वक्त जैसा है, सब को पता है
उस के लिए क्या कहा जाए।
न होगा कुछ सिर्फ सोचने से
चलो कुछ काम किया जाए।।
इस वक्त में पढ़िए पुरुषोत्तम 'यकीन' की एक ग़ज़ल ...
'ग़ज़ल'
क्या हुए आज वो अहसासात यारो
- पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
क्या कहें आप से दिल की बात यारो
अपने ही करते हैं अक्सर घात यारो
पस्तहिम्मत न हो कर बैठो अभी से
और भी सख़्त है आगे रात यारो
साथ बरसातियाँ भी ले लो, ख़बर है
हो रही है वहाँ तो बरसात यारो
चोट मुझ को लगे, होता था तुम्हें दुख
क्या हुए आज वो अहसासात यारो
चाल है हर ‘यक़ीन’ उन की शातिराना
फिर हमीं पर न हो जाये मात यारो
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11 टिप्पणियां:
चोट मुझ को लगे, होता था तुम्हें दुख
क्या हुए आज वो अहसासात यारो
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल....वाह..पुरुषोतम जी वाह...
नीरज
शानदार रचना !
रामराम !
चाल है हर ‘यक़ीन’ उन की शातिराना
फिर हमीं पर न हो जाये मात यारो...
बेहद शानदार ग़ज़ल....वाह..
जल्द ही हमें ओर देश को दिल पर पत्थर रख उन घटनाओ से सबक सीखकर अपनी भूलो को सुधारना होगा.....
चोट मुझ को लगे, होता था तुम्हें दुख
क्या हुए आज वो अहसासात यारो
वो अहसास तो जिंदा होते तो ये स्थिति ही क्यों आती सर!
"साथ बरसातियाँ भी ले लो, ख़बर है
हो रही है वहाँ तो बरसात यारो"
इन पंक्तियों की मारकता अद्भुत है. अप्रत्यक्ष भाव विधान ने इन पंक्तियों का प्रभाव बढ़ा दिया है. पुरुषोत्तम जी का धन्यवाद .
अच्छी गजल है ।
खूबसूरत रचना।
सार्थक रचना!
चोट मुझ को लगे, होता था तुम्हें दुख
क्या हुए आज वो अहसासात यारो
ek sukh ki tarah hai ye gajal bahaaron ,badhai
अच्छी रचना है... वैसे आजकल कुछ भी पढने का मन नहीं कर रहा !
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