@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: बढ़ने से मंजिल मिल जाती है

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

बढ़ने से मंजिल मिल जाती है

भाई महेन्द्र 'नेह' का यह गीत बहुत  दिनों से याद आ रहा था।  आज मुझे पूरा मिल गया  है। बिना किसी भूमिका के उसे आप की चौपाल पर प्रस्तुत कर रहा हूँ ..... जरा आप भी गुन-गुना कर देखिए ...



बढ़ने से मंजिल मिल जाती है

  • महेन्द्र 'नेह'
पाँव बढ़े 
जो उलझी राहों पर
रोको मत, बढ़ने दो
बढ़ने से मंजिल मिल जाती है।


दर्दों के सिरहाने 
सपनों का तकिया रख
नींद को बुलावा दे
सच पूछो सिर्फ वही कविता है

जेठ के महीने में, मेघ के अभावों में 
लहराए, इतराए सच पूछो 
सिर्फ वही सरिता है 

ज्वार उठे सागर की लहरों में 
बाँधो मत, बहने दो
बहने से जड़ता मिट जाती है।

पानी से बंशी के स्वर मिलना 
याद रखो गंध धुला, दूध धुला 
जीवन है, गीत है जवानी है

बुद्धि का हृदय से औ, अंतस का माटी से
द्रोह अरे!
चिंतन है, दर्शन है, स्वप्न है, कहानी है 

आग लगे मन की गहराई में
ढाँपो मत, जलने दो
जलने से रूह निखर जाती है।


धर्म की तराजू पर 
पाप-पुण्य के पलड़े 
तुमने ही लटकाए
फिर खुद को उन में लटकाया है


मानव ने खुद पर विश्वास न कर
भूल-भुलैया भ्रम की 
निर्मित कर तन-मन भटकाया है

मान लुटे गलियों-चौराहों पर 
झिझको मत, लुटने दो
लुटने से बोझिलता जाती है। 

* * * * * * * * * * * * * *


13 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

दर्दों के सिरहाने
सपनों का तकिया रख
नींद को बुलावा दे
सच पूछो सिर्फ वही कविता है
इस गीत मे सबसे अधिक उल्लेखनीय है तो यह कविता की एक नई परिभाषा ।

Khushdeep Sehgal ने कहा…

नदिया चले, चले रे धारा
चंदा चले, चले रे तारा
ओ तुझ को चलना होगा,
तुझ को चलना होगा...
सूरज कहीं भी ठहरता नहीं
आंधी हो तूफ़ान, ये थमता नहीं है,
तू न चला तो चल दे किनारा
बड़ी ही तेज समय की ये धारा
तुझ को चलना होगा, तुझ को चलना होगा...

जय हिंद

राज भाटिय़ा ने कहा…

बढ़ने से मंजिल मिल जाती है आप की बात से सहमत है जी ,जो किसमत के सहारे बेठे रहते है वो क्या मंजिल को पायेगे...
बहुत सुंदर कविता.
धन्यवाद

अजय कुमार झा ने कहा…

नेह जी के इस गीत में तो जिंदगी के उजले पक्ष का सार छुपा हुआ है । आनंद आ गया , हमेशा की तरह

Udan Tashtari ने कहा…

नेह जी हर बार और दीवाना बना जाते हैं.

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

बहुत सुंदर रचना....

mehek ने कहा…

bahut sunder rachana,aashawadi.

अजय कुमार ने कहा…

jeevan ka gyan mila , Neh ji aur
aapko bahut badhayi

Arvind Mishra ने कहा…

बेहतरीन रचना

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत लाजवाब रचना.

रामराम.

निर्मला कपिला ने कहा…

धर्म की तराजू पर
पाप-पुण्य के पलड़े
तुमने ही लटकाए
फिर खुद को उन में लटकाया है


मानव ने खुद पर विश्वास न कर
भूल-भुलैया भ्रम की
निर्मित कर तन-मन भटकाया है
बहुत स्ुन्दर नेह जी की कविता दिल को छू लेती है उनकी रचना की गहराई सागर जितनी गहरी है उन्हें शुभकामनायें और धन्यवाद्

Ashok Kumar pandey ने कहा…

बहुत उठापठक थी
ऐसे एक गीत की बडी ज़रुरत थी
आभार

गौतम राजऋषि ने कहा…

शरद जी से सहमत...एक बेहद ही सुंदर गीत !