@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: साथ, सहारा : तीन दृश्य

मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

साथ, सहारा : तीन दृश्य



दोपहर दो बजे, हम चाय पीकर पान की दुकान पर पहुँचे थे। मैं पान वाले को पान बनाते हुए देख रहा था। पान देतो हुए उस ने हमारे एक साथी को छेड़ा। उधर क्या आँख सेक रहे हैं? पान लो। मैं ने मुड़ कर देखा तो सभी सड़क पर जा रहे एक नौजवान जोड़े की ओर देख रहे थे। नौजवान ने अपनी साथी का हाथ पकड़ा था और दोनों तेजी से चौराहा पार कर उस तरफ जा रहे थे जहाँ उन्हें ऑटो रिक्षा मिल सकता था। उन्हें देखते हुए मेरी नजर एक दूसरे ही दृश्य पर पड़ गई और मैं उसी और निहारता रह गया।

एक पचपन की उम्र की महिला एक पाँच वर्ष के बच्चे का हाथ पकड़े होटल के गेट के बाहर खड़ी थी। शायद बच्चा उसे अंदर ले जाना चाहता था और वह उसे रोक रही थी। बच्चा  जाना चाहता था। फिर वे दोनों होटल की सीमा में प्रवेश कर ओझल हो गए। मैं ,सोचता हुआ उसी ओर शून्य में देखता रहा। तभी एक साथी ने मुझे टोका, -अब वहाँ हवा में क्या देखने लगे?

मैं ने जो देखा था वह उन्हें बताया, और कहा -मैं सोच रहा हूँ कि, सब के सामने होते हुए भी वह दृश्य केवल मैं ही क्यों देख पाया? और क्यों नहीं देख पाए?

तभी वह महिला और बच्चा होटल के बाहर वापस आ गया। शायद बच्चे ने किसी वस्तु को, शायद फूलों को देखा था और उन्हें लेने की जिद कर रहा था। शायद होटल का चौकीदार यह सब समझा और उस ने बच्चे को वह लेने दिया।
मेरे एक साथी ने कहा -जवान स्त्री-पुरुष का सार्वजनिक साथ सब की निगाहों में आता है।
हम ने पान लिए और वापस चल दिए। पीछे देखा तो दो बुजुर्ग वकील होटल से बाहर आ रहे थे, उन में से एक को फालिज़ का शिकार हो जाने से चलने में परेशानी थी, दूसरे उन का हाथ पकड़ कर उन्हें सहारा दे रहे थे।
मैं ने अपने साथियों को एक यह दृश्य भी दिखाया।
मैं ने उन्हें कहा -इन तीनों दृश्यों में कुछ बातें समान थीं। एक दूसरे के हाथों का पकड़े होना और सहारा या संरक्षण।

आप ऐसे अनेक दृश्य मानव जीवन में ही नहीं जन्तु और पादप, समस्त जीव जगत में, और निर्जीव जगत में भी देख सकते हैं। उन दृश्यों में अनेक समानताएँ भी खोजी जा सकती हैं। पर लोगों की निगाहें केवल कुछ ही चीजों को अधिक क्यों देखती हैं?

14 टिप्‍पणियां:

mehek ने कहा…

kisi ka haath tham kar vishwas ka jo ehsaas hota hai,wo bahut achha lagta hai.sundar post,

P.N. Subramanian ने कहा…

मनुष्य वही देखता है जो देखना चाहता है, वही पढ़ता है तो पढ़ना चाहता है. थोडा देख या थोडा पढ़ पूरा समझ लेने का भ्रम पाला हुआ है.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बिल्कुल सही है !

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अच्छी पोस्ट लिखी है।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

जाकी रही भावना जैसी!

विष्णु बैरागी ने कहा…

वर्तमान में सुखद अतीत दिखाई तो ध्‍यानाकर्षित होता ही है ।
साथ और सहारा, जीवन के हर मुकाम पर प्रत्‍येक को आवश्‍यक होता है ।
यही सब बताती है आपकी यह सुन्‍दर पोस्‍ट ।

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) ने कहा…

वस्तुतः इस प्रवृत्ति का मूल हमारी पोंगापंथी में छिपा है, जो अपनी अव्यक्त कुंठाओं को इसी तरह तृप्त करके संतुष्ट हो लेती हैं.

Abhishek Ojha ने कहा…

साथ, सहारे, प्यार के अलग-अलग रूप हैं अब देखने वाला तो वही देखेगा जो उसे अच्छा लगेगा.

डा. अमर कुमार ने कहा…


स्पर्श के इतने अर्थ और संदर्भ हैं, कि देखने वाला शायद ही उसकी छुअन और सिहरन महसूस कर सके !

गौतम राजऋषि ने कहा…

इन सारे दृश्यों के हवाले आपने इस वर्तमान समाज की पूरी तस्वीर खींच के रख दी

Smart Indian ने कहा…

जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

एक बात है कि यहाँ के समाज मेँ ,
( USA ) कोई दूसरे को
बिना किसी
कारण इस तरह देखता नहीँ -
शरीर के प्रति यहाँ (In USA )
रवैया यही है कि ,
शरीर, निजी ( personal ) है -
दूसरोँ की स्वतँत्रता
व निजता को मान देना भी
इसी मेँ शामिल है -
भारत मेँ आज भी
समाज बहुत हद तक,
सँयमित है और स्वच्छँद नहीँ है

राज भाटिय़ा ने कहा…

बस मै तो इतना ही कहुंगा कि, साथी !देखा आप ने, बहुत सुंदर दर्शया आप ने यह वाक्या.
धन्यवाद

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति है. हमारे चारों और हर समय कुछ न कुछ होता रहता है, पर अधिकाँश हम वही देखते हैं जो देखना चाहते हैं.