मनुष्य का इस धरती पर पदार्पण हुए कोई अधिक से अधिक चार लाख और कम से कम ढाई लाख वर्ष बीते हैं। हम कल्पना कर सकते हैं कि आरंभ में वह अन्य प्राणियों की तरह ही एक दूसरे के साथ संप्रेषण करता होगा। मात्र ध्वनियों और संकेतों के माध्यम से। 30 से 25 हजार वर्ष पहले पत्थर की चट्टानों पर मनुष्य की उकेरी हुई आकृतियाँ दिखाई पड़ती हैं, जो बताती हैं कि तब वह स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए चित्रांकन करने लगा था। कोई 12 से 9 हजार वर्ष पहले जब उस ने खेती करना सीख लिया तो फिर उसे गणनाओं की आवश्यकता होने लगी और फिर हमें उस के बनाए हुए गणना करने वाले टोकन प्राप्त होते हैं। फिर लगभग 6 हजार वर्ष पूर्व हमें मोहरें दिखाई देने लगती हैं जिन से रेत या मिट्टी पर एक निश्चित चित्रसंकेत को उकेरा जा सकता था। इस चित्रलिपि से वर्षों काम लेने के उपरांत ही शब्द लिपि अस्तित्व में आ सकी होगी जब हम भोजपत्रों पर लेखन देखते हैं। इस के बाद कागज का आविष्कार और फिर छापेखाने के आविष्कार से लिखी हुई सामग्री की अनेक प्रतियाँ बना सकना संभव हुआ। सचल टाइप का प्रयोग 1040 ईस्वी में चीन में और धातु के बने टाइपों का प्रयोग 1230 ई. के आसपास कोरिया में आरंभ हुआ। इस तरह हमें अभी पुस्तकों की अनेक प्रतियाँ बनाने की कला सीखे हजार वर्ष भी नहीं हुए हैं। तकनीक के विकास के फलस्वरूप हम एक हजार वर्ष से भी कम समय में अपना लिखा सुरक्षित रखने के लिए कंप्यूटर हार्डडिस्कों का प्रयोग करने लगे हैं, इंटरनेट ने यह संभव कर दिखाया है कि इस तरह हार्डडिस्कों पर सुरक्षित लेखन एक ही समय में हजारों लाखों लोग एक साथ अपने कंप्यूटरों पर देख और पढ़ सकते हैं, उस सामग्री को अपने कंप्यूटर पर सुरक्षित कर सकते हैं और उस की कागज पर छपी हुई प्रति हासिल कर सकते हैं।
मैं यह बातें यहाँ इसलिए लिख रहा हूँ कि अभी हाल ही में यह कहा गया कि "जितने भी अप्रवासी वेबसाईट हैं सब मात्र हिन्दी के नाम पर अब तक प्रिंट में किये गये काम को ही ढोते रहे हैं, वे स्वयं कोई नया और पहचान पैदा करने वाला काम नहीं कर रहे , न कर सकते क्योंकि वह उनके कूबत से बाहर है।" यह भी कहा गया कि साहित्य के क्षेत्र में नाम वाले लोग नेट पर नहीं आते। नेट का उपयोग सरप्लस पूंजी यानि कंप्यूटर और मासिक नेट खर्च और ब्लॉग-पार्टी का उपयोग कर संभ्रांत जन में अपना प्रभाव जमाने के लिये ही हो रहा है। नेट पर समर्पित होकर काम करने वालों को यहां निराशा ही हाथ लगती है। यहाँ चीजें बिल्कुल नये रूप में उपलब्ध नहीं होती।(बासी हो कर आती हैं)
इंटरनेट पर ब्लाग के रूप में बिना किसी खर्च के अपना लिखा लोगों के सामने रख देने की जो सुविधा उत्पन्न हुई है, उस के कारण बहुत से, बल्कि अधिकांश लोग अपना लिखा इंटरनेट पर चढ़ाने लगते हैं कि इस से बहुत जल्दी वे प्रसिद्ध हो जाएंगे और बहुत सा धन कमाने लगेंगे। लेकिन कुछ ही महिनों में उन्हें इस बात से निराशा होने लगती है कि उन्हें पढ़ने वाले लोगों की संख्या 100-200 से अधिक नहीं है, और यहाँ वर्षों प्रयत्न करने पर भी धन और सम्मान मिल पाना संभव नहीं है। मुझे लगा कि उक्त आलोचना इसी बात से प्रभावित हो कर की गई है।
लेकिन यदि हम संप्रेषण के इतिहास को देखें जो बहुत पुराना नहीं है, तो पाएंगे कि प्रिंट माध्यम की अपनी सीमाएँ हैं। उस के द्वारा भी सीमित संख्या में ही लोगों तक पहुँचा जा सकता है। प्रिंट का माध्यम भी अभिव्यक्ति के लिए सीमित है। वहाँ भी केवल भाषा और चित्र ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं। यही कारण है कि प्रिंट के इस माध्यम के समानांतर ध्वनि और दृश्य माध्यम विकसित हुए। हम देखते हैं कि पुस्तकों की अपेक्षा फिल्में अधिक प्रचलित हुईं। टेलीविजन अधिक लोकप्रिय हुआ। कंप्यूटर किसी लिपि में लिखी हुई सामग्री को जिस तरह संरक्षित रखता है, उसी तरह दृश्य और ध्वन्यांकनों को भी संरक्षित रखता है। इंटरनेट इन सभी को पूरी दुनिया में पहुँचा देता है। इस तरह हम देखते हैं कि इंटरनेट वह आधुनिक माध्यम है जो संचार के क्षेत्र में सब से आधुनिक लेकिन सब से अधिक सक्षम है।
साहित्य के लिए इंटरनेट के मुकाबले प्रिंट एक पुराना और स्थापित माध्यम है, वहाँ साहित्य पहले से मौजूद है। लेकिन अब जहाँ पेपरलेस कम्युनिकेशन की बात की जा रही है। वहाँ साहित्य को केवल पुस्तकों में सीमित नहीं रखा जा सकता। उसे इंटरनेट पर आना होगा। एक बात और कि इंटरनेट पर लिखा तुरंत उस के पाठकों तक पहुँचता है। जब कि प्रिंट माध्यम से उसे पहुंचने में कम से कम एक दिन और अनेक बार वर्षों व्यतीत हो जाते हैं। यह कहा जा सकता है कि अभी इंटरनेट की पहुँच बहुत कम लोगों तक है, लेकिन उस की लोगों तक पहुँच तेजी से बढ़ रही है। मैं ऐसे सैंकड़ों लोगों को जानता हूँ जिन्हों ने बहुत सा महत्वपूर्ण लिखा है। पुस्तक रूप में लाने के लिए उन की पाण्डुलिपियाँ तैयार हैं और प्रकाशन की प्रतीक्षा में धूल खा रही हैं। बहुत से लेखकों की पुस्तकें छपती भी हैं तो 500 या 1000 प्रतिलिपियों में छपती हैं और वे भी बिकती नहीं है। केवल मित्रों और परिचितों में वितरित हो कर समाप्त हो जाती हैं। इस के मुकाबले इंटरनेट पर ब्लागिंग बुरी नहीं है। हम जल्दी ही देखेंगे कि दुनिया भर का संपूर्ण महत्वपूर्ण साहित्य इंटरनेट पर मौजूद है।
29 टिप्पणियां:
एकदम सही फ़रमाया आपने, इंटरनेट और ब्लॉग बहुत ही आसानी से उपलब्ध एक मंच है, आम इंसान जो जीवन भर अपनी रचनाओं को पुस्तक रूप नहीं दे पता था, वे सहज ही अपनी रचनाएँ पाठकों तक पंहुचा रहे है, और ब्लॉग पर ऐसी ऐसी रचनाएँ हैं की तथाकथित लेखक वर्ग भी शर्मा जाए, हर एक को मौक़ा मिल रहा है यहाँ!
एकदम सही.
shi frmaaya bhaai jaan yeh to krna hi pdhegaa . akhtr khan akela kota rajsthan
मैं आपके लेख में व्यक्त विचारों से सहमत होने के साथ ही श्री निलेश माथुर जी से भी सहमत हूँ. ब्लॉग की दुनिया में अच्छा लेखन के साथ ही समाजहित व देशहित में कुछ अच्छे कार्य करने वालों की जरूरत है. जिससे भारत देश से भ्रष्टाचार जैसी समस्या को खत्म किया जा सकें.
बेहतर बात...
यह होना ही है...समस्या अभी जो है, जो नेट पर अन्य मामलों में भी रहती है...समुद्र से मोती ढूंढ निकालने की...
धीरे-धीरे उपलब्धता बढ़ती जाएगी...
लोग नेट पर उकेरें - लिखें; अपना सर्वोत्कृष्ट। क्या साहित्य है, क्या कचरा, क्या बड़बड़ाहट, समय तय कर देगा। :)
अच्छा विश्लेषण ...ब्लॉग के माध्यम से सच ही हम अपनी बात शीघ्र और बहुत लोगों तक पहुंचा पाते हैं ...
एकदम सही फरमा रहे हैं आप.
पुराने साहित्य को अंतरजाल पर लाने के प्रयास जारी है। विकिपीडिया और कविताकोश जैसे साइट इस पर अच्छा काम कर रहे हैं॥
आज इस बहस को मैंने भी अपनी पोस्ट का विषय बनाया है । हालांकि मेरा मानना है कि सौ साल के बूढे साहित्य को पांच बरस के ब्लॉग शिशु से पंजा लडवाने का कारनामा सिर्फ़ साहित्यकार ही कर सकते हैं और यदि उन्हें ये करने की जल्दी है तो जरूर इसमें वे अपने प्रतिद्वंदी को देख रहे हैं
पोस्ट को लिंक पर जाकर पढ सकते हैं
नेट बनाम साहित्य
इस माध्यम की सफलता असंदिग्ध है...
छपने वाली किताबों के लोग डरे हुए हैं :)
समय के साथ कदम मिलाने को हमेशा तैयार रहना होगा.
सचमुच बड़ा तेज मीडिया है जी यह!
सहमत हे जी आप के लेख ओर आप से, धन्यवाद
बहुत सही कहा जी आपने। साहित्य लेखन के नाम पर हल्ला करके लोग लाईम लाईट में रहना चाहते हैं और इधर मन में लालसा रहती है कि नेट पर भी उनकी चर्चा होती रहे।
ब्लॉगर के समक्ष अंतहीन मैदान है खेलने के लिए।
हिंदी की तथाकथित प्रसिद्ध साहित्यिक पत्र पत्रिकाएँ - जिनमें हंस तथा कथादेश इत्यादि शामिल हैं, वे भी प्रिंट में 5-10 हजार से ज्यादा नहीं छपतीं, और उनके एक अंक में बमुश्किल दो-दर्जन रचनाएँ रहती हैं! जबकि रचनाकार और हिंद युग्म जैसे सामग्री प्रचुर साइटों में हफ़्ते भर में ही इससे ज्यादा सामग्री (यहाँ गुणवत्ता की बातें की जा सकती हैं, तो वह भी है, अलबत्ता प्रतिशत अभी कम है, जो जल्द ही बढ़ेगी भी) प्रकाशित होती है और पाठक इनसे कई गुना.
एक अछूते विषय का बढ़िया वर्णन करने के लिए आभार !! शुभकामनायें आपको
इंटरनेट को इस तरह अंडर-एस्टीमेट करने वालों को देखकर उस कबूतर की याद आती है जो शिकारी को देखकर अपनी आंख बंद कर लेता है और सोचता है कि बच गए..
एकदम सही फ़रमाया,"साहित्य पुस्तकों में सीमित नहीं रह सकता, उसे इंटरनेट पर आना होगा"
सही मुद्दे पर बात की है आपने।
हर समाज की अपनी भाषा और संस्कृति होती है और हर भाषा का अपना साहित्य होता है। हिन्दी भाषा का भी अपना साहित्य और समाज है। कहना न होगा यह समाज और इसका साहित्य अत्यंत समृद्ध रहा है। आधुनिक समय में मीडिया, विज्ञापन, पत्रकारिता और सिनेमा ने हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति की भूमि को उर्वर बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। ब्लाग या चिट्ठा इसी विकास की दुनिया का नवीनतम माध्यम है और ब्लागिंग या चिट्ठाकारिता लेखन या मीडिया की नई विधा।
किताब या पत्रिका की तुलना में इसकी पहुँच अधिक और तेज होने के कारण यह कई मामलों में पुराने मीडिया माध्यमों से बेहतर है।
यह सत्य है कि साहित्य को नेट पर आना ही होगा। कल मेरी भांजी जो अमेरिका में है राजस्थान के इतिहास की पुस्तके पढ़ने के लिए नेट पर सर्च कर रही थी क्योंकि उसे पुस्तके वहाँ उपलब्ध नहीं थी। अब अमेरिका बैठा व्यक्ति वीर-विनोद पढ़ना चाहता है तो कैसे पढे? इसलिए सारे साहित्य को नेट पर तो लाना ही पडेगा।
जितनी जल्दी लोगों को यह बात समझ में आ जाए, उतना अच्छा।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
shat-pratishat sahmat hoon aapse..
बिल्कुल सही कहा आपने, शुभकामनाएं.
रामराम.
सारगर्भीत लेख से पूर्णतः सहमत
प्रत्येक विधा का अपना महत्व और उपयोगिता होती ही है और समय के प्रभाव से कोई भी अछूता नहीं रह सकता। कोई भी विधा सम्पूर्ण निर्दोष या कि सम्पूर्ण सदोष नहीं होती। सो, ऐसे विमर्श चलते रहने चाहिए, चलेंगे और कारवॉं बढता रहेगा। जरूरतमन्द लोग अपने काम की चीजें तलाश लेंगे।
@ हम जल्दी ही देखेंगे कि दुनिया भर का संपूर्ण महत्वपूर्ण साहित्य इंटरनेट पर मौजूद है।
वर्धा स्थित अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने इस दिशा में ठोस पहल की है। हिंदी में अबतक लिखे गये उत्कृष्ट साहित्य को हिंदी समय.कॉम पर अपलोड करने का काम निरंतर जारी है। एक खजाना रूपाकार ले रहा है।
हिंदी समय का लिंक
www.hindisamay.com
आना तो होगा ही…
आना था ही…चलचित्र जाहिर है अधिक नजदीक है मानव के…तो पसन्द अधिक आएगा…कागज वाली समस्याएँ कम नहीं हैं…महंगी किताब…कम किताब…आदि
हालांकि हिन्दी समय, रचनाकार, कविताकोश आदि बहुत अच्छा और बड़ा काम कर रहे हैं लेकिन ये सब बस तथाकथित और प्रचारित कथा-कहानी-उपन्यास-नाटक आदि दे रहे हैं…वैज्ञानिक साहित्य और अन्य विषयों के साहित्य में बहुत कमी है, कम से कम हिन्दी में…आर्काइव डॉट ओआरजी, डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इण्डिया, स्क्रीबडी डॉट कॉम, मार्क्स टू माओ, प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग आदि कई साइटें हैं, जो बहुत अच्छी मात्रा में किताबें, कई विषयों पर हिन्दी-अंग्रेजी में उपलब्ध कराती हैं…
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