@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: भारतीय समाज में गोत्र व्यवस्था : बेहतर जीवन की ओर-13

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

भारतीय समाज में गोत्र व्यवस्था : बेहतर जीवन की ओर-13

मने इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में अमरीकी इंडियन गोत्र व्यवस्था के बारे में जाना। कुछ हजार वर्ष पहले तक पूरी दुनिया में मानव समाज ऐसा ही था। बिना किसी वर्ग के एक सरल सामुहिक जीवन जीता हुआ। एक स्वाभाविक रूप से विकसित समाज जिस में शासक-शासित नहीं थे। भारतीय समाज में आज भी गोत्र व्यवस्था के अवशेष देखने को मिलते हैं। एक ही गोत्र के स्त्री-पुरुष के बीच वैवाहिक संबंधों की मनाही का कड़ाई से पालन कुछ वर्ष पहले तक किया जाता रहा है। अधिकांश मामलों में आज भी किया जाता है। अधिकांश भारतीय समाज में ये गोत्र पितृसत्तात्मक हैं। यदि कोई दम्पति निस्सन्तान हो और उन्हें किसी संतान को गोद लेना हो तो यह परंपरा देखने को मिलती है कि किसी सगोत्र बालक-बालिका को ही गोद लिया जाए जिस से संपत्ति किसी अन्य गोत्र में न चली जाए। अनेक गोत्रों से मिल कर बिरादरी बनती है जिसे हमारे यहाँ जाति भी कहा जाता है। 

सलन मैं पारोत्रा ब्राह्मण बिरादरी से हूँ। इस बिरादरी में गोत्रों की संख्या कुल 22 के लगभग है। कोई तीस बरस पहले तक विवाह बिरादरी के भीतर ही किया जा सकता था। यदि कोई इस सीमा का उल्लंघन करता था उसे बिरादरी से बाहर समझा जा कर उस से सभी व्यवहार बंद कर दिए जाते थे। बिरादरी आज भी कुल 5-6 सौ परिवारों की है। जब बच्चे अधिक पढ़ने लगे और गोत्र के बाहर बिरादरी में विवाह योग्य जोड़े बनाने में मुश्किल खड़ी होने लगी तो यह तलाश किया जाने लगा कि हम आखिर इतने कम क्यों हैं, आखिर कोई तो और भी बिरादरी अवश्य होगी जिस से हमारा मूल मिलता होगा। तो अधिकांशतः मध्य प्रदेश के धार और इंदौर जिलों में बसने वाले बाबीसा ब्राह्मण बिरादरी तलाश कर ली गई जिनके गोत्र समान थे। कुछ बैठकों और सम्मेलनों के बाद दोनों बिरादरियों का एक संघ बन गया। मान लिया गया कि दोनों एक ही मूल के हैं। दोनों के बीच बेटी व्यवहार आरंभ हो गया। यदि इस मूल की तलाश करते जाएँ तो बहुत सी छोटी-छोटी बिरादरियों के संघ बनाए जा सकते थे। 

लेकिन जिस रीति से हमारा समाज बदला है। ये बिरादरियाँ वैसे ही नहीं टिकने वाली थीं। पढ़े लिखे लड़के अपने समान पढ़ाई वाली लड़की किसी भी ब्राह्मण बिरादरी से ब्याह कर लाने लगे। बिरादरी इतनी कमजोर हो गई कि वह किसी का बहिष्कार करने में सक्षम नहीं रही। उस ने ऐसे लड़कियों को स्वीकार करना आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे ब्राह्मण कन्या के स्थान पर अन्य कन्याएँ भी बिरादरी में विवाह कर लाई जाने लगीं और बिरादरी कुछ न कर सकी। अब बिरादरी के कायम रहने की एक शर्त यह भी हो गई है कि कोई भी पुरुष किसी भी कन्या को ब्याह लाए उसे बिरादरी में स्थान मिलने लगा। पर ऐसे उदाहरण अभी भी उंगलियों पर ही गिने जा सकते हैं। अभी भी गोत्र और बिरादरी के पुराने मूल्यों का ही अधिकांश लोग निर्वाह करते दिखाई पड़ते हैं। बिरादरी जब मजबूत थी तो दहेज और वैवाहिक खर्चों की सीमाएँ थीं। लेकिन बिरादरी के कमजोर पड़ने से ये दोनों दानव पैर पसारने लगे। लालच की सीमाएँ टूटने लगीं। अब बिरादरी के लोग ही विवाह में ये देखने लगे कि दहेज कितना मिलने वाला है और विवाह कितनी शान से होने वाला है। बिरादरी में पहले सब समान हुआ करते थे। उम्र और विद्वता सम्मान के कारण थे। अब धन उन का स्थान ले रहा है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि वर्ग भेदों के आने के पहले मानव समाज का जो सुंदर सामाजिक संगठन था, उस  का टूटना अवश्यंभावी था। उस संगठन ने कबीले से आगे कभी विकास नहीं किया। (क्रमशः)

8 टिप्‍पणियां:

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

हमारे यहाँ तो आज भी इस गोत्रवादी व्यवस्था का राज है। गोत्र देखकर, फिर लड़की देखकर, फिर घर-जमीन-नौकरी देखकर और तब कुंडली देखकर और फिर दहेज देकर शादी होती है। यह कितनी अच्छी व्यवस्था है, यह तो पिता ही जानता होगा यहाँ का। कहीं भी शादी के लिए जाने पर कोई न कोई दूर का रिश्ता निकल आता है लेकिन इन सबके बावजूद किसी तरह की स्वतंत्रता नहीं देते हैं लोग…

Gyan Darpan ने कहा…

बहुत शिक्षाप्रद आलेख

हम चाहे रिश्ते कैसे भी करें पर बच्चों को अपनी बिरादरी व गोत्रों के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए|

जिस समाज के बच्चों को अपनी बिरादरी व परम्पराओं का पूरा ज्ञान होता है उस समाज में "समान गोत्र विवाह प्रकरण" कभी नहीं होते|

Gyan Darpan
Matrimonial Site

Udan Tashtari ने कहा…

आलेख पसंद आया ...जानकारीपूर्ण..सधा हुआ!!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

रोचक पोस्ट.
आज-कल अब कहाँ संगठनों की कोई सुनता है.

Bharat Bhushan ने कहा…

अच्छी जानकारी.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

धीरे धीरे विकास होते रहने से जीवन का सरलीकरण ही होना था, पर न जाने कितनी विकृतियाँ आ गयी हैं।

ASHOK RAKTALE 'FANINDRA' ने कहा…

गौत्र पर रोचक जानकारी और फिर आज की परिस्थितियाँ अच्छा वर्णन किया है, किन्तु आज तो निभाने निभाने पर ज्यादा और जाती समाज पर कम ध्यान दिया जाता है.हाँ वर्ण भेद का प्रभाव अब भी बरकरार है.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बिरादरी जब मजबूत थी तो दहेज और वैवाहिक खर्चों की सीमाएँ थीं। लेकिन बिरादरी के कमजोर पड़ने से ये दोनों दानव पैर पसारने लगे। लालच की सीमाएँ टूटने लगीं।
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यह तो वास्तव में सही लगता है!