यूँ तो मुझे सब लोग कहते हैं कि मैं बहुत सुस्त वकील हूँ। पर मैं जानता हूँ कि जल्दबाजी का नतीजा अच्छा नहीं होता। अभी कुछ दिन पहले एक मुकदमे में सफलता हासिल हुई। मुवक्किल बहुत प्रसन्न थे। मिठाइयों के डब्बे और कोटा की मशहूर कचौड़ियाँ ले कर अदालत पहुँचे। उन्हों ने मुझे ही नहीं, मेरे सभी सहयोगियों, क्लर्कों और अदालत के चाय क्लब के दोस्तों को नवाजा। वे इतना लाए थे कि सब का मन भरपूर हो गया। मिठाइयों और कचौड़ियों का स्वाद ले कर कॉफी की चुस्कियाँ ली गईं। फिर वे हमें पान की दुकान तक ले चले। रास्ते में मैं ने उन्हें कहा कि लोग मुझे बहुत सुस्त वकील कहते हैं। तो उन की प्रतिक्रिया थी कि वे सही कहते हैं। लेकिन मैं उस के साथ एक बात और जोड़ना चाहूंगा कि आप मनचाहा परिणाम भी लेते हैं जो अधिक महत्वपूर्ण है। सही है कि जब हम कोई काम पूरा जाँच परख कर करेंगे तो उस का मनचाहा परिणाम भी मिलेगा और इस सब में समय लगना तो स्वाभाविक है। लेकिन कभी कभी मेरे जैसा व्यक्ति भी गलती कर ही बैठता है।
यह गलती तब होती है जब आप खुद पर जरूरत से अधिक विश्वास कर बैठते हैं। कई बार सुरक्षा को ताक पर रख देते हैं। पिछले शनिवार मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। रात के कोई सवा बारह बजे होंगे। घड़ियाँ और कलेंडर तारीख बदल चुके थे। मैं भी अपने काम का समापन कर सोने के लिए जा ही रहा था। कंप्यूटर बन्द करने के पहले आदतन मेल बॉक्स देखने लगा तो वहाँ एक मेल बेटे की आईडी से आई हुई थी। मैं ने सोचा जरूर कुछ महत्वपूर्ण संदेश होगा। मेल को खोला तो वहाँ केवल एक लिंक मिला। तुरंत उस पर चटका लगा दिया। एक जाल पृष्ठ खुला। वहाँ कोई सोफ्टवेयर डाउनलोड करने की सुविधा थी। आनन फानन में मैने उसे डाउनलोड भी कर डाला और जैसा कि अक्सर होता है एक एक्जीक्यूटेबल फाइल हमारे कंप्यूटर में सुरक्षित हो गई। इतना करने के बीच में एक बार यह चेतावनी भी मिली कि यह कोई मेलवेयर भी हो सकता है। मैं ने उस की भी अनदेखी कर डाली। इस बात का विश्वास था कि बेटे ने भेजा है तो कोई असुरक्षित वस्तु हो ही नहीं सकती। फिर इस तरह के मेलवेयर की चेतावनी पिछले दिनों मुझे मेरी ही वेबसाइट के बारे में इतनी बार मिली है कि मैं उस का आदी हो चुका था। खैर!
इतना करने में केवल दस मिनट खर्च हुए। मैंने उसे तुरंत ही एक्जीक्यूट कर दिया और वह जो भी सोफ्टवेयर था वह इंस्टॉल हो गया। जैसे ही वह इंस्टाल हुआ उस ने कंप्यूटर को स्केन कर डाला और कुछ ही मिनटों में एक सौ से अधिक मेलवेयर फाइलें तलाश कर दीं। फिर कहने लगा इन फाइलों को हटाने और दुरुस्त करने के लिए मुझे उस के निर्माता से पूरा पैकेज खरीदना चाहिए जिस की कीमत थी 98 डालर। यह तो मेरे बस में न था कि कंप्यूटर की सुरक्षा के लिए पाँच हजार रुपए खर्च किए जाएँ। । मुझे संदेह होने लगा कि यह सब बेटे की नहीं बल्कि बेटे के नाम से किसी और की करतूत है। मैं ने उस सोफ्टवेयर को अनइंस्टॉल करना चाहा। लेकिन यह संभव नहीं था। मैं ने सोचा सुबह यह सब बेटे से ही पूछा जाएगा। मैं ने कंप्यूटर बंद किया और जा कर सो गया।
सुबह उठा कंप्यूटर संभाला। आदतन सब से पहले मेल जाँचने के लिए ब्राउजर खोला तो वह पहली मेल देखते देखते क्रेश हो गया। वह बार बार ऐसा ही करने लगा। एक मेल पढना भी संभव नहीं रहा। दूसरे दो ब्राउजर्स के साथ कोशिश की तो उन का भी वही हाल हुआ। हर बार वही रात को इंस्टॉल किया हुआ सोफ्टवेयर सर पर बंदूक तान कर कह रहा था निकाल पाँच हजार मैं तेरे कंप्यूटर को ठीक कर दूंगा। मैं सोच रहा था यह कौन आफत आ पड़ी? एक तो ठीक से चल रहा कंप्यूटर का इस ने कबाड़ा कर दिया और अब ब्लेक मेल कर रहा है। मेरा बस होता तो इसे घर में घुसने ही न देता। पर मैं बेटे के नाम से आए व्यक्ति को कम से कम ड्राइंगरूम तक तो आने से भी कैसे रोकता?
मैं अपने बेटे पर कैसे अविश्वास कर सकता था? लेकिन मुझे बेटे के नाम से मिली वस्तु पर जरूर अविश्वास करना चाहिए था। क्यों कि विश्वासघात वहीं होता है जहाँ घोर विश्वास होता है। उस वस्तु के बारे में मिली चेतावनी को अनदेखा नहीं करना चाहिए था। सब से बढ़ कर तो यह कि किसी भी काम को बहुत देख-परख कर सोच समझ कर काम करने की आदत किसी भी विश्वास के तहत कभी त्यागनी नहीं चाहिए।
19 टिप्पणियां:
देर आयद दुरुस्त आयद. :)
सीख मिली - बहुत अच्छी.मैं भी ग़लत चीजों का विश्वास कर बैठती हूँ ,फिर बेटे की सलाह काम आती है !
सजग रहना ज़रूरी है..... कई बार मैं ऐसा ही कर बैठती हूँ.....
मैं ने उन्हें कहा कि लोग मुझे बहुत चु्स्त वकील कहते हैं-
इसे भी सुस्त कर लें प्रभु- तो तारतम्य बैठ जायेगा बात का... :)
विश्वासघात वहीं होता है जहाँ घोर विश्वास होता है
हर घटना कुछ न कुछ सीख दे ही जाती है
कल या परसों में मैं आपका ब्लॉग पढने के लिए जैसे खोलता मेरा गूगल क्रोम बाउजर चिल्ला पड़ता -मालवेयर मालवेयर ...
बंगलौर से भी एक ब्लॉगर की पोस्ट में यही हो रहा था ..थक हारकर मैंने उन पोस्ट को पढ़ा ही नहीं ...आप भी बड़े अधीर आदमी हैं ,आयी मीन एक अनुभवी वकील होते हुए भी :)
बच्चों पर विश्वास और तकनीक पर संदेह बना रहना चाहिए.
ऐसी समस्या आने पर फोर्मेट करने के बजाय आप अपने कंप्यूटर को एक दिन पहले की स्थिति में ले जाने के लिए रिस्टोर कर सकते थे जिससे आपका समय भी बचता और आप उस घुसपैठिये से भी निजात पा जाते|
सिस्टम री-स्टोर : कंप्यूटर को पीछे की स्थिति में ले जाना
जल्दबाजी सदा ही घातक होती है, कई बार हम भी फँस चुके हैं।
हा हा हा ! १२ बजे के बाद कप्यूटर पर बैठोगे तो यही होगा . हालाँकि इससे पहले की भी कोई गारंटी नहीं .
वास्तव में बहुत सतर्क रहने की ज़रुरत है .अच्छा सचेत किया है .
अंत भला तो सब भला :-)
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
--
अन्तर्राष्ट्रीय मूर्खता दिवस की अग्रिम बधायी स्वीकार करें!
सही कहा, ओवर कन्फ़ि्डेन्स में ही सब गड़बड़ हो जाता है।
मक्खन पूछ रहा है...
अगर कभी गांठ खोलना चाहें, खुल तो जाएगी न...
जय हिंद...
आपकी इस पोस्ट से फायदा हुआ है , माइक्रोसोफ्ट सीक्योरिटी असेंशियल हमने भी इंस्टाल कर लिया है ! बढ़िया पोस्ट के लिए आभार आपका !
गुरुवर जी, आपने सही कहा है कि विश्वासघात वहीं होता है जहाँ घोर विश्वास होता है. नीचे दिया लिंक जरुर देखे -http://www.delhi.gov.in/wps/wcm/connect/doit_dsec/Delhi+State+Election+Commission/Our+Services/Affidavit+2012/South+Delhi/Ward+128-+Binda+pur/ और http://kaimra.blogspot.in/ के साथ ही http://www.facebook.com/kaimara200
http://www.facebook.com/groups/Bindapur/
http://www.facebook.com/pages/Bindapur-Ward/119194294871511
http://kaimra.blogspot.in/
आपके कमप्यूटर वाला हाल कल हमारे लैपटाप का हो गया है। फ़ार्मेट करने का आप्शन नहीं है, है कोई गजब का एंटीवायरेस जो हमारी मदद कर सके?
आपका यह अनुभव कइ लोगों के काम आएगा।
इस पोस्ट से एक सूत्र वाक्य मिला -
विश्वासघात वहीं होता है जहाँ घोर विश्वास होता है।
सुन्दर।
एक टिप्पणी भेजें