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बुधवार, 10 अगस्त 2011

शव उठाना भारी पड़ रहा है

र महिने कम से कम एक दर्जन निमंत्रण पत्र मिल जाते हैं। इन में कुछ ऐसे समारोहों के अवश्य होते हैं जिस में किसी न किसी का सम्मान किया जा रहा होता है। जब ऐसे निमंत्रण पढ़ता हूँ तो दिल बहुत उदास हो जाता है। कहीं कोई कविताबाजी के लिए सम्मानित हो रहा होता है तो कोई साहित्य में बहुमूल्य योगदान कर रहा होता है। किसी को इसीलिए सम्मान मिलता है कि उस ने बहुत से सामाजिक काम किए होते हैं।  किसी के बारे में तो सम्मान समारोह से ही पता लगता है कि वह कविताबाजी भी करता है या उस ने साहित्य में कोई योगदान भी किया है या फिर वह सामाजिक कार्यकर्ता है। किसी किसी के तो नाम की जानकारी ही पहली बार निमंत्रण पत्र से मिलती है।  तब मैं निमंत्रण पत्र देने वाले से कहता हूँ कि भाई जिस का सम्मान होना है उस के बारे में तो बताते जाओ, मैं तो उसे जानता ही नहीं हूँ। जब सम्मानित होने वाले का नाम और उस के किए कामों की जानकारी मिलती है तो मन बहुत उदास हो जाता है।

विता के लिए किए जा रहे एक व्यक्ति के सम्मान समारोह में पहुँचा तो देखा कि जिस व्यक्ति का सम्मान किया जा रहा है उसे तो मैं बहुत पहले से जानता हूँ। वह कलेक्ट्री में बाबू है और किसी का काम बिना कुछ लिए दिए नहीं करता। एक दो बार उस से पाला भी पड़ा तो अपनी लेने-देने की आदत के कारण उस की उस के अफसर से शिकायत करनी पड़ी। अफसर ने उसे मेरे सामने बुला कर झाड़ भी पिलाई कि तुम आदमी को देखते तक नहीं। आइंदा किसी से ऐसी शिकायत मिली तो तुम्हारी नौकरी सुरक्षित नहीं रहेगी। उस झाड़ के बाद  बाबू के व्यवहार में मेरे प्रति तो बदलाव आ गया, लेकिन बाकी सब के साथ पहले जैसा ही व्यवहार करता रहा। शायद वह मुझे पहचानने लगा था। उस का कभी कुछ नहीं बिगड़ा। अफसर आते और चले जाते, लेकिन बाबू वहीं प्रमोशन पा कर उसी तरह काम करता रहा। आज अ...ज्ञ साहित्य समिति उस का सम्मान कर रही है। यह जान कर मुझे आश्चर्य हुआ कि वह बाबू कविता भी करता है वह भी ऐसी करता है कि उस का सम्मान किया जाए। 

खैर, बाबू ने मुझे देखा तो सकुचाया, फिर नमस्ते किया। औपचारिकतावश मैं ने भी नमस्ते किया। पर मेरे न चाहते हुए भी और रोकते रोकते भी बरबस ही मेरे होठों पर मुस्कुराहट नाच उठी। उस के चेहरा अचानक पीला हो गया। शायद उसे लगा हो कि मैं उस पर व्यंग्य कर रहा हूँ। मैं ने उस के नजदीक जा कर पूछा -तुम कविता भी करते हो, यह आज पता लगा। उसने और पीला होते हुए जवाब दिया -कविता कहाँ? साहब, कुछ यूँ ही तुकबाजी कर लेता हूँ। मैं हॉल में पीछे की कुर्सी पर जा कर बैठा। समारोह आरंभ हुआ। सरस्वती की तस्वीर को माला पहनाई गई, दीप जलाया गया। फिर सरस्वती वंदना हुई। स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियाँ थीं, साथ में तबला और हारमोनियम वाला भी था। शायद किसी स्कूल से बुलाया गया हो। मैं ने एक से पूछा तो पता लगा कि यह हारमोनियम वाले का आयोजन था। वह पाँच सौ में इस का इंतजाम किसी भी समारोह के लिए कर देता है। समारोह आगे बढ़ा। बाबू जी की तारीफ में कसीदे पढ़े जाने लगे। उन के दो प्रकाशित संग्रहों की चर्चा हुई। फिर बाबूजी बोलने लगे, उन की स्वरों में बहुत विनम्रता थी, वैसी जैसी लज्जा की अनुभूति होने पर किसी नववधु को होती है। उन्हों ने चार कथित काव्य रचनाएँ भी पढ़ीं। मुझे उन्हें कविता समझने में बहुत लज्जा का अनुभव हुआ।  समारोह समाप्त हुआ तो सभी को कहा गया कि बिना जलपान के न जाएँ। पास के हॉल में जलपान की व्यवस्था थी। जलपान क्या? पूरा भोजन ही था। छोले-भटूरे, गुलाब जामुन, समौसे और कचौड़ियाँ। मैं पिछले पाँच सालों में जितने सम्मान समारोहों में गया था, उन सब में जलपान के लिहाज से यह समारोह सब से जबर्दस्त था।

मेरे जैसे ही एक और मित्र थे वहाँ। मैं उन से चर्चा करने लगा। यार! सम्मान समारोह खूब जबर्दस्त हुआ। कहने लगे पूरे पच्चीस हजार खर्च किए हैं अगले ने जबर्दस्त क्यों न होता। मैं ने पूछा -अगला कौन? तो उस ने बताया कि अगला तो बाबू ही है। फिर भी मुझे पच्चीस हजार अधिक लग रहे थे। मैं ने मित्र से जिक्र किया तो कहने लगा ... खर्च तो बीस भी न हुए होंगे। आखिर पाँच तो सम्मान करने वाली संस्था भी बचाएगी, वर्ना कैसे चल पाएगी। ... तो पैसे पा कर यह संस्था किसी का भी सम्मान कर देती है क्या? .... और नहीं तो क्या?  ... आप अपना करवाना चाहो तो दस हजार में इस से बढ़िया कर देगी। मुझे उस की बात जँची नहीं। मैं ने पूछ ही लिया -वह कैसे? ... यार! संस्था साल में पाँच बाबुओं का सम्मान करेगी, तो दो आप जैसों का कम खर्चे में भी करना पड़ेगा, आखिर संस्था को अपनी साख और इज्जत भी तो बचानी पड़ती है। मेरे पास मित्र की इस बात का कोई उत्तर नहीं था। मैं ने अगला प्रश्न किया -यार! इस की किताब किसने छापी? उत्तर था - कौन छापेगा? चित्रा प्रकाशन ने छापी है। मेरे लिए स्तंभित होने का फिर अवसर था। मैं हुआ भी और हो कर पूछा भी -ये चित्रा प्रकाशन कहाँ का है? कौन मालिक है इस का? ... यार! तुम बिलकुल बुद्धू हो। चित्रा बाबू की बीबी का नाम है और इस प्रकाशन ने अब तक दो ही किताबें छापी हैं और दोनों बाबू की हैं। 

स समारोह के पहले मैं सोचता था कि कभी तो किसी को सुध आएगी, अपना भी सम्मान होगा। इस समारोह के बाद से मैं सम्मान समारोहों में बहुत सोच समझ कर जाने लगा हूँ। अपनी खुद की तो सम्मान की इच्छा ही मर गई है। इच्छा का शव उठाना भारी पड़ रहा है। सोचता हूँ कि कल सुबह जल्दी जा कर बच्चों के शमशान में दफना आऊँ।

शनिवार, 15 जनवरी 2011

रघुराज सिंह के सम्मान में कवि बशीर अहमद मयूख ने बजाई बाँसुरी

रघुराज सिंह हाड़ा
र मकर-संक्रान्ति पर शकूर 'अनवर' के घर जा कर बहुत अच्छा लगता है। वहाँ हर साल विकल्प जन सास्कृतिक मंच सृजन सद्भावना समारोह का आयोजन करता है। आज नवाँ सद्भावना समारोह था। दिन के दो बजे से आरंभ होने वाले समारोह में मैं कुछ देरी से पहुँचा। वजह साफ थी। मैं एक किशोर को वहाँ ले जाना चाहता था। पत्नी की बहन का पुत्र योगेश, वह गाँव से दूर कोटा में अपनी बहिन के साथ अध्ययन की खातिर रहता है। पिछले सप्ताह उस से मिला तो उसे अपने घर आ कर पतंग उड़ाने का न्यौता दे दिया। घर आ कर डोर लपेटने वाली गरारियों की तलाश की तो वे नहीं मिलीं। शायद मैं घर बदलते समय उन्हें पडौस के किसी बच्चे को भेंट कर आया था। योगेश भी पढ़ाई के कारण नहीं आ सका। मैं ने उसे संक्रान्ति पर शकूर भाई के घर पतंग उड़ाने के लिए चलने को कहा, वह उस के लिए भी राजी था। दोनों बहन भाई एक बजे तक आने वाले थे, लेकिन दो बजे तक नहीं आए। फिर ढाई बजे उन का फोन मिला कि उन के पिता आ गए हैं। वे नहीं आ सकेंगे। मैं समारोह के लिए रवाना हो गया।
रघुराज सिंह हाड़ा को सृजन-सद्भावना सम्मान देते हुए अंबिका दत्त और कवि मयूख
मैं पहुँचा तब तक श्वेत कपोत अपनी उड़ान भर चुके थे और अतिथियों ने सद्भावना संदेश लिखी पतंगें हस्ताक्षर कर उड़ाईं और फिर छोड़ दीं, ताकि लूटने वालों को भी सद्भावना का संदेश मिले। आज समारोह में हाडौती के वरिष्ठतम कवि, गीतकार, लेखक आदरणीय रधुराज सिंह जी हाड़ा का सम्मान होना था। वह आरंभ होने वाला था। उन की उम्र 78 वर्ष की है। मेरे पिता जी होते तो उन से सिर्फ 4 वर्ष बड़े होते। मैं जिस वर्ष में पैदा हुआ था उस साल वे अध्यापक हो चुके थे। जिस विद्यालय में उन का पहला पदस्थापन हुआ वहाँ मेरे पिताजी पहले से अध्यापक थे। कस्बे में यह मान्यता थी कि छात्र यदि ट्यूशन न पढ़ेगा तो अवश्य ही फेल होगा या निम्न दर्जा प्राप्त करेगा। दोनों को इस मान्यता ने बहुत कचोटा। दोनों ने तय किया कि वे इस मान्यता को बदल डालेंगे। दोनों ने विद्यालय में होने वाली प्रार्थना सभा में घोषणा करना आरंभ कर दिया कि किसी को ट्यूशन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, कोई भी बालक उन के यहाँ कभी भी पढ़ने आ सकता है। रघुराज जी उसे हिन्दी और अंग्रेजी पढ़ाते और पिता जी गणित, भूगोल, सामाजिक विज्ञान  और विज्ञान। यह भी घोषणा वे करते कि किसी भी विद्यार्थी को कोई भी परेशानी हो वह हमें रास्ते में रोक कर भी पूछ सकता है। पहले उस की समस्या हल होगी, बाद में और काम। आखिर ट्यूशन का वह मिथक टूट गया।
शकूर अनवर पुस्तकें भेंट करते हुए





घुराज जी का रचना कर्म विद्यार्थी जीवन में ही आरंभ हो चुका था। वे हाडौती और हिन्दी के मीठे गीतकार हैं। उन की रचनाओं को जहाँ हाड़ौती के जनमानस ने गाया है वहीं अगली पीढ़ी के रचनाकारों को मार्ग भी दिखाया। अभी तक उन की बीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं और उन की रचनाएँ विद्यालयी पुस्तकों में पढ़ाई जाती हैं। कुछ विद्यार्थी उन के रचनाकर्म पर शोध कर डिग्रियाँ हासिल कर चुके हैं। आज उन का सम्मान कर के वस्तुतः विकल्प परिवार ने स्वयं को सम्मानित महसूस किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि हिन्दी के प्रसिद्ध कवि बशीर अहमद मयूख थे। आज कवि मयूख का एक और नया रूप देखने को मिला जब उन्हों ने रघुराज जी के सम्मान में स्वयं बाँसुरी वादन कर सभी उपस्थित जनों को चकित कर दिया। समारोह में नगर के हिन्दी, उर्दू, हाडौती कवि उपस्थित थे। बाद में देर शाम तक काव्य गोष्ठी चलती रही।
ह अद्भुत समारोह कोटा नगर की अमूल्य थाती बन चुका है, जिस में उपस्थित होना नगर के साहित्यकार अपना गौरव समझते हैं। आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि ऊपर की छत से जहाँ अंधेरा घिर आने तक सद्भावना संदेश लिए पतंगें अनवरत उड़ाई जाती रहें, उसी छत के नीचे एक समारोह चलता रहे जिस में सृजनकारों के साथ शकूर के परिवार जन और मुहल्ले के लोग दर्शक-श्रोता बने आनंद लेते रहें। बीच-बीच में घर की महिलाएँ सब के लिए तिल के लड्डू और अन्य व्यंजनों के साथ चाय की व्यवस्था करें। यह समारोह एक अलग ही तरह का आनंदोत्सव हो जाता है।
काव्य गोष्ठी
मारोह ने मुझे आज अपने पिता के एक आरंभिक साथी के साथ कुछ घंटे बिताने का अवसर दिया। समारोह के उपरांत रघुराज जी को अपने गृहनगर झालावाड़ जाना था। मैं ने उन्हें बस तक छोड़ने का अवसर तुरंत लपका। जिस से मैं अपने पिता के साथी के साथ कुछ समय और बिता सकूँ। आज के समारोह में मुझे कई रत्न मिले जिन्हें मैं समय-समय पर आप के साथ साझा करूँगा। इन में दिवंगत कवि-रंगकर्मी शिवराम पर लिखी एक कविता, रघुराज सिंह जी का एक काव्य संग्रह, शकूर अनवर की कुछ ग़ज़लें  और समारोह में रघुराज सिंह जी के सम्मान में बशीर अहमद 'मयूख' द्वारा किया गया बाँसुरी वादन शामिल हैं।

सोमवार, 26 जुलाई 2010

जहर सुकरात पी गए होंगे, हमसे यूं आचमन नहीं होता...

24 जुलाई को राजस्थान साहित्य अकादमी व प्रयास संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम में चूरू राजस्थान के श्रोताओं का साक्षात्कार हुआ कोटा के जन कवि महेंद्र नेह से। उन्हों ने इस कार्यक्रम में एक से बढकर एक कविता, गीत और गजलों के जरिए वर्तमान व्यवस्था और समय की विद्रूपताओं पर करारा प्रहार करते हुए श्रोताओं का मन मोह लिया। अपनी पहली कविता ‘कल भिनसारे में उठकर चिड़ियाओं की चहचहाट सुनूंगा’ से उन्हों ने वर्तमान में भौतिकवाद की दौड़ में अंधे मनुष्य की अधूरी स्वप्निल आंकाक्षाओं को स्वर दिए तो ‘क्या सचमुच तुम्हारे पास सुनाने के लिए कोई अच्छी खबर नहीं’ से इलेक्ट्रॉनिक चैनलों और मीडिया की सनसनीधर्मिता पर करारा प्रहार किया। नेह ने ‘चिनगी-चिनगी बीनती फिर भी नहीं हताश, वह कूड़े के ढेर में जीवन रही तलाश’ जैसे अपने दोहों पर भी श्रोताओं की खूब दाद पाई। उन की ‘जान मुश्किल में आ गई होगी’, ‘अंधी श्रद्धा में प्रण नहीं होता’, ‘सच के ठाठ निराले होंगे’ और ‘हम दिले नादान को समझा रहे हैं दोस्तों’ जैसी गजलों को श्रोताओं ने मुक्तकंठ से सराहा। ‘एक चिड़िया के हाथों कत्ल हुआ, बाज से तंग आ गई होगी’ और ‘जहर सुकरात पी गए होंगे, हमसे यूं आचमन नहीं होता’ जैसे शेरों पर श्रोता मंत्र मुग्ध हुए और उन के मुहँ से निकलने वाली 'वाह-वाह’ की ध्वनियाँ थमते ही न बनी। नेह जी ने नई भाव-भूमि और जनवादी पृष्ठभूमि पर रचे गए अपने गीतों ‘हम सर्जक हैं समय सत्य के’, ‘सड़क हुई चौड़ी मारे गए बबुआ’, ‘थाम लो साथी मशालें’, ‘महाविपत्ति के रंगमंच में’ से वर्तमान समाज और राजनीति की विसंगतियों पर चोट करते हुए ‘क्षार-क्षार होंगे सिंहासन, बिखरेंगे सत्ता के जाले’ के जरिए क्रांति का आह्वान कर सभागार में मौजूद हर एक को सोचने पर मजबूर कर दिया।
स मौके पर महेंद्र नेह ने कहा कि सृजन कभी अंधानुकरण नहीं हो सकता। हमें चीजों को एकांगी रूप में नहीं, बल्कि व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए और उनमें अंतर्निहित सच्चाइयों की तह में जाना चाहिए। किसी भी व्यवस्था में सब कुछ अच्छा या सब कुछ बुरा नहीं होता। लेकिन एक साहित्यधर्मी को गलत के खिलाफ हमेशा डटे रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन बातों और चीजों के असर से हम मर मिटने को तैयार हो जाते हैं, वे ही हमारे जीवन की सबसे अनमोल चीजें होती हैं। सत्ता और व्यवस्था के दमन चक्र ने हमेशा स्वाभिमानी साहित्यधर्मियों को ठुकराया है लेकिन सृजनधर्मियों को इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। हमें यह मानते हुए कि परंपरा में सब कुछ अनुकरणीय और श्रेष्ठ नहीं है, तर्कसंगत ज्ञान का अवधारण करना ही होगा। वर्गों में बंटे समाज में हमें फैसला करना ही होगा कि हम वास्तव में किसकी तरफ हैं। समाज में प्रत्येक चीज का निर्माण श्रमजीवी करता है लेकिन दो वक्त की रोटी तक को मोहताज रहता है। महेन्द्र नेह ने इस बात पर जोर दिया कि रचनाकारों के लिए कलात्मकता जरूरी है, लेकिन अपनी स्पष्ट विचारधारा और उसके प्रति आग्रह उससे भी अधिक जरूरी है।
मारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार भंवर सिंह सामौर ने कहा कि महेंद्र 'नेह' की कविता और जिंदगी एक दूसरे में रमे हुए हैं। उन्होंने कहा कि नेह ने आम आदमी की व्यथा को बखूबी व्यक्त किया हैं और उनके शब्दों में गजब की सामर्थ्य है। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद सोहनसिंह दुलार ने कहा कि नेह ने अपनी रचनाओं में वर्तमान की विद्रूपताओं पर कड़ा प्रहार किया है और उनके रचना संसार में आने वाले समय को लेकर उम्मीदें गहराती हैं। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि प्रदीप शर्मा ने कहा कि नेह समय के सत्य के कवि हैं जिन्होंने अपनी लेखनी से व्यवस्था पर सटीक व्यंग्य और करारी चोट की है। समीक्षक सुरेंद्र सोनी, वरिष्ठ पत्रकार माधव शर्मा, दूलदान चारण, बाबूलाल शर्मा, अरविंद चूरूवी आदि ने नेह के रचना-संसार पर प्रतिक्रिया करते हुए उन्हें आम आदमी का प्रतिनिधित्व करने वाला सृजनधर्मी बताया।
मारोह में साफा बांधकर तथा शॉल व श्रीफल भेंट कर महेंद्र नेह का सम्मान किया गया। आरंभ में प्रयास संस्थान के संरक्षक वयोवृद्ध बैजनाथ पंवार ने स्वागत भाषण दिया। सहायक जनसंपर्क अधिकारी एवं साहित्यकार कुमार अजय ने सम्मानित साहित्यकार का परिचय दिया। प्रयास संस्थान के अध्यक्ष दुलाराम सहारण, रामगोपाल बहड़, शेरसिंह बीदावत, ओम सारस्वत, उम्मेद गोठवाल अतिथियो ंका माल्यार्पण कर स्वागत किया। संचालन साहित्यकार कमल शर्मा ने किया। साहित्यकार दुलाराम सहारण ने आभार जताया। इस मौके पर नगरश्री के श्यामसुंदर शर्मा, हिंदी साहित्य संसद के शिवकुमार मधुप, कादंबिनी क्लब के राजेंद्र शर्मा, शोभाराम बणीरोत, सुरेंद्र पारीक रोहित, रामावतार साथी, शंकर झकनाड़िया सहित बड़ी संख्या में शहर के प्रबुद्ध साहित्यप्रेमी मौजूद थे। 
......... रिपोर्ट और चित्र श्री दूला राम सहारण, चूरू (राजस्थान) के सौजन्य से