आखिर व्यग्य चित्रकार असीम त्रिवेदी की रिहाई के लिए बम्बई उच्चन्यायालय ने आदेश दे दिया कि उन्हें 5000 रुपए के निजि मुचलके (व्यक्तिगत बन्धपत्र) देने पर रिहा करने का आदेश दे दिया गया। अब यह उन पर निर्भर करता है कि व्यक्तिगत बन्धपत्र निष्पादित कर जेल से रिहा होते हैं या नहीं। उन्हें रिहा होने के लिए एक बंधपत्र निष्पादित करना होगा जिस में यह अंकित होगा कि वे न्यायालय द्वारा निर्धारित तिथि को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होंगे। यदि वे उपस्थित नहीं हुए तो बंधपत्र का उल्लंघन होगा और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए वारंट जारी कर दिया जाएगा साथ ही बंधपत्र के उल्लंघन के लिए उन्हें बंधपत्र की राशि रुपए 5000/- भी न्यायालय को अदा करनी होगी। इस आदेश में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि उन्हें इस व्यक्तिगत बंधपत्र के साथ किसी अन्य व्यक्ति की जमानत भी न्यायालय में प्रस्तुत करनी होगी।
जमानत (प्रतिभूति) का अर्थ है कि किसी व्यक्ति की रिहाई के लिए कोई अन्य व्यक्ति इस बात की प्रतिभूति दे कि यदि गिरफ्तार (निरुद्ध) व्यक्ति न्यायालय के समक्ष निर्धारित तिथि पर उपस्थित न हुआ तो वह निर्धारित राशि न्यायालय को अदा करेगा। व्यंग्य चित्रकार की रिहाई आदेश में कहीं भी जमानत का उल्लेख नहीं है।
कल शाम से मीडिया (दृश्य-श्रव्य माध्यमों) में और आज समाचार पत्रों में सर्वत्र यही उल्लेख किया जा रहा है कि बम्बई उच्च न्यायालय ने असीम त्रिवेदी को जमानत पर छोड़े जाने का आदेश दे दिया है। इस तरह दोनों ही माध्यम जमानत शब्द का गलत प्रयोग कर रहे हैं।
समाचार माध्यम आम जनता में लोकप्रिय होते हैं और वे जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं आम लोग भी उन्हीं शब्दों का प्रयोग करते लगते हैं। इस कारण से माध्यमों की भाषा के प्रति जिम्मेदारी बढ़ जाती है। निश्चित रूप से माध्यम इस जिम्मेदारी का ठीक से निर्वाह नहीं कर रहे हैं। माध्यमों में यह जिम्मेदारी निर्देशकों, सम्पादकों, निर्माताओं, पत्रकारों की होती है। इन माध्यमों में काम करने वाले ये पत्रकार इस ओर ध्यान न दे कर एक गलत परंपरा डाल रहे हैं जो निश्चित रूप से भाषा को विकृत करना है। उन्हें इस ओर ध्यान देना चाहिए। जो जिम्मेदार पत्रकार इस बात को समझते हैं उन्हें माध्यमों में भाषा के प्रति पत्रकारों की इस जिम्मेदारी को रेखांकित करना चाहिए।
2 टिप्पणियां:
मीडिया भी कई बार आम आदमी की चलताऊ भाषा का ही प्रयोग करता है।एक बात मैं कई दिन पहले से आपसे पूछना चाहता था कि 'आरोपी ' और 'अभियुक्त' शब्द का न्यायिक शब्दावली में क्या अर्थ होता है और इनमें क्या अंतर है।यदि पुलिस किसी केस की छानबीन के दौरान शक के आधार पर पूछताछ करती है तो समचार पत्रो मे 'आरोपी से पूछताछ की गई' लिखना सही है जबकि उस पर आरोप साबित नहीं हुआ?कई बार जिससे प्रारम्भिक पूछताछ की जा रही हो उसे ही अभियुक्त भी लिख दिया जाता है।और यदि यह सही है तो फिर न्यायालय द्वारा 'आरोप तय करना' या 'आरोपी बनाया जाना' का क्या मतलब होता है?
उम्मीद है आप मेरा सवाल समझ गये होंगे।यदि समय हो तो कृप्या इसका जवाब दें।धन्यवाद।
असीम का केस भाषा से ज़्यादा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का है। हाँ, यह ज़रूरी है कि पत्रकारों और मीडिया को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए। Media के लिए माध्यम शब्द का प्रयोग कुछ अटपटा लगा।
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