वृत्त गोल होता है। इस से संबंधित बहुत से सवालों के उत्तर भी गोल होते हैं। मसलन किसी वृत्त की परिधि का कोई आरंभिक बिन्दु कहाँ होता है? इस सवाल का उत्तर वास्तव में गोल है। वृत्त की परिधि का कोई आरंभ बिन्दु नहीं होता। वह कहीं से आरंभ नहीं होता न कहीं उस का अंत होता है। कहते हैं सब से छोटा बिन्दु स्वयं एक वृत्त होता है और एक वृत्त वास्तव में बिन्दु का ही विस्तार होता है। अब बिन्दु का कोई आरंभिक बिन्दु कैसे हो सकता है?
लेकिन लोग हैं कि जो चीज नहीं होती है उस का कल्पना में निर्माण कर लेते हैं। वे वृत्त की परिधि पर किसी स्थल पर अपनी पेंसिल की नोक धर देते हैं और कहते हैं यही है आरंभिक बिन्दु। इसी कल्पना को वे सत्य मान लेते हैं। अब जब दूसरा कोई व्यक्ति उसी वृत्त की परिधि के किसी दूसरे स्थल पर अपनी पेंसिल की नोक धर देता है तो उसी को वृत्त की परिधि का आरंभिक बिन्दु मान बैठता है। दोनों के पास अपने अपने तर्क हैं दोनों अपने अपने निश्चय पर अटल हैं। दोनों झगड़ा करते हैं ऐसा झगड़ा जिस का कोई अंत नहीं है, जैसे वृत्त की परिधि का कोई अंत नहीं होता। वृत्त की परिधि के सोचे गए अंतिम बिन्दु के बाद भी अनेक बिन्दु हैं और कल्पित आरंभिक बिन्दु के पहले भी अनेक बिन्दु होते हैं। फिर वह अंतिम और आरंभिक बिन्दु कैसे हो सकते हैं?
हमारे साथ एक गड़बड़ है कि हमें हर चीज का आरंभ और अंत मानने की आदत पड़ गई है। हम मानना ही नहीं चाहते कि दुनिया में कुछ चीजें हैं जिन का न तो कोई आरंभ होता है और न अंत। हम गाहे बगाए खुद से पूछते रहते हैं कि मुर्गी पहले हुई या अण्डा? और सोचते रह जाते हैं कि अण्डे के बिना मुर्गी कहाँ से आई? और अण्डा पहले आाय़ा तो वह किस मुर्गी ने दिया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई और पक्षी अण्डा दे गया हो और उस में से मुर्गी निकल आई हो। हम अण्डे में से मुर्गी निकलने के बीच मुर्गे के योगदान को बिलकुल विस्मृत कर देते हैं।
अभी एक जनवरी को हमें बहुतों ने नव वर्ष की बधाइयाँ दी थीं। साल पूरा भी न निकला था कि फिर से नए वर्ष की बधाइयाँ मिलने लगीं। वह कोई और नव वर्ष था, यह भारतीय नव वर्ष था। एक भारतीय नव वर्ष उस के पहले दीवाली पर निकल गया। अब चार दिन बाद वित्तीय संस्थानों का नव वर्ष टपकने वाला है। उस के बाद तेरह अप्रेल को बैसाखी पर्व पर जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेगा तो फिर नव वर्ष हो जाएगा। जैसे साल न हुआ वृत्त की परिधि हो गई, जिस पर किसी ने कहीं भी पैंसिल की नोंक रख दी और नव वर्ष हो गया।
ज्योतिर्विज्ञानी कहते हैं कि धरती सूरज के चक्कर लगाती है, जब एक चक्कर लगा चुकी होती है तो एक वर्ष पूर्ण हो जाता है। अब यह तो धरती ही बता सकती है कि उस ने कब और कहाँ से सूरज के चक्कर लगाना आरंभ किया था। धरती से किसी ने पूछा तो कहने लगी कि जहाँ से आरंभ किया था वहाँ कोई ऐसी चीज तो थी नहीं जिस पर मार्कर से निशान डाल देती। अब चक्कर लगाते लगाते इतना समय हो गया है कि मुझे ही नहीं पता कि अब तक कितने चक्कर लगा लिए हैं और कितने और लगाने हैं? कहाँ से आरंभ किया था और अंत कहाँ है? वह रुकी और बोली कि मुझे लगता है कि मैं सदा सर्वदा से चक्कर लगा रही हूँ और सदा सर्वदा तक लगाती रहूंगी। आप मान क्यों नहीं लेते कि इन चक्करों का कोई आरंभ बिन्दु नहीं है और न ही कोई इति।
अब इस का मतलब तो ये हुआ कि किसी भी दिन को आरंभ बिन्दु मान लिया जा सकता है और नववर्ष की बधाई दी जा सकती है। ऐसा क्यूँ न करें कि आज के दिन को ही आरंभ बिन्दु मान लें और फिर से बधाइयों का आदान प्रदान कर लें? तो सब से पहली बधाई मैं ही दिए देता हूँ। आप सब को यह नव वर्ष मंगलकारी हो!!!