@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पाँच बरस चल गया साँझे का चूल्हा : जनतन्तर-कथा (13)

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

पाँच बरस चल गया साँझे का चूल्हा : जनतन्तर-कथा (13)

हे, पाठक! 
ये जो बैक्टीरिया पार्टी है न? यह ऐसे ही बैक्टीरिया पार्टी नहीं बन गई।  इसे ऐसी बनने में बरसों लग गए।  तब भरतखण्ड पर परदेसी राज करते थे, और इस बिचार के साथ कि उस परदेसी राज में भी पड़े लिखे भारतियों की अहम भूमिका हो एक कमेटी गठित की गई थी। तब यह बैक्टीरिया पार्टी नहीं थी।  तब यह नयी कोंपल की तरह थी, जिसे विकसित होना था। वह विकसित हुई और इस हद तक कि एक दिन पूर्ण स्वराज्य उस की मांग हो गया।  लेकिन जैसे जैसे स्वराज्य की संभावना बढ़ती गई और इस बात की भी कि सुराज में इस पार्टी का अहम रोल रहेगा।  बैक्टीरियाओं ने इस के पेट में प्रवेश करना शुरू कर दिया था।  जब बिदेसी बनिए का बोरिया बिस्तर हमेशा के लिए जहाज में लदा तब तक बहुत से बैक्टीरिया छुपे रास्ते से अंदर प्रवेश कर गए।  पर उन दिनों स्वराज का जुनून था और बैक्टीरियाओं को कुछ करने का मौका न था।   कुछ करते तो पकड़े जाते और भेद खुल जाता।  पर पन्द्रह बीस वर्षों में बेक्टीरियाओं ने अपनी जगह इतनी पक्की कर ली कि उन्हें बाहर खदेड़ कर पार्टी का अस्तित्व बचा पाना कठिन था।  फिर एक अवसर ऐसा भी आया कि बैक्टीरिया प्रमुख हो गए।  और मूल पार्टी अपना अस्तित्व ही खो बैठी।  आज यह पूरी तरह से बैक्टीरिया पार्टी बन चुकी है।  पुराने जमाने का उल्लेख केवल खुद को गौरवशाली बनाने के लिए किया जाता है।

हे, पाठक!

आज लोग बैक्टीरिया पार्टी की असलियत जानते हैं लेकिन फिर भी उसे बर्दाश्त करते हैं।  वे इस भ्रम में हैं कि अकेले इसी पार्टी के बैक्टीरिया सारे भारतवर्ष में फैले हैं।  लेकिन ऐसा नहीं है।  अनेक स्थानों पर उस का अस्तित्व नगण्य हो गया है और वहाँ नए प्रकार की प्रजातियाँ उन की जगह ले रही हैं।  सवा सौ साल पुरानी पार्टी अब भी अपना अस्तित्व बनाए हुए है।  लेकिन कब तक? आचार्य बृहस्पति सत्य कह गए हैं कि जो पैदा हुआ है वह मरेगा।  यह पार्टी पैदा हुई थी तो मरेगी भी अवश्य ही, लेकिन कब? यह तो अभी भविष्य के गर्भ में छुपा है।  इस पार्टी का स्थान लेने के लिए अनेक दूसरी प्रजातियाँ लगातार कोशिश करती रहती हैं।  अभी तक कोई भी उस का स्थान लेने जितना सक्षम नहीं हो सकी है।  इन पार्टियों की चर्चा फिर कभी करेंगे। अभी तेरहवीं महापंचायत पर वापस आते हैं।

हे, पाठक!
तेरहवीं महापंचायत में बैक्टीरिया पार्टी की हार का एक कारण यह भी था कि उस ने अपने जवान प्रधान की हत्या के बाद उस की परदेसी पत्नी को आगे किया था उसे पार्टी की प्रधान बना दिया था। इस से पार्टी के कुछ बैक्टीरिया नाराज हो कर अलग हो गए थे और विरोधियों को मौका मिल गया था।  देस को अभी तक परदेसी कुछ खास पसंद न थे यहाँ तक कि  खुद बैक्टीरिया पार्टी का भी यही हाल था।  लेकिन बाकी सभी अगुआ बैक्टीरिया दूसरे को पसंद न करते थे और आपस में लड़ भिड़ कर पार्टी को ही नष्ट कर सकते थे। ऐसे आपातकाल में अच्छा यही था कि अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए उसे स्वीकार कर लें।

हे, पाठक!
तेरहवीं महापंचायत पूरे पाँच साल चली।  यह भारतवर्ष के लिए ऐतिहासिक बात थी कि नाना प्रकार के प्राणियों से बनी, साँझे चूल्हे पर पकाने वाली सरकार अपना समय पूरा कर गई।  इस के अच्छे नतीजे भी आए।  आर्थिक स्थिति मजबूत होने लगी।  परदेसी सिक्कों से भंडार भरा रहने लगा।  इस सरकार ने उत्पादन के साथ साथ सेवा को भी महत्व दिया जिस से नए रोजगार उत्पन्न होने लगे।  देस के हालात ठीक ठीक लगने लगे।  इस सरकार के केन्द्र में वायरस पार्टी थी जिस ने अन्य प्रकार के जीवों से मजबूत याराना बना कर सरकार को चलाया था।  लेकिन इस बीच बैक्टीरिया पार्टी ने भी बहुत से सबक लिए थे।  जिन में प्रमुख यह था कि वह जमाना गया जब वे अकेले सरकार बना और चला सकते थे।  इस लिए उन्हों ने भी अन्य प्रजातियों के साथ याराना बढ़ाना शुरू किया। इस तरह देस में दो ध्रुव उभर कर आए।  दोनों की खूबियाँ ये थीं कि ये यारों की मजलिस थे।  लाल वस्त्र धारी बहनों की हालत मे कोई बदलाव नहीं था।  देस से कोई उल्लेखनीय पोषण नहीं मिलने पर भी उन की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई थी।  बैक्टीरिया और वायरस रोज यह चाहते थे कि इन का अस्तित्व खाँ  मो खाँ बना हुआ है, कैसे भी ये न रहें तो शायद उन की हालत में इजाफा हो।  लेकिन बहुत ही प्रयास करने पर भी उन दोनों बहनों का कुछ भी न बिगड़ता था, वे अपना अस्तित्व बनाए हुए थीं।  यह बाकी पार्टियों के लिए चिंता का विषय था।  इसी बीच चौदहवीं पंचायत की तैयारी होने लगी।

9 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

dinesh jee,
bahut badhiya mahapanchaayat se bhaut see raajnitik sachchaaayina nikal kar samne aa rahee hain ye anokhaa andaaj mujhe to khoob bhaa raha hai,

Arvind Mishra ने कहा…

भाग रही है पंचायत कथा -थोडा मंथर गुरू जी ....!

Himanshu Pandey ने कहा…

यह अध्याय भी पूरा हुआ ।
चौदहवें की प्रतीक्षा । धन्यवाद ।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

कथा सुंदर मोड़ पर .

Abhishek Ojha ने कहा…

कथा समाप्ति की ओर बढ़ चली है. समाप्ति के बाद किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन की आवश्यकता पड़े तो हमारा नंबर तो आपके पास है ही :-)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

हरि अनन्त
हरि कथा अनन्ता,
कहैं ब्लागराधीष
सुनै सब ब्लागर चेला.

अब १३ कांड हो चुके हैं, पहले बीच मे थोडाभोजन प्रसादी करवा दिजिये. तो आगे की क्था मन लगाकर सुनी जाये.:) वो कहते हैं ना " भूखे कथा ना सुनी जाये गोपाला:.

और ओझा जी की बात पर ध्यान दिया जाये. हम भी अपने आपको सात्विक पंडित समझते हैं तो विशेष भोजन दक्षिणा मे ओझाजी के साथ साथ हमारा भी ध्यान रखा जाये.

रामराम.

RAJ SINH ने कहा…

aapkee yeh shrikhla ek gahre vyang ke sath sachchayee bata rahee hai . jo bhool gaye honge vo bhee samajh jayenge , itihas sahit suruatee dinon aur hamaree panchayat ko .

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन आख्यान!!!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बैक्टीरिया पार्टी !!
ये आलेख भी बहुत बढिया लगा -
कथानक दीलचस्प बन पडा है :)
- लावण्या