गैंता राज का पाईपेपर और उस पर राजा का चित्र |
गैंता ठिकाना 25° 34' 60 उत्तरी अक्षांश तथा 76° 17' 60 पूर्व देशान्तर पर चम्बल नदी के पूर्व में कोई पचास वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थापित था। इसे एक नगर राज्य जैसा कहा जा सकता है। क्यों कि गैंता नगर के अतिरिक्त शायद ही कोई बस्ती या गाँव इस की सीमा में आता हो। इस की सीमा में बस नगर था, कृषिभूमि और मामूली जंगल था। ठिकाने के लगभग सभी निवासी इसी नगर में निवास करते थे। जनसंख्या भी दो हजार के आसपास रही होगी। नदी किनारे होने से यह बंदरगाह का काम करता था। ठिकाने से लगे हुए अन्य ठिकानों के क्षेत्रों में बाहर से आने वाला सारा माल नदी से ही आता था। इन ठिकानों से बाहर जाने वाला माल भी नदी के रास्ते ही बाहर जाता था। गैंता ठिकाने से हो कर गुजरने वाले माल में से केवल कुछ मालों पर नाम मात्र का कर था। जिस के कारण नगर व्यापार का केंद्र अवश्य बन गया था। यही व्यापार इस की संपन्नता का आधार भी था। व्यापार का केंद्र होने के कारण नित्य ही व्यापारिक सौदे होते थे। इन सौदों में विवाद उत्पन्न होने पर उन्हें सुलझाने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक सक्षक्त पुलिस और न्यायप्रणाली होना आवश्यक था। इसी की स्थापना के लिए ठिकाने की अपनी पुलिस और न्याय व्यवस्था थी। राजा सत्ता का केंद्र था।
गैंता राज का आठ आने का कोर्ट फी स्टाम्प |
यह सारी व्यवस्था कैसी रही होगी? इस का निश्चय करने के लिए गढ़ को देखना और वहाँ के निवासियों से बात करने की इच्छा होना स्वाभाविक था। इस के लिए कम से कम एक-दो दिन यहाँ रुकना आवश्यक था। लेकिन हमें तो तुरंत ही लौटना था। इस काम को अगली यात्रा के लिए स्थगित किया। इस से अधिक मेरी रुचि इस बात में थी कि मैं बगीची को अवश्य देखूँ। बगीची नगर के परकोटे के बाहर नगर के पूर्वी द्वार से लगभग तीन सौ मीटर दूर स्थित है। इस बगीची में एक संत निवास करते थे। सब लोग उन्हें महाराज चेतनदास जी के नाम से जानते थे और संक्षेप में उन्हें महाराज कहते थे। महाराज को गैंता राज्य के राजा से भी अधिक सम्मान प्राप्त था। इस का कारण उन का ज्ञान और जनसेवा थी। वे संस्कृत, संगीत, गणित और वैद्यक के विद्वान थे। उन के पास से कोई खाली हाथ न जाता था। बीमार की बीमारी की चिकित्सा होती थी, कुछ दवा से कुछ उन के विश्वास से। निराश को आशा प्राप्त होती थी। कोई गरीब व्यक्ति यदि यह कह देता कि बेटी का ब्याह सर पर है और घर में कानी कौड़ी भी नहीं, अब तो आप का सहारा है। तो महाराज कह देते कि जा चिंता न कर सब हो जाएगा। महाराज इस बात को राजा और नगर के सेठों तक पहुँचाते तो उस की बेटी का ब्याह हो जाता। होनहार बालकों को वे अपनी बगीची में ही शिक्षा प्रदान करते। अपने इन गुणों के कारण महाराज चेतनदास जी को उन के जीवनकाल में ही चमत्कारी मान लिया गया था। ग्रीष्म काल में जब फसलें आ जाने के उपरांत घर अन्न से भरे होते तो महाराज एक पखवाड़े तक रामलीला का आयोजन करते। बगीची में रौनक हो जाती। रामलीला करने वाले बालकों को पूरे पन्द्रह दिन बगीची में ही रहना होता। वहीं दिन में रामलीला का अभ्यास होता वहीं भोजनादि। मेरे पूर्वजों का इस बगीची से गहरा संबंध रहा था।
मेरे दाहजी (दादाजी) पं. रामकल्याण शर्मा स्वयं संस्कृत, गणित तथा ज्योतिष के विद्वान, कर्मकांडी गृहस्थ ब्राह्मण थे और महाराज ब्रह्मचारी संन्यासी। लेकिन दोनों एक दूसरे का सम्मान करते। पिताजी का बचपन तो बगीची में ही गुजरा। पिताजी सात वर्ष के हुए तो दाहजी ने उन का प्रवेश इटावा के विद्यालय में करवा दिया। वहाँ दाहजी के दूर के रिश्ते के एक भाई अध्यापक और छात्रावास के अधीक्षक थे। अब पिताजी को पढ़ने के लिए इटावा में ही रहना था। पिताजी को इटावा छोड़ कर वापस गैंता पहुँचे तो महाराज ने दाहजी की खूब खबर ली। इतने छोटे बालक को दूर के विद्यालय में रख दिया, अकेला कैसे रह पाएगा? क्या मैं यहाँ उसे न पढ़ाता था? पर दाहजी ने उन्हें समझाया कि नए जमाने में नई शिक्षा आवश्यक है, गुरुकुल की पढ़ाई से काम न चलेगा। फिर भी पिताजी जब भी गैंता लौटते उन का अधिकांश समय बगीची में गुजरता। वहाँ उन्हें जीवन की शिक्षा मिलती। वहीं पिताजी को चिकित्सा, संगीत और संस्कृति की शिक्षा मिली। गर्मियों की रामलीला में पूरा परिवार ही बगीची मे इकट्ठा हो जाता। रामलीला में दाहजी विश्वामित्र, उन के छोटे भाई जनक, पिताजी राम और चाचा जी भरत के चरित्रों का अभिनय करते। पिताजी बताते थे कि महाराज चिलम पिया करते थे। लेकिन जैसे ही हम लोग अपना मेकअप कर के राम, लक्ष्मण आदि के रूप में आ जाते तो हमें उच्चासन पर बैठाते, कभी चिलम न पीते, और अपने आराध्य जितना मान देते। महाराज रामलीला में स्वयं परशुराम का अभिनय करते और सदैव दर्शकों के बीच हाथ में कपड़े का बुना कोड़ा लिए उसे फटकारते हुए प्रवेश करते। जैसे ही उन का प्रवेश होने को होता दर्शक अपने बीच दस फुट चौड़ी गैलरी बना देते थे। दर्शकों को भय लगता था कि परशुराम का कोड़ा किसी को लग न जाए।
गूगल मैप में दिखाई देती गैंता में महाराज की बगीची |
बाराँ में एक बार चार वर्ष की छोटी बहिन मेले से एक बाँसुरी खरीद लाई और दिन भर उस में फूँक मार कर पेंपें किया करती। मैं ने भी उस पर कोशिश की पर मैं भी बहिन से अधिक अच्छी कोशिश न कर सका। दो-दिन बाद पिताजी घर लौटे तो अचानक बांसुरी ले कर झूले पर बैठ गए और बजाने लगे। मैं उन का बाँसुरी वादन देख कर चकित था कि वे इतनी सुंदर बाँसुरी भी बजा सकते हैं। पूछने पर उन्हों ने बताया की कभी महाराज के सानिध्य में सीखी थी। मैं ने उस के पहले कभी पिताजी को बाँसुरी बजाते न सुना था और बाद में भी मुझे कभी इस का अवसर न मिला। पिता जी और दादा जी अक्सर ही गैंता में बिताए अपने समय के बारे में बातें किया करते थे। उन की बातों में हर बार महाराज चेतनदास जी उपस्थित रहते। इसी से मेरे मन में महाराज चेतनदास जी के प्रति बहुत सम्मान औऱ बगीची के प्रति आकर्षण बन गया था। बगीची मैं ने अब तक कल्पना में ही देखी थी। लेकिन मेरी इस छोटी सी यात्रा में मैं बगीची अवश्य ही जाना चाहता था। ...
.....अब की बार चलेंगे महाराज की बगीची में
13 टिप्पणियां:
गेंता और महाराज जी के बारे में जानकर अच्छा लगा...
जय हिंद...
चलिये अब बगीची में..हमें तो इसी बार लगा था कि पहुँच जायेंगे मगर बढ़िया वर्णन रहा.
शिक्षा और प्रकृति का संमिश्रण व्यक्तित्वों के विकास का मूलमन्त्र है। प्रतीक्षा है।
यह यादें लिपिबद्ध कर अच्छा किया ! अब हमेशा के लिए सुरक्षित यह यादें भविष्य की धरोहर होगी ! शुभकामनायें आपको !
intzaar barkarar hai,,
गैंता राज्य के बारे में बहुत विस्तृत जानकारी मिली ... आभार
मेरा मन कर रहा है कि, किसी तरह आप तक पहुँचूँ और यह सब स्वयँ अपनी आँखों से देखूँ । मुझे बचपन से ही अतीत की धरोहरें रोमाँचित करती रही हैं.. यह महत्वपूर्ण आलेख प्रस्तुत करने के लिये, धन्यवाद पँडित जी ।
अगली कड़ी में इस क्षेत्र को यदि भारत के भौगोलिक नक्शे पर चिन्हित करके एक छवि दे देते.. तो यह और ज्ञानवर्धक एवँ रोचक बन पड़ता ।
गेंता राज्य ओर यहां के महाराजा की बगीची की सुंदर जानकारी दी आप ने धन्यवाद, अगले भाग का इंतजार
देश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
मुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?
मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
रोचक जानकारी. गेता से अधिक महाराज जी की.
अब अगली कडी की प्रतिक्षा...
रोचक, पठनीय.
गेंता और महाराज जी के बारे में विस्तृत जानकारी!
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