शनिवार की सुबह जयपुर निकलना था। सुबह छह बजे महेश जी टैक्सी समेत आ गए। बरसात के कारण सड़क खराब थी। आम तौर पर जो मार्ग साढ़े तीन-चार घंटों में तय हो जाता है उस में साढ़े पाँच घंटे लग गए। हमें कई स्थानों पर जाना था। टैक्सी ड्राइवर टैक्सी को बाहर खड़ा रखता। हर बार जब भी हम काम से निपट कर टैक्सी पर लौटे ड्राइवर टैक्सी पर तैयार मिला। जयपुर से वापसी में हमें रात के साढ़े आठ बज गए। हम दोनों टैक्सी की पिछली सीट पर ही रहे थे। ड्राइवर से अधिक बात करने का अवसर नहीं मिला। लेकिन जैसे ही हम जयपुर से कुछ दूर गए होंगे। महेश जी ने लघुशंका के लिए कार रुकवाई और मुझे आगे बैठने को कहा, शायद उन्हें नींद आ रही थी। मैं आगे की सीट पर ड्राइवर के साथ आ गया।
मैं ने ड्राइवर से बातचीत आरंभ की। वह चूरू का रहने वाला था और कोटा में नौकरी कर रहा था। उस की उम्र यही कोई 20-25 वर्ष के बीच रही होगी। मुझे आश्चर्य हुआ कि वह घर से बहुत दूर नौकरी करता है। उसी ने बताया कि उसे चार हजार रुपए मिलते हैं और वह कोटा में टैक्सी मालिक के साथ ही रहता है, उस का भोजन भी वहीं बनता है। बात ही बात में वह बताने लगा कि जब टैक्सी ले कर काम पर निकलता है तो मालिक उसे पैसा नहीं देता। उसे सवारी से ही लेना पड़ता है चाहे टैक्सी के लिए डी़जल डलवाना हो या उस के अपने खर्चे के लिए हो। मालिक तो उसे खाने के पैसे भी नहीं देता और नाइट के पैसे भी नहीं देता। जब कि पैसेन्जर से वह नाइट के अलग पैसे चार्ज करता है। उस का कहना था कि खाने का जुगाड़ भी पैसेंजर के साथ ही करना होता है या फिर अपनी जेब से देना होता है।
मैं ने उस से पूछा कितने घंटे गाड़ी चलानी पड़ती है। बताने लगा, मैं 72 घंटे तक लगातार गाड़ी चला चुका हूँ। रात को दो बजे गाड़ी ले कर लौटा था। फिर चार बजे उठना पड़ा। अब आप के साथ हूँ। सुबह फिर पाँच बजे अगली बुकिंग पर जाना है। मैं ने कहा तुम बीच में विश्राम नहीं करते? उस का उत्तर था कि जब गाड़ी कहीं खड़ी होती है तो नींद निकाल लेता हूँ। रात को बारह बजे के कुछ देर पहले गाड़ी मिडवे पर एक रेस्टोरेंट पर उस ने खड़ी की। दिन में उसने हमारे साथ ही भोजन किया था। मुझे लगा कि उसे भूख लगने लगी होगी। मैं ने ड्राइवर से पूछा तो कहने लगा वह चाय पिएगा। खाना खाएगा तो शायद नींद आने लगे। मुझे भय लगने लगा, हो सकता है थकान के कारण वह रास्ते में झपकी ले ले। मैं ने महेश जी को जगाया। पूछा कुछ खाना-पीना हो तो खा-पी लो।
महेश जी उतर कर आए तो कहने लगे दाल-रोटी खाएंगे। मैं ने ड्राइवर से फिर पूछा तो कहने लगा - मैं भी खा ही लेता हूँ। रात को दो बज जाएंगे वहाँ खाना मिलेगा नहीं। तीनों के लिए दाल-रोटी आ गई। हम आधे घंटे में वापस गाड़ी में थे। रोटी खा लेने का असर ये हुआ कि मुझे झपकी लगने लगी। मैं जबरन अपनी नींद को रोकता रहा। ड्राइवर से बात करता रहा। उस ने बताया कि वह तीन-चार माह इस गाड़ी पर काम कर लेता है। फिर दो माह के लिए वापस गाँव चला जाता है। दूसरे ड्राइवर तो एक माह से अधिक काम नहीं कर पाते। मैं ने उसे कहा -तुम बीच में अपने मालिक से आराम का समय देने को नहीं कहते। वह बोला -अभी एक सप्ताह पहले कहा था तो मालिक कहने लगा मैं दूसरे ड्राइवर को बुला लेता हूँ, तुम सुबह हिसाब कर जाना। अब मुझे एक माह ही हुआ है वापस लौटे। बस दो माह और काम करूंगा, फिर गाँव जाऊंगा। हो सकता है इस बार इस मालिक के यहाँ काम पर न लौटूँ। रात ढाई बजे गाड़ी मेरे घर पर थी। मैं सोच रहा था -टैक्सी ऑपरेटर कमाने के चक्कर में न केवल ड्राइवरों का शोषण करते हैं बल्कि ड्राइवरों को आराम का पर्याप्त समय न दे कर वे सवारियों की जान के साथ भी खेलते हैं। सही है पैसा कमाने का जुनून और लालच ने लोगों की सोच को ही बंदी बना लिया है।
14 टिप्पणियां:
ऐसे लोभी-लालची लोगों के वजह से ही आम हिन्दुस्तानी गुलामों से भी बदतर जिन्दगी जी रहा है ,इनके लिए इंसानियत नाम की कोई चीज ही नहीं ..ऐसे लोग मृत्यु सज्जा पर भी नोट की याद लिये ही मरते हैं ...?
इंसानियत की दर्दनाक अवस्था है .....
नौकरी का मतलब ही शौषण है | खास कर प्राईवेट नौकरी में |
सच दास्ताँ है ये -दुखद !
हर क्षेत्र में अंधाधुंध पैसा जमा करने का जुनून छाया हुया है चाहे जैसा भी हो बस पैसा आता जाए
क्षोभजनक परिस्थितियाँ हँ
गरीबी भी ऐसे लालची लोगों के लिये वरदान साबित हो रही है। कितनी त्रास्द स्थिती है कि अपने स्वार्थ के लिये लोग मानवता निभाना भी भूल जाते हैं। धन्यवाद।
पैसा तो समझ में आया पर नींद पूरी ना होनें की वज़ह से जो जानें जा सकती हैं उनका क्या मोल लगाया जाये ?
हे राम यह तो हम सब के साथ बहुत बडा धोखा है, हमारे यहां टेक्सी ओर ट्र्को मै या जो भी वाहन कमाई के लिये चलते है, ओर ड्राईवर नोकरी करेअते हो उन के नाम एक कार्ड होता है, जो कार या ट्रक स्टार्ट करने से पहले मीटर के साथ लगी एक मशीन मै डालाना पडता है, जिस मै किमी ओर समय ओर सब दर्शाता है ओर चार घंटे के बाद एक घंटा आराम करना जरुरी है, ओर आठ घंटे से ज्यादा ड्राईविंग मना है, ओर इस नियम को तोडने पर भारी जुर्माना देना पडता है मालिक या ड्राईवर को
काश! वह अपना एक वाहन ले पाता :)
यही तो हमारे देश की विशेषता है दिवेदी साहब , कि जिस शोषित वर्ग को वाकई आरक्षण की जरुरत है उसे नहीं मिलता है, और मलाई खा रहे है अनुसूचित जाति जनजाति के नाम पर कुछ लोग !
जो आपके-हमारे लिए ताज्जुब की बात हे, वह सब मालिकों क लिए तो सोचने की भी नहीं। स्वार्थ का परदा ऑंखों पर पडा हो तो गरीब की हाय का भी डर नहीं
आपने जो स्थिति बताई वह दुखद है किन्तु संसार का नियम है या शोषण करो या करवाओ। इनमें से क्या बेहतर है मैं आज तक निर्णय नहीं कर पाई। या तो किसी ड्राइवर को सोने को नहीं मिलता या फिर वह केवल कुछ समय ही ड्राइव करने पर भी जानते हुए भी जब आपको उसकी आवश्यकता हो तो गहरी नींद सो रहा होता है जबकि पूरा दिन व रात वह सो सकता है।
घुघूती बासूती
यही हालात कई जगह है, मुंबई से पुणे अक्सर ऑफिस से दी हुई कैब से जाना होता था और देर रात लौटना होता. ड्रेस पहने और टूटी फूटी अंग्रेजी बोल लेने वाले ड्राइवरों से पता चलता कि उन्हें कितना मिलता है तो बड़ा आश्चर्य होता. 'सर जितना वो देते हैं उससे ज्यादा तो आप लोग टिप दे देते हैं !'. उनके नींद की डर से मैं भी खूब बातें करते हुए आता. कई बार सुबह ४ बजे से रात के २-३ बजे तक तो वो हमारी ही कैब के साथ होते.... पता नहीं सोते कब.
यह तो बड़ी कठिन जिन्दगी है। प्राइवेट में अधिक लाभ के अमानवीय तरीके दीख रहे हैं।
पैसा कमाने की हवस में कितनी जिन्दगियों से खिलवाड़ है यह.
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