@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: ज़ुनून और नशे का दौर क्यूँ?

मंगलवार, 29 मार्च 2011

ज़ुनून और नशे का दौर क्यूँ?

ज कुल जमा चार मुकदमे थे। सोचता था कि मध्यान्ह अवकाश के पहले ही कोर्ट का काम निपट लेगा और मैं कुछ घरेलू काम निपटा लूंगा। लेकिन सोचा हुआ कब होता है। एक मुकदमा बरसों से चल रहा है। विपक्षी के वकील मुझ से 11 वर्ष अधिक वरिष्ट हैं। वे मेरे उस्तादों में से एक हैं। अदालत भी उन की बहुत इज्जत करती है। वे यदि कह दें कि आज बहस का समय न मिलेगा तो अदालत को तारीख बदलनी ही होती है। आज वे मुकदमे में बिलकुल तैयार हो कर आए थे। मुझे भी प्रसन्नता हुई कि एक पुराने मुकदमे का निपटारा हो सकेगा। लेकिन मध्यान्ह के पहले जिला जज कुछ अधिक आवश्यक कामों में उलझे रहे। सुनवाई मध्यान्ह अवकाश के बाद के लिए टल गई। इस बीच एक अन्य न्यायालय में एक आवेदन का फैसला करवाया, तीसरा और चौथा मामला अदालत को समय न होने से आगे सरक गया। 
ध्यान्ह दो बजे बाद मैं जिन कामों में जुटना चाहता था उन्हें स्थगित किया और ठीक सवा दो बजे जिला जज के यहाँ पहुँच गया। वरिष्ठ विपक्षी वकील भी ढाई बजे तक पहुँच गए और न्यायाधीश भी न्यायालय में विराज गए। लेकिन आते ही फिर कुछ कामों में ऐसे उलझे कि हमारे मुकदमे की और कोई तवज्जो नहीं हुई। मैं ने एक बार न्यायाधीश का ध्यान आकर्षित भी किया कि हम दोनों पक्ष के वकील हाजिर हैं हमारा मुकदमा सुन लिया जाए। हमे थोड़ा ठहरने को कहा गया। उसी वक्त एक कागज जिला जज के समक्ष लाया गया, जिसे पूरा पढ़ कर जज ने अजीब  तरीके से मुस्कुराते हुए कहा -अब ये भी कोई बात हुई? मैं ने पूछा -क्या हुआ? उत्तर था कि अभिभाषक परिषद का पत्र था कि कल भारत-पाक क्रिकेट मैच होने से वकील काम नहीं कर सकेंगे। न्यायिक कार्य स्थगित रखने में सहयोग किया जाए। सहयोग की तो केवल अपेक्षा थी। वस्तुतः यह फरमान था कि वकील काम नहीं करेंगे। मैं ने पूछा मध्यान्ह पश्चात का काम स्थगित करने की बात होगी? जज का उत्तर था -नहीं, पूरे दिन काम न होगा।
खैर! साढ़े तीन बजे तक हमारे मुकदमे की सुनवाई न हो सकी। साढ़े तीन बजे जज साहब ने हमारे मुकदमे की फाइल हाथ में ली। मैं ने कहा -हम दोनों ढाई बजे से हाजिर हैं। जज साहब अत्यन्त विनम्रता से बोले -मैं खुद महसूस करता हूँ कि आप लोग बहुत देर से बैठे हैं। लेकिन मैं ही आज समय नहीं निकाल सका। पूछने लगे -कितना समय लगेगा। हम समझ गए कि आज सुनना नहीं चाहते। अब किसी जज को जबरन सुनाना तो अपने मुकदमे को बरबाद कर देने के बराबर था। मैं ने कहा -कोई पास की तारीख फरमा दें। फाइल तुरंत पेशकार के पास चली गई। पेशकार ने पूछा -क्या लिख कर तारीख बदलूँ? तो जज का उत्तर था -आज तो अपनी ओर से ही लिख दो कि अदालत को अन्य कार्यों में व्यस्तता के कारण समय नहीं मिला। मैं तारीख सुन कर वापस लौटा ताकि अपने कुछ काम तो निपटा सकूँ। 
ब कल काम नहीं होगा। अदालत हम जाएंगे। लेकिन सिर्फ एक-दो घंटों में मुकदमों में तारीखें बदलवा कर लौट पड़ेंगे। यह भी मुकम्मल है कि बाद का समय टीवी के सामने ही गुजरेगा। राहत यही है कि चलो कुछ घंटे आराम तो मिलेगा।  शाम को बेटी ने भी बताया कि दिल्ली और हरियाणा में कई संस्थानों ने कल का अवकाश कर दिया है। कुछ संस्थानों में आधे दिन का अवकाश है। अब हम इसे लादा हुआ जुनून ही कह सकते हैं। देश सारे न्यूज चैनल जब हर पंद्रह मिनट बाद क्रिकेट मैच के लिए ज़ुनून जगाने के लिए नगाड़े पीट रहे हों और प्रधान मंत्री क्रिकेट के इकलौते मैच को इतना महत्व दें कि खुद तो देखने पहुँचे ही, साथ में पडौसी देश के राजप्रमुखों को न्यौता भी दे डाले तो लोग क्यों न उस का अनुसरण करेंगे? इस राजनैतिक पहल ने इस खेल को खेल न रहने दिया। इसे लखनवियों की मुर्गा-जंग बना कर रख दिया है। इस राजनीति/कूटनीति से कुछ हल हो, न हो, इतना तो पता लग ही रहा है कि दोनों देशों के शासक चाहते हैं कि उन की जनता किसी न किसी नशे में डूबी रहे। जिस से उन की असफलताओं की ओर से जनता का कुछ तो ध्यान हटे।  कारपोरेट चाहते हैं कि उन की लूट के किस्से कुछ दिनों के लिए ही सही इस क्रिकेटीय ज़ुनून में दब जाए।
दोनों टीमों और खिलाड़ियों पर मुझे दया आ रही है। वे अपने देश की नुमाइंदगी का भ्रम पाले हुए हैं और जानते नहीं कि उन की तपस्या का इस्तेमाल राजनेता अपने मतलब के लिए और कारपोरेट अपने फायदे के लिए कर रहे हैं: या फिर जानते हुए भी चुप हैं और अपना लाभ देख रहे हैं। फिर भी उन का काम तपस्या का है। उन्हों ने अपने कौशल को लगातार माँजा है, चमकाया है। अब गेंद, और बल्ले उन्हें भारी नहीं पड़ते। वे क्रिकेट और भौतिकी के नियमों से खेलते हैं। वे वैसे ही खेल रचते हैं जैसे कभी ग़ालिब और मीर ग़ज़लें रचा करते थे। मैं चाहता हूँ कि कल फिर से सारे खिलाड़ी मिल कर मैदान में ग़ज़लें रचें, कि कल का खेल एक नशिस्त बन जाए। 

18 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

टीम भारत को शुभकामनाएँ...

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

nyaayik vyvstha ki letltifi or kriket ke raajnitikaran ka aek bhtrin sch prstut kiya he bdhaayi . akhtr khan akela kota rajsthan

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

भाई दिनेश द्विवेदी जी आपने तो कमाल कर दिखाया हे न्यायिक व्यस्तता और अव्यवस्था के साथ क्रिकेट के राजनीतिकरण और समाज पर हावी होते इसके नशे का जो चित्रन किया हे वोह काबिले तारीफ हे मुबारक हो आज दर्शन करने की कोशिश करूंगा. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

विष्णु बैरागी ने कहा…

सारी दुनिया को काम करने के लिए समय नहीं मिलता, काम करने के घण्‍टे कम लगते हैं और एक हम हैं कि काम न करने के लिए बहाने तलाशते हैं और देश को अफीम के नशे में गाफिल किए हुए हैं।

Satish Saxena ने कहा…


आपके द्वारा बोरिंग अदालती कामों की चर्चा इतने सरल ढंग से करना कि बार बार पढने का दिल करे , हैरान कर देता है !

पूरा लेख एक कहानी जैसा लगता है जिसमें उत्कंठा के साथ साथ अंत तक रूचि बनी रहती है ! आप को किसी पत्रिका का सम्पादक होना चाहिए था :-)

आपको पढना आनंद दायक है ! आभार !

Learn By Watch ने कहा…

मुझे भी जब पता चला कि हमारी देश के कुछ ना कर पाने वाले प्रधानमंत्री ने पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री को वार्ता के लिए बुलाया है तो दिमाग खराब हो गया|

अपने देश की तमाम समस्या तो सुलझा नहीं पा रहे और सांप को दूध और पिला रहे हैं|

मैं तो उम्मीद करता हूँ कि भारत यह मैच जीते|

Khushdeep Sehgal ने कहा…

मेरा राम ते तेरा मौला है,
एइयो ते बस रौला है...

क्रिकेट को बस क्रिकेट ही रहने देते हुए गाया जाए- बुल्ला कि जाणा मैं कौण...

जय हिंद...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भारतबन्द जैसी स्थितियाँ हो गयी हैं।

Rahul Singh ने कहा…

फिक्सिंग के बावजूद फिक्‍स लोग.

Arvind Mishra ने कहा…

हद है -और हम तुलना करते हैं अमेरिका चीन और जापान से !

सञ्जय झा ने कहा…

@ हद है -और हम तुलना करते हैं अमेरिका चीन और जापान से !

ji nahi bhaijee.........apne ko to pakistan.....bangladesh......sri lanka........nepal.........hi nakel
kaas dete hain........itni apni aukat kahan


hoot...him........poorjor virodh...
khel bhavna par jhooti rajnitik aur kootnitik prayas ke.........ye balak ki bebasi hai......ke apne samman-niyon ke vich bechargi me.......oon besharm...sharm-nirpekshkon ko gali bhi nahi de sakta..........

control....control......control...

pranam.

रवि रतलामी ने कहा…

"...अब हम इसे लादा हुआ जुनून ही कह सकते हैं।..."

यहाँ मप्र में भी लादा हुआ जुनून है - आधिकारिक रूप से आधे दिन का शासकीय अवकाश घोषित कर दिया गया है!

राजेश उत्‍साही ने कहा…

असल में सबकी अपनी ढपली है और सबका अपना राग है।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Dwideji ji, kaise likh lete hain itna kuchh. Samay mile to 09935923334 pe baat kariyega.

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जीवन की हरियाली के पक्ष में।
इस्लाम धर्म में चमत्कार।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

hum jeetenge , phir gazal hi gazal

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

‘ एक मुकदमा बरसों से चल रहा है। विपक्षी के वकील मुझ से 11 वर्ष अधिक वरिष्ट हैं।’

एक कहानी याद आई। बाप-बेटे दोनो वकील थे। एक बार बाप को कहीं जाना था तो बेटे ने मुकदमा हाथ में लिया और बरसों पुराना केस निपटा दिया। बाप लौटा तो बेटे ने अपनी कारस्तानी सुना दी। बात झल्लाया_ तू क्या समझता है, मैं इसे निपटा नहीं सकता था। अरे बेवकूफ़, एक मुवक्किल हाथ से निकल गया ना!!:)

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@ cmpershad
बेटे ने पिता को समझाया उस मुकदमे की फीस तो कब की आ चुकी थी। अब फैसला करा दिया तो विपक्षी उस में अपील तो करेगा ही। उस की फीस तो मिलेगी। आप उसे बेकार ही ढोये जा रहे थे।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

द्विवेदी जी ने बड़ी ही खूबसूरती से अपने पेशे की कमियों-कमजोरियों को अंकित किया है..