आज बैसाखी (वैशाखी) है। यह दिन अधिकांशतः 13 अप्रेल को ही होता है क्यों कि यह उस दिन होता है जिस दिन सूर्य की मेष संक्रांति होती है। इस दिन सूर्य मीन राशि के क्षेत्र को छोड़ कर मकर राशि के क्षेत्र में प्रवेश करता है। हमारा ग्रीगेरियन कलेंडर भी सौर गणना से बनता है। इस कारण से सूर्य की सभी संक्रांतियाँ हर वर्ष एक ही तिथि को आती हैं। हालांकि लीप इयर के आस पास इस में एक दिन का अंतर हो सकता है।
मेष राशि राशिचक्र की पहली राशि है इस कारण से हम कह सकते हैं कि यह सौर वर्ष का पहला दिन भी है। इन्हीं दिनों खेतों से रबी की फसलें आती हैं तो किसानों के घर प्रसन्नता का वातावरण रहता है। पंजाब में बैसाखी को सब से अधिक उत्साह और समारोह पूर्वक मनाया जाता है। वहाँ स्थान स्थान पर मेले लगते हैं। लोग सरोवरों व नदियों में स्नान करते हैं और मंदिरों व गुरुद्वारों में शीश नवातेहैं। लंगर लगते हैं और लोग प्रसन्न दिखते हैं विशेष रूप से किसान का मन गेहूं की खडी फसल को देखकर नाचने लगता है। गेहूं को पंजाबी कनक माने सोना कहते हैं और यह फसल किसान के लिए सोना ही है। बैसाखी पर कनक की कटाई शुरू हो जाती है। पंजाबी कहीं भी रहें, बैसाखी को नहीं भूलते। गुरु गोविंद सिंह ने 1699 ई. की बैसाखी पर आनंदपुर साहिब में विशेष समागम किया। इसमें देश भर की सिख संगतों ने शामिल होकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। उन्हों ने इस मौके पर संगत को ललकार कर कहा था "देश की गुलामी की कडियां तोडने के लिए मुझे एक शीश चाहिए। गुरु साहिब की ललकार सुनकर पांच सूरमाओं दया सिंह खत्री, धर्म सिंह जट, मोहकमसिंह छीवां,साहिब सिंह व हिम्मत सिंह ने अपने शीश गुरु साहिब को भेंट किए। ये सिंह गुरु साहिब के पांच प्यारे हुए। गुरु साहिब ने पहले इन्हें अमृत पान करवाया फिर उनसे खुद अमृत पान किया। इस तरह खालसा पंथ का जन्म हुआ। हर वर्ष बैसाखी पर खालसा का जन्म दिवस मनाया जाता है।बैसाखी पंजाबियों का सबसे बडा मेला है। इसका नाम लेते ही उन के दिलों की धडकनें बढ जाती है, शरीर थिरकने लगते हैं और भंगडा शुरू हो जाता है।
13अप्रैल, 1919 को ही जलियांवालाबाग में देश की आजादी के लिए रही सभा जनरल डायर के सिपाहियों ने अपनी बंदूकों के मुहँ खोल दिए। लोग गोलियों के आगे सीना ताने खडे रहे और शहीद हो गए। जो आग उस दिन देश के सीनों में सुलगी उसी के कारण आज हम अंग्रेजों के पंजों से आजाद भारत में साँस ले रहे हैं। इसी जलियाँवाला बाग की शहादत ने भगतसिंह को एक क्रांतिकारी बनने को प्रेरित किया था। क्या हम आज भी शहीद भगत सिंह के उस लक्ष्य को हासिल कर पाए हैं जिस में एक आदमी द्वारा दूसरे आदमी का और एक देश द्वारा दूसरे के शोषण की समाप्ति निहित थी। निश्चय ही यह लक्ष्य अभी बहुत दूर है। उस के लिए दुनिया के बहुत लोगों को अभी बलिदान देने शेष हैं। हम आज के दिन संकल्प कर सकते हैं कि हम उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपने जीवन का कुछ समय अवश्य देंगे।
13अप्रैल, 1919 को ही जलियांवालाबाग में देश की आजादी के लिए रही सभा जनरल डायर के सिपाहियों ने अपनी बंदूकों के मुहँ खोल दिए। लोग गोलियों के आगे सीना ताने खडे रहे और शहीद हो गए। जो आग उस दिन देश के सीनों में सुलगी उसी के कारण आज हम अंग्रेजों के पंजों से आजाद भारत में साँस ले रहे हैं। इसी जलियाँवाला बाग की शहादत ने भगतसिंह को एक क्रांतिकारी बनने को प्रेरित किया था। क्या हम आज भी शहीद भगत सिंह के उस लक्ष्य को हासिल कर पाए हैं जिस में एक आदमी द्वारा दूसरे आदमी का और एक देश द्वारा दूसरे के शोषण की समाप्ति निहित थी। निश्चय ही यह लक्ष्य अभी बहुत दूर है। उस के लिए दुनिया के बहुत लोगों को अभी बलिदान देने शेष हैं। हम आज के दिन संकल्प कर सकते हैं कि हम उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपने जीवन का कुछ समय अवश्य देंगे।
अंत में
जलियाँवाला बाग के शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि!!!
15 टिप्पणियां:
हमारी भी श्रद्धांजलि।
और "जट्ट मेले आ गया" की बैशाखी की तरंग की याद भी!
सामयिक प्रविष्टि...एक जरुरी आलेख...हमारी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि !
बहुत सामयिक ,शुक्रिया !
हमारी भी श्रद्धांजलि
जलियाँवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि!!!
आज मौन रखा था. लेकिन शायद अब मौन तोड़ने की आवश्यकता है...
नमन..
भावभीनी श्रद्धाञ्जलि
हमारी भी श्रद्धांजलि.
श्रद्धाजलि हमारी भी. बैसाखी, बिहू, विशु साधारणतया एक ही दिन पड़ते हैं. इस वर्ष अलग अलग दिनों में क्यों आ रहा है. कहीं अधिमास का चक्कर तो नहीं?
नमन.
यही कामना है कि ये घटना वैसे ही सबको प्रेरणा दे जैसा भगत सिंह को मिली !
अपनी कविता क़ोट करना अच्छी बात नहीं…पर कुछ और सूझ नहीं रहा…
कौन सा ख्वाब दूँ मै अपनी बेटी की आंखों में
कौन सी मिट्टी लाकर रख दूँ
उसके सिरहाने
जलियांवाला बाग़ फैलते-फैलते ...
हिन्दुस्तान बन गया है
.........
जलियांवाला बाग़ फैलते-फैलते ...
हिन्दुस्तान बन गया है
.........
जो आग उस दिन देश के सीनों में सुलगी
उसे पूरे हिंदुस्तान में
फैलने का इंतज़ार है....
मुझे इस तीर्थ यात्रा का सौभाग्य मिला है। सँकरे रास्ते से प्रवेश करते ही खुला मैदान सामने आता है और रोंगटे खडे हो जाते हैं।
हमारे वास्तविक तीर्थों में से एक है यह बाग।
जलियाँ वाला बाग के शहीदों को विनम्र श्रृद्धांजलि...
बैसाखी पर्व पर आपके विचार अच्छे लगे....
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