
हम अपनी ऊर्जा का सायास या अनचाहे, यह नकारात्मक उपयोग करते चलते हैं और जीवन में बहुत सी ऊर्जा नष्ट कर बैठते हैं। इस से वांछित परिणाम तो मिलते नहीं, उन के मिलने में देरी होती है। माध्यमिक कक्षाओं तक सभी ने विज्ञान पढ़ा है। जब हम बल और गति पढ़ रहे थे। तब एक बात पढ़ाई गई थी कि किसी भी वस्तु को धक्का देने में अधिक ऊर्जा लगती है बनिस्पत उस वस्तु को खींचने में। यह नकारात्मक ऊर्जा का एक अच्छा उदाहरण है।
क्यों रथ में घोड़े आगे होते हैं? क्यों रेल का इंजन आगे की ओर होता है? दोनों भार को खींचते हैं। जरा इस पर विचार करें तो पाएंगे कि यदि इंजन पीछे होता और डब्बों को धकिया रहा होता तो इच्छित परिणाम के लिए हमारा ऊर्जा व्यय दुगना होता, और घोड़े रथ के पीछे जोत दिए जाते तो वे कभी रथ को धकिया ही नहीं पाते। होता यह है कि जब हम किसी वस्तु को धक्का देते हैं तो उस वस्तु पर लगाया गया बल दो भागों में बंट जाता है। एक भाग उस वस्तु को जिस दिशा में हटाया जा रहा है उस दिशा में और दूसरा गुरुत्वाकर्षण की दिशा में। बल का यह दूसरा हिस्सा जो गुरुत्वार्षण की दिशा में लगता है वह वस्तु को पृथ्वी की और दबाता है। वह नष्ट तो होता ही है साथ ही वस्तु को हटाने में बाधा भी पैदा करता है, क्यों कि यह पृथ्वी के केन्द्र की दिशा में लगता है। जो ऊर्जा गुरुत्वाकर्षण की दिशा में यहाँ लगती है उसे हम नकारात्मक ऊर्जा कह सकते हैं। क्यों कि यह नष्ट होते होते भी इच्छित परिणाम के विपरीत काम भी करती है।

हमारे कहे गए और लिखे गए शब्दों के साथ भी यही होता है। यदि वे इच्छित दिशा में परिवर्तन को रोकने में इस्तेमाल हो जाते हैं।
मैं ने अपने प्रिय एक साथी चिट्ठाकार के लिए एक टिप्पणी की थी। कि उन में बहुत ऊर्जा है, लेकिन वे नकारात्मक ऊर्जा को साथ लिए चलते हैं और परिणाम शून्य हो जाता है। तब साथी चिट्ठाकार ने जानने के लिए प्रश्न किया कि नकारात्मक ऊर्जा से मेरा क्या तात्पर्य है? मेरा नकारात्मक ऊर्जा से वही तात्पर्य था, जो इस आलेख में स्पष्ट किया है।