पत्रिका की खबर है, राजस्थान के एक गांव शेरपुर के निकट के एक होटल में घुस आया। अफरा-तफरी मच गई। वह रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान की दीवार फांदकर होटल परिसर में घुसा वहां उसने करीब पांच मिनट चहलकदमी की। बाघ को देखने के लिए लोगों की भीड जमा हो गई।
बाघ एक पखवाडे में तीसरी बार आबादी क्षेत्र में घुस आया था। बाघ के पार्क से बाहर आने का मुख्य कारण सरसों के खेत हैं। इन दिनों खेतों में उगी सरसों में नील गाय व जंगली सुअर रहते हैं और बाघ को यहाँ शिकार करने में आसानी रहती है।
खबर कतई चौंकाने वाली है। सुबह ज्ञान दत्त जी अपने आलेख मे इंसानों की बढ़ रही आबादी के थम जाने की सुखद कल्पना कर रहे थे। मैं उस के विश्वसनीय होने की कामना कर रहा हूँ। पर यह मनुष्य के सायास प्रयासों के बिना हो सकेगा ऐसा नहीं लगता है।
वह जंगल था, बाघ के साम्राज्य का एक भाग। हमने उस के साम्राज्य को सीमित कर दिया और बाकी जगह हथिया ली। वहाँ खेत बना दिए। होटल बना दिए ताकि उस विगत के सम्राट के दर्शनार्थियों की सुविधा दी जा सके, कायदे से उन की जेबें तराशी जा सकें।
हकीकत यह है कि बाघ तो अपने ही साम्राज्य में है। इंसान उस के साम्राज्य में कब का घुसा बैठा है।
21 टिप्पणियां:
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में बाघ बचे हैं क्या?
ऊहो ..
बाघ तो जँगल का राजा है ..
होटल के लोगोँ की हालत अजीब हो गई होगी
ये तो उन लोगों की खुशकिस्मती है जिन्हें बाघ देखने को मिला क्योंकि मुझे तो कॉरबेट नेशनल पार्क में भी तीन दिन में नहीं दिखाई दिया। आपकी बात सच है कि जंगल ही नहीं बचेंगे तो वन्य जीव आबादी की तरफ तो आएंगे ही। वैसे अभिषेक जी का सवाल भी वाजिब है।
Respected Dinash ji,
Apka kahna sahee hai .jab insanon ne janvaron ke ashraya sthalon ko nasht karana shuroo kar diya hai to..ve bechare kahan chale jayenge.
lekh ke liye badhai.
Hemant Kumar
वही साम्राज्य देखने बांधवगढ़ गये थे..मगर महाराज को देखने से वंचित रह गये.
वो साम्राज्य हम इंसानों के लालच और अविवेक के चलते सिकुड़ता जा रहा है.
बाघ सर्कसों, चिडियाघरों या फ़िर अनावश्यक इंसानी दखल (अनावश्यक दखल घूमने वाले देते हैं वहां के निवासी नही ) से भरपूर अभयारण्यों में रहने के लिए नही होते.
कोई जानवर नही होता
हम समझ पाएंगे भी या नही
बेचारा बाघ.. उसे पता नहीं कि वो जानवरों के इलाके में घुस गया था..
बेचारा बाघ उसे क्या मालूम था कि होटल में दो पैरो वाले जानवर रहते है
दिनेशराय द्विवेदी जी
अभिवंदन
आपका आलेख "होटल में बाघ या बाघ के घर इंसान" पढ़ कर मैंने तो चिंतन किया ,पर प्रशासन चिंतन-मनन करके वन्य जीव संरक्षण के प्रति कुछ जवाबदेही महसूस करे तब तो कोई सकारात्मक हल निकलेगा ,, अन्यथा हम जंगल काटते रहेंगे और वन्य जीव सिमटते-सिमटते विलुप्त हो जायेंगे . हमारी आगे आने वाली पीढी केवल उनके किस्से ही सुनेगी
, लेकिन हमारे देश देश के कर्णधारों को उनकी नही अपने घर भरने कि ज्यादा चिंता रहती है
अच्छे आलेख के लिए बधाई
-विजय तिवारी " किसलय"
महेन्द्र मिश्रा जी के साथ हैं जी !
अरे यह बाघ तो समीर जी को देखने आया था, क्योकि उन की बांधवगढ़ मै मुलाकात नही हो पाई थी...:)
दिनेश जी , यह सच है जनसख्या युही बढती गई तो हालात से इसे भी बुरे हो जायेगे, जंगल सिमटते जा रहे है...
यह माईक्रो पोस्ट नहीं अधूरी पोस्ट है -बाघ पकड़ा गया या नही ? कैसे पकड़ा गया ? मैं इसलिए जानना चाहता था कि उत्तर प्रदेश में तीन बाघों ने आतंक मचा रखा है -एक तो बनारस की सीमा तक आ चुका है बस गंगा में छलांग लगाने वाला है !
घटए जंगलों की वजह से अक्सर बाघ और तेंदुये मानव ब्तियों मे आने लगे हैं. हमारे इधर के गांवो मे भी अक्सर हर महिने तेंदुआ गुसता ही है, आखिर भूखे मरते गांव के मवेशी ही तो ऊठायेगा.
रामराम.
बाघ जँगल का राजा है ..आजकल चिडियाघर या कॉरबेट नेशनल पार्क तक मे बाघ देखना नसीब नही...फ़िर भी लकिन ये शुक्र है कोई हादसा नही हुआ....
Regards
हकीकत यह है कि बाघ तो अपने ही साम्राज्य में है। इंसान उस के साम्राज्य में कब का घुसा बैठा है।
बिल्कुल बजा फ़रमाया सर आपने।
यही होगा जब हम उनके घरों को छीन लेंगे उनसे ..हुआ क्या फ़िर ..कहाँ मिला उसको अपना ठिकाना फ़िर ?
bahut sahi....
bahut sahi sir...ab jangal nahi bachenge to wo bhi kya karene...
अरे महानुभाव! आपसे समझने में कोई त्रुटि हुई है. ये जनाब तो अपनी साम्राज्य-सीमा जंगल के बाहर तक समझकर अपनी रियाया का हाल-चाल लेने आए थे. अब लोगों ने उन्हें unwanted घोषित कर दिया.
बिल्कुल सही कह रहे हैं। यह तो उसका ही क्षेत्र है।
घुघूती बासूती
प्रक़ति, आवश्यकताएं तो सबकी पूरी कर सकती है किन्तु लालच एक का भी नहीं।
अपने लालच में मनुष्य क्या खो रहा है, इसका अनुमान लगाने की न तो उसे चिन्ता है और न ही फुर्सत। जब समझ पडेगी तब तक काफी देर हो चुकी होगी।
आपने सही लिखा।
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