@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: धरती पिराती है

बुधवार, 3 जुलाई 2013

धरती पिराती है

'कविता'


धरती के अंतर में
धधक रही ज्वाला के
धकियाने से निकले 

गूमड़ हैं,     पहाड़

मदहोश इंसानो! 

जरा हौले से 
चढ़ा करो इन पर
धरती पिराती है,

जब भी पक जाते हैं, गूमड़

तो फूट  पड़ते हैं।
  • दिनेशराय द्विवेदी

8 टिप्‍पणियां:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

प्रकृति‍ पर वि‍जय की मदांधता है बस

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सटीक कविता.

रामराम.

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04/07/2013 के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें
धन्यवाद

Satish Saxena ने कहा…

लगता भूलों में ही यह, उम्र गुज़र जायेगी !
हिमालय को समझते, उम्र गुज़र जायेगी !

आज सब दब गए , इस दर्द के, पहाड़ तले
अब तो लगता है,रोते, उम्र गुज़र जायेगी !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

व्यक्त क्षोभ किसका है समझो...

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन क्रांतिकारी विचारक और संगठनकर्ता थे भगवती भाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/ चर्चा मंच <a href=" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'