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गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

मोतीलाल साँप वाला किसी को धोखा नहीं देता, कभी झूठ नहीं बोलता...

पाँचवीं क्लास तक स्कूल घर से बिलकुल पास ही था, शहर में हमारे घूमने फिरने का दायरा सीमित था। जैसे ही छठी कक्षा में प्रवेश लिया। हम मिडिल स्कूल जाने लगे। यह शहर के दूसरे छोर, रेलवे स्टेशन से कुछ ही पहले था। पर अब रेलवे स्टेशन तक हमारे घूमने फिरने की जद में आ गया था। स्कूल जाने के लिए हमें शहर के पूरे बाजार को पार करना पड़ता था। स्टेशन से मांगरोल जाने वाली सड़क बहुत चौड़ी थी। दुकानों और इमारतों से सड़क के बीच दोनों ओर बहुत स्थान बच रहता था। वहाँ लोग जमीन पर अस्थाई रूप से दुकान लगा लेते। अजीब अजीब चीजों की दुकानें हुआ करती थीं। पुरानी किताबों की दुकानें, जिन में कॉमिक्स और कार्टूनों वाली किताबें, ऐसी रहस्यमय किताबें जिन्हें दुकानदार छिपा कर रखता था बिका करती थीं और केवल बड़ी उम्र वालों को ही बेचता था। कलेंडरों और चित्रों की दुकानें, नए सामानों की दुकानें आदि आदि। कभी कभी सड़क के किनारे मजमा लगा होता।  कोई धुलाई का पाउडर बेच रहा होता। एक बरतन में धुलाई का पाउडर पानी में घोलता और फिर एक साफ दिखने वाला कपड़ा उस में डालता और घुमाता। थोड़ी देर में कपड़ा उस में से निकाल कर निचोड़ता तो पानी एक दम काला पड़ जाता। दर्शक आश्चर्य में डूब जाते कि इस साफ दिखने वाले कपड़े में इतना मैल था! फिर कपड़े को एक-दो बार फिर साफ पानी में निचोड़ा जाता। यह पानी भी मैला हो जाता, तब और आश्चर्य होता। सब से अधिक आश्चर्य तो तब होता जब वह कपड़ा वैसा उजला हो जाता जैसे अभी बजाज की दुकान से खरीदा हो।

क बार एक मूँछ वाला काला सा अधेड़ आदमी सड़क के किनारे मजमा लगाए हुए था। दो-तीन साँप बंद करने वाली बाँस की बनी टोकरियाँ रखी थीं। कुछ और सामान रखा  था जिन में तस्वीर में जड़े कुछ प्रमाण पत्र थे जो कलेक्टर, उप कलेक्टऱ, बड़े स्कूल के प्रिंसिपल आदि जैसे बड़े लोगों द्वारा दिए गए थे। मूँछ वाला खड़े हो कर प्रवचन जैसा कर रहा था। कुछ बच्चे उसे जिज्ञासा से सुनने खड़े हो गए थे। मैं भी वहीं खड़ा हो गया। वह बोल रहा था...

-हाड़ौती के तीनों जिलों में एक नाम मशहूर है, मोतीलाल साँपवाला। जानते हो कौन है मोतीलाल साँपवाला? लोग किसी को जहर दे कर मार देते हैं। किस के लिए? धन के लिए, दौलत के लिए, औरत के लिए। औरत अपने आदमी को जहर दे देती है, अपने यार के लिए। बेटा बाप को जहर दे देता है उस की दौलत के लिए। भाई भाई को जहर दे देता है दौलत के लिए। बिलकुल कलयुग आ गया है, कोई किसी का भरोसा नहीं कर सकता। लेकिन लोग मोतीलाल साँपवाला का भरोसा करते हैं। वह किसी को धोखा नहीं देता, वह कभी झूठ नहीं बोलता। कोई किसी को जहर दे तो मोतीलाल साँपवाला उस का जहर खींच कर बाहर निकाल देता है। आदमी को मरने से बचा लेता है। जानते हो कौन है मोतीलाल साँपवाला? जो जानते हों हाथ खड़े करें!

क भी हाथ खड़ा नहीं हुआ। वह फिर कहने लगता - सब नए लोग हैं, पुराने होते तो तुरंत बता देते। तो जान लो मोतीलाल साँपवाला आप के सामने खड़ा है। यह कह कर उस ने अपनी लम्बी मूंछों पर ताव दिया। मैं समझ गया यह खुद के बारे में कह रहा है। 
-यह मोतीलाल साँप पालता है, जहर पैदा करने वाले को पालता है। आप जानते हैं इन टोकरियों में क्या है? इन में साँप हैं। जीवित साँप। मोतीलाल आप को दिखाएगा, जिन्दा साँप। उस ने एक टोकरी हाथों में उठाई और बोलने लगा। उस ने तब क्या बोला, यह मुझे अब याद नहीं आ रहा। वैसे भी मेरा ध्यान उस की बातों से हट कर टोकरी पर केंद्रित हो गया था। उस ने टोकरी का ढक्कन नहीं खोला, बोलते हुए वापस रख दी। फिर कहने लगा
-बहुत सपेरे आते हैं। साँप का खेल दिखाते हैं, चादर बिछा कर दान माँगते हैं और चले जाते हैं। उन के साँपों के जहर के दाँत निकाले हुए होते हैं। लेकिन मोतीलाल साँपवाला साँप के जहर के दाँत नहीं निकालता। साँप का जहर निकाल लो तो साँप फिर टोकरी के बाहर जिन्दा नहीं रह सकता। उसे कोई भी मार देगा। मोतीलाल के साँप जहर वाले हैं। मोतीलाल साँप का खेल नहीं दिखाता। साँपों से प्यार करता है। इतना कह कर उस ने एक टोकरी का ढक्कन हटाया। उस में एक बड़ा सा साँप कुंडली मार कर बैठा था। उसे रोशनी मिलते ही उस ने फन उठाया और आसपास देखने लगा। मोतीलाल फिर बोलने लगा...

-साँप जब तक इस टोकरी में है आप सुरक्षित हैं। यह बाहर निकला तो किसी को भी काट सकता है। इसे इस टोकरी में ही रहने दिया जाए। इतना कह कर उस ने उस टोकरी का ढक्कन बंद कर दिया। यह मोतीलाल जादू जानता है। वह चमत्कार करना जानता है। इस ने बहुत खेल दिखाए हैं। ये सब प्रमाण पत्र उन्हीं खेलों से चकित और प्रसन्न हो कर बड़े-बड़े लोगों ने दिए हैं...... उस ने एक प्रमाण पत्र हाथ में उठा कर दिखाया। यह फलाँ स्कूल के हेडमास्टर ने दिया है। इस तरह उसने सारे प्रमाणपत्र दिखाए और उन्हें देने वालों के बड़प्पन के बारे में व्याख्यान दिया।

-मोतीलाल साँपवाला आप को भी जादू दिखाएगा। वैसे दुनिया में कोई जादू नाम की कोई चीज नहीं होती,  चमत्कार नाम की कोई चीज नहीं होती। फिर भी आप जादू और चमत्कार देखते हैं, आप चकित हो जाते हैं। पर ये सब साइंस और हाथ की सफाई होती है। मोतीलाल साँपवाला आज आप को जादू दिखाएगा ही नहीं जादू सिखाएगा भी ........ वह बोलता रहा, भीड़ चमत्कृत सी सुनती रही। मैं भी उस शख्सियत से चमत्कृत हो गया था,  सब से अधिक तो उस की लच्छेदार भाषा से। मैं सोच रहा था इतना अच्छा बोलना मुझे भी आता तो मैं स्कूल के सारे मास्टरों पर जादू कर देता, सारे स्कूल के बच्चों को चमत्कृत कर देता।

ह बाँए हाथ का अंगूठा दिखाते हुए बोल रहा था -मेरा यह अंगूठा कट गया था। मैं ने कटे हुए को संभाल कर रखा। उसे मसाला लगा कर ऐसा कर दिया कि वह मरा हुआ न लगे, जिन्दा लगे। फिर मैं ने उसे उस की जगह चिपका दिया। देखिए जनाब! मेरा बाँए हाथ का अंगूठा देखिए! कैसा लगता है? जिन्दा या मरा हुआ? उस ने एक बड़े आदमी के सामने अपना बाँए हाथ का अंगूठा आगे कर कहा -इसे दबा कर देखिए... डरिए नहीं, दबा कर देखिए! उस आदमी ने दबा कर देखा, फिर दाहिने हाथ का अंगूठा दिखाया, दोनों एक जैसे थे।
उस आदमी ने कहा -यह कटा हुआ नहीं है। तुम झूठ बोलते हो।

स का प्रवचन फिर शुरू हो गया -मोतीलाल साँपवाला कभी झूठ नहीं बोलता। वह साबित कर देगा कि उस का अंगूठा कटा हुआ है। वह कटे हुए हिस्से को अलग कर के दिखाएगा। लेकिन उस के लिए आप सब को मेरे सामने आना होगा। मेरे पीछे कोई और रहा और अंगूठा वापस जोड़ने के पहले हिला भी तो अंगूठा अलग होने के बाद फिर नहीं जुड़ पाएगा। आप में से कोई नहीं चाहेगा कि मोतीलाल का अंगूठा कटा हुआ रह जाए। इस लिए सब सामने आ जाएँ। उस ने सारे दर्शकों को आपने सामने कर दिया। फिर बाँए हाथ का अंगूठा दाहिने हाथ से पकड़ा और अलग कर दिया। अब बाएँ हाथ का कटा हुआ अंगूठा उस के दाएँ हाथ में था।
 
मैं चमत्कृत था। लोग जड़ हो गए थे, जरा भी हिल नहीं रहे थे। मेरी तो साँस तक रुक गई थी। फिर उस ने अंगूठा वापस बाँए हाथ में चिपका दिया। दोनों हाथ दिखाए। दोनों हाथों के अंगूठे एक जैसे और जीवित थे।  वह फिर बोलने लगा।
-सही और सच बात तो यह है कि मोतीलाल झूठा आदमी है। उस ने झूठ बोला कि उस का अंगूठा कटा हुआ है। उस का अंगूठा कभी नहीं कटा, कभी हाथ से अलग नहीं हुआ। लेकिन आप ने अलग होते हुए देखा। जो देखा वह आप की आँखों का भ्रम था। आप की आँखों का भ्रम ही आप के लिए जादू है, चमत्कार है। यह वही चमत्कार है जिसे दिखा कर लोग लाखों कमाते हैं। झूठे लोग चमत्कारी साधु हो जाते हैं और लोगों से धन ठगते हैं। फिर लाखों ठगते हैं,  एक दिन लखपती बन जाते हैं। उन से बड़े धोखेबाज, भगवान बन जाते हैं। लोगों से अपनी पूजा कराते हैं। वे सब से बड़े झूठे, मक्कार और धोखेबाज हैं। पर मोतीलाल साँपवाला झूठा, मक्कार और धोखेबाज नहीं है। वह बताएगा कि उस ने कैसे अंगूठे को हाथ से अलग करने का चमत्कार दिखाया। वह आप को सिखाएगा कि कैसे यह चमत्कार किया जाता है।

फिर उस ने ट्रिक बताई, और सिखाई। मैं ने भी उसे मनोयोग से सीखा। सब के बाद उस ने कहा - लेकिन मोतीलाल साँपवाले के भी पेट है, शरीर है, बीबी है, बच्चे हैं और एक बूढ़ी माँ भी है। मोतीलाल को उन के लिए कमाना पड़ता है। लेकिन वह धोखा दे कर, मक्कारी कर के नहीं कमाता। वह दवा बेचता है। जहर का असर खत्म करने की दवा। फिर उस ने एक सफेद कागज जमीन पर बिछा कर उस पर एक बड़े ताम्बे के पैसे (आजकल कल के रुपए का सिक्का) के बराबर की काली गोल टिकियाएँ जमा दीं।

- वह फिर बोलने लगा ये टिकिया बिच्छू के काटे की दवा है। वह एक टिकिया बेचता है सिर्फ एक चवन्नी में, अठन्नी में तीन बेचता है और रुपए की सात टिकिया बेचता है। फिर उस ने एक बिच्छू निकाला, एक आदमी को तैयार किया, उसे बिच्छू का डंक लगाया। वह आदमी कराह उठा। मोतीलाल ने झट से टिकिया को डंक वाली जगह घिसा। उस आदमी का दर्द गायब हो गया। फिर उस ने टिकिया बेचना शुरू किया। कागज पर निकाली हुई कोई पच्चीस टिकिया उस ने बेच दी। मेरे पास उस वक्त एक चवन्नी न थी, वर्ना मैं भी एक खरीद लेता। कभी बिच्छू काट ले तो काम आए। मजमा खत्म हो गया। मैं अंगूठा अलग करने वाली ट्रिक का अभ्यास करता रहा। कुछ दिन लोगों को दिखाने लगा। जिन ने मोतीलाल को ऐसा करते न देखा था वे हैरान हो जाते।

स के बाद मोतीलाल को हर साल तीन चार बार मजमा लगाते हुए देखता। उस से मैं ने तीन-चार जादू की ट्रिक्स सीखीं। फिर मालूम हुआ कि वह हमारे ही शहर का रहने वाला है। पूरी हाड़ौती में बिच्छू काटे के इलाज की टिकिया बेचता है। लगभग हर घर में उस की बेची टिकिया मिल जाती थी। जब बिच्छू किसी को काट लेता तो टिकिया के प्रयोग से आराम भी हो जाता। टिकिया न मिलती तब मरीज को अस्पताल ले जाया जाता। लेकिन उस के पहले मोतीलाल की याद जरूर आती, पास-पड़ौस में पूछा जाता कि किसी के पास बिच्छू की टिकिया है या नहीं। फिर मैं पढ़ने के लिए शहर के बाहर चला गया। बाद में काम के सिलसिले में अपना शहर छूट गया। फिर भी मोतीलाल दो-चार साल में कहीं न कहीं। मेले-ठेले और रेल में टकरा जाता। फिर उस का दिखना बंद हो गया। एक दिन पता लगा वह मर गया। उस के बच्चे हैं। जो पढ़ लिख कर सरकारी नौकरी करने लगे हैं। पिछले पच्चीस साल से उसे मैं ने नहीं देखा, न उस के बारे में सुना।

पिछले सोमवार अदालत के केंटीन में जब हम मध्यान्ह की चाय पी रहे थे। तब वहाँ बाबा सत्य साईं के मरने की चर्चा होने लगी। तब मुझे मोतीलाल बेसाख्ता याद आया। लेकिन मुझे उस का नाम याद न आ रहा था। मैं ने उस के बारे में लोगों को बताया तो एक पैसठ वर्षीय व्यक्ति ने तुरंत उस का नाम बताया। मुझे भी उस का नाम याद आ गया। मुझे आश्चर्य हुआ कि हाड़ौती के दूसरे छोर पर रहने वाले भी उसे वैसे ही जानते थे, जैसे मैं जानता था। मोतीलाल की भाषा लच्छेदार थी। वह अपने अंदाज से लोगों को सम्मोहित कर लेता था। उसे लोगों को चमत्कृत करना आता था। लेकिन वह कभी महत्वपूर्ण आदमी नहीं बना। वह चमत्कार दिखा कर अपनी दवा बेचता रहा, पेट पालता रहा, बीबी और बच्चे पालता रहा। चमत्कारों का भेद खोलता रहा और करना सिखाता रहा। उस ने कोई शिष्य नहीं बनाया। उस का नाम कभी अखबार में न छपा, किसी किताब में न छपा। उस ने बच्चों को पढ़ाया, पैरों पर खड़े होना सिखाया, मेहनत से कमाना सिखाया और एक दिन मर गया। वह अब सिर्फ उन लोगों को याद है जिन्हों ने उसे बिच्छू काटे की दवा की टिकिया बेचते देखा था।