वकालत में 40 साल से ऊपर हो गए हैं। कॉलेज छोड़े भी लगभग इतना ही अरसा हो गया। वकालत के शुरू में हाथ से बहुत लिखा। उस वक्त तो दरख्वास्तें और दावे भी हाथ से लिखे जा रहे थे। टाइप की मशीनें आ चुकी थीं। फिर भी हाथ से लिखने का काम बहुत होता था। मैं टाइप कराने के पहले दावे हाथ से लिखता था। कई बार लिखते लिखते बीच में एक पैरा भी गलत हो जाता तो मैं सारे कागज फाड़ कर उसे शुरू से दोबारा लिखने बैठता। कई बार एक ही दावे को इसी तरह तीन-तीन बार शुरू से वापस लिखा। साल 2007 में कंप्यूटर मेरे पल्ले पड़ा। 2008 के आखिर में यह स्थिति हो गई के मैं दावे और अपनी वकालत का लगभग सारा काम अपने कंप्यूटर पर करने लगा। इस तरह लिखना कम हो गया। इसका सीधा असर मेरी हस्तलिपि पर पड़ा। हालांकि अब भी मैं अक्सर अदालत में तुरंत कोई दरख्वास्त देने की जरूरत होती है तो सीधे लेजर पेपर पर हाथ से लिखता हूं और प्रतिलिपियों के लिए उनकी फोटो प्रति करवा लेता हूं। जिस से अभी तक मेरी हस्तलिपि ठीक-ठाक बनी हुई है। हस्तलिपि पर एक बुरा असर बॉल पॉइंट पेन ने भी डाला है। जब तक होल्डर या निब वाले फाउंटेन पेन थे, तब तक हाथ से लिखने का आनंद कुछ और ही था।
उस साल मैंने कॉलेज में दाखिला लिया ही था। कॉलेज उसी इमारत की दूसरी मंजिल पर चलता था जिसके भूतल पर हमारा उच्च माध्यमिक विद्यालय था। स्कूल से पूरी तरह नाता टूट चुका था। बस 15 या 20 ₹ कॉशन मनी के जमा थे। एक दिन कॉलेज में दो पीरियड एकदम खाली थे। उस खाली समय में मैं क्या करूं, यह समझ नहीं आ रहा था। स्कूल में मेरे फूफाजी क्राफ्ट के अध्यापक थे और उन्हें प्रयोगशाला के लिए एक बड़ा सा हॉल और एक कमरा मिला हुआ था। मैं समय गुजारने उनके पास उसी प्रयोगशाला में पहुंच गया। अचानक मुझे याद आया कि मेरी कॉशन मनी अभी तक मैंने स्कूल से वापस नहीं ली है। तो सोचा, एक दरख्वास्त लिखकर दे दूं तो इतना समय है कि कॉशन मनी आज ही वापस मिल जाएगी।
प्रयोगशाला में रखी हुई छात्रों की पुरानी कॉपियों से एक कागज निकाला। कागज सामान्य साइज से बहुत बड़ा था, जैसा प्रैक्टिकल वाली कापियों का होता है। मुझे उसमें मुश्किल से 4 पंक्तियों की दरख्वास्त लिखनी थी। उस हिसाब से कागज बहुत बड़ा था। मैंने ऊपर, दाएं, बाएं ठीक-ठाक हाशिया छोड़ा। जिस से दरख्वास्त ठीक बीच में लिखी जाए और दरख्वास्त लिखना शुरू किया। हस्तलिपि ठीक-ठाक थी और भाषा भी अच्छी। मैं दरख्वास्त लिख कर सीधे स्कूल प्रिंसिपल के पास पहुंचा। वे अपने दफ्तर में अकेले थे। उन्होंने दरखास्त देखी, पूरी पढ़ी और आंखों से चश्मा हटा कर सीधे मेरी आँखों में देखते हुए पूछा - यह दरख्वास्त तुमने लिखी है?
मैंने कहा- बिल्कुल मैंने ही लिखी है।
उन्होंने दोबारा पूछा और उन्हेंं मुझ से फिर वही जवाब मिला।
तब तक पीरियड खत्म होने की घंटी बज गई और अध्यापक खत्म हुए पीरियड की कक्षा के उपस्थिति रजिस्टर रखने और अगली कक्षा के लेने के लिए प्रिंसिपल के कार्यालय में आने लगे। प्रिंसिपल ने एक वरिष्ठ अध्यापक से मेरी दरखास्त दिखाकर कहा- देखिए दास साहब! यह दरख्वास्त इस बच्चे ने लिखी है।
दास साहब ने दरख्वास्त देखकर कहा -मैं इसे जानता हूं। पिछले साल मैं ही इसका कक्षा अध्यापक था। यह इसी ने लिखी है।
उसके बाद प्रिंसिपल साहब ने मेरी दरख्वास्त उनके कार्यालय में आने वाले हर अध्यापक को दिखाई और फिर कहा कि मैं आप लोगों को यह दरख्वास्त इसलिए दिखा रहा हूं कि यह इस बच्चे ने लिखी है। जबकि हमारे स्टाफ में से किसी की भी लिखी हुई इतनी खूबसूरत दरख्वास्त मैंने आज तक नहीं देखी। खैर।
स्टाफ के चले जाने के बाद प्रिंसिपल साहब मुझे लेकर खुद केशियर के पास गए और उसे कहा कि वह तुरंत मेरी कॉशन मनी वापस लौटा दे। इसके बाद वे स्कूल के राउंड पर चले गए। केशियर कोई जरूरी काम कर रहा था। उसने मुझे पूछा- भैया मैं हाथ का काम निपटा कर तुम्हारी कॉशन मनी दे दूंगा, तुम्हें जल्दी तो नहीं है? मैंने उन्हें कहा- मुझे कोई जल्दी नहीं है? आप आराम से दीजिए। कैशियर को अपना काम निपटाने में 15-20 मिनट लग गए। तब तक प्रिंसिपल साहब स्कूल का राउंड लगा कर वापस आ गए। उन्होंने केशियर को लगभग डांटते हुए पूछा, तुमने अभी तक इसकी कॉशन मनी वापस नहीं लौटाई?
वे जवाब देते उसके पहले ही मैंने उन्हें बताया कि मैंने ही इन्हें हाथ का काम निपटा कर देने के लिए कहा था, इसलिए देर हो गई। प्रिंसिपल साहब ने मेरी ओर देखा फिर केशियर को कहा, ठीक है तुम अपना काम कर लो। लेकिन इस बच्चे को ज्यादा देर मत बिठाओ। आगे इसे कॉलेज की क्लास भी अटेंड करनी है। कैशियर ने मुझे अपना काम छोड़ उसी समय प्रिंसिपल साहब के सामने ही कॉशन मनी की राशि मुझे दे दी।
मुझे यह घटना अभी तक भी इसलिए याद है कि अच्छी हस्तलिपि से सुंदर तरीके से लिखे जाने का इससे अच्छा सम्मान मैंने अपने जीवन में फिर कभी नहीं देखा।
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