@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: नज़ूमियत

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

नज़ूमियत

दादाजी, पिताजी, नानाजी, मामाजी, मौसाजी, चाचाजी सभी अंशकालिक ज्योतिषी रहे हैं। मुझे भी स्कूल जाने की उम्र के पहले राशियों, ग्रहों, नक्षत्रों, महिनों आदि के नाम। गिनती और पहाड़ों के साथ रटने पड़े। बारह की उम्र होते होते पंचांग देखना सिखाया गया। फिर जन्मपत्रिका बनाना और पढ़ना सिखाने का समय आ गया। जहां तक काल गणना का मामला था। यह सब पूरी तरह वैज्ञानिक लगता था और सीखने में आनंद आता था। लेकिन जब फलित का  चक्कर शुरू हुआ तो हम चक्कर खा गए। किसी राशि का क्या स्वभाव है यह कैसे जाना गया? सूर्य सिंह राशि का ही स्वामी क्यों है और चंद्रमा कर्क राशि का ही क्यों? बाकी सभी ग्रह दो दो राशियों के स्वामी क्यों हैं? ये राहु और केतु आमने सामने ही क्यों रहते हैं? ये किसी राशि के स्वामी क्यों न हुए? फिर प्लूटो और नेप्च्यून का क्या हुआ? इन का उत्तर मुझे ज्योतिष सिखाने वालों के पास नहीं था। आज तक कोई दे भी नहीं सका। हमारी ज्योतिष की पढ़ाई वहीं अटक गई। फलित ज्योतिष केवल अटकल लगने लगी जो वास्तव में है भी। पर मेरे बुजुर्गों में एक खास बात थी कि ज्योतिष उन की रोजी-रोटी या घर भरने का साधन नहीं था। दादाजी दोनों नवरात्र में अत्यन्त कड़े व्रत रखते थे। मैं ने उस का कारण पूछा तो बताया कि ज्योतिष का काम करते हैं तो बहुत मिथ्या भाषण करना पड़ता है, उस का प्रायश्चित करता हूँ। मैं ने बहुत ध्यान से उन के ज्योतिष कर्म को देखा तो पता लगा कि वे वास्तव में एक अच्छे काउंसलर का काम कर रहे थे। अपने आप पर से विश्वास खो देने वाले व्यक्तियों और नाना प्रकार की चिन्ताओं से ग्रस्त लोगों को वे ज्योतिष के माध्यम से विश्वास दिलाते थे कि बुरा समय गुजर जाएगा, अच्छा भी आएगा। बस प्रयास में कमी मत रखो। लेकिन आज देखता हूँ कि जो भी इस अविद्या का प्रयोग कर रहा है वह लोगों को उल्लू बनाने और पिटे पिटाए लोगों की जेब ढीली करने में कर रहा तो मन वितृष्णा से भर उठता है। अब वक्त आ गया है कि इस अविद्या के सारे छल-छद्म का पर्दा फाश हो जाना चाहिए।

सा नहीं है कि इस अविद्या का पर्दा-फाश लोग पहले नहीं करते थे। हर युग में नजूमियों की कलई खोलने वालों की कमी नहीं रही है। मैं ने पिछले दिनों आप को बताया था कि मैं चार नई किताबें खरीद कर लाया हूँ। इन दिनों उन में से एक 'बर्नियर की भारत यात्रा' पढ़ रहा हूँ। फ्रेंक्विस बर्नियर नाम के ये महाशय एक फ्रेंच चिकित्सक थे और शाहजहाँ के अंतिम काल तथा औरंगजेब के उत्थानकाल में भारत में बादशाही दरबार के नजदीक रहे। वे 12 वर्ष तक औरंगजेब के निजि चिकित्सक रहे। उन्हों ने अपनी इस किताब में कुछ मनोरंजक किस्से नजूमियत के बारे में लिखें हैं।  शाहजहाँ के कैद हो जाने और औरंगजेब के गद्दीनशीन हो जाने के बाद के दिनों की बात करते हुए वे लिखते हैं .....

..... एशिया के अधिकांश लोग ज्योतिष के ऐसे विश्वासी हैं कि उन की समझ में संसार की कोई ऐसी बात नहीं जो नक्षत्रों की चाल पर निर्भर न करती हो और इसी कारण वे प्रत्येक काम में ज्योतिषियों से सलाह लिया करते हैं। यहाँ तक कि ठीक लड़ाई के समय भी जब कि दोनों ओर के सिपाई पंक्तिबद्ध खड़े हो चुके हों, कोई सेनापति अपने ज्योतिषी से मुहूर्त निकलवाए बिना युद्ध नहीं आरंभ करता, ताकि कहीं ऐसा न हो कि किसी अशुभ लग्न में लड़ाई आरंभ कर दी जाए। बल्कि ज्योतिषियों से पूछे बिना कोई व्यक्ति सेनापति के पद पर भी नियुक्त नहीं किया जाता। बना उन की आज्ञा के न तो विवाह हो सकता है, न कहीं की यात्रा की जा सकती है, बल्कि छोटे छोटे काम भी उन से पूछ कर किए जाते हैं, जैसे लौंडी गुलाम खरीदना या नए कपड़े पहनना इत्यादि। इस विश्वास ने लोगों को ऐसे कष्ट में डाल रखा है और इस के ऐसे ऐसे बुरे परिणाम हो जाते हैं कि मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि अब तक लोग कैसे पहले ही की तरह इस विषय में विश्वासी बने हुए हैं क्यों कि सरकारी या बेसरकारी, प्रकट या अप्रकट, कैसा ही प्रस्ताव हो उस से ज्योतिषी को सूचित करना आवश्यक होता है।

ह घटना जिस का मैं उल्लेख करना चाहता हूँ यह है कि खास बादशाही मुसलमान ज्योतिषी (नजूमी) अकस्मात जल में गिर पड़ा और डूब कर मर गया। इस शोकजनक घटना से दरबार में बड़ा विस्मय फैला और इन नजूमियों की प्रसिद्धि में जो कि भविष्य की बातें जानने वाले माने जाते हैं बहुत धक्का लगा। यह व्यक्ति सदैव बादशाह और उस के दरबारियों के लिए मुहुर्त निकाला करता था। अतएव उस के इस तरह प्राण दे देने से लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि ऐसा अभ्यस्त विद्वान जो वर्षों तक दूसरे के भविष्य मे होने वाली अच्छी अच्छी बातें बतलाता हो उसी आपत्ति से जो स्वयं उस पर आने वाली थी परिचित न हो सका? इस पर लोग यह कहने लगे कि यूरोप में जहाँ विद्या की बहुत चर्चा है ज्योतिषियों और भविष्यवादियों को लोग धोखेबाज और झूठा समझते हैं और इस विद्या पर विश्वास नहीं करते, वरन यह जानते हैं कि धूर्त लोगों ने बड़े आदमियों के दरबार तक पहुँचने और उन को अपना ग्राहक बनाने के लिए यह ढंग रच रखा है। 

न्हीं दिनों ईरान की एक और ऐसी ही घटना का भी बर्नियर ने उल्लेख किया है, लेकिन उस का उल्लेख कल, आज वैसे ही पोस्ट बहुत लंबी हो गयी है।   

13 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

प्रतीक्षा है.

Neeraj Rohilla ने कहा…

दिनेशजी,
इस पोस्ट को लिखने के लिये बहुत आभार।
जब हम बच्चे थे तो अक्सर ही पुरानी पीढी के लोगों से सुनने को मिल जाया करता था कि हमारी तो जनमपत्री है ही नहीं या फ़िर बिना पत्री मिलाये ही विवाह हो गया। मेरे माता पिता का विवाह बिना जन्मपत्री मिलाये हुआ जिसका ताना आज भी दोनो एक दूसरे को मौके-बेमौके देते रहते हैं कि अगर पहले पत्री मिला ली होती तो दोनो बच जाते, वैसे पत्री उनकी आज तक नहीं बनी है।

लेकिन आज के दौर में विवाह के दौरान इस जन्मपत्री और कुंडली साफ़्टवेयर ने आतंक मचा रखा है। लडका/लडकी देख लिया, परिवार की पूरी खबर है, सब कुछ बढिया है लेकिन अरे ये क्या पत्री नहीं मिल रही है। कौन समझाये कि पहले जब विवाह सम्बन्ध मात्र किसी समबन्धी की सलाह पर बन जाते थे तो शायद पत्री का मिलान मन को संतोष देता होगा लेकिन...खैर जाने दीजिये...

इसके अलावा संगीताजी ने भी पहले फ़लित ज्योतिष के बारे में कई भ्रमों को दूर किया और कहा कि गत्यात्मक ज्योतिष अधिक वैज्ञानिक है। भाई, ग्रहों की गणना तो पहले भी गति के आधार पर होती चली आ रही है, उसमें नया क्या है? लेकिन हां, उससे पहले शायद गत्यात्मक ज्योतिष के आधार पर किसी ने शेयर बाजार, क्रिकेट मैच की पहली और दूसरी ईनिंग और सरकारों की भविष्यवाणी शायद ही इतने वैज्ञानिक तरीके से की हो। संगीताजी: असहमति के लिये पहले से ही माफ़ी मांग लेता हूँ, इसे व्यक्तिगत द्वेष कतई न समझा जाये।

Ashish Shrivastava ने कहा…

ज्योतिष अर्थात पंचांग गणना पूर्णत: वैज्ञानिक है। ग्रह, नक्षत्रो के उदय और अस्त होने की गणना, किसी ग्रह के किसी विशेष नक्षत्र मे उदय और अस्त होने की गणना ज्यामिती और गणित के आधार पर होती है। हमारे पुराने ज्योतिषी खगोल शास्त्र(Astronomy) के ज्ञाता थे, फलीत ज्योतिष या गत्यात्मक ज्योतिष (Astrology) के नही।

लेकिन इसके आधार पर किसी व्यक्ति या समाज या देश के भविष्य का अनुमान लगाना अंधविश्वास के अतिरिक्त कुछ नही है।

मै Astonomy मे पूरा विश्वास करता हूं, Astrology मे बिलकुल नही।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम गृहण में विश्वास करते हैं ग्रहण में नहीं...

उम्मतें ने कहा…

उपवास आदि का एक और कारण पता चला :)

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

कर्मयोगियों का रास्ता नहीं है यूं इधर उधर बगलें झांकना ☺

Gyan Darpan ने कहा…

जहां तक काल गणना का मामला था। यह सब पूरी तरह वैज्ञानिक लगता था और सीखने में आनंद आता था। लेकिन जब फलित का चक्कर शुरू हुआ तो हम चक्कर खा गए।

@ कॉल गणना की इस वैज्ञानिक पद्दति को अपना पेट भरने के चक्कर में पंडावादियों ने फलित गणित से इस शानदार व काम के शास्त्र को जोड़कर भविष्य बताने का धंधा कर इसे आम लोगों की नजर में अंधविश्वासी बना दिया|

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

रोज़ी रोटी की तो क्या यहां हलवा पूरी की भी कोई समस्या नहीं है
नज्म सितारे को कहते हैं और नूजूमी उसे जो सितारों की चाल से वाक़िफ़ हो।
सितारों की चाल के असरात ज़मीन की आबो हवा पर तो पड़ते ही हैं। शायद इसी से लोगों ने समझा हो कि हमारी ज़िंदगी के हालात पर भी सितारों की चाल का असर पड़ता है।
कुछ हमने भी यार दोस्तों के हाथों की लकीरें देखी हैं और इसी दौरान मनोविज्ञान से भी परिचित हुए।
कोई आदमी सितारों और उनकी कुंडलियों को न भी जानता हो लेकिन वह इंसान के मनोविज्ञान को जानता हो तो वह इस देश में ऐश के साथ बसर कर सकता है।
सच बोलने वाले का यहां जीना दुश्वार है लेकिन मिथ्याभाषण करने वाला राजा की तरह सम्मान पाता है।

ख़ैर, अपने प्रयोग के दौरान हमने यह जाना है कि लोग मुसीबत में हैं और उन्हें उससे मुक्ति चाहिए। इसी तलाश में आदमी हर तरफ़ जाता है और इसी दुख से मुक्ति की तलाश में वह अपना हाथ दिखाने या अपनी कुंडली बंचवाने आएगा।
1.कुंवारी को उत्तम वर चाहिए,
2.कुंवारे को रोज़गार चाहिए, उसके लिए लड़कियां बहुत हैं।
3. शादीशुदा औरत को पुत्र चाहिए।
4. बुढ़िया को अपनी बहू अपने वश में चाहिए।
5. बीमार को शिफ़ा अर्थात आरोग्य चाहिए।

बहरहाल जिस उम्र में जो चाहिए, एक बार आप वह पहचान लीजिए। इसके बाद आप शक्ल देखकर और उसकी बात सुनकर ही भांप जाएंगे कि आपके पास आने वाले को क्या चाहिए ?
अब आप बात यों शुरू करें कि
आप दिल के बहुत अच्छे हैं। सदा दूसरों की मदद करते हैं। किसी का कभी बुरा नहीं चाहते लेकिन फिर भी लोग आपको ग़लत समझते हैं और आपको धोखा देते हैं। आप दूसरों की मदद करते हैं चाहे ख़ुद के लिए कुछ भी न बचे।
उस आदमी का विश्वास आपके प्रति अटूट हो जाएगा कि यह आदमी वास्तव में ही ज्ञानी है। यह जान गया है जैसा कि मैं वास्तव में हूं।
हक़ीक़त यह है कि हरेक आदमी अपने अंदर एक आदर्श व्यक्ति के गुण कल्पित किए हुए है। आपकी बात उसके मन के विचार की तस्दीक़ करती है और बस वह आपका मुरीद हो जाएगा। अब आप उसे कोई क्रिया या कोई जाप आदि बताते रहें जिससे समय बीतता रहे।
समय हर दर्द की दवा है।
जैसे बुख़ार अपनी मियाद पूरी करके ख़ुद ही उतर जाता है या फिर मरीज़ को ही साथ ले जाता है।
ऐसे ही समय के साथ या तो उसका कष्ट भी रूख़सत हो जाएगा या फिर वह ख़ुद ही रूख़सत हो जाएगा।
इस बीच जब कभी वह शिकायत करे कि साहब आपके बताए तरीक़े का पालन करके भी हमारा कष्ट दूर न हुआ तो उसे मन के संकल्प की दृढ़ता और विचारों की शुद्धि पर एक लेक्चर दे दीजिए।
यह एक ऐसा काम है जो पूरा कभी हो नहीं सकता। लिहाज़ा आपके तिलिस्म को आपका मुरीद कभी तोड़ ही नहीं सकता।
भारतीय पंडों का तिलिस्म इस्लाम और विज्ञान के बावजूद आज भी क़ायम है और वे मज़े से छप्पन भोग का आनंद ले रहे हैं।

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जिनां हमारा


आखि़र अल्लामा इक़बाल ने यूं ही तो नहीं कहा है।
(अल्लामा से माफ़ी के साथ , क्योंकि उन्होंने इस मौक़े के लिए यह शेर नहीं कहा था।)

ये चंद पॉइंट हैं जिन्हें जागरूकता के लिए शेयर करना ज़रूरी समझा और इसलिए भी कि अगर कोई रोज़ी रोटी की समस्या से त्रस्त होकर आत्महत्या करने की सोच रहा हो तो प्लीज़ वह ऐसा न करे। रोज़ी रोटी की तो क्या यहां हलवा पूरी की भी कोई समस्या नहीं है। मरने से बेहतर है जीना।
निकम्मेपन से बेहतर है कर्म , अब चाहे वह मनोविज्ञान को समझकर सलाह देना ही क्यों न हो !
हां लोगों की जेब काटने और उनकी आबरू लूटने की नीयत नहीं होनी चाहिए।
आपके बुज़ुर्ग ऐसे नहीं थे यह जानकर अच्छा लगा।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

एक अठन्नी जेब में रखनी चाहिये। जब प्रेडिक्ट करना हो तो सिक्का उछाल लेना चाहिये।

तब वाकई दुर्दिन होगा जब सिक्का आड़ा खड़ा हो जाये!

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

गुणाकर मुळे ने फलित ज्योतिष पर अच्छा लिखा था।
वहीं से कुछ याद है- भारत का सबसे पुराना ज्योतिष ग्रंथ वेदांग ज्योतिष है जिसमें संभवतः 121 श्लोक हैं और किसी में मनुष्य के भविष्य की बात नहीं आती है। फलित की परंपरा बाद में शुरू होती है। शुरू में तो ज्योतिष मात्र खगोलविज्ञान ही था... भास्कराचार्य आदि के समय के बाद भारत में अंधविश्वास और भविष्य बताने का काम शुरू हुआ और देश में ठग गणित, विज्ञान की समृद्ध परंपराओं को डुबाते हुए वर्तमान तक वही स्थिति बनाये हुए है।

Udan Tashtari ने कहा…

रोचक विषय लिया है..जारी रहें- इन्तजार करते हैं.

Asha Joglekar ने कहा…

तो ज्येतिषी झूट भी बोलते थे और प्रायश्चित्त भी करते थे ।
इस संदर्भ में एक कहानी याद आती है कि एक ज्योतिषी ने अपने पुत्र को ज्योतिष का पूरा ज्ञान दिया और फिर उसे अपना काम स्वतंत्र रूप से करने की आज्ञा दी । एक परिवार में जाकर बेटे ने परिवार के मुखिया को बतायाक कि आप के परिवार के सब सदस्या आप के सामने ही मृत्यु को प्राप्त होंगे । मुखिया बडा ही नाराज़ हुआ और उसे निकाल बाहर किया तथा उसके पिता को बुला भेजा । पिता ने स्थिति की नजाकत को समझा और कहा अभी बच्चा है अभी सीख रहा है । पर मैं बताता हूँ कि आपकी उम्र परिवार में सबसे लंबी होगी ।
सत्यंब्रूयात प्रियं ब्रूयात ।

विष्णु बैरागी ने कहा…

रोचक। ऐसी पोस्‍टें आती रहें तो ज्ञान चक्षु खुलते रहेंगे।