@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: "जन गण मन" दुनिया का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र-गान है।

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

"जन गण मन" दुनिया का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र-गान है।

अनवरत पर कल एक ई-मेल का उल्लेख किया गया था, जो मुझे अपनी बेटी से मिला था। मैं ने इस मेल को आगे लोगों को प्रेषित करने के स्थान पर अपने इस ब्लॉग पर सार्वजनिक किया। बाद में पता लगा कि वह ई-मेल किसी की शरारत थी। नवभारत टाइम्स ने आज यूनेस्को के एक अधिकारी के हवाले से इस ई-मेल द्वारा फैलाई जा रही सूचना को गलत ठहराया है।



अभिषेक ओझा, संजय बेंगाणी  और Dr. Amar Jyoti, ने इस समाचार पर संदेह व्यक्त किया। Suitur   जी ने मुझे सूचित किया कि नवभारत टाइम्स में इस मेल को भ्रामक बताया गया है।  ab inconvenienti   जी को तो मुझ पर बहुत क्रोध आया और उन्हों ने लिखा


खेद है की आप उम्र के छठे दशक में भी अफवाहों पर न केवल भरोसा कर लेते हैं, बल्कि उन्हें क्रॉसचैक किए बिना ही प्रसारित कर जनता को भ्रमित भी करते हैं.
कुछ इसी तरह का 'होक्स' मोबाइल कंपनियों, दैनिक भास्कर और सेवन वंडर्स फाउन्देशन ने 'आज नहीं तो ताज नहीं' कैम्पेन को देश की इज्ज़त, देशप्रेम के साथ जोड़कर खेला था. दुखद और शर्मनाक की आप वकील होते हुए भी इन 'ख़बरों' की असलियत समझने में नाकाम हैं!
 उन्हों ने यह बिलकुल सही कहा कि मैं ने उम्र के छठे दशक में भी अफवाहों पर न केवल भरोसा किया, बल्कि उसे क्रॉसचैक किए बिना ही प्रसारित कर जनता को भ्रमित भी किया। 

मैं उन का यह आरोप सहर्ष स्वीकार करता हूँ, मैं सातवें, आठवें, नवें, दसवें और इस के बाद भी कोई दशक आए तो भी इस भ्रम में रहने का प्रयत्न करूंगा। इस की कोई सजा हो तो वह भी भुगतने को तैयार रहूँगा। लेकिन? ...

...... लेकिन यह अफवाह बहुत मन-मोहक  थी। इस पर शरीर और मन के कण कण से विश्वास करने को मन करता था। सच कहिए तो यह अफवाह मेरी मानसिक बुनावट में एकदम फिट हो गई। एक क्षण के लिए अविश्वास हुआ भी, और मैं ने बेटी से बात भी की। वह खुद इस खबर को पा कर इतनी उल्लास में थी कि उस ने इतना ही कहा कि "मुझे यह खबर मिली और मैं ने आगे सरका दी"।

कुछ भी हो। वह राष्ट्र-गान जो मेरे देश का है, जिसे सुनने को कान तरसते हैं, जिसे सुन कर रोमांच हो उठता है, उस के लिए यह सुनने को मिले कि वह सर्वोत्तम घोषित किया गया है। कान क्यों न उसे स्वीकार करें? क्यों मन उस पर संदेह करे? क्यों वहाँ बुद्धि बीच में आनंद के उन क्षणों का कचरा करने को इस्तेमाल की जाए?

यूनेस्को के खंडन के बाद भी मेरे लिए वह गान दुनिया का सर्वोत्तम राष्ट्र-गान है और मरते दम तक रहेगा। यूनेस्को के उस खंडन का मुझ पर कोई असर नहीं होने का और उन धिक्कारों का भी जो मुझे इस अपराध के लिए मिले। मुझे करोड़ों धिक्कार मिलें, मैं उन्हें गगन से बरसते, महकते फूलों की तरह स्वीकार करूंगा। मुझे इस की कोई भी सजा दी जाए, उसे भी स्वीकार करूंगा। फिर भी यही कहूंगा कि मेरा राष्ट्र-गान "जन गण मन" दुनिया का सर्वोत्तम राष्ट्र-गान है।

21 टिप्‍पणियां:

PD ने कहा…

सर मुझे भी ये ख़बर मिली थी.. और मैंने भी बिना पुष्टि किए इसे सच मान लिया..
अब ये ख़बर थी ही ऐसी.. अगली बार भी मैं कोई पुष्टि नही करने जा रहा हूँ.. और हमेशा सच ही मानूंगा..

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

दिनेश भाई जी,
आज भी "जन गण मन " सुनते ही रोमाँच हो आता है,
आप की बात से 100 % प्रतिशत सहमत हूँ
- लावण्या

Arvind Mishra ने कहा…

वह ख़बर सोलहो आने सच है -हमारा राष्ट्र गान दुनिया में सर्वोत्कृष्ट है ही इस पर किसी यूनेस्को आदि की मुहर लगानी जरूरी नही है !मैं आपके समर्थन में अडिग हूँ !

ab inconvenienti ने कहा…

मेरा ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था, मेरी टिप्पणी से आप विचलित हुए इसके लिए मुझे हार्दिक खेद है. देशप्रेम और राष्ट्रवाद अपनी जगह सही हैं. पर जब कोई हमारी इन भावनाओं को चालाकी से कैश करने लगे (जैसा कई कुछ कम्पनियों ने ताज कैम्पेन में किया). या इसके सहारे अफवाहें फैलाकर मजे लूटे और देशप्रेम के नाम पर हमारी हद दर्जे की बेवकूफियों पर हँसे. हमें यह नाटक बंद करना होगा. यह कुछ ऐसा ही है जैसे दिन रात जनता को लूटने वाला नेता या भ्रष्ट उद्योगपति सप्ताह में कुछ घंटे 'गुरु' के चरणों में बैठकर या कुछ कम्बल बांटकर 'कन्साइन्स मैनेजमेंट' कर लेता है. आप तो हमेशा इस आडम्बर के विरोधी रहे हैं, पर कभी देशप्रेम के नाम पर चल रहे गोरखधंधे पर कलम नहीं चलाई.

एक उच्च शिक्षित प्रोफेशनल होने के नाते आपसे आम इन्सान से कहीं ज़्यादा विश्लेषण क्षमता और जागरूकता की उम्मीद की जाती है. जैसे की आपने भी अपने कभी अपने बच्चों को ताकीद दी होगी की स्कूल या कॉलेज में कोई अनजान घर में इमरजेंसी होने की बात कहकर चलने को कहे, तो उसपर कभी विश्वास मत करना. और मान लीजिये की फ़िर भी वे ऐसी गलती कर बैठते हैं, ख़ुद को खतरे में डाल लेते हैं, और तर्क देते हैं की हमें अपने परिवार से प्यार है इसीलिए ऐसा किया! फ़िर आपकी क्या प्रतिक्रिया होती?

असली देशप्रेम बाज़ार के 'फेड्स' का मोहताज़ नहीं होता, न ही बरसाती भावनाओं का. आज तो कोई भी भारतियों की भावनाओं का शोषण कर चलते बनता है. क्या आपको नहीं लगता की हमारा अपराधबोध हमसे यह करवाता है. बिल्कुल वैसे ही जैसे चौबीस घंटे काम में डूबे रहने वाले माँ बाप अपने लापरवाही के अपराधबोध के चलते उनकी हर जायज-नाजायज मागें पूरी करके ख़ुद का कन्साइन्स मैनेजमेंट कर लेते है.

वरना देश पर सच्चा अभिमान बिल्कुल अलग चीज़ है, और यह क्षणिक जोश नहीं है.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

हम भी आपकी भावना का पुरजोर समर्थन करते हैं। साधुवाद।

जितेन्द़ भगत ने कहा…

आप सही कहते हैं, ऐसे मामलों में हम selective listener हो जाते हैं, हम वही सुनना चाहते हैं जो हमारे मन में होता है, हम उसे साकार होते देखना चाहते हैं। भावनात्‍मक बातें अक्‍सर अच्‍छी लगती हैं और मुझे आपकी बात बहुत अच्‍छी लगी।

Anil Pusadkar ने कहा…

पन्डित जी आपसे शत प्रतिशत सहमत हुं और आपके साथ हुं

Abhishek Ojha ने कहा…

ऐसी खबरें ज्यादातर अफवाह ही होती हैं... बाके मैंने तो कल भी कहा था, हमारे लिए तो सर्वश्रेष्ठ है ही.

Anil Kumar ने कहा…

स्कूल कालिजों में सालों तक चप्पल-जूते घसीटने के बाद एक ही बात समझ में आई है - सुनी सुनाई पर विश्वास मत करो, सच का पता लगाओ. यही शिक्षा की जीत है.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

यह स्वीकृति आपको और निखारती है।

दिवाकर प्रताप सिंह ने कहा…

देशप्रेम की भावना तो ठीक है परन्तु सत्य की अवहेलना उचित नहीं है! वैसे हमारा राष्ट्र-गीत सर्वोत्कृष्ट है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है!

विष्णु बैरागी ने कहा…

गलती तो हममें से प्रत्‍येक करता है लेकिन गलती को स्‍वीकार करने का साहस आपवादिक ही दिखाई देता है । आप वह अपवाद हैं इसलिए आप न केवल सबसे अलग बल्कि अभिनन्‍दनीय भी हैं ।

हर्ष प्रसाद ने कहा…

aap ke sujhaav ke anusaar maine apne blog se 'word verification' hataa diyaa hai. uske karan hui asuvidhaa ke liye kshamaa chaahtaa hoon. Naya naya blogger hoon aisee gustaakhiyaan anjaane mein abhee hotee rahengee. Zaraa 'devnaagari' mein tippani likhna bhee bataa dein, shukraguzaar hoonga.

संजय बेंगाणी ने कहा…

यह वैसा ही होता, किसकी माँ ज्यादा सुन्दर. हर बच्चे के लिए उसकी माँ सबसे प्यारी होती है. उसी तरह राष्ट्रगीत का चुनाव बेमानी था सो प्रश्न चिन्ह लगा दिया.

Unknown ने कहा…

मैं आपकी भावनाओं का आदर करता हूँ. कुछ ऐसी ही भावनाएं मेरी भी हैं. अब किसी को बुरा महसूस होता है तो हो.

Unknown ने कहा…

दिनेश जी,यूनेस्को की मेल सही हो या गलत यह मह्त्वपूर्ण नही है,न ही गुरुदेव की नीयत पर शक करनें की जरुरत,वस्तुस्थिति यह है कि अपनें जन्म से यह राष्ट्र गान सुनता आरहा हूँ और सुनते ही आँखें नम हो जाती है अतः बिना मौसम के भी यदि आपनें इसकी याद दिला दी तो ठीक ही किया। पता नहीं दैव की कोई विशेष इच्छा रही होगी।

Smart Indian ने कहा…

ab inconvenienti की बात नहीं काट रहा हूँ क्योंकि वह ग़लत नहीं है. मगर विश्वास करना अपने आप में ग़लत नहीं है. जो भी हो, आपकी बात सही है, हमारा राष्ट्रीय गान हमारी नज़रों में महानतम है. आपकी विश्लेषण क्षमता और जागरूकता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लग सकता. खासकर जिस बेबाकी से आपने इसे माना और एक पोस्ट समर्पित की.

कबीरा आप ठगाइये और न ठगिये होय
आप ठगे सुख होत है और ठगे दुःख होय!

Satish Saxena ने कहा…

मैं आप से सहमत हूँ ! द्विवेदी जी !

Vivek Gupta ने कहा…

आप की बात से 100 % प्रतिशत सहमत हूँ |

RADHIKA ने कहा…

mere liye mere desh ka rashtragan hi sarvshreshth hain .

Kavita Vachaknavee ने कहा…

सच कहा आपने। मुझे भी यह सन्देश आया था, मन बाग बाग हो उठा था। फिर मैंने तुरन्त एक साईट से इसकी सत्यता का पता लगाया। तो घटना झूठी निकली पर सन्देश सही कि हमारा राष्ट्रगान ही सर्वोत्तम है।
आप ने जिस प्रकार इसे प्रस्तुत किया है, वह आपके कद को सच में बढ़ा देता है।