इन सज्जन ने अपने आलेख में जो बताया है कि भग स्त्री जननांग को कहते हैं इस लिए स्त्री का स्वामी अर्थात उस का पति भगवान हुआ, जैसे बल का स्वामी बलवान।
- संस्कृत में 'भगः' शब्द है, जिस के अर्थ हैं -सूर्य के बारह रूपों में से एक, चन्द्रमा, शिव का रूप, अच्छी किस्मत, प्रसन्नता, सम्पन्नता, समृद्धि, मर्यादा, श्रेष्ठता, प्रसिद्धि, कीर्ति, लावण्य, सौन्दर्य, उत्कर्ष, श्रेष्टता, प्रेम, स्नेह, सद्गुण, प्रेममय व्यवहार, आमोद-प्रमोद, नैतिकता, धर्मभावना, प्रयत्न, चेष्ठा, सांसारिक विषयों में विरति, सामर्थ्य, और मोक्ष, और ... ... योनि भी।
- लेकिन, योनि केवल स्त्री जननांग को ही नहीं, उद्गम स्थल, और जन्मस्थान को भी कहते हैं।
- यह जगत जिस योनि से उपजा है उसे धारण करने वाले को भगवान कहते हैं।
- इन सज्जन के अर्थ को भी ले लें, तो भी योनि का स्वामित्व तो स्त्री का ही है। इस कारण से स्त्री ही भगवान हुई न कि उस का पति।
स्वयं को हिन्दुस्तानी कहने वाले इन महाशय जी को यह गलत और संकीर्ण अर्थ करने के पहले कम से कम इतना तो सोचना ही चाहिए था, कि वे जो हिन्दुस्तानी नाम रखे हैं यह उस के अनुरूप भी है अथवा नहीं। भाई,क्यों अपनी चूहलबाजी के लिए इस विश्वजाल पर हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियों की मर्यादा को डुबोने में लगे हैं। कम से कम भगवान का ही खयाल कर लिया होता।
31 टिप्पणियां:
ब्लॉग ने सब को अभिव्यक्ति दे दी है.. क्या कीजियेगा.. अच्छी बात ये है कि आप जैसे लोग भी हैं जो सही अर्थ जानते हैं..
सही है दिनेशजी। इस विषय में मैं भी लिखने वाला था। पूजा , आराधना, प्राप्ति और भाग्य जैसे भाव जुड़े हैं इस शब्द से । इन श्रीमानजी ने दर्शन , अध्यात्म से जुड़ी बातों को जितने सतही ढंग से लिया और उससे सनसनी का मज़ा भी लेना चाहा था अभी कुछ दिनों पहले। ये नहीं जानते कि हमारी महान संस्कृति में शब्द की महत्ता क्या है और अर्थ की विवेचना किसे कहते हैं ।
हुंह। भगोड़े (पलायनवादी) हैं विकृत मनोवृत्ति के पोषक!
अधजल गगरी छलकत जाए .इसी लिए यह मुहावरा बना होगा ..सोच सबकी अपनी .बुद्धि सबकी अपनी . आशा है कि अब तक यह पोस्ट वह पढ़ कर सही अर्थ जान चुके होंगे .
thanks isko yahaan daenae kae liyae shyaad abhivyakti ki swatantrtaa ka matlab yahii haen
भगवान अनर्थ करने वालों को सद्बुद्धि दे; गहरी समझ दे; सोचने का समय भी दे। और यह सब कुछ शीघ्रातिशीघ्र करे।
अब क्या कहा जाए ऐसे लोगों को और उनकी सोच को।
सही है दिनेशजी।अच्छी बात ये है कि आप जैसे लोग भी हैं जो सही अर्थ जानते हैं..
आपको साधुवाद, ऐसे मूर्खों को सही बात बताने के लिए...
मैं हमेशा कहता हूँ ना कि दिनेश जी बहुत सारगर्भित लिखते हैं -उस मूढ़ मगज के बहाने वे इस ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं कि भगवान् स्त्रीलिंग हैं -विगत दिनों ईसाईयों ने इस विवाद पर काफी माथा पच्ची की थे कि "गोड़ पुरूष है या स्त्री ...."......मैं तो गोड़ को अलिंगी मानता हूँ !स्त्रीलिंग तो कदापि नहीं मानूंगा .एक बहस इस विषय पर भी चल सकती है .
@ डॉ. अरविंद मिश्रा-
नाराज न हों, प्रणाम स्वीकारें।
बड़े भाई जिस विवाद को आप पुनर्जीवित करना चाहते हैं उस का श्रेय फिजूल ही मुझे क्यों भेंट कर रहे हैं? आप क्यों ईश्वर में भी लिंग-भेद तलाश रहे हैं। वैसे आप को बता दूँ कि मैं तो इस जगत (Uviverse) को ही ईश्वर मानता हूँ, और यह भी कि वृक्ष के रूप में परिवर्तित हो जाने पर बीज नष्ट हो जाता है, और यह भी कि वृक्ष भी बीज ही है।
वैसे आने वाला पूरा पखवाड़ा स्त्रियों की पूजा का ही है। फिर कुछ दिन बाद नवरात्र आ रहे हैं। सारा देश उच्चरित करेगा
या देवी सर्वभूतेषु माँ शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तयै नमस्तयै नमस्तयै नमो नम:।।
भगवन् आप भी वही हैं, जो मै हूँ, सारे पुरुष भी वही हैं, जो सारी स्त्रियाँ हैं, ये धरती, ये चांद, ये ग्रह, नक्षत्र और सितारे भी वही हैं। क्यों जबरन भेद करें? और यह सब केवल अद्वैत नहीं कहता बल्कि आधुनिक विज्ञान भी यही कह रहा है।
तुलसी दास ने आपकी ही बात को यूँ कहा है -
सकल राममय सब जग जानी करहुं प्रमाण जोरि जग पानी
इशोपनिषद कहता है -
ईशावास्यमिदम सर्वं ....
फिर काहें का भेद ........नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
इसीलिए कहा गया है कि मूर्ख के मुकाबले अल्प-ज्ञानी अधिक खतरनाक होता है । 'नीम हकीम, खतरा-ए-जान ।' भले ही 'वे' जानते हों कि वे क्या कर रहे हैं, उन्हें क्षमा कर दीजिए । 'अधिक सयानो जो बने, गिरवी धरे लंगोट' वाली दशा को प्राप्त ऐसे लोग वही तो देख पाएंगे जो उनके मन में समाया, बसा हुआ है । गोस्वामाजी कह गए हैं - 'जा की रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन्ह तैसी ।'
आगे से कोई इस दशा को प्राप्त न हो, यह व्यवस्था आपने कर ही दी है । ऐसे तमाम लोग आपके आभारी होंगे ।
नमस्तयै नमो नम:।।
हमेशा की तरह ही एक और बौद्धिक और सुलझी हुई पोस्ट. बहुत बहुत धन्यवाद.
bahut sahi dinesh jee
दिनेश जी भगवान शब्द जिन्दगी में इतना रचा बसा है कि कभी सोचा ही नहीं कि इसके भी कोई अर्थ होगें। आज आप से इसका अर्थ समझ कर अच्छा लगा, धन्यवाद,
आपके लेख से अनर्गल लिखने वाले को थोड़ी सबक जरुर मिली होगी। वाकई आपने बड़े होने का फर्ज निभाया है। साथ ही महत्वपूर्ण व्याख्या के लिए शुक्रगुजार।
.
यह आलेख पढ़ कर मेरी सुबह सार्थक तो हुई ही,
साथ ही यह विश्वास भी जगा कि, कुछ तो है.. दिनेश जी में !
" भगवान " का अनर्थ करने वाले, और उसका प्रतिवाद करने वाले
दोनों को ब्लागर समान स्थान दे रहा है, यह देखना सुखद है !
प्रसन्नता हो रही है, असहमत होने का या सहमति दर्ज़ कराने का अधिकार
मैं नहीं रखता , पर अच्छा लग रहा है.. भाई दिनेश !
और इस टिप्पणी का अर्थ - अनर्थ न करने लग पड़ना, भाई जी
इस अमूर्त व निराकार संज्ञा को परिभाषित करने में अपने को अक्षम देख कर ही
श्री रबीन्द्रनाथ ठाकुर ने
तुमि अनाथेर नाथ ... तुमि अगतीर गति
जैसी कालजयी रचना लिखी होगी,
मैं तो कुछ भी नहीं ।
अर्थ और अनर्थ में न का ही तो फर्क है !
भगवान का लिंग खोजना मूर्खता है. वैसे स्त्री ही दे सकती है, इसे स्वीकारने में हिचक क्यों?
सबसे पहले धन्यवाद आपका की आपने तुंरत फुरंत सही अर्थ समझाया ....
क्या बात है सर जी .दिशा देने वाला समझाईस भरी पोस्ट.
राम राम क्या बात हे, अब भगवान को भी खींच रहे हे लोग, दिनेश जी आप का धन्यवाद सही दिशा दिखाने के लिये
जो "भगवान " जैसे शब्द को लेकर
अपमान करे
उसका विरोध करना ही चाहीये
आपने कितनी सारी परिभाषाएँ दीँ हैँ उसके लिये आभार दिनेश भाई जी !
स स्नेह,
- लावण्या
दिनेशराय द्विवेदी जी, आपकी टिप्पणी से एहसास हुआ की मैं कहाँ गलत हूँ, कृपया करके मेरी अगली पोस्ट को पढ़ कर और अपनी बहुमूल्य टिप्पणी दे कर मुझे धन्य करे....और मुझ अज्ञानी को ज्ञान बढाने में मदद करे....
eeshwar kare ki usaki buddhi aur bhi sankeern ho taki aap jaise pratibhawan wyakti usako sahi paribhasha de saken. sch men sahab desh kee lgbhag 30% janata ka yahi haal hai ki we bhagwan kaa arth hi nhin samajhte .
एक शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं. व्यक्ति इन में से अपने विचारों के अनुरूप अर्थ चुनता है. जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिन तेसी.
"गणपति बब्बा मोरिया अगले बरस फ़िर से आ"
श्री गणेश पर्व की हार्दिक शुभकामनाये .....
दुनिया में अलग-अलग तरह से सोचने वालों की कमी नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की जो चीजे स्थापित हैं ,उनको भी छेडा जाए / दर -असल इस क्षेत्र में हिन्दुस्तानी से और अधिक अध्ययन की अपेक्षा रखता हूँ/ रही बात अपनी चीजों की सही मानाने की तो यह तो आपका अधिकार हो सकता है , लेकिन कुछ शाश्वत तथ्यों पर कलम चलने से पहले बेहतर है की गंभीर अध्ययन किया जाए /
दिनेश जी आप का धन्यवाद सही दिशा दिखाने के लिये!
आशा है कि अब तक यह पोस्ट वह पढ़ कर सही अर्थ जान चुके होंगे/
मैं सारे टिप्पणीकारों के विरोध में हूँ यहाँ। निश्चय ही यह अर्थ लोगों को दुख पहुँचाता है और थोड़ा अटपटा लगता है लेकिन भाषा और व्याकरणिक दृष्टि से कुछ भी तो गलत नहीं था इसमें। मैं सिर्फ़ भाषा और शब्द की बात कर रहा हूँ, यह ध्यान देंगे।
वैसे यह अर्थ मुझे एक कर्मकांडी पंडित से सुनने को मिल चुका है कई वर्ष पहले। मैंने एक जगह इस बात का उल्लेख किया है। दर्शन अपनी जगह, भगवान पर बहस अपनी जगह लेकिन शब्द या व्याकरण के हिसाब से यह निंदा योग्य नहीं।
हरि का अर्थ: " There are 8 senses of हरि as NOUN (संज्ञा):
1. सिंह, शेर, केशी, केशरी, केसरी, हरि, बबर शेर, केहरी, मयंद, हैदर, पशुनाथ, मृगारि, मृगाश, मृगाशन, मृगाधिप, मृगाधिराज, श्वेतपिंगल, द्विरदांतक, द्विरदान्तक, द्विरदाशन, नभाकांति, नभाकान्ति, लंकाल, पारिंद्र, पारिन्द्र, सटांक, नागांतक, नागान्तक, बहुबल, रक्तजिह्व, दीप्तपिंगल, मृगनाथ, मृगपति, शैलेय, हेमांग, महाविक्रम, महानाद; बिल्ली के वर्ग में सबसे अधिक बलवान हिंसक जंगली जन्तु, जिसके नर की गर्दन पर बड़े-बड़े बाल होते हैं; "कवि ने इस कविता में शिवाजी की तुलना सिंह से की है"
2. विष्णु, कमलापति, कमलेश, चक्रधर, चक्रपाणि, जगदीश, जगदीश्वर, जनार्दन, त्रिलोकीनाथ, नारायण, सत्यनारायण, रमाकांत, रमाकान्त, रमापति, रमेश, विश्वंभर, विश्वम्भर, श्रीनिवास, हरि, अंबरीष, इंदिरा रमण, श्रीरमण, पुंडरीकाक्ष, असुरारि, अनीश, अन्नाद, गरुड़गामी, गरुड़ध्वज, वंश, महेंद्र, महेन्द्र, वासु, श्रीश, अब्धिशय, डाकोर, सहस्रजित्, सहस्रचरण, सहस्रचित्त, शारंगपाणि, शारंगपानि, अक्षर, अब्धिशयन, कमलनयन, कमलनाभि, कमलेश्वर, कैटभारि, खगासन, गजाधर, गोविंद, गोविन्द, चक्रेश्वर, जनेश्वर, त्रिलोकेश, दामोदर, देवेश्वर, महाभाग, सुरेश, लक्ष्मीकांत, लक्ष्मीकान्त, वारुणीश, व्यंकटेश्वर, शेषशायी, श्रीकांत, श्रीकान्त, श्रीनाथ, श्रीपति, अम्बरीष, सर्वेश्वर, सारंगपाणि, हृषीकेश, हिरण्यकेश, वसुधाधर, बाणारि, हिरण्यगर्भ, वीरबाहु, कमलनाभ, स्वर्णबिंदु, स्वर्णबिन्दु, अमरप्रभु, शतानंद, शतानन्द, धंवी, धन्वी, महाक्ष, महानारायण, महागर्भ, सुप्रसाद, खरारि, खरारी, विश्वधर, विश्वनाभ, विश्वप्रबोध, विश्वबाहु, विश्वगर्भ, विश्वकाय, जगन्निवास, जगन्मय, जगद्योनि, रणेचर, रणेश, श्रीवास, श्रीवासक, पूतात्मा, सोमसिंधु, सोमसिन्धु, सोमगर्भ, वृषभाक्ष, वृषाकपि, वृषांतक, वृषान्तक, मेधज, वृषभेक्षण, देवेश, वृषपर्व्वा, वृषण, वृषप्रिय, वृषाही, वृषोत्साह, वृषोदर, वेदगुह्य, त्रिदशाध्यक्ष, त्रिदशायन, रंगनाथ, द्विजवाहन, दैत्यारि, चक्रभृत, द्वारप, पतत्रिकेतन, पद्मधीश, पद्महास, अमृततप, पत्ररथेंद्रकेतु, पत्ररथेन्द्रकेतु, नरकांतक, नरकान्तक, दारुणारि, धर्मनाम, योगनिद्रालु, याम्य, अयोनिज, अरविन्दनयन, अरविंदनयन, अरविन्दनाभ, अरविंदनाभ, अरविन्दलोचन, अरविंदलोचन, अरविन्दाक्ष, अरविंदाक्ष, सिंधुवृष, सिन्धुवृष, सिंधुशयन, सिन्धुशयन, विश्वरूप, अरिष्टमथन, अरिष्टसूदन, अरिष्टहन, मुकुंद, मुकुन्द, मदनपति, अर्क, सकलेश्वर, विशालाक्ष, अर्ह, यति, जंभारि, जगद्धाता, जह्नु, जलशय, जलशयन, त्रिनाभ, जलशायी, केशट, केश, केशव, कामहा, तपस्पनि, श्रीमत्, श्रीमान्, शशबिंदु, शशबिन्दु, वेदसार, वेदात्मा, वेध, वेधा, प्रांशु, प्राचेतस्, रविलोचन, विष्वक्सेन, अव्यय, द्युतिधर, असुररिपु, प्रधानात्मा, अह, तीर्थकर, तीर्थपाद, आत्मभू, आत्म-योनि, आत्मसमुद्भव, बलिंदम, बलिन्दम, कुमुद, शारंगधर, रागधर, आदिदेव, सर्वपति, भूतकृत, भूतपाल, भूतभव्य, भूतभावन, आदिपुरुष, अभिरूप, भूतभृत्, श्रीनिकेतन, महापवित्र, महाप्रजापति, हेमशंख, हेमांग, सर्व, बोधान, मधुहंता, मधुहन्ता, आसंद, आसन्द, इंदिरा-रमण, तारण, तार्क्ष्यध्वज, तार्क्ष्यकेतन, प्राग्वश, इरेश, उग्र; हिन्दुओं के एक प्रमुख देवता जो सृष्टि का पालन करनेवाले माने जाते हैं; "राम और कृष्ण विष्णु के ही अवतार हैं"
जारी…
3. कृष्ण, श्याम, कन्हैया, कान्हा, किशन, श्रीकृष्ण, नंदलाल, नन्दलाल, केशव, गिरिधर, गोपाल, घन श्याम, द्वारिकाधीश, बनवारी, ब्रजबिहारी, माधव, मुरारी, कालियमर्दन, वनमाली, अच्युत, मनमोहन, दामोदर, हरि, गरुड़गामी, वासुदेव, नरनारायण, पीतवास, अहिजित, कंसारि, कंहैया, कमलनयन, कुंजबिहारी, कृष्णचंद्र, गिरिधारी, गोपीश, गोपेश, गोविन्द, गोविंद, गोविन्दा, गोविंदा, घनश्याम, द्वारिकानाथ, द्वारकाधीश, द्वारकानाथ, नंदकिशोर, नन्दकिशोर, मुरलीवाला, मोहन, मुरली मोहन, योगीश, योगीश्वर, योगेश, योगेश्वर, राधारमण, वंशीधर, विपिन विहारी, वंशीधारी, बलबीर, शकटारि, बकवैरी, शतानंद, शतानन्द, मंजुकेशी, मधुसूदन, खरारि, खरारी, नंदकुमार, नन्दकुमार, नंदकुँवर, नन्दकुँवर, नंदनंदन, नन्दनन्दन, द्वारकेश, नटराज, मुरलीधर, विश्वपति, पूतनारि, पूतनासूदन, सोमेश्वर, वृषदर्भ, वृषनाशन, वृष्णि, वृष्णिक-गर्भ, वेदबाहु, तुंगीश, अरिकेशी, रासबिहारी, गिरधर, गिरधारी, मुकुंद, मुकुन्द, शकटहा, केशव, कामपाल, वेदाध्यक्ष, शवकृत, गुपाल, सोमेश्वर, सोमेश, अहिजन, मुरहा, मुरारि, बकबैरी, आसंद, आसन्द; यदुवंशी वासुदेव के पुत्र जो विष्णु के मुख्य अवतारों में से एक हैं; "सूरदास कृष्ण के परम भक्त थे / कृष्ण द्वापरयुग में प्रकट हुए थे"
4. बंदर, बन्दर, बानर, वानर, कीश, कपि, मर्कट, शाखामृग, तरुमृग, हरि, विटपीमृग, माठू, लांगुली, मर्कटक, पारावत, शालावृक, शाला-वृक; वृक्षों पर रहनेवाला एक चंचल स्तनपायी चौपाया; "भारत में बंदर की कई जातियाँ पाई जाती हैं"
5. मेंढक, मेंडक, मेडक, मेढक, दादुर, दर्दुर, मंडूक, मण्डूक, हरि, अजिर, वृष्टिभू, वर्षाभू, तरंत, तरन्त, शल्ल, तोय-सर्पिका; एक छोटा बरसाती उभयचर प्राणी जो प्रायः वर्षा ऋतु में तालाबों, कुओं आदि में दिखाई देता है; "बरसात के दिनों में मेंढक जगह-जगह कूदते नजर आते हैं"
6. सिंह, शेर, केशी, केशरी, केसरी, हरि, बबर शेर, मयंद, हैदर, पशुनाथ, मृगारि, मृगाश, मृगाशन, मृगाधिप, मृगाधिराज, श्वेतपिंगल, द्विरदांतक, द्विरदान्तक, द्विरदाशन, नभाकांति, नभाकान्ति, लंकाल, पारिंद्र, पारिन्द्र; सिंह जाति का नर; "सिंह की गरदन पर लंबे-लंबे बाल होते हैं"
7. हरि; कश्यप की क्रोधवशा नामक पत्नी से उत्पन्न दस कन्याओं में से एक; "हरि से ही सिंह, बंदरों आदि की उत्पत्ति मानी गई है"
8. हरि; एक वर्णवृत्त जिसमें चौदह वर्ण होते हैं; "हरि के प्रत्येक चरण में जगण,रगण जगण,रगण और अंत में लघु गुरु होते है"
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दिया है। अब हम हरि मतलब साँप कहेंगे तो नाराज होने की बात नहीं होनी चाहिए।
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