@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: सिक्के और डाक टिकट

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

सिक्के और डाक टिकट

मेरे पर्स में एक-दो-पाँच-दस-बीस वाले सिक्कों की कुल संख्या छह-सात से अधिक नहीं होती। उसे भी तुरन्त ही पाँच के नीचे लाना पड़ता है। वर्ना पर्स की उम्र पर संकट आ जाता है। उसे अकाल मृत्यु का सामना करना पड़ जाता है। जेबों के साथ भी यही संकट है। अब सिक्के कौन अपने पास रखता है। अपने पर्स में कुछ नकद रखना हो तो 500 से ले कर पाँच दस रुपए के नोट रखना पसंद करता है। सिक्के अब आउट ऑफ डेट हो चले हैं। वैसे भी आज कल जमीन के ऊपर नकद भुगतान जितना होता है उससे बहुत अधिक यूपीआई हो चला है। नकद भुगतान पूरा का पूरा जमीन के नीचे का मामला हो चला है। जैसे रिश्वत देनी हो या चुनाव में वोटों के लिए नोट बाँटने हों। हालाँकि बिहार ने उसकी भी जरूरत खत्म करना शुरू कर दिया है। अब नोट सीधे वोटरों के बैंक खातों में भेजे जा रहे हैं जैसे स्त्रियों को और बेरोजगारों को। खैर!

लगभग यही किस्सा डाकटिकटों का है। एक वक्त हुआ करता था जब डाक टिकट रखे होते थे पर्स में। अब वे गायब हैं दो-चार रख भी लें तो रखे रखे खराब हो जाते हैं किसी लिफाफे चिट्ठी पर चिपकाने के काम नहीं आते। वैसे भी डाक कौन भेजता है। केवल जरूरी चीजें जैसे कानूनी और सरकारी कागजात। बाकी तो सब अब कूरियर सर्विस वालों के हवाले है। डाक टिकट की महत्ता घटाने में प्राइवेट कूरियर वालों की भूमिका महान है। सरकार भी यही चाहती है कि कम से कम लोग डाक के भरोसे रहें। डाक अब स्पीड पोस्ट हो गयी है उसे चाहो जो करवा लो, चाहे तो पार्सल, चाहे तो रजिस्टर्ड वगैरा वगैरा। अब डाक विभाग डाक में भेजे जाने वाले सामान के वजन और दूरी के हिसाब से फीस वसूल करता है।
 
तो मित्रो!
शताब्दी सिक्के और डाक टिकट पर अधिक उछलने की जरूरत नहीं है। कारपोरेट सेवा में जब जिन्दगी झंड होने लगती है तो बीच बीच में ऐसे जश्न करने पड़ते हैं जिससे अपने वाले झण्डू उछलते रहें।

-दिनेशराय द्विवेदी

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