@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: 'हवा' ... महेन्द्र नेह की कविता

शनिवार, 2 जुलाई 2011

'हवा' ... महेन्द्र नेह की कविता

पिछले दिनों देश ने सरकार के विरुद्ध उठती आवाजों को सुना है। एक अन्ना हजारे चाहते हैं कि सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध कारगर कार्यवाही के लिए उपयुक्त कानूनी व्यवस्था बनाए। वे जनलोकपाल कानून बनवाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। देश के युवाओं का उन्हें समर्थन मिला। कानून बनाने को संयुक्त कमेटी गठित हुई। लेकिन सरकार की मंशा रही कि कानून बने तो कमजोर। अब खबरें आ रही हैं कि कानून को इस तरह का बनाने की कोशिश है कि भ्रष्टाचार मिटे न मिटे पर उस के विरुद्ध आवाज उठाने वाले जरूर चुप हो जाएँ। दूसरी ओर बाबा रामदेव लगातार देश को जगाने में लगे रहे। उन्हों ने पूरे तामझाम के साथ अपना अभियान रामलीला मैदान से आरंभ किया जिस का परिणाम देश खुद देख चुका है। इस बीच पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ गई। उन्हों ने दूसरी सभी चीजों की कीमतें बढ़ा दीं। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने इस तरह विरोध प्रदर्शन किया कि कोई कह न दे कि जनता पर इतना कहर बरपा और तुम बोले भी नहीं। देश की जनता परेशान है, वह बदलाव चाहती है लेकिन उसे उचित मार्ग दिखाई नहीं दे रहा। मार्ग है, लेकिन वह श्रमजीवी जनता के संगठन से ही संभव है। वह काम भी लगातार हो रहा है लेकिन उस की गति बहुत मंद है।

नता जब संगठित हो कर उठती है और जालिम पर टूटती है तो वह नजारा कुछ और ही होता है। जनता का यह उठान ही आशा की एक मात्र किरण है। कवि महेन्द्र 'नेह' उसे अपनी कविता में इस तरह प्रकट करते हैं ...

हवा
  • महेन्द्र 'नेह'


घाटियों से उठी
जंगलों से लड़ी
ऊँचे पर्वत से जा कर टकरा गई!
हवा मौसम को फिर से गरमा गई!!

दृष्टि पथ पर जमी, धुन्ध ही धुन्ध थी
सृष्टि की चेतना, कुन्द ही कुन्द थी
सागरों से उठी 
बादलों से लड़ी
नीले अम्बर से जा कर टकरा गई!

हर तरफ दासता के कुँए, खाइयाँ
हर तरफ क्रूरता से घिरी वादियाँ
बस्तियों से उठी
कण्टकों से लड़ी
काली सत्ता से जा कर टकरा गई?







    9 टिप्‍पणियां:

    प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

    हवा बहेगी,
    व्यथा सहेगी,
    कर्म निरत वह,
    कुछ न कहेगी।

    Gyan Darpan ने कहा…

    कैसे हो बदलाव ?
    १- कुछ लोग सब कुछ जानते हुए भी इस सरकार को वोट देंगे क्योंकि वे जन्मजात इस पार्टी से जुड़े है |
    २- जो नहीं जुड़े है उनके क्षेत्र में यह सरकार उनकी जाति का उम्मीदवार खड़ा कर उनके वोट झटक लेगी |
    ३- संघ और हिन्दू उग्रवाद का भय दिखाकर अल्पसंख्यकों के थोक वोट झटकने में भी सरकार माहिर है |
    ४- जिस श्रमजीवी वर्ग की आप बात कर रहे है उसके निम्न वर्ग को सरकार ने मनरेगा रूपी हड्डी डाल रखी है उसके बदले उनके वोट भी सरकार झटक लेगी |
    ५-श्रमजीवी वर्ग का एक वर्ग ये सोचकर इस सरकार को वोट दे देगा क्योंकि सामने कोई एसा नेता नहीं जिस पर देश चलाने का भरोसा किया जा सके |
    लो हो गया बदलाव !! फिर भी कुछ हो जाए तो समझो जनता ने नहीं भगवान् ने ही कोई चमत्कार कर दिया |

    रविकर ने कहा…

    बहुत-बहुत आभार |

    Mansoor ali Hashmi ने कहा…

    आज लेकिन हवा वो कहाँ खो गयी?
    काली सत्ता से टकराते देखा तो था,
    काली सत्ता को घबराते देखा तो था,
    वो हवा का बगोला कहाँ खो गया?
    वादियों में सुनहरी कहीं सो गया!!

    http://aatm-manthan.com

    डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

    हर तरफ दासता के कुँए, खाइयाँ
    हर तरफ क्रूरता से घिरी वादियाँ
    बस्तियों से उठी
    कण्टकों से लड़ी
    काली सत्ता से जा कर टकरा गई?..
    जबरदस्त.

    Khushdeep Sehgal ने कहा…

    अन्ना हज़ारे कल...
    किसी राजनीतिक दल को अपने मंच पर नहीं आने देंगे...
    अन्ना हज़ारे आज...
    हर राजनीतिक दल के द्वारे जाकर समर्थन मांग रहे हैं...

    साणू कि....

    जय हिंद...

    चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

    जब नीतीश जैसा छलिया और चालाक आदमी अन्ना से मिले तो अन्ना भरोसे के काबिल नहीं हैं। अन्ना वैसे भी जब चाहें किसी को ईमानदारी का प्रमाण-पत्र बाँट दें, यह तो मुझे नहीं पचता।


    भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ने और हल्ला मचानेवालों लोगों में कौन है? सिर्फ़ वही जो दिल्ली जा सकता है जिसे दो-चार दिनों की चिन्ता नहीं है और पेट भरा है। जिस आन्दोलन में किसान और मजदूर शामिल नहीं हुआ वह आन्दोलन कुछ लोगों के फायदे के लिए किया जाने वाला नकली और घटिया आन्दोलन है।

    अब कविता के बारे में ईमानदारी से कहूँ तो मुझे कुछ खास नहीं लगी।

    sajjan singh ने कहा…

    जनता अब बदलाव चाहती है उसे बस एक लीडर की तलाश थी अन्ना और बाबा को अपना भरपूर समर्थन देकर उसने यह बता भी दिया ।

    मेरे ब्लॉग पर पढ़ें-


    बाहर की समस्याओं के हल भीतर कैसे मिलेंगे ?

    बेनामी ने कहा…

    @ खुशदीप जी की टिप्पणी...साणू की :-)

    महेन्द्र जी का गीत...लाजवाब...