- डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
राजस्थान
के इतिहास में किसी भी पार्टी की सरकार को कभी उतना बहुमत नहीं मिला,
जितना की वर्तमान भाजपा सरकार को मिला है। इसलिये यहॉं की जनता की शुरू से
ही राज्य सरकार से यही उम्मीदें रही हैं कि वसुन्धरा राजे के नेतृत्व वाली
भाजपा सरकार सभी वर्गों के हितों में कुछ न कुछ क्रान्तिकारी काम अवश्य
उठाएंगी। जिससे राज्य का और राज्य की जनता का चहुँमुखी विकास होगा।
राज्य सरकार लोकसभा चुनाव होने तक तो एक दम शान्त
रही, लोगों को लगा ही नहीं कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हो चुका है,
लेकिन केन्द्र में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलते ही राज्य में भाजपा सरकार के
परिवर्तन की छटा बिखरने लगी है। कुछ मामले इस प्रकार हैं :-
1. बड़े लोगों के लिये मॉल्स में खुलेंगी शराब की दुकानें : पिछले
कार्यकाल में भाजपा की सरकार ने शराब की हजारों नयी दुकानें खोली थी और
देर रात तक शराब की बिक्री विक्री होती थी। जिसके चलते लाखों परिवार बर्बाद
हो गये और अनेकों घर टूट गये। इस स्थिति पर कांग्रेस सरकार ने असफल
नियन्त्रण करने का प्रयास किया था। मगर भाजपा के दुबार सत्ता में आने के
बाद भी राज्य सरकार को इस बात की कोर्इ परवाह नहीं है कि शराब पीने से
लाखों परिवार और घर बर्बाद हो रहे हैं। जनता शराब की दुकानों को बन्द कराने
के लिये सड़क पर उतर कर आये दिन विरोध करती रहती है, फिर भी शराबबन्दी के
बारे में किसी प्रकार का सकारात्मक निर्णय लिया जाना राजस्थान सरकार के
लिये चिन्ता का कारण या विषय नहीं है। इसके विपरीत राजस्थान सरकार का मानना
है कि साधन सम्पन्न, उच्चवर्गीय और उच्च कुलीन लोगों को शराब की दुकानों
पर जाकर और भीड़ में शामिल होकर शराब खरीदने में शर्म, संकोच तथा हीनता का
अनुभव होता है, इस स्थिति को बदलना राज्य सरकार की प्राथमिकता सूची में
गम्भीर चिन्ता का विषय है। इसलिये राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति की
संरक्षक भाजपा की राज्य सरकार ने अपने अधिकारियों को निर्देशित किया है कि
राज्य की राजधानी जयपुर में स्थित सभी मॉल्स में खरीददारी करने के लिये
जाने वाले सम्पन्न, उच्चवर्गीय और उच्च कुलीन लोगों के लिये मॉल्स में ही
शराब खरीदने की व्यवस्था की जावे। जिससेे कि ऐसे लोगों को शराब की दुकानों
पर जाकर शराब खरीदने में होने वाले शर्म, संकोच तथा हीनता से मुक्ति मिल
सके।
2. 7538 लिपिकों भर्ती प्रक्रिया रद्द करके लाखों बेरोजगारों के सपने किये चकनाचूर : गत
वर्ष राजस्थान लोक सेवा आयोग के माध्यम से लिपिकों के 7538 रिक्त पदों पर
भर्ती करने के लिये आवेदन मांगे गये थे, परीक्षा भी हो गयी और परिणाम घोषित
किये जाने का लाखों बेरोजगार लम्बे समय से बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे,
लेकिन भाजपा की बेतहासा बहुमत प्राप्त राज्य सरकार ने इस भर्ती प्रक्रिया
को अन्तिम चरण में रद्द कर दिया है। तर्क दिया गया कि कम्प्यूटर के युग में
बाबुओं की क्या जरूरत है?
इस प्रकार का हृदयहीन तथा निष्ठुर निर्णय लिये जाने
से पूर्व राज्य सरकार ने तनिक भी गौर नहीं किया कि लिपिक भर्ती परीक्षा में
शामिल हुए लाखों बेरोजगारों ने अपने माता-पिता की खूनपसीने की कमार्इ से
कोचिंग सेंटर्स पर महिनों तैयारी करके परीक्षा दी, जिसमें हर एक बेराजगार
को हजारों रुपये का खर्चा वहन करना पड़ा। परीक्षा के लिये आने-जाने और
शैक्षणिक सामग्री में किये गये खर्चे के साथ-साथ बेरोजगारों के अमूल्य समय,
श्रम और जीवन का कम से कम एक वर्ष रसातल में चला गया। यही नहीं राज्य
सरकार के इस निर्णय से लिपिक भर्ती परीक्षा के परिणामों का इन्तजार कर रहे
लाखों अभ्यर्थियों को गहरे सदमें में पहुँचा दिया है। जिससे अनेक प्रकार की
सामाजिक, शारीरिक, मानसिक तथा आपराधिक विकृतियों के जन्मने की सदैव आशंका
बनी रहती है!
3. सचिवालय के 275 पदों पर लिपिकों की भर्ती रद्द : 7538
लिपिकों की भर्ती रद्द करने अगले ही दिन राजस्थान सरकार ने सचिवालय में
275 पदों पर होने वाली क्लर्को की भर्ती भी रद्द कर दी। इस भर्ती के लिए भी
परीक्षा भी हो चुकी है।
4. विधानसभा में भी 36 पदों पर भर्ती रद्द : राजस्थान
विधानसभा में भी पिछली सरकार के समय निकाली गई बाबुओं की भर्ती को भी
राज्य सरकार ने रद्द कर दिया है। विधानसभा में 36 पदों पर भर्ती के लिए
अक्टूबर, 2013 में जगह निकाली थी। अब यह भर्ती नये सिरे से प्रारम्भ की
जाएगी।
5. पिछली सरकार द्वारा मंजूर 61 विभागों में नये सृजित पदों के भरने पर पर भी लगायी रोक : राज्य
की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में राज्य के 61 विभागों को सृजित किये गये
अतिरिक्त पदों पर पदोन्नति की प्रक्रिया पर भाजपा की राज्य सरकार ने रोक
लगा दी है। इसके लिए 28 जून 2013 को अधिसूचना जारी हुई थी। सरकार ने वित्त
विभाग को इसकी समीक्षा के निर्देश दिए हैं।
6. प्रदेश में 25 फीसदी बढ़ेगा टोल टैक्स : अपैल
के प्रथम सप्ताह में समाचार-पत्रों में खबर पढने को मिली थी कि अप्रेल से
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के टोल बूथों पर टोल दरें बढाने का
भाजपा ने विरोध कर रही है। इस बारे में भाजपा की ओर से आंदोलन करने की
चेतावनी भी दी गयी थी। इससे लोगों के मन में एक नयी आस बंधी थी कि यदि
राज्य में भाजपा सरकार आती है तो टोल टैक्स की मार से मुक्ति मिल सकेगी।
लेकिन इसके ठीक विपरीत भाजपा की उक्त घोषणा के मात्र डेढ-दो माह बाद ही
राजस्थान सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रदेश में 25 फीसदी तक तक टोल टैक्स
की दरें बढाने के लिये नयी टोल नीति लागू करने पर राज्य सरकार विचार कर रही
है। निश्चय ही इस सबका भार राज्य की जनता पर पड़ना तय है।
इस प्रकार राजस्थान की भाजपा सरकार की ओर से
राजस्थान की जनता द्वारा प्रदान किये गये प्रबल समर्थन के एवज में आघातिक
और गहरे सदमें में डालने वाले तोहफे प्रदान करना शुरू कर दिया है।
सरकार
के उपरोक्त निर्णयों को लेकर अनेक प्रकार की चर्चाएँ जोरों से चल निकली
हैं। सबसे बड़ी चर्चा तो लिपिकों की भर्ती प्रक्रिया को लेकर है। जिसके बारे
में दो बातें सामने आ रही हैं :-
प्रथम : पिछली सरकार की ओर से लिपिकों को
भर्ती करने में कथित रूप से खुलकर लेनदेन हुआ था, जिसके चलते अफसरों और
सम्बन्धित नेताओं ने जमकर कमाया।
द्वितीय : नयी
सरकार नहीं चाहती कि पिछली सरकार द्वारा निकाली गयी रिक्तियों के पदों को
उसके द्वारा बिना किसी प्रतिफल के भरा जावे। इसलिये सरकार के सूत्र बताते
हैं कि सरकार कुछ समय बाद दबाव बढने पर फिर से लिपिकों की भर्ती निकाल सकती
है। जिसमें फिर से वही सब होना लाजिमी है, जो कथित रूप से पिछली सरकार
द्वारा किया गया था।
इस कारण जानबूझकर और भर्ती प्रक्रिया में शामिल
अभ्यर्थियों के प्रति निष्ठुरता तथा हृदयहीनता दिखाते हुए राज्य सरकार ने
रिक्तियों और भर्ती प्रक्रिया को रद्द कर दिया है। ऐसे में अब हमें निगाह
रखनी होगी कि आगे-आगे होता है क्या?
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