- दिनेशराय द्विवेदी
म्युनिसिपैलिटी की गाड़ी आने के पहले
कचरे में से बीनता है काम की चीजें
अपनी रोटी के जुगाड़ने को
एक हुसैन भिश्ती
दोपहर नालियाँ धोता है
कि बदबू न फैले शहर में
कचरे में से बीनता है काम की चीजें
अपनी रोटी के जुगाड़ने को
एक हुसैन भिश्ती
दोपहर नालियाँ धोता है
कि बदबू न फैले शहर में
एक हुसैन सुबह अपनी बेटी को छोड़ कर आता है स्कूल
दसवीं कक्षा के इम्तिहान के लिए
एक हुसैन अंधेरे मुँह गाय दुहता है
और निकल पड़ता है
घरों को दूध पहुँचाने
एक और हुसैन ........
एक और हुसैन.........
और एक हुसैन.........
कितने हुसैन हैं?
कितने हुसैन हैं?
लेकिन याद रहा सिर्फ एक
जिसने कुछ चित्र बनाए
लोगों ने उन्हें अपनी संस्कृति का अपमान समझा
उसे पत्थर मारे
और उसे यादगार बना दिया
ठीक मजनूँ की तरह।
18 टिप्पणियां:
सब हुसैन भी इन्सान हैं...अपने अपने कर्मों के हुसैन...
नाम क्या है ? एक अदद पहचान पर्ची...एक स्टीकर जिसे अच्छाई / बुराई ...गुण / दुर्गुण का ख्याल और कर्मों का मूल्यांकन , किये बिना ही चस्पा कर दिया जाता है लिहाज़ा कई बार अच्छे स्टीकर गलत इंसानों में भी लग जाते हैं !
हम भी हुसैन होते
अगर वैसे काम करते
थोडे से बदनाम तो होते
पर अपने पास दाम होते
गजब की रचना है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
अदभुत रचना !
सच में न जाने कितने हुसैन रचे-बसे हैं हिन्दुस्तान में उसे रचाने-बसाने के उपक्रम में ! आभार ।
What's in a name? An apple will always be an apple.... so what.... if we call.... an apple ...a guava.... apple will remains an apple always...
वाह अद्भुत रचना !!!!! दिवेदी जी मैने तो पहली बार शायद आपकी कविता पढी है आप तो कविता भी बहुत अच्छी लिखते हैं। सभी विधाओं मे आपकी कलम की कायल हूँ। आशा है आगे से और भी कवितायें पढने को मिलेंगी। धन्यवाद्
बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना, यह वाले हुसेन कर्म योगी है, जिन का मान करने को दिल करता है,
हा हुसेन हा हुसेन
वाह,बेहतरीन.
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति पंडित जी।
बधाई...
प्रभावशाली कविता। सच्ची और खरी बात कहती हुई।
वाकई में आपका नज़रिया ठोस सीख देता है...
वाकई में आपका नज़रिया ठोस सीख देता है...
एक हुसैन खो गया तो ग़म नही, आप तो पांव दर्ज़न ले आये! वो भी सब कर्म योगी.
जाने वाला तो बस................
उनका जाकर क़तर [cutter] मे कट जाना,
सांप का जैसे ख़ुद को डस जाना,
हो के 'मकबूल' माँ को छोड़ गए,
कहते है इसको ही भटक जाना.
धारदार व्यंजना वाली प्रस्तुति। एक हुसैन में कई हुसैन। 'वे' न जाते तो 'ये' शायद ही नजर आते।
bahoot achchhi lagi ji aapki ye rachnas...
kunwarji,
उस हुसैन को भी अपने श्रम (कला )के बदले फूल (धन ) मिले ..पत्थर अतिरिक्त है ।
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