@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: और एक हुसैन.........

सोमवार, 8 मार्च 2010

और एक हुसैन.........

 और एक हुसैन.........

  •  दिनेशराय द्विवेदी
एक हुसैन ठेला घसीटता है
और पहुँचाता है
सामान, जरुरत मंदों तक
एक हुसैन सुबह-सुबह 
म्युनिसिपैलिटी की गाड़ी आने के पहले
कचरे में से बीनता है
काम की चीजें
अपनी रोटी के जुगाड़ने को

एक हुसैन भिश्ती
दोपहर नालियाँ धोता है
कि बदबू न फैले शहर में

एक हुसैन सुबह अपनी बेटी को छोड़ कर आता है
स्कूल
दसवीं कक्षा के इम्तिहान के लिए 

एक हुसैन अंधेरे मुँह गाय दुहता है
और निकल पड़ता है
घरों को दूध पहुँचाने

एक और हुसैन ........
एक और हुसैन.........
और एक हुसैन.........
कितने हुसैन हैं?

लेकिन याद रहा सिर्फ एक
जिसने कुछ चित्र बनाए
लोगों ने उन्हें अपनी संस्कृति का अपमान समझा
उसे पत्थर मारे
और उसे यादगार बना दिया
ठीक मजनूँ की तरह।

18 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सब हुसैन भी इन्सान हैं...अपने अपने कर्मों के हुसैन...

उम्मतें ने कहा…

नाम क्या है ? एक अदद पहचान पर्ची...एक स्टीकर जिसे अच्छाई / बुराई ...गुण / दुर्गुण का ख्याल और कर्मों का मूल्यांकन , किये बिना ही चस्पा कर दिया जाता है लिहाज़ा कई बार अच्छे स्टीकर गलत इंसानों में भी लग जाते हैं !

Unknown ने कहा…

हम भी हुसैन होते
अगर वैसे काम करते
थोडे से बदनाम तो होते
पर अपने पास दाम होते

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

गजब की रचना है. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Himanshu Pandey ने कहा…

अदभुत रचना !
सच में न जाने कितने हुसैन रचे-बसे हैं हिन्दुस्तान में उसे रचाने-बसाने के उपक्रम में ! आभार ।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

What's in a name? An apple will always be an apple.... so what.... if we call.... an apple ...a guava.... apple will remains an apple always...

निर्मला कपिला ने कहा…

वाह अद्भुत रचना !!!!! दिवेदी जी मैने तो पहली बार शायद आपकी कविता पढी है आप तो कविता भी बहुत अच्छी लिखते हैं। सभी विधाओं मे आपकी कलम की कायल हूँ। आशा है आगे से और भी कवितायें पढने को मिलेंगी। धन्यवाद्

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना, यह वाले हुसेन कर्म योगी है, जिन का मान करने को दिल करता है,

Arvind Mishra ने कहा…

हा हुसेन हा हुसेन

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

वाह,बेहतरीन.

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत सशक्त अभिव्यक्ति पंडित जी।
बधाई...

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

प्रभावशाली कविता। सच्ची और खरी बात कहती हुई।

बेनामी ने कहा…

वाकई में आपका नज़रिया ठोस सीख देता है...

बेनामी ने कहा…

वाकई में आपका नज़रिया ठोस सीख देता है...

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

एक हुसैन खो गया तो ग़म नही, आप तो पांव दर्ज़न ले आये! वो भी सब कर्म योगी.
जाने वाला तो बस................
उनका जाकर क़तर [cutter] मे कट जाना,
सांप का जैसे ख़ुद को डस जाना,
हो के 'मकबूल' माँ को छोड़ गए,
कहते है इसको ही भटक जाना.

विष्णु बैरागी ने कहा…

धारदार व्‍यंजना वाली प्रस्‍तुति। एक हुसैन में कई हुसैन। 'वे' न जाते तो 'ये' शायद ही नजर आते।

kunwarji's ने कहा…

bahoot achchhi lagi ji aapki ye rachnas...
kunwarji,

शरद कोकास ने कहा…

उस हुसैन को भी अपने श्रम (कला )के बदले फूल (धन ) मिले ..पत्थर अतिरिक्त है ।