मानसून रूठ गया। बरसात नहीं हुई है। सूखा मुहँ बाए खड़ा है। महंगाई रोंद रही है। बहुत लोग हैं जो इस में कमाई का सतूना देख रहे हैं और कर रहे हैं। सरकार स्तब्ध है। कुछ कर नहीं पा रही है। कहती है .... हम इंतजाम कर रहे हैं पर कुछ तो बढ़ेगी। भुगतना होगा। सरकार को भी लगता है भुगतना होगा। सरकार परेशान है। सरकार में बैठी पार्टी परेशान है।
वह रास्ता निकालती है, कम खर्च करो बिजनेस की बजाय इकॉनॉमी में सफर करो। हवाई जहाज को छोड़ो ट्रेन में सफर करो। जनता के लिए यह संदेश है, तुम सफर करना बंद करो, पैसा बचाओ और उस से खाना खरीदो। सरकार मुश्किल में है। और बातें तो ठीक थीं पर मानसून यह न जाने क्यों गले पर आ कर बैठ गया। अब संकट है। वह संकट के उपाय तलाश रही है।
मीडिया संकट का बड़ा साथी है। वह संकट पैदा करता है, वह संकट नष्ट करता है। उसे दुकान चलानी है। गड्ढा खोदो और फिर उसे भरो। तमाशा देखें उन को विज्ञापन दिखा कर पैसा वसूल करो। कुछ न हो तो पुराने पेड़ की खोह में आग लगा दो। जब तक पेड़ जल न जाए। ढोल पीट पीट कर लाइव दिखाते रहो। लोगों को बिजी कर दो और बिजनेस करो। रोटी कमाओ।
पाकिस्तान परमानेंट इलाज है। जब कुछ काम न आए तो उधर से गोली चलने और गोला फेंकने की खबर दो। जब लोग पत्थर ले कर उधर फैंकने लगें तो कह दो ये तो उग्रवादियों की गतिविधि है। वह बेचारा खुदे ई उन से परेसान है। फिर औसामा को गाली दो। काम न चले तो डॉलर से उस की रिश्तेदारी का बखान करो। दो दिन निकल जाएंगे।
फिर चीन की तरफ झाँको। वह घुसा और लाल स्याही से पत्थरों पर चीन लिख गया। फिर चीन से तस्करी से आने वाले माल का उल्लेख करो, तस्करी को लाइव दिखाओ। कब से हो रही है? मीडिया जी अब तक कहाँ थे? यहीं थे। बस रिजर्व में रखा था इस माल को। अब जरूरत पड़ी तो दिखा रहे हैं। जब लोग बोर होने लगें तो दिखा दो कोई नहीं घुसा। वह तो अपने ही लोग पत्थरों पर चीन-चीन लिखना सीख रहे थे।
लोग तमाशा देखेंगे, और रोटी को भूल जाएँगे, महंगाई को भूल जाएंगे, बेरोजगारी को भूल जाएंगे। सीधे सतर खड़े हो कर जन, गण, मन गाएंगे। सीधे सतर न रहें तो भी तमाशा है उसे दिखाओ। हर ओर से चांदी है। जब लोगों को भूख लगे, वे चिल्लाने लगें तो किसी अच्छे कंडक्टर को बुलाओ जो मंच पर खड़ा हो कर डंडी हिलाए और गाना गवाए - भूख लगे तो गाना गा, भूख लगे तो गाना गा...ssss..आ.sssss....
14 टिप्पणियां:
सही बात है
गाना गाने का ही मौसम है आजकल
Bahut badhiya baat kahi aapne.
ab to yahi hone wala hai jab har aadmi khud me paresan jine ko jhujh raha hai aur sarkaar hai ki kuch dekh hi nahi pa rahi hai. fir bhukh lagane par public ko gana gana hi padega..
bahut badhiya,,,
हां कम से कम गाने पर तो चार्ज नहीं है :)
सही बात कही आपने हां एक बात और कहना चाहता था कि ये जो गाना ...ssss..आ.sssss... उसमे "आ" को हिंदी वाला 'आ' पढ़े या अंगरेजी वाला "A" ?
कब तक गाना गायें :) गाना भी तो नहीं आता.
आपने बिल्कुल सही कहा है . "भूख लगे तो गाना गा ....."
इस अच्छी रचना के लिए आभार .
आज तो आप ने बखिया ही उधेड दी, बहुत खरी खरी लेकिन सच्ची सच्ची बात कह दी, बस उल्झाये रखो जनता को जेसे जनता का दिमाग नही, सब बाते मेरे दिल की लिख दी कुछ रह गई,
धन्यवाद
आग लगी हमरी झोपडिया में हम गावैं मल्हार ! चिन्तनपरक !
एक तल्ख़ हक़ीकत क्या खूब बयान की है आपने...
और यह गीत भी क्या खूब याद दिलाया है...
जनता तू गाना गा
भूख लगे तो गाना गा
ये सरकार बनी है बहरी
गूंगी इसकी सभी कचहरी
पर्दे फट जाएं कान के
ऐसा गाना गा
जनता तू गाना गा...
अगली बार यह गीत संदर्भों के साथ पूरा दे डालिए...
बहुत आदर्श स्थिति है - दक्षिण और वाम विपक्ष दोनो पस्त है! जो नौटंकी चलाओ, हाउस फुल जायेगी! :)
एक दम सही बात है। ये सतूना शब्द क्या है पहली बार सुना है । गाना भी तभी गा सकेगा जब पेट मे कुछ जायेगा नहीं तो सूखे गले से तो ईँ ऊँ भी नहीं निकलेगा। फिर अsssssss aa ssssss के लिये तो और भी लम्बी हाँक देनी पडेगी। बहुत बडिया लिखा है आभार्
Vartaman sthitiyon ka sateek aankalan. aabhar.
हमको तो पहले ही पता था कि हम आपके साथ रहेंगे तो ..आपके बिगडने के चांस ज्यादा हैं...लपेट लपेट के धोया है आपने...अंदाज़ ये ज्यादा भाता है मुझे....इसलिये यदि ये कहूं कि मज़ा भी दोगुना आया तो...और हां भूख लगने पर ..हमेशा खटराग गाया जाता है....ऐसा एक डाक्टर ने बताया है हमें...
ऐसा तो हर सरकार करती रही है,
जनता भी नहीं सुधरी है।
बी एस पाबला
एक टिप्पणी भेजें