अब और नहीं
* महेन्द्र नेह
अब और नहीं रहना होगा चुप
चिकने तालू पर
खुरदुरी जुबान की रगड़
अब नहीं आती रास
कन्ठ में काँटे सा, यह जो खटकता है
देह को फाड़ कर निकल आने को व्यग्र
अब नहीं है अधिक सह्य
लगता है अब रहा नहीं जा सकेगा
नालियों, गलियों, सड़कों
परकोटो के भीतर-बाहर
सब जगह फूटती दुर्गन्ध, बेहूदी गालियों
और अश्लील माँस-पिन्डों से असम्प्रक्त
अब और नहीं देनी होंगी
कोखों में टँगी हुई पीढ़ी को
जन्म से पहले ही कत्ल कर देने
वाले ष़ड़यंत्र को स्वीकृतियाँ
अब और नहीं देनी होंगी
गीता पर हाथ रखकर
झूठी गवाहियाँ
मसीहाओं को देखते ही
अब और नहीं पीटनी होंगी बेवजह तालियाँ
अब और नहीं खींचने होंगे
बे मतलब 'क्रास'
अब नहीं बनना होगा
किसी भी पर्दो से ढँकी डोली का कहार
अब और नहीं ढोना होगा यह लिजलिजा सलीब
लगातार . . . . . . . . . . लगातार
अब और नहीं रहना होगा चुप
15 टिप्पणियां:
अब और नहीं देनी होंगी
गीता पर हाथ रखकर
झूठी गवाहियाँ
मसीहाओं को देखते ही
अब और नहीं पीटनी होंगी बेवजह तालियाँ
लाजवाब !
रामराम !
'…अब और नहीं रहना होगा चुप।'
बहुत ख़ूब!
सुंदर रचना. आभार.
सुंदर ..बहुत ही सुंदर ..यहाँ पोस्ट करने के लिए धन्यवाद
तस्माद्` उत्तिष्ठ कौन्तैय वाली भावना पैदा करती कविता बहुत प्रभावी लगी
- लावण्या
बहुत उम्दा रचना प्रेषित की है।
अब और नहीं देनी होंगी
कोखों में टँगी हुई पीढ़ी को
जन्म से पहले ही कत्ल कर देने
वाले ष़ड़यंत्र को स्वीकृतियाँ
सशक्त अभिव्यक्ति !
बहुत ही सुंदर भाव, सुंदर कविता.
धन्यवाद
अति सुन्दर भाव-उम्दा रचना. आभार.
अब और नहीं देनी होंगी
गीता पर हाथ रखकर
झूठी गवाहियाँ
......बहुत उम्दा रचना, धन्यवाद!
सुंदर और सार्थक
sunder, sarthak ,vayang prabhavee hai !
बहुत सटीक!
अब और नहीं रहना होगा चुप
सचमुच, हर चीज़ की एक हद होती है और उसके बाद, "अब और नहीं..." को आना ही पड़ता है.
सार्थक पंक्तियाँ सुंदर विचार यथार्थ को उकेरते आपके गहरे विचार
एक बेमिसाल और नायाब कविता पढ़वाने का बहुत-बहुत शुक्रिया द्विवेदी जी
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