महेन्द्र नेह ने पिछले दिनों कुछ पद लिखे हैं, उन में से एक यहाँ प्रस्तुत है।
उन के अन्य पद भी आप अनवरत पर पढ़ते रहेंगे।
'पद'
महेन्द्र 'नेह'
भाई ने भाई मारा रे
एक ही माँ की गोद पले दोउ नैनन के दो तारा रे।।
जोते खेत निराई कीनी बिगड़ा भाग संवारा रे।
दोनों का संग बहा पसीना घर में हुआ उजारा रे।।
अच्छी फसल हुई बोहरे का सारा कर्ज उतारा रे।
सूरत बदली, सीरत बदली किलक उठा घर सारा रे।।
कुछ दिन बाद स्वार्थ ने घर में अपना डेरा डाला रे।
खेत बॅंट गये, बँट गये रिश्ते, रुका नहीं बॅंटवारा रे।।
कोई नहीं पूछता किसने हरा भरा घर जारा रे।
रक्तिम हुई धरा, अम्बर में घुप्प हुआ अॅंधियारा रे।।