मूल साँख्य को जानने के लिए हमने अपना आरंभ बिन्दु शंकर और रामानुज द्वारा ब्रह्मसूत्र की व्याख्या करते हुए की गई साँख्य की आलोचना को चुना था। यह आलोचना जिस मुख्य सूत्र की की गई थी वह इस तरह था....
प्रधानं त्रिगुणमचेतनं स्वतन्त्रं जगत्कारणम्अर्थात् त्रिगुण प्रधान (आद्य प्रकृति) स्वतन्त्र रूप से जगत का कारण है।
लेकिन क्या त्रिगुण प्रधान अचेतन था? हम ने पिछले आलेख में देखा था कि सत्, रजस् और तमस् ये तीनों प्रधान (आद्य प्रकृति) के गुणधर्म नहीं अपितु उस के घटक हैं। जो प्रधान तीन घटकों का सामंजस्य़ हो वह किस प्रकार अचेतन कैसे हो सकता था? सांख्य हमें यह भी बताता है कि प्रधान इन तीनों घटकों की एक साम्यावस्था है जिस से उस के अचेतन होने की प्रतीति होती है। वस्तुतः वह अचेतन नहीं हो सकता। अपितु उस में ये तीनों घटक अन्तर्क्रिया में लीन हैं। वे लगातार बदलते हैं और एक दूसरे का संतुलन बनाए रखते हैं। जब तक यह अन्तर्क्रिया तीनों घटकों में साम्यावस्था को बनाए रखती है तब तक ही प्रधान प्रधान बना रहता है। जैसे ही इन तीनों घटकों की अन्तर्क्रिया से यह सामंजस्य टूटता है, जगत के विकास की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। ये तीनों केवल प्रधान के ही घटक नहीं है अपितु प्रकृति के प्रत्येक सूक्ष्म से सूक्ष्म कण के भी घटक हैं, जो उन्हें गतिमान और परिवर्तन शील बनाए रखते हैं। आज विज्ञान यह प्रमाणित कर चुका है कि पदार्थ के इलेक्ट्रॉन जैसे अतिसूक्ष्म कण भी निरंतर गति और परिवर्तन की स्थिति में रहते हैं।
प्रधान के साम्य के टूटने और जगत निर्माण की परिघटना की तुलना हम बिग-बैंग के आधुनिक सिद्धांत से कर सकते हैं। जिस में जगत के समूचे पदार्थ का एक सिंगुलरिटी में होना अभिकल्पित है। इस सिंगुलरिटी की प्रतीति भी अचेतन है। क्यों कि वहाँ कोई परिवर्तन नहीं है। इस कारण काल, व्योम और ऊर्जा कुछ भी विद्यमान नहीं है। बिग बैंग के पूर्व इस सिंगुलरिटी में क्या चल रहा होगा इस की कल्पना करना निरर्थक है। क्यों कि काल विद्यमान नहीं है, इस कारण से पूर्व शब्द का प्रयोग किया जाना संभव नहीं। इस आधुनिक सिंगुलरिटी में घटकों की कोई अभिकल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन साँख्य का प्रधान तीन घटकों का योग है। यही कारण है कि उसे अचेतन माना जाना संभव नहीं है। उसे अंतर्गतिमय कहा जा सकता है जिस की प्रतीति अचेतन है।
त्रिगुण-प्रधान साँख्य में वर्णित प्रथम तत्व है। इस में त्रिगुण के साम्य के टूटने से सत्व-गुण की प्रधानता वाला महत् अर्थात् बुद्धि जो साँख्य का दूसरा तत्व है, उत्पन्न हुआ। बुद्धि प्रकृति से उत्पन्न होने से भौतिक है लेकिन उस का रूप मानसिक और बौद्धिक है। बुद्धि से रजस् प्रधानता वाले तीसरे तत्व अर्थात अहंकार की उत्पत्ति हुई। जो स्वः की अनुभूति को प्रकट करता है। साँख्य के अनुसार अहंकार से तत्वों के दो समूह उत्पन्न हुए। सात्विक अहंकार से ग्यारह तत्वों का प्रथम समूह जिस में एक मनस या मन, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न हुईं। तामस अहंकार से पाँच तन्मात्राएँ अथवा सूक्ष्मभूत उत्पन्न हुए और इन पाँच तन्मात्राओं से पाँच महाभूतों की उत्पत्ति हुई।
इस तरह मूल साँख्य में 1. प्रधान या प्रकृति 2. महत् या बुद्धि 3.अहंकार 4. मनस या मन 5. से 9. पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ 10. से 14. पाँच कर्मेन्द्रियाँ 15 से 19 पाँच तन्मात्राएँ या सूक्ष्म भूत तथा 20 से 24 पाँच महाभूत, कुल 24 तत्व कहे गए हैं।
प्रथम तीन तत्वों 1. प्रधान या प्रकृति 2. महत् या बुद्धि 3.अहंकार से हम परिचय कर चुके हैं। अगली कड़ी में हम शेष 21 तत्वों के बारे में जानेंगे।
9 टिप्पणियां:
गूढ़ चिंतन में सहभागिता के लिए आपको धन्यवाद.
इस ब्लॉग का मैं एक 'चुप्पा' अनुगामी हूँ।
अभिषेक ओझा जी यदि इसे पढ़ें तो उनसे अनुरोध है कि गणित की singularity और दर्शन की singularity पर एक लेख लिखें। 'तेजू खाँव' की तरह नहीं- सरल तरीके से ;)। मुझे आज तक गणित की singularity समझ में नहीं आई। दर्शन वाली पर ट्राई मारेंगे - इस लेखमाला को पढ़ते हुए।
हे भगवान यह तो पूरा बौद्धिक व्यायाम है -मुझे हर तरह के व्यायाम से डर लगता है (बस एक को छोड़ कर..... हे हे !)
इतना गज़ब न करो महाराज कि हमें भी गिरिजेश टाईप चुप्पा अनुगामी बनने मजबूर होना पड़े...दो सीढ़ी नीचे उतर आओ तो सामने बात चीत हो. :)
बहुत सुन्दर संग्रहणीय आलेख है इन 24 तत्वों के बारे मे मैने गायत्री महाविग्यान मे पढा था । बहुत बहुत धन्यवाद्
सात्विक अहंकार-! हम तो समझते थे कि अहंकार रहित व्यकित ही सात्विक होता है। इस जानकारी के लिए आभार।
सही चल रहा है प्रभु....
जमाये रहिये जी।
अब सारे अध्यायों का ध्यान से बांचन होगा , बहुत उम्दा , गूढ़ विषय पर पैनी द्रष्टि से विश्लेषण किया है
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