@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: राजस्थान चुनाव के सभी नतीजे, जनता ने सबको उन की औकात बताई,

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

राजस्थान चुनाव के सभी नतीजे, जनता ने सबको उन की औकात बताई,

 आखिर विधानसभा के चुनाव हो लिए। मैं राजस्थान के नतीजों से बहुत खुश हूँ। हमें महारानी के राज से मुक्ति मिली। अहंकार हमेशा डूबता है। यह भी अच्छा हुआ कि कांग्रेस को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। कम से कम पिछली बार जैसी काम करने की अकड़ तो पैदा नहीं होगी।

पिछली बार राजस्थान में काँग्रेस के हारने की सिर्फ एक वजह रही थी कि उस सरकार ने राज्य कर्मचारियों को कुछ ज्यादा ही रगड़ दिया था। जिस का असर उन के परिवारों पर था। उन्हों ने काँग्रेस को रगड़ दिया। इस बार दोनों को ही उन की औकात जनता ने बता दी।

इन चुनाव नतीजों ने बता दिया है कि दोनों ही दल उन्हें कोई खास पंसद नहीं। दोनों में कोई खास अंतर भी नहीं। यदि उन के पास विकल्प होता तो जरूर वे तीसरे को चुनते। जहाँ उन्हें विकल्प मिला उन्हों ने उसे चुना भी। इस चुनाव में पार्टियाँ गौण हो गय़ीं और चुनाव अच्छे और बुरे, या बुरे और कम बुरे उम्मीदवारों के बीच हुआ। जवानों को अधिक तरजीह प्राप्त हुई।

राजस्थान में ये नतीजे  दोनों प्रमुख दलों के लिए भविष्य की चेतावनी हैं। ये नतीजे विकल्प बनने वाले दलों के लिए भी चेतावनी हैं। यदि वे जनता के बीच काम करेंगे और उस के साथ चलेंगे तो उन्हें तरजीह मिलेगी अन्यथा उन के लिए कोई स्थान नहीं है।

राजस्थान के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के नतीजे इस प्रकार रहे .....

 
 
 
  
 

16 टिप्‍पणियां:

अजित वडनेरकर ने कहा…

आपकी खुशी में हमारी खुशी भी समझिये।
आपका चैनल तो बड़ा फास्ट है जी...रात में ही सारे नतीजे दे दिये। लोग तो सुबह अखबार में पढ़ेंगे।
बढ़िया है ...

डा. अमर कुमार ने कहा…

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डा. अमर कुमार ने कहा…


अरे, यह ब्लैंक कमेन्ट कैसे ? सब गड़बड़.. जी, इसे पकड़ के रखो जी !

दद्दू, औकात बतायी हो या ना बतायी हो..
हम तो उसी विचारधारा के हैं..
'होईहें कोऊ नृप हमें का हानि.. '

पण, अपुन को एक बात का खुसी है, कि
इस बार पूरी चुनाव प्रक्रिया में, मतदान में हो या मतगणना में..
कोई हिंसा नहीं हुई, कोई मारा नहीं गया..
यह क्या कम उपलब्धि है, अपुन का इंडिया में ?

Smart Indian ने कहा…

अजी, पब्लिक है यह सब जानती है!

Gyan Darpan ने कहा…

उम्मीद है कांग्रेस पिछली हार का सबक लेते हुए इस बार सही काम करेगी |

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

पब्लिक ने दिखा दिया आइना!

संजय बेंगाणी ने कहा…

जनता ने भाजपा को हराया मगर कॉग्रेस को नहीं जीताया.
किसी एक को बहुमत मिलता तो सही था, वरना अस्थिरता कतई सही नहीं होती. यह राजस्थान के लिए बूरा हुआ है.

roushan ने कहा…

वसुंधरा जी के अंहकार की बातें हम भी सुनते आ रहे थे. वस्तुतः उन्हें खुली छूट देकर भाजपा ने मोदी जैसे नतीजों की सोच रखी थी. यह अच्छा हुआ कि इस तरह की राजनीति को राजस्थान की जनता ने स्वीकारने से इनकार कर दिया
उम्मीद है नई सरकार सावधानी से काम करेगी

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

द्विवेदी जी सबसे पहले तो आपको ये लिस्ट लगाने के लिए धन्यवाद ! मुझे राजस्थान के कुछ सीटो के नतीजो को जानने में इंटरेस्ट रहता है जो मैं यहीं देख लूंगा !

अब चाहे कांग्रेस (नागनाथ) हो या भाजपा ( सांपनाथ ) हों ! क्या फर्क पड़ना है ? आप बात कर रहे हैं तीसरे विकल्प की तो आप देख लेना की तीसरा विकल्प भी अजगर नाथ ही निकलेगा ! उत्तर-प्रदेश में तीसरे विकल्प का भी हाल देख चुके हैं ! मुझे ऐसा लगता है की ये तो प्रजातंत्र की शायद कोई बेसिक कमी है जिसका इलाज अभी किसी को नही दिखाई दे रहा है !

रामराम !

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

चंद शब्दों में आपने
नतीजों का मर्म उजागर कर दिया.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Unknown ने कहा…

ताऊ, प्रजातंत्र में बेसिक कमी नहीं है, बेसिक कमी तो लोगों में ही है, यदि वसुन्धरा गुर्जरों-मीणाओं के दो पाटन के बीच न फ़ँसी होती तो तस्वीर कुछ और भी हो सकती थी, लेकिन भारत में "जातिवाद" हमेशा सभी बातों पर भारी पड़ता रहा है, चाहे हम कितने ही शिक्षित हो जायें…

रंजन (Ranjan) ने कहा…

कल से जोधपुर संभाग के नतीजे जानने के उत्सुक था.. आपने पूरी लिस्ट दे दी आभार..

एक बात गौर करने वाली है.. अशोक जी भले ही जीत गये.. पर जोधपुर शहर की बाकी दोनों विधानसभा सिटें काग्रेंस हार गई.. अपने गृह नगर में हालात कोई अच्छे नहीं है..

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

अब चाहे कांग्रेस (नागनाथ) हो या भाजपा (सांपनाथ) हों ! क्या फर्क पड़ना है ? आप बात कर रहे हैं तीसरे विकल्प की तो आप देख लेना की तीसरा विकल्प भी अजगर नाथ ही निकलेगा ! उत्तर-प्रदेश में तीसरे विकल्प का भी हाल देख चुके हैं ! मुझे ऐसा लगता है की ये तो प्रजातंत्र की शायद कोई बेसिक कमी है जिसका इलाज अभी किसी को नही दिखाई दे रहा है !

ताऊजी की उक्त टिप्पणी से सहमत। सौ लोगों में से १२ लोगों का समर्थन (वोट) पाने वाला कुर्सी पा जाता है क्यों कि शेष ८८ में से ५० लोग वोट डालने गये ही नहीं, ५-६ के वोट दूसरों ने डाल दिए, और बाकी ३०-३२ के वोट दूसरे दर्जन भर उम्मीदवारों ने अपनी जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र बताकर या दारू पिलाकर बाँट लिए। यही हमारे देसी प्रजातन्त्र का हाल है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

अजी क्या फर्क पडता है.

राज भाटिय़ा ने कहा…

जनता ने सच मै इन सब को ओकात बता दी,अब इन के कान हो गये है, या तो सीधे हो जायेगे, वरना घर जाये, लेकिन अब जनता को जागरुक रहना चाहिये अगर कोई तीसरा आता है तो उसे भी वक्त वक्त पर याद दिलाये कि तुम हमारी भीख ले कर ही बने हो, वादा पुरा करो वरना...
धन्यवाद

विष्णु बैरागी ने कहा…

वह सत्‍ता ही क्‍या जो पदान्‍ध-मदान्‍ध न करे ? सो, कुर्सी में धंसते ही सबसे पहले तो कांग्रेसी अपनी पुरानी गलतियां भूलेंगे । वे तो यह मानकर चल रहे होंगे कि नागरिकों ने प्रायश्चित किया है और वे (कांग्रेसी) सरकार में बैठकर नागरिकों पर उपकार कर रहे हैं ।
वस्‍तुत: 'लोक' को चौबीसों घण्‍टे जागरूक, सतर्क और सचेत रहना होगा, अपने नेताओं को नियन्त्रित किए रखना होगा और नेताओं को याद दिलाते रहना होगा कि वे 'लोक-सेवक' हैं 'शासक' नहीं । वे 'लोक' के लिए हैं, 'लोक' उनके लिए नहीं ।
लोकतन्‍त्र की जिम्‍मेदारी मतदान के तत्‍काल बाद समाप्‍त नहीं होती । वह तो 'अनवरत' निभानी पडती है । ऐसा न करने का दुष्‍परिणाम हम भोग ही रहे हैं - हमारे नेताओं का उच्‍छृंकल व्‍यवहार हमारी उदासीनता का ही परिणाम है ।