@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पूँजीवाद और समाजवाद/सर्वहारा का अधिनायकवाद

सोमवार, 22 दिसंबर 2008

पूँजीवाद और समाजवाद/सर्वहारा का अधिनायकवाद

जब हम चाय पीने केन्टीन पहुँचे तो सर्दी की धूप में बाहर की कुर्सियों पर दो वरिष्ठ वकील चाय के इंतजार में मूंगफलियाँ छील कर खा रहे थे। हम भी पास की कुर्सियों पर बैठे और चाय का इन्तजार करने लगे। थोड़ी देर में हमने पाया कि मूंगफलियों की थैली सज्जनदास जी मोहता के हाथों में है और वे दो मूंगफली निकालते हैं एक जगदीश नारायण जी को देते हैं और एक खुद खाते हैं। फिर इसी क्रिया को दोहराते हैं।

मुझे यह विचित्र व्यवहार लगा। मैं ने पूछा ये क्या है भाई साहब?

जवाब मोहता जी ने दिया। यह सर्वहारा का अधिनायकवाद है याने के समाजवाद।

मैं ने पूछा- वो कैसे?

मोहता जी ने जवाब दिया - मूंगफली की थैली मेरे हाथ में है इस लिए मैं इस में से दो निकालता हूँ, एक इसे देता हूँ और एक खुद खाता हूँ। मैं समाजवादी हूँ।


यह काँग्रेसी है, पूँजीपति! थैली इस के हाथ होती तो सारी मूंगफलियाँ ये खुद ही खा जाता।


मुझे उस दिन पूँजीवाद और समाजवाद का फर्क समझ आ गया।

15 टिप्‍पणियां:

Varun Kumar Jaiswal ने कहा…

सही कहा जनाब लेकिन कांग्रेसी तो पूंजीपति से नही लगते |

अनूप शुक्ल ने कहा…

बड़ी अच्छी समझ है।

Gyan Darpan ने कहा…

मोहता जी का व्यवहार तो समाजवादी सही निकला लेकिन देश के समाजवादी नेताओं का हाल भी देख लीजिये तथाकथित समाजवादी नेताओं ने तो समाजवादी नाम का ही बेडा गर्क कर दिया |

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

अच्छी समझ!!!!लेकिन!!!!!

Arvind Mishra ने कहा…

बढियां है पर इस विचार का उदगम तो बताईये -अचानक कांग्रेस क्यों चर्चाओं पर भारी ho रही है ?

Anil Pusadkar ने कहा…

ये तो नई परिभाषा है।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

द्विवेदी जी आपका तो गजब का नजरिया निकला ! शायद इसीलिये आप एक सफ़ल अधिवक्ता हैं जो इतनी बारीक चीज को पकड कर दुध का दुध और पानी का पानी कर दिया यानि कौन कांग्रेसी और कौन समाजवादी ?

यहां तो भैंस से छोटी चीज दिखाई ही नही देती ! :)

बहुत मजा आया आज की पोस्ट मे !

रामराम !

PD ने कहा…

और जो समाजवाद के नाम पर पूंजिवादियों सा काम करे वो??

डा. अमर कुमार ने कहा…



बेहतरीन साम्य मिलाया आपने....
इसे कबूलने के सिवा अन्य कोई चारा नहीं दिखता !

विष्णु बैरागी ने कहा…

आपने वह कहावत सच प्रमाणित कर दी कि तर्कों से हम वहीं पहुंचते हैं जहां हम पहुंचना चाहते हैं । आपका निष्‍कर्ष अटपटा तो है किन्‍तु जोरदार और रोचक है ।
वैसे, प्रत्‍‍येक पूंजीपति/पूंजीवादी, स्‍वयम् को समाजवादी ही कहलाना/दिखाना चाहता है ।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

वाह! वाह!!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

इसे दूसरे पहलू से देखिये तो समाजवाद कहता लगेगा कि -

वही लो जो हम देगा।
उतना खाओ जितना हम देगा।
जितना तुम खायेगा हम भी उतना ही खायेगा।
जितना तुम लेगा या खायेगा उस पर हम नजर रखेगा।
हम अपने देश में अपने सिवा किसी का विश्वास नहीं करता है।

*टोन जरा बंगाली हो गयी है ध्यान मत दिजियेगा।

डॉ .अनुराग ने कहा…

अपुन तो अब तक सारे "वाद "को एक जैसा ही समझते है जी

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी आप की संगत मै रह कर बहुत सी ग्याण की बाते पता चल रही है,
धन्यवाद

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) ने कहा…

बहुत ही अच्छा साम्य ढूंढा आपने. लेकिन अब सर्वहारा की बात करने के "copyright protected" वामपंथियों के बारे में क्या? उनका तो पून्जीवाद भी समाजवाद है.