@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: सही और विज्ञान सम्मत वर्षारंभ आज बैसाखी के दिन

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

सही और विज्ञान सम्मत वर्षारंभ आज बैसाखी के दिन

भारतवर्ष एक ऐसा देश है जिस में आप नववर्ष की शुभकामनाएँ देते देते थक सकते हैं। लगभग हर माह कम से कम एक नया वर्ष अवश्य हो ही जाता है। उस का कारण यह भी है कि यही दुनिया का एक मात्र भूभाग है जहाँ दुनिया के विभिन्न भागों से लोग पहुँचे और यहीं के हो कर रह गए। उन्हों ने इस देश की संस्कृति को अपनाया तो कुछ न कुछ वह भी जोड़ा जो वे लोग साथ ले कर आए थे। वस्तुतः भारत वसुधैव कुटुम्बकम उक्ति को चरितार्थ करता है। 
र्ष का संबंध सीधे सीधे सौर गणित से है। धरती जितने समय में सूर्य का एक चक्कर पूरा लगा लेती है उसी कालावधि को हम वर्ष कहते हैं। लेकिन काल की न तो यह सब से बड़ी इकाई है और न ही सब से छोटी। इस से छोटी इकाई माह है, जिस का संबंध चंद्रमा द्वारा पृथ्वी का एक चक्र पूरा करने से है। लेकिन दृश्य रूप में चंद्रमा एक दिन गायब हो जाता है और फि्र से एक पतली सी लकीर के रूप में सांयकालीन आकाश में पतली सी चांदी की लकीर के रूप में दिखाई देता है। इसे हम नवचंद्र कहते हैं। एक दिन एक क्षण के लिए पृथ्वी से पूरा दिखाई देता है जिसे हम पूर्ण चंद्र कहते हैं।  इस तरह से नव चंद्र से नव चंद्र तक की अथवा पूर्ण चंद्र से पूर्ण चंद्र तक की अवधि को हम मास या माह कहते हैं। इस से छोटी इकाई दिन है, जिस का संबंध पृथ्वी का अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा कर लेने से है। फिर इस के दो भाग दिवस और रात्रि हैं। उन्हें फिर से प्रहरों, घड़ियों, पलों और विपलों में अथवा घंटों, मिनटों और सेकण्डों में विभाजित किया गया है।
ब इन में ताल मेल करने का प्रयत्न किया गया अर्थात वर्ष, मास और दिवस के बीच। एक वर्ष की कालावधि में 12 मास होते हैं। लेकिन उस के बाद भी लगभग 10 दिनों का अंतराल छूट जाता है।  इस तरह तीन वर्ष में लगभग एक माह अतिरिक्त हो जाता है। इस का समायोजन करने के लिए भारतीय पद्धति में प्रत्येक तीन वर्ष में एक वर्ष तेरह माह का हो जाता है। लेकिन सौर वर्ष को जो वास्तव में 365 दिन 6 घंटे 9 मिनट 10 सैकण्ड का होता है को बारह समान भागों में बाँटने का कार्य बहुत महत्वपूर्ण था। जब पृथ्वी सूर्य का एक चक्र पूरा करती है तो सूर्य आकाश की परिधि के 360 अंशों की यात्रा करती है। इस खगोल को हम ने 30-30 अंशों के 12 बराबर हिस्सों में बाँटा। प्रत्येक हिस्से को उस भाग में पड़ने वाले तारों द्वारा बनाई गई आकृति के आधार पर नाम दे दिया। इन्हीं आकृतियों को हम राशियाँ या तारामंडल कहते हैं। मेष आदि राशियाँ ये ही तारामंडल हैं। जब एक राशिखंड से दूसरे राशि खंड में सूर्य प्रवेश करता है तो हम उसे संक्रांति कहते हैं। इस तरह पूरे एक वर्ष में सूर्य 12 बार एक राशि से दूसरी राशि में संक्रांति करता है। प्रत्येक संक्रांति को हम ने उस राशि का नाम दिया जिस राशि में सूर्य प्रवेश करता है। 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो हम उस दिन को मकर संक्रांति का दिन कहते हैं। इस तरह कुल 12 संक्रांतियाँ होती है।
क्यों कि वर्ष का संबंध पृथ्वी द्वारा सूर्य का एक चक्र पूरा कर लेने से है जो हमें सूर्य के खगोल में यात्रा करते हुए महसूस होता है। इस कारण से हमें वर्ष का आरंभ भी सूर्य कि इस आभासी यात्रा के किसी महत्वपूर्ण पड़ाव से होना चाहिए।  राशि चक्र का आरंभ हम मेष राशि से मानते हैं और स्वाभाविक और तर्क संगत बात यह है कि सूर्य के इस मेष राशि में प्रवेश से हमें वर्षारंभ मानना चाहिए।  सूर्य के मेष राशि में प्रवेश को हम मेष की संक्रांति कहते हैं। यह दिन भारत में विशेष रूप से पंजाब में जो भारत की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता सिंधुघाटी सभ्यता का केन्द्र रहा है बैसाखी के रूप में हर वर्ष 13 अप्रेल को मनाया जाता है। इसी 13 अप्रेल को हम वैज्ञानिक रूप से सही वर्षारंभ कह सकते हैं। यह मौसम भी  नववर्ष के लिए आनन्द दायक है। जब फसलें कट कर किसान के घर आती हैं। किसान इन दिनों समृद्धि का अहसास करता है। उन घरों में उल्लास का वातावरण रहता है। इन्ही दिन अधिकांश वृक्षों में कोंपले फूट कर नए पत्ते आते हैं। तरह तरह के रंगों के फूलों से धरती दुलहन की भांति सजी होती है। सही में नया वर्ष तो इसी दिन आरंभ होता है। आज फिर यही दिन है। बैसाखी का दिन।
बैसाखी के इस खुशनुमा दिन पर मैं आप को फिर से नव वर्ष की शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ। आज का यह दिन इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि आज ही के दिन जलियाँवाला बाग में सैंकड़ों निहत्थे लोगों ने आजादी के लिए लड़ने की कसम खाते हुए अंग्रेजों की बन्दूकों का सामना किया और शहीद हो गए। इसलिए पहले शहीदों को

श्रद्धांजलि!  
 

 फिर शुभकामनाएँ....

बैसाखी, 13 अप्रेल से आरंभ होने वाला यह वर्ष भारतवर्ष के जनगण के लिए मंगलमय हो !

8 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हमारे त्योहारों का सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व सच में विचारणीय है ..... सुंदर संतुलित विवेचन

Sanjay Karere ने कहा…

काफी रोचक अंदाज में बात कही द्विवेदी जी. अपना साल भी वैशाखी को ही शुरू होता है. :)

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह बहुत मेहनत से लिखा गया है यह सुंदर लेख

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत ही सरल और रोचक तरीके से आपने विषय की प्रस्तुति की -
कृष्ण ने गीता में खुद को माहों में अगहन किन्तु ऋतुओं में बसंत कहा है -इस अंतर पर भी कभी व्याख्या हो जाय

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अपनी संस्कृति बिसराने योग्य नहीं थी.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
संस्कृति कभी बिसराने लायक नहीं होती। लेकिन संस्कृति में मिथक जोड़े जाते हैं फिर उसे धर्म की उपज या आनुषंगिक प्रकट किया जाने लगता है। लगता है संस्कृति का धर्म से परे कोई अस्तित्व नहीं है। परिणामतः संस्कृति को ग्रहण लग जाता है। वह खो जाती है। लोगों को धर्म स्मरण रहता है और उसे ही वे संस्कृति समझने लगते हैं।

Raravi ने कहा…

Happy new year to you.
Thank you per educating us about this important day.

Gyan Darpan ने कहा…

बहुत ही बढ़िया तरीके से वैज्ञानिक जानकारी दी आपने|