अब 'पप्पू' पप्पू नहीं रहा। वह
जवान भी हो गया है और समझदार भी। समझदार भी इतना कि उस की मज़ाक बनाने के
चक्कर में अच्छे-अच्छे समझदार खुद-ब-खुद मूर्ख बने घूम रहे हैं। विज्ञान
भवन में हुए दलित अधिकार सम्मेलन में पप्पू ने भौतिकी के 'एस्केप वेलोसिटी'
के सिद्धान्त को दलित मुक्ति के साथ जोड़ते हुए अपनी बात रखी और पृथ्वी और
बृहस्पति ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलने के ‘पलायन वेग’
का उल्लेख किया। बस फिर क्या था। गप्पू समर्थक पप्पू का मज़ाक बनाने में
जुट गए। लगता हैं उन्हें ट्रेनिंग में यही सिखाया गया है कि पप्पू कुछ भी
कहे उस का मज़ाक उड़ाना है। वो सही कहे तो भी और वो गलत कहे तो भी। बस यहीं
वे फिसलन को पक्की सड़क समझ कर फिसल गए और ऐसे फिसले कि संभलने तक का नहीं
बना। ऐसी मूर्खता हुई है कि अब छुपाए नहीं छुपेगी।
पप्पू बोला था-'एयरोनॉटिक्स में 'एस्केप वेलॉसिटी' का कॉन्सेप्ट होता है। मालूम है आपको इस बारे में... बताएंगे आप...? 'एस्केप वेलॉसिटी'
मतलब अगर आपको धरती से स्पेस में जाना है.. अगर आप हमारी धरती में हैं तो
11.2 किलोमीटर प्रति सेंकंड्स आपकी वेलॉसिटी होनी चाहिए। अगर कम होगी तो आप
कितना भी करेंगे आप स्पेस में नहीं जा सकेंगे। ज्यादा होगी तो आप निकल
जाएंगे। तो अब जूपिटर की 'एस्केप वेलॉसिटी'
होती है 60 किलोमीटर प्रति सेकंड्स। अगर कोई जूपिटर पर खड़ा है और उसे
वहां से निकलना होता है तो उसे 60 किलोमीटर प्रति सेकंड्स गति के वेग की
जरूरत होती है। यहां हिंदुस्तान में हमारा जात का कॉन्सेप्ट है। यहां भी 'एस्केप वेलॉसिटी' होती है। अगर आप किसी जात के हैं और अगर आपको सक्सेस पानी है तो आपको भी 'एस्केप वेलॉसिटी' की जरूरत होती है। और दलित समुदाय को इस धरती पर जूपिटर जैसी 'एस्केप वेलॉसिटी' की जरूरत है।‘
पप्पू तो सही बोला। जैसे किसी चीज को किसी ग्रह की गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए एक खास 'पलायन
वेग' की जरूरत होती है, उस से कम वेग होने पर वह चीज वापस उसी ग्रह पर गिर
पड़ती है। उसी तरह दलितों को दलितपन से निकलने के लिए एक 'पलायन वेग' की
जरूरत है। दलित तो समझ गए और समझ जाएंगे, पर जिन्हें उन की
मज़ाक बनाने का काम मिला है, वे न तो किसी को सुनते हैं और न ठीक से पढ़ते
हैं। उन्हें समझ ही न आया कि पप्पू कह क्या रहा है। वह दलितों को सुझा रहा
है कि आप को खुद इतनी ताकत और इच्छाशक्ति पैदा करनी होगी कि अपनी जाति के
पिछड़ेपन से निकल सके, दुनिया को अपनी चमक दिखा कर कायल कर सकें।
चलो
कोई नहीं। गप्पू सम्प्रदाय ऐसी मूर्खताएं करता रहा है, करता रहता है और
आगे भी करता रहेगा। उन के ऐसे प्रहसन अभी अगले साल तक खूब दिखाई पड़ेंगे।
आप चाहें तो इन प्रहसनों को लाफ्टर शोज से रिप्लेस कर सकते हैं। पप्पू तो
पप्पू न रहा पर गप्पू अभी तक भी गप्पू बने हुए हैं।
4 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कुछ खास है हम सभी में - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
चलिए इसी बहाने ही विज्ञान की अवधारणायें लोकप्रिय हो जायं
मोदी समर्थक हूँ इसलिए गप्पू जी तो नहीं कहूँगा पर एक बात जरुर कहूँगा :- कि मोदी के सोशियल साइट्स पर सक्रीय अति-उत्साही समर्थक गुजरात रूपी धरती से दिल्ली रूपी स्पेस में जाने के लिए मोदी को जो वेलॉसिटी चाहिए वो लोगों से बिना उनकी बात समझे, पढ़े लड़ झगड़कर ये वेलॉसिटी जरुर कम कर देंगे जो उन्हें गुजरात से दिल्ली ले जाने के लिए जरुरी है !!
पर जिन्हें उन की मज़ाक बनाने का काम मिला है, वे न तो किसी को सुनते हैं और न ठीक से पढ़ते हैं।
@ १०० % सही !!
मोदी समर्थक होने के बावजूद दिन में दो चार अति-उत्साही अंधे मोदी समर्थकों से कांग्रेसी होने का ख़िताब पाता हूँ तो मोदी विरोधियों का क्या हाल होता होगा ?
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