पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की क़लम से यूँ तो हर तरह की ग़ज़लें निकली हैं। उन में कुछ का मिजाज़ बिलकुल बाज़ारू है। बाजारू होते हुए भी अपने फ़न से उस में वे समाज की हक़ीकत को बहुत खूब तरीके से कह डालते हैं। जरा इस ग़ज़ल के देखिए ......
चितकबरी ग़ज़ल 'यक़ीन' की
- पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
हाले-दिल सब को सुनाने आ गए
फूँक दी बीमाशुदा दूकान ख़ुद
फिर रपट थाने लिखाने आ गए
मार डाली पहली बीवी, क्या हुआ
फिर शगुन ले कर दिवाने आ गए
खेत, हल और बैल गिरवी रख के हम
शहर में रिक्शा चलाने आ गए
तेल की लाइन से ख़ाली लौट कर
बिल जमा नल का कराने आ गए
प्रिंसिपल जी लेडी टीचर को लिए
देखिए पिक्चर दिखाने आ गए
हॉकियाँ ले कर पढ़ाकू छोकरे
मास्टर जी को पढ़ाने आ गए
घर चली स्कूल से वो लौट कर
टैक्सी ले कर सयाने आ गए
काँख में ले कर पड़ौसन को ज़नाब
मौज मेले में मनाने आ गए
बीवी सुंदर मिल गई तो घर पे लोग
ख़ैरियत के बहाने ही आ गए
शोख़ चितकबरी ग़ज़ल ले कर 'यक़ीन'
तितलियों के दिल जलाने आ गए* * * * * * * * * * * * * * * * * * * *
16 टिप्पणियां:
bahut khub
अपनी चितकबरी ग़ज़ल में यक़ीन साहेब ने समाज का चितकबरापन खूब बयां किया है...
लाजवाब लगा पढ़ना आपको ।
खेत, हल और बैल गिरवी रख के हम
शहर में रिक्शा चलाने आ गए
इस गजल के शेर मुझे तो बहुत अच्छॆ लगे सरल ओर सहज लेकिन दम दार. धन्यवाद आप का ओर यकीन जी का
बड़ी पैनी निगाह लिए घूमें हैं यक़ीन साहेब..:)
प्रिंसिपल जी लेडी टीचर को लिए
देखिए पिक्चर दिखाने आ गए
बीवी सुंदर मिल गई तो घर पे लोग
ख़ैरियत के बहाने ही आ गए
ये दो शेर बेहद पसंद आए। यूं सभी शेर काबिले दाद हैं। बेहद चितकबरी ग़ज़ल है और वैसा ही असर है। यक़ीन साहब को ढेरों बधाइयां और आपको शुक्रिया है।
खेत, हल और बैल गिरवी रख के हम,
शहर में रिक्शा चलाने आ गए...
पलायन का दर्द इतने कम शब्दों में इतने असरदार ढंग से...सच में लाजवाब...
जय हिंद...
गहरी घात करते शेर .... बहुत उम्दा ग़ज़ल यक़ीन साहब.
आप का शुक्रिया यक़ीन साहब को पढवाने का.
बीवी सुंदर मिल गई तो घर पे लोग
ख़ैरियत के बहाने ही आ गए
.
अन्दर लाईन मिसरा शायद इस तरह रहा होगा, [यह मैरा विचार है]
खैरीयत ही के बहाने अ गए.
मजेदार ग़ज़ल,
शौख़ चितकबरी ग़ज़ल पढ़कर मियाँ,
होश भी अपने ठिकाने आ गए.
दाने लेकर उड़ गयी चिड़ियाए जब,
खेत पर कव्वे उड़ाने आ गए.
इस चितकबरी ग़ज़ल मे समाज के सभी रंग भर दिये हैं यकीन जी हमेशा ही सटीक रचनायें लिखते हैं। अब इस गज़ल के हर शेर को कोट करने का मन चाहता है एक बार नही 3 बार पढ गयी हूँ इसे। यकीन साहिब को बधाई और आपका धन्यवाद इसे पढाने के लिये।
रहे रंग चितकबरा ही सही,
नंगी सच्चाई दिखाने आ गये ।
बहुत लाजवाब.
रामराम.
जाहिर, जमाने की हकीकतें,
बजरिए 'दिनेश', लेकर 'यकीन' आ गए
द्विवेदी जी आप इसे बाज़ारू कह ले लेकिन हमे तो अदम गोंडवी की शैली सा आनन्द आया । यकीन जी को बधाई ।
लाजवाब लगा पढ़ना आपको ।
शानदार गज़ल ! आभार ।
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