@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: बेटे-बेटी के घर आने का उत्सव

बुधवार, 11 अगस्त 2010

बेटे-बेटी के घर आने का उत्सव

म्प्यूटर अनुप्रयोग में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर लेने के बाद बेटे वैभव ने कुछ सप्ताह घर पर बिताए। आरंभ से ही शिक्षा में उत्तम प्रथम श्रेणी प्राप्त करते रहने से उस की इच्छा थी कि काम भी उस के अनुरूप ही मिले। इस कारण से वह सूचना तकनीकीशियनों के लिए भारत में सब से बड़े और उत्तम बाजार बंगलुरू के लिए रवाना हो गया। वह दीपावली के ठीक बाद गया था और फिर ठीक होली के दिन ही वहाँ से लौटा। कुल चार माह का उस का अनुभव बहुत विचित्र था। उस ने इस बीच बहुत परीक्षाएँ और साक्षात्कार दिए। लेकिन पढ़ाई और ज्ञान एक चीज है और परीक्षाएँ पास करना और साक्षात्कार में सफल होना दूसरी बात। वह एक दो सीढ़ी तो पार कर लेता लेकिन उस से आगे असफल हो जाता। यह करते करते ही उस ने इस काम में भी अपने कौशल को विकसित करना आरंभ कर दिया। 
स से पहले कैंपस सैलेक्शन का उस का अनुभव बहुत बुरा रहा था। जब जब भी कैंपस में चुनाव के लिए कोई कंपनी आती उसे अपनी ट्रेनिंग छोड़ भिलाई से इंदौर की यात्रा करनी पड़ती। कैंपस सेलेक्शन में भी बहुत जुगाड़ थे पहले तो अपने ही कॉलेज के टीपीओ को पटा के रखो, फिर किसी माध्यम से आने वाली कंपनी के मानव संसाधन प्रबंधक को पटाओ। न पटे तो किसी स्थानीय ऐजेंसी से कुछ जुगाड़ बिठाओ। वह यह सब नहीं करना चाहता था। चाहता था कि अपनी योग्यता से उसे कुछ मिले। आखिर एक कंपनी ने उसका चुनाव कर लिया उसे सेवा के लिए प्रस्ताव मिल गया। लेकिन जब जोइनिंग का समय आया तो पता लगा कि कॉलेज में कैंपस चुनाव के लिए जितनी कंपनियाँ आई थीं सब की सब जाली थीं। जैसे-जैसे नौकरी में चढ़ने का वक्त आता जा रहा था उन कंपनियों के जाल-स्थल गायब हो चुके थे। उन में दिए गए पतों पर कुछ और ही था। आखिर उसने बंगलुरू की राह पकड़ी।  
होली के बाद जब वह बंगलुरू पहुँचा तो अब तक के अनुभव से उस ने चयन की तमाम सीढ़ियाँ पार करना सीख लिया था और मानव संसाधन साक्षात्कार के स्तर तक पहुँचने लगा। बस यहीं से सारी गड़बड़ आरंभ हो गई। वहाँ उसे पता लगता कि वे कंप्यूटर अनुप्रयोग के स्नातकोत्तरों को नहीं लेते, या ये पता लगता कि उन्हें केवल एक को ही लेना है या फिर ये कि उन के पास अभी डॉटनेट को परखने वाला कोई नहीं है। जैसे ही उपलब्ध होगा वे उसे फिर से बुलाएँगे। वह हर सप्ताह एक-दो साक्षात्कार देता रहा। इसी तरह चार माह और निकल गए। आखिर उसे भारत की एक बड़े सूचना तकनीक उद्योग ने नोएडा में साक्षात्कार के लिए बुलाया। वह ढाई दिन की रेल यात्रा के बाद दिल्ली पहुँचा। लिखित परीक्षा हो गई, ठीक उस के बाद मानव संसाधन प्रबंधक का संदेश मिला कि उन्हें भेंट के रूप में आधी पेटी से अधिक राशि देनी होगी, तभी साक्षात्कार आगे होंगे और गारंटी के साथ नौकरी दे दी जाएगी। बेटे ने गारंटी का प्रकार पूछा तो पता लगा वह सिर्फ मौखिक है। उस ने बोरिया-बिस्तर समेटे और जिस भी पहली ट्रेन में स्थान मिला कोटा के लिए रवाना हो गया। 
ल शाम वैभव कोटा पहुँचा तो हमारे लिए उत्सव जैसा था। आखिर बेटा चार माह बाद घर आया था। उस के मनपसंद आलू के पराठे बनाए गए। उस के बहाने से हमें भी मिले तो एक अधिक ही खा गए। आज की सुबह भी भोजन में महिनों बाद बैंगन की सब्जी दिखाई दी। बैंगन भी अच्छे और स्वादिष्ट थे। लेकिन दो समय अतिभोजन और उपर से बला की ऊमस दिन भर पसीने बहते रहे। जैसे-तैसे घर पहुँचा तो संदेश मिला कि पूर्वा बेटी भी आ रही है, फरीदाबाद से चल चुकी है। भाई के एक सप्ताह घर रहने की खबर जान कर वह भी तीन दिनों का अवकाश ले कर आ रही है। हमारा उत्सव तो दुगना हो गया। अगले सोमवार तक घर में पूरा उत्सव ही रहेगा। जब तक बेटे-बेटी घर में हैं। मैं और वैभव तुरंत उसे लेने के लिए रेलवे स्टेशन जाने की तैयारी में जुट गए।

17 टिप्‍पणियां:

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…
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ghughutibasuti ने कहा…

बच्चे घर आएँ तो लगता है वसन्त आ गया। वैभव को सही काम पाने में समय लग रहा है। आशा है कि कुछ दिन बाद जब उसे मन पसन्द काम मिल जाएगा तो लगेगा कि जीवन के ये अनुभव भी बहुत कुछ सिखा गए । उसके लिए शुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती

शरद कोकास ने कहा…

द्विवेदी जी ... बच्चों के घर आने पर जिस तरह के माहौल का वर्णन आपने किया उससे मुझे अपने वे दिन याद आ गये जब मैं भी इसी तरह छुट्टियों में घर लौटकर आता था और माँ तरह तरह के व्यंजन बनाती थी । जितनी प्रसन्नता आपको और भाभीजी को हो रही है उससे कम खुशी वैभव और पूर्वा को नही हो रही होगी ,दोनो को शरद चाचा की ओर से भी बहुत प्यार दीजियेगा ,इतना कि ज़िन्दगी के आनेवाले दिनो में अपने माता पिता और बड़ों के प्यार और आशीष के बल पर वे इस तरह की हर कठिनाई से लड़ सकें । उनका भविष्य उज्ज्वल हो यह कामना

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

भाई जी, हमारा भी राम राम सभी को

आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर

चेतावनी-सावधान ब्लागर्स--अवश्य पढ़ें

Satish Saxena ने कहा…

पूर्वा के बारे में पहले भी पढ़ा था मगर वैभव के बारे में आज ही पता चला ! मुझे लगता है आप बहुत खुशकिस्मत पिता हैं जिन्हें ऐसे प्यारे बच्चे मिले हैं !

मेरा यह मानना है कि बच्चों का विकास और व्यवहार में माता पिता और परिवार के वातावरण का बहुत हाथ होता है तदनुसार ही उनका व्यक्तित्व विकसित और निखरता है !

परम्पराओं के हिसाब से सावन का त्यौहार बेटी का होता है, तीज भी आ रही है सो बाप बेटे, देखते हैं बिटिया को क्या देते हैं ... बढ़िया कलाई घडी अथवा आई पाड, से भी काम चल सकता है !

मैं यह इसलिए बता रहा हूँ कि मैं भी आजकल यही भुगत रहा हूँ रोज एक नयी चीज बता देती है कभी जन्मदिन के नाम पर तो कभी तीज त्यौहार के नाम पर !

शुभकामनायें !

उम्मतें ने कहा…

प्राइवेट सेक्टर में भी बड़ा झमेला है बालक का हौसला बनाए रखिये !
बच्चों का साथ उत्सव ही होता है !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अभि तो आप उत्सव का आनंद लीजिए ...वैभव के लिए हमारी शुभकामनायें ...उसके लिए निश्चय ही कुछ ज्यादा अच्छा मिलने वाला है ..इसीलिए थोड़ा वक्त लग रहा है ....

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया है जी..उत्सव मनाईये मगर बच्चों की होड़ में खाना खाते सेहत का ध्यान रखें...मेर बेटा और बहु जब यहाँ से गये तो तीन दिन सूप पर रहा, तब जा कर पेट नार्मल हुआ. हा हा!!


बच्चों को शुभाषिश!!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बच्चों के साथ का आनंद लिजिये, वैभव को अनुभव मिल रहा है जो आगे बहुत काम आयेगा, आप सभी परिवारजनों को बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

कुछ दिन तो घर भरा रहेगा। बधाई।

Mithilesh dubey ने कहा…

अच्छा है, अब तो घर भरा-भरा रहेगा , कुछ दिन एंजोय करिए बच्चों के साथ ।

बेनामी ने कहा…

यह तो वाकई में उत्सव का मौका है। अब रक्षाबंधन तक रौनक बने रहेगी परिवार में।

शुभकामनाएँ

बेनामी ने कहा…
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राज भाटिय़ा ने कहा…

आज आप की पोस्ट पढ कर ओर बच्चो के बारे पढ कर अच्छा लगा, सच बात है जब बच्चे घर आते है तो एक उत्सव सा बन जाता है, मेरे बच्चे अभी तो घर पर ही है अगले साल युनिव्र्स्टी जायेगे कहां दाखिला मिलता है, अभी पता नही, फ़िर कोई कोर्स ओर ह्मारा दिल अभी से उदास हो जाता है. दोनो बच्चो को प्यार ओर बेटे को बोले हिम्मत रखे जरुर कही ना कही काम मिलेगा, अगर मेरी कोई मदद की जरुरत हो तो मेल कर दे. धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वैभव अपनी योग्यता के अनुरूप कोई अच्छा पद पायेंगे। कभी कभी किसी बड़े परिणाम के आने के पहले छोटे छोटे विषयों में भी अव्यवस्था दिखायी पड़ती है।
परिवार के उत्सवीय परिवेश की ढेरों शुभकामनायें।

PD ने कहा…

अरे, वैभव तो पहचान में ही नहीं आ रहा है.. ये बिलकुल नया फोटो है या कुछ साल पुराना? :)
इस IT सेक्टर में भी बहुत गोरखधंधा है.. मगर मेरा अनुभव अभी तक का तो यही रहा है कि अन्य जगहों से अधिक पारदर्शिता है यहाँ.. मुझे पता है कि बस एक बार उसे स्टार्टअप मिलने के बाद वह पीछे मुड़ कर नहीं देखेगा.. :)