अभिषेक ओझा, संजय बेंगाणी और Dr. Amar Jyoti, ने इस समाचार पर संदेह व्यक्त किया। Suitur जी ने मुझे सूचित किया कि नवभारत टाइम्स में इस मेल को भ्रामक बताया गया है। ab inconvenienti जी को तो मुझ पर बहुत क्रोध आया और उन्हों ने लिखा
खेद है की आप उम्र के छठे दशक में भी अफवाहों पर न केवल भरोसा कर लेते हैं, बल्कि उन्हें क्रॉसचैक किए बिना ही प्रसारित कर जनता को भ्रमित भी करते हैं.
कुछ इसी तरह का 'होक्स' मोबाइल कंपनियों, दैनिक भास्कर और सेवन वंडर्स फाउन्देशन ने 'आज नहीं तो ताज नहीं' कैम्पेन को देश की इज्ज़त, देशप्रेम के साथ जोड़कर खेला था. दुखद और शर्मनाक की आप वकील होते हुए भी इन 'ख़बरों' की असलियत समझने में नाकाम हैं!उन्हों ने यह बिलकुल सही कहा कि मैं ने उम्र के छठे दशक में भी अफवाहों पर न केवल भरोसा किया, बल्कि उसे क्रॉसचैक किए बिना ही प्रसारित कर जनता को भ्रमित भी किया।
मैं उन का यह आरोप सहर्ष स्वीकार करता हूँ, मैं सातवें, आठवें, नवें, दसवें और इस के बाद भी कोई दशक आए तो भी इस भ्रम में रहने का प्रयत्न करूंगा। इस की कोई सजा हो तो वह भी भुगतने को तैयार रहूँगा। लेकिन? ...
...... लेकिन यह अफवाह बहुत मन-मोहक थी। इस पर शरीर और मन के कण कण से विश्वास करने को मन करता था। सच कहिए तो यह अफवाह मेरी मानसिक बुनावट में एकदम फिट हो गई। एक क्षण के लिए अविश्वास हुआ भी, और मैं ने बेटी से बात भी की। वह खुद इस खबर को पा कर इतनी उल्लास में थी कि उस ने इतना ही कहा कि "मुझे यह खबर मिली और मैं ने आगे सरका दी"।
कुछ भी हो। वह राष्ट्र-गान जो मेरे देश का है, जिसे सुनने को कान तरसते हैं, जिसे सुन कर रोमांच हो उठता है, उस के लिए यह सुनने को मिले कि वह सर्वोत्तम घोषित किया गया है। कान क्यों न उसे स्वीकार करें? क्यों मन उस पर संदेह करे? क्यों वहाँ बुद्धि बीच में आनंद के उन क्षणों का कचरा करने को इस्तेमाल की जाए?
यूनेस्को के खंडन के बाद भी मेरे लिए वह गान दुनिया का सर्वोत्तम राष्ट्र-गान है और मरते दम तक रहेगा। यूनेस्को के उस खंडन का मुझ पर कोई असर नहीं होने का और उन धिक्कारों का भी जो मुझे इस अपराध के लिए मिले। मुझे करोड़ों धिक्कार मिलें, मैं उन्हें गगन से बरसते, महकते फूलों की तरह स्वीकार करूंगा। मुझे इस की कोई भी सजा दी जाए, उसे भी स्वीकार करूंगा। फिर भी यही कहूंगा कि मेरा राष्ट्र-गान "जन गण मन" दुनिया का सर्वोत्तम राष्ट्र-गान है।