@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: 'ब्रज गजल' का परी हमकू * पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’

शनिवार, 22 अगस्त 2009

'ब्रज गजल' का परी हमकू * पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’

आप के प्रिय शायर पुरुषोत्तम 'यक़ीन' ने उर्दू और हिंदी के अतिरिक्त ब्रज भाषा में भी रचनाएँ की हैं। मूलतः करौली जिले के निवासी होने के कारण ब्रज उन की स्थानीय बोली है। पढ़िए उन की एक ब्रज ग़ज़ल


'ब्रज ग़ज़ल'
का परी हमकू
  •    पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
हँसौ, कै रोऔ, कै मुस्काऔ, का परी हमकू
करेजा फारि कै मरि जाऔ, का परी हमकू

गरज है कौन कू अब न्ह्याऊँ, जाऔ लम्बे परौ
कितउँ ते आऔ, कितउँ जाऔ, का परी हमकू

जु तुम ते काम हौ हमकू, ऊ तौ निकरि ही गयौ
अब अपनी ऐंठ में बल खाऔ, का परी हमकू

फिकर में देस की चाहौ तौ राति कारी करौ
कै खूँटी तानि कै सो जाऔ, का परी हमकू

कोई कू चाहौ तो तिलफाऔ, जान ते मारौ
कोई पे चाहौ तरस खाऔ, का परी हमकू

हमहिं तौ दिल्ली के बँगलन में जा कै र्हैनौ है
तुम अपने गाम पे इतराऔ, का परी हमकू

तुम्हारौ देस है, तुम जाय लूटि कै खाऔ
कै नित्त भूके ई सो जाऔ, का परी हमकू

हमारौ का है यहाँ, आप तौ मजे से रहौ
कबर ‘यक़ीन’ की खुदबाऔ, का परी हमकू
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10 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

कोऊ नृप होईं स्टाईल की मजेदार कविता

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर। बधाई ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति।
बधाई।

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

शानदार! पहली बार पढ़ने को मिली है ब्रजभाषा में ग़ज़ल।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत अच्छी लगी यह गज़ल ।

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत खूब। पुरुषोत्तम यकीन साहब ने इसमें ठेठ ब्रज चरित्र-का परि हमकूं का सही निर्वाह किया है...
पहली बार सामने आई ब्रज ग़ज़ल...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

अरे वाह !! बढ़िया लगी ग़ज़ल ...

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

का परी हमकू...
कहकर यक़ीन साहेब कितना कुछ कह गये हैं, जिनकी हमें वाकई में परनी चाहिए..

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

ब्रज भाषा की ऐसी धाँसू ग़ज़ल और उसके ग़ज़ल कर माननीय पुरोशोत्तम "यकीन" की ऐसी बढ़िया रचना से अवगत कारनमे का आभार.

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

ब्रज भाषा की ऐसी धाँसू ग़ज़ल और उसके ग़ज़ल कर माननीय पुरोशोत्तम "यकीन" की ऐसी बढ़िया रचना से अवगत कारनमे का आभार.