जिस से लोगों के जन्म का रिकार्ड रखा जाता हो। आम तौर पर हर चीज
के लिए मेट्रिक परीक्षा की अंक तालिका को ही जन्म तिथि का आधार मान लिया जाता है।
मेट्रिक की अंकतालिका में वही जन्मतिथि अंकित होती थी जो किसी बच्चे को स्कूल में
भर्ती कराते समय अंकित कराई जाती थी या फिर कर दी जाती थी।
जब स्कूल के रिकार्ड पर ही अपने इस महत्वपूर्ण शोध का परिणाम
निकलने वाला था तो इस के लिए अध्यापकों से पूछताछ करना जरूरी हो गया। लेकिन मेरे
लिए यह मुश्किल काम नहीं था। खुद अपने घर में चार पांच लोग अध्यापक थे। पिताजी भी
उन में एक थे। मैं ने पिताजी से ही पूछा कि आखिर ऐसा क्यों है कि हमारे यहाँ सब से
ज्यादा लोग 1 जुलाई को पैदा होते हैं? मेरे इस सवाल पर पिताजी ने अपने चिर परिचित
अंदाज में जोर का ठहाका लगाया। उस ठहाके को सुन मैं बहुत अचरज में आ गया और सोचने
लगा कि आखिर मैं जिस शोध में पूरी गंभीरता से जुटा हूँ उस में ऐसा ठहाका लगाने
लायक क्या था? खैर¡
जैसे ही पिताजी के ठहाके की धुन्ध छँटी, पिताजी ने बोलना आरंभ
किया। 1 जुलाई के दिन में ऐसी कोई खास बात नहीं है जिस से उस दिन ज्यादा बच्चे
पैदा हों। वास्तव में इस दिन जबरन बहुत सारे बच्चे पैदा किए जाते हैं, और ये सब
हमारे विद्यालयों में पैदा होते हैं।
मैं पूरे आश्चर्य से पिताजी को सुन रहा था। वे कह रहे थे। उस
दिन लोग स्कूल में बच्चों को भर्ती कराने ले कर आते हैं। हम उन से जन्म तारीख
पूछते हैं तो उन्हें याद नहीं होती। जब उम्र पूछते हैं तो वे बता देते हैं कि
बच्चा पांच बरस का है या छह बरस का। अब यदि 1 जुलाई को बच्चे की उम्र पूरे वर्ष
में कोई बताएगा तो उस साल में से उम्र के वर्ष निकालने के बाद जो साल आता है उसी
साल की 1 जुलाई को बच्चे की जन्मतिथि लिख देते हैं। इस तरह हर एक जुलाई को बहुत
सारे लोग अपना जन्मदिन मनाते दिखाई देते हैं।
जब ब्लागिंग का बड़ा जोर था तब वहाँ ताऊ बड़े सक्रिय ब्लागर
थे। वे रोज ही कोई न कोई खुराफात ले कर आते थे। फिर अचानक ताऊ गायब हो गए। जब से
वे गायब हुए ब्लागिंग को खास तौर पर हिन्दी ब्लागिंग को बहुत बड़ा झटका लगा। उस
में गिरावट दर्ज की जाने लगी और वह लगातार नीचे जाने लगी। बहुत से ब्लागर इस से
परेशान हुए और फेसबुक जोईन कर ली। धीरे धीरे ब्लागिंग गौण हो गयी और लोग फेसबुक पर
ही एक दिन में कई कई पोस्टें करने लगे।
पिछले दिनों ताऊ का फेसबुक पर पुनर्जन्म हो गया। तब से मुझे
लगने लगा था कि ताऊ जल्दी ही कोई ऐसी खुराफात करने वाला है। अचानक कुछ दिन पहले
ताऊ ने अचानक ब्लाग जगत का घंटा फिर से बजा दिया। ऐलान किया कि अंतर्राष्ट्रीय
हिन्दी ब्लॉग दिवस मनया जाना चाहिए। हम ने ताऊ के कान में जा कर पूछा –मनाएँ तो
सही पर किस दिन? ताऊ ने बताया कि 1 जुलाई पास ही है और वह तो भारत में ऐसा दिन है
जिस दिन सब से ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं। यह सुनते ही मैं ने भी अपने पिताजी की
स्टाइल में इतने जोर का ठहाका लगाया कि ताऊ तक को चक्कर आ गया।
लेकिन ताऊ ही अकेला ताऊ थोड़े ही है। हिन्दुस्तान में जिधर
देखो उधर ताऊ ही ताऊ भरे पड़े हैं। अब इन दिनों देश में मोदी जी सब से बड्डे ताऊ
हैं। उन के मंत्रीमंडल का वित्तमंत्री जेटली उन से भी बड़ा ताऊ है। उस ने भी जीएसटी
लागू करने की तारीख 1 जुलाई तय कर दी। बहुत लोगों ने कहा जनाब अभी तो पूरी तैयारी
नहीं है ऐसे तो लाखों लोग संकट में पड़ जाएंगे। पर जेटली बड़ा ताऊ आदमी है। उस ने
किस की सुननी थी? वो बोला लोग संकट में पड़ें तो पड़ें पर जीएसटी तो 1 जुलाई को ही
लागू होगा। जो भी परेशानियाँ और संकट होंगे उन्हें बाद में हल कर लिया जाएगा।
नोटबंदी में भी बहुत परेशानियाँ और संकट थे। पर सब हुए कि नहीं अपने आप हल? अब इस
बात का कोई क्या जवाब देता? सब ने मान लिया की ताऊ जो तू बोले वही सही। जेटली ताऊ
ये देख कर भौत खुस हो गया। उस ने आधी रात को संसद में जश्न मनाने का प्रस्ताव रखा
जिसे मोदी ताऊ ने तुरन्त मान लिया। उस प्लान में ये और जोड़ दिया कि ठीक रात के
बारह बजे घण्टा भी बजाया जाएगा।
अब आज की ब्लागिंग को यहीं विराम दिया जाए। टैम हो चला है, जेटली
ताऊ संसद में मोदी ताऊ का घंटा बजाने वाला है।
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